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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1600
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    47

    स्तो꣣त्र꣡ꣳ रा꣢धानां पते꣣ गि꣡र्वा꣢हो वीर꣣ य꣡स्य꣢ ते । वि꣡भू꣢तिरस्तु सू꣣नृ꣡ता꣢ ॥१६००॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तो꣣त्र꣢म् । रा꣣धानाम् । पते । गि꣡र्वा꣢꣯हः । वी꣣र । य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । वि꣡भू꣢꣯तिः । वि । भू꣣तिः । अस्तु । सूनृ꣡ता꣢ । सू꣣ । नृ꣡ता꣢꣯ ॥१६००॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोत्रꣳ राधानां पते गिर्वाहो वीर यस्य ते । विभूतिरस्तु सूनृता ॥१६००॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोत्रम् । राधानाम् । पते । गिर्वाहः । वीर । यस्य । ते । विभूतिः । वि । भूतिः । अस्तु । सूनृता । सू । नृता ॥१६००॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1600
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में इन्द्र परमेश्वर की स्तुति है।

    पदार्थ

    हे (राधानां पते) ऐश्वर्यों के स्वामिन् ! (गिर्वाहः) वेदवाणियों से प्राप्त करने योग्य (वीर) शूरवीर परमात्मन् ! (यस्य ते) जिन आपका (स्तोत्रम्) स्तुतिकीर्तन सब जगह होता है, उन आपकी (सूनृता) सत्य, प्रिय और मधुर वेदवाणी, हमारे लिए (विभूतिः) वैभव देनेवाली (अस्तु) होवे ॥२॥

    भावार्थ

    वेदों को पढ़कर, उनमें विद्यमान सब विद्याओं को जानकर सब मनुष्य वैभवशाली और ब्रह्म का साक्षात्कार करनेवाले होवें ॥२॥

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    पदार्थ

    (राधानां पते) हे सिद्धियों के स्वामिन्! ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (वीर) विरोधी शक्तियों पर पराक्रम करने वाले (गिर्वाहः) स्तुतियों द्वारा उपासक को वहन करने वाले (यस्य ते स्तोत्रम्) जिस तेरा स्तुतिवचन हम करते हैं, हमारे लिये (विभूतिः-सूनृता-अस्तु) तेरी विभूति—वैभवमय सत्ता कल्याणकारी हो॥२॥

    विशेष

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    विषय

    सूनृत विभूति

    पदार्थ

    गत मन्त्र में शुन: शेप ने ज्ञान के वचनों को प्राप्त कराने के लिए प्रार्थना की थी । उस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए प्रभु शुनः शेप से कहते हैं - हे (वीर) = कामादि शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले ! (राधानां पते) = सफलताओं के पति शुन: शेप ! (गिरवाहः) = वेदवाणियों को धारण करनेवाले (यस्य ते) = जिस तेरा (स्तोत्रम्) = यह स्तुतिवचन है, अर्थात् जो तू प्रभु की स्तुति करने में प्रवृत्त है, उस तेरी (विभूतिः) = समृद्धि (सूनृता अस्तु) = प्रिय व सत्य हो ।

    प्रभु का स्तोता बनने के लिए आवश्यक है कि हम १. वीर हों – कामादि शत्रुओं को दूर भगानेवालो हों। २. कर्मों को इस प्रकार कुशलता व समझदारी से करें कि हमें सफलता-हीसफलता मिले। ३. वेदवाणियों को धारण करनेवाले बनें तथा ४. हमारी समृद्धि प्रिय व सत्य हो - अर्थात् हम क्रूरता व अन्याय से धन जुटानेवाले न हों।

    सच्चे स्तोता बनने के लिए आवश्यक ये चार बातें ही हमारे जीवन को सचमुच सुखी करेंगी और हम सच्चे अर्थों में 'शुन: शेप' बन पाएँगे ।

    भावार्थ

    मैं वीर, राधानां पति, गिर्वाह तथा सूनृत विभूतिवाला बनूँ ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (राधानां पते) समस्त आराधनाओं और ज्ञानों के एकमात्र स्वामिन् ! और समस्त विभूतियों के स्वामिन् ! हे (वीर) सर्वशक्रिमन् ! हे (गिर्वाहः) वाणियों द्वारा उपदेश करने हारे प्रभो गुरो ! (यस्य) जिसके (स्तोत्रं) समस्त सत्य उपदेश हैं उस (ते) तेरी ही (सूनृता) वेदवाणी (विभूतिः) विशेष सत्ता का प्रमाण या सम्पत्ति (अस्तु) हो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ८, १८ मेध्यातिथिः काण्वः। २ विश्वामित्रः। ३, ४ भर्गः प्रागाथः। ५ सोभरिः काण्वः। ६, १५ शुनःशेप आजीगर्तिः। ७ सुकक्षः। ८ विश्वकर्मा भौवनः। १० अनानतः। पारुच्छेपिः। ११ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः १२ गोतमो राहूगणः। १३ ऋजिश्वा। १४ वामदेवः। १६, १७ हर्यतः प्रागाथः देवातिथिः काण्वः। १९ पुष्टिगुः काण्वः। २० पर्वतनारदौ। २१ अत्रिः॥ देवता—१, ३, ४, ७, ८, १५—१९ इन्द्रः। २ इन्द्राग्नी। ५ अग्निः। ६ वरुणः। ९ विश्वकर्मा। १०, २०, २१ पवमानः सोमः। ११ पूषा। १२ मरुतः। १३ विश्वेदेवाः १४ द्यावापृथिव्यौ॥ छन्दः—१, ३, ४, ८, १७-१९ प्रागाथम्। २, ६, ७, ११-१६ गायत्री। ५ बृहती। ९ त्रिष्टुप्। १० अत्यष्टिः। २० उष्णिक्। २१ जगती॥ स्वरः—१, ३, ४, ५, ८, १७-१९ मध्यमः। २, ६, ७, ११-१६ षड्जः। ९ धैवतः १० गान्धारः। २० ऋषभः। २१ निषादः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रं परमेश्वरं स्तौति।

    पदार्थः

    हे (राधानां पते) ऐश्वर्याणां स्वामिन्, (गिर्वाहः२) गीर्भिः वेदवाग्भिः प्राप्तव्य, (वीर) शूर इन्द्र परमात्मन् ! (यस्य ते) यस्य तव (स्तोत्रम्) स्तुतिकीर्तनं सर्वत्र भवति, तस्य तव (सूनृता३) ऋतमयी प्रिया मधुरा च वेदवाक्, अस्मभ्यम् (विभूतिः) वैभवकारिणी (अस्तु) भवतु ॥२॥४

    भावार्थः

    वेदानधीत्य तत्रस्थाः सर्वा विद्या विज्ञाय सर्वे जना वैभवशालिनो ब्रह्मसाक्षात्कर्तारश्च भवन्तु ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Lord of various sorts of knowledge, O Omnipotent God, O Preacher through Vedic hymns, Thy teachings arc true. Thy Vedic speech is an authority for excellence!

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    Meaning

    Indra, celebrated in the divine voice of revelation, creator and guardian of the world and its wealth, mighty lord of omnipotence, great and true is your glory, and may our praise and prayer to you be truly realised for our strength and joy of life. (Rg. 1-30-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (राधानां पते) હે સિદ્ધિઓના સ્વામીન્ ! ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (वीर) વિરોધી શક્તિઓ પર પરાક્રમ કરનાર (गीर्वाहः) સ્તુતિ દ્વારા ઉપાસકને વહન કરનાર (यस्य ते स्तोत्रम्) જે તારા સ્તુતિ વચન અમે કરીએ છીએ, અમારા માટે (विभूतिः सूनृता अस्तु) તારી વિભૂતિ-વૈભવમય સત્તા કલ્યાણકારી છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वेदांचे अध्ययन करावे. त्यातील विद्यमान सर्व विद्यांना जाणून सर्व माणसांनी वैभवशाली बनावे व ब्रह्माचा साक्षात्कार करावा. ॥२॥

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