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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1384
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    28

    अ꣡च्छा꣢ नो या꣣ह्या꣡ व꣢हा꣣भि꣡ प्रया꣢꣯ꣳसि वी꣣त꣡ये꣢ । आ꣢ दे꣣वा꣡न्त्सोम꣢꣯पीतये ॥१३८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡च्छ꣢꣯ । नः꣣ । याहि । आ꣢ । व꣣ह । अभि꣢ । प्र꣡या꣢꣯ꣳसि । वी꣣त꣡ये꣢ । आ । दे꣣वा꣢न् । सो꣡म꣢꣯पीतये । सो꣡म꣢꣯ । पी꣣तये ॥१३८४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयाꣳसि वीतये । आ देवान्त्सोमपीतये ॥१३८४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अच्छ । नः । याहि । आ । वह । अभि । प्रयाꣳसि । वीतये । आ । देवान् । सोमपीतये । सोम । पीतये ॥१३८४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1384
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे अग्ने ! हे परमात्मन् ! आप (नः अच्छ) हमारी ओर (आयाहि) आओ, (वीतये) प्रगति के लिए (प्रयांसि) शान्तरसों को (अभि वह) प्राप्त कराओ, (देवान्) विद्वानों को (सोमपीतये) वीर रस के पान के लिए (आ) प्रेरित करो ॥२॥

    भावार्थ

    संसार में सब लोग वीर होकर शान्ति का प्रसार करें ॥२॥

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    पदार्थ

    (नः-अच्छ-आयाहि) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन्! तू हमारी ओर साक्षात् आगमन कर—हमें साक्षात् प्राप्त हो (वीतये) कामनापूर्ति के लिये९ (प्रयांसि-अभि वह) प्रियतम-अत्यन्त तृप्ति करने वाले ज्ञानसुखप्रसङ्गों को प्रेरित कर (सोमपीतये देवान्-आ) अमृतपान स्थान मुक्तिधाम प्राप्ति के लिये१ देवधर्मों—सत्य, वैराग्य, शम, दम आदि को प्राप्त करा॥२॥

    विशेष

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    विषय

    उपासना, सतत उद्योग, सत्सङ्ग

    पदार्थ

    'भरद्वाज बार्हस्पत्य' – अपने में शक्ति भरनेवाला – ज्ञान का पुञ्ज बनने के लक्ष्यवाला प्रभु से प्रार्थना करता है— हे प्रभो ! १. (नः अच्छ आयाहि) = आप हमारी ओर आइए - अर्थात् हम आपको प्राप्त करनेवाले बनें – आपके उपासक हों । २. आप प्(रयांसि अभि आवह) = उत्तम भोजन व उद्योगों को [food; effort] हमें प्राप्त कराइए, अर्थात् हम सात्त्विक भोजनों का प्रयोग करते हुए [प्रयस्वन्त:=बहु प्रयत्नशील – ऋ० ३.५२.६ द०] सदा पुरुषार्थ करनेवाले हों। उन्नति के लिए सदा उद्योग करते रहें । तामस् भोजन हममें निष्क्रियता पैदा न कर दें तथा राजस् भोजन हमें रुग्ण करके पुरुषार्थ के अयोग्य न कर दें | ३. (आ) = सर्वथा (देवान्) = दिव्य गुणयुक्त ज्ञानी पुरुषों को (आवह) = हमें प्राप्त कराइए, जिससे उनके सङ्ग में हम (वीतये) = अपने जीवनों को पवित्र करने व प्रकाशमय [lustre; purifying] बनाने में समर्थ हों तथा इसी उद्देश्य से (सोमपीतये) = सोम का शरीर में ही पान करनेवाले बनें, संयमी जीवनवाले हों । 

    भावार्थ

    हम १. प्रभु के उपासक बनें, २. सात्त्विक भोजनों का प्रयोग करते हुए उन्नति के लिए प्रयत्नशील हों, ३. विद्वान् सज्जनों के सङ्ग में हम अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ, प्रकाशमय करें और सदा सोम का पान करनेवाले हों । सोम की रक्षा ही जीवन की सब उन्नतियों का मूल है |

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (अग्ने) परमपुरुष परमेश्वर ! (नः) हमारे (अच्छ) सन्मुख (याहि) प्राप्त हो, हमें दर्शन दो और (वीतये) तत्व साक्षात्कार करने और (सोमपीतये) ऐश्वर्य आनन्दरस को पान करने के लिये (देवान्) इन्द्रियगणों या विद्वान् जनों को नित्य (प्रयांसि) ज्ञान (आ वह) प्राप्त कराओ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ गोतमो राहूगणः, वसिष्ठस्तृतीयस्याः। २, ७ वीतहव्यो भरद्वाजो वा बार्हस्पत्यः। ३ प्रजापतिः। ४, १३ सोभरिः काण्वः। ५ मेधातिथिमेध्यातिथी काण्वौ। ६ ऋजिष्वोर्ध्वसद्मा च क्रमेण। ८, ११ वसिष्ठः। ९ तिरश्वीः। १० सुतंभर आत्रेयः। १२, १९ नृमेघपुरुमेधौ। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १५ नोधाः। १६ मेध्यातिथिमेधातिथिर्वा कण्वः। १७ रेणुर्वैश्वामित्रः। १८ कुत्सः। २० आगस्त्यः॥ देवता—१, २, ८, १०, १३, १४ अग्निः। ३, ६, ८, ११, १५, १७, १८ पवमानः सोमः। ४, ५, ९, १२, १६, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—१, २, ७, १०, १४ गायत्री। ३, ९ अनुष्टुप्। ४, १२, १३, १६ प्रागाथं। ५ बृहती। ६ ककुप् सतोबृहती च क्रमेण। ८, ११, १५, १० त्रिष्टुप्। १७ जगती। १६ अनुष्टुभौ बृहती च क्रमेण। २९ बृहती अनुष्टुभौ क्रमेण॥ स्वरः—१, २, ७, १०, १४ षड्जः। ३, ९, १०, गान्धारः। ४-६, १२, १३, १६, २० मध्यमः। ८, ११, १५, १८ धैवतः। १७ निषादः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मानं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे अग्ने ! हे परमात्मन् ! त्वम् (नः अच्छ) अस्मान् प्रति (आयाहि) आगच्छ, (वीतये) अस्माकम् प्रगतये (प्रयांसि) शान्तरसान्। [प्रयः इति उदकनाम। निघं० १।१२।] (अभि वह) अभि प्रापय, (देवान्) विदुषः (सोमपीतये) वीररसस्य पानाय (आ) आवह ॥२॥२

    भावार्थः

    जगति सर्वे वीरा भूत्वा शान्तिं प्रसारयेयुः ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, reveal Thyself fully unto us. Grant knowledge to the learned, for enjoying happiness, and realizing truth!

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    Meaning

    Agni, leading light of knowledge, generous pioneer, come fast in all your glory, bring us the dearest powers for sustenance and advancement for the sake of peace and well-being, and bring the noble brilliancies along to celebrate success with the delight of soma. (Rg. 6-16-44)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (नः अच्छ आयाहि) હે જ્ઞાન પ્રકાશક પરમાત્મન્ ! તું અમારી તરફ સાક્ષાત્ આગમન કર અમને સાક્ષાત્ પ્રાપ્ત થા (वीतये) કામના પૂર્તિને માટે (प्रयांसि अभि वह) પ્રિયતમ-અત્યંત તૃપ્તિ કરાવનાર જ્ઞાન સુખ પ્રસંગોમાં પ્રેરિત કર. (सोम पीतये देवान् आ) અમૃતપાન સ્થાન મુક્તિધામ પ્રાપ્તિને માટે દેવધર્મો-સત્ય, વૈરાગ્ય, શમ, દમ આદિને પ્રાપ્ત કરાવ. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जगात सर्वत्र लोकांनी शूरवीर बनून शांतीचा प्रसार करावा. ॥२॥

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