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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1726
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    29

    अ꣡श्वे꣢व चि꣣त्रा꣡रु꣢षी मा꣣ता꣡ गवा꣢꣯मृ꣣ता꣡व꣢री । स꣡खा꣢ भूद꣣श्वि꣡नो꣢रु꣣षाः꣡ ॥१७२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡श्वा꣢꣯ । इ꣣व । चित्रा꣢ । अ꣡रु꣢꣯षी । मा꣣ता꣢ । ग꣡वा꣢꣯म् । ऋ꣣ता꣡व꣢री । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ । भूत् । अश्वि꣡नोः꣢ । उ꣣षाः꣢ ॥१७२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वेव चित्रारुषी माता गवामृतावरी । सखा भूदश्विनोरुषाः ॥१७२६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वा । इव । चित्रा । अरुषी । माता । गवाम् । ऋतावरी । सखा । स । खा । भूत् । अश्विनोः । उषाः ॥१७२६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1726
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय को कहा गया है।

    पदार्थ

    प्रथम—प्राकृतिक उषा के पक्ष में। (अश्वा इव) आकाश-व्यापी बिजली के समान (चित्रा) चित्र-विचित्र रंगवाली, (अरुषी) चमकीली, (गवां माता) किरणों की जननी, (ऋतावरी) सत्य नियमवाली (उषाः) उषा (अश्विनोः) आकाश और भूमि की (सखा) सहचरी (अभूत्) हो गयी है ॥ द्वितीय—दिव्य उषा के पक्ष में। (अश्वा इव) व्याप्त विद्युत् के समान (चित्रा) अद्भुत, (अरुषी) हिंसा न करनेवाली, (गवां माता) अध्यात्म-रश्मियों की माता (ऋतावरी) सत्यमयी (उषाः) ऋतम्भरा प्रज्ञा (अश्विनोः) आत्मा और मन की (सखा) सहचरी (अभूत्) हो गयी है ॥२॥ यहाँ श्लेष और उपमा अलङ्कार हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे अटल नियम से प्रतिदिन उदित होती हुई प्रकाशवती प्राकृतिक उषा आकाश-भूमि में व्याप जाती है, वैसे ही योगमार्ग में सत्यमयी ऋतम्भरा प्रज्ञा योगसाधक के आत्मा और मन को व्याप लेती है ॥२॥

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    पदार्थ

    (उषाः) परमात्मरूप दीप्ति या परमात्मज्योति (अश्वा-इव) व्यापनशील६ (चित्रा) चायनीया दर्शनीया (अरुषी) आरोचमान७ (गवां माता) स्तोताओं८ का मान करनेवाली (ऋतावरी) अमृतवाली९ (अश्विनोः-सखाः-अभूत्) श्रोत्रों—कानों१० की सखा—समान ख्यान धर्मवाली है कान सुनते हैं वह भी उपासक की स्तुति सुनती है॥२॥

    विशेष

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    विषय

    इन्द्रियों की निर्मात्री उषा

    पदार्थ

    यह (उषा) = उष:काल १. (अश्वा इव) = [अश् व्याप्तौ] जैसे मनुष्यों को बिस्तरा छोड़कर उठने व कर्मों में व्यापृत होने के लिए प्रेरित करती है, उसी प्रकार २. (चित्रा) = [चित्+रा] यह ज्ञान का प्रकाश भी देनेवाली है । उषा से कर्म व ज्ञान दोनों की प्रेरणा प्राप्त होती है । ‘कर्मेन्द्रियाँ कर्मों में प्रवृत्त हों और ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान से जगमगाने लगें' यही तो उषा कह रही है कि 'हे मनुष्य ! तू उठ और कर्मों में लग तथा स्वाध्याय में प्रवृत्त हो ।'

    ३. इस प्रकार यह उषा (गवां माता) = इन्द्रियों का [गाव इन्द्रियाणि] उत्तम निर्माण करनेवाली है। अपने-अपने कार्यों में लगी हुई इन्द्रियाँ ही तो उत्तम बनती हैं।

    ४. यह उषा (ऋतावरी) = है – [ऋत=pious act] पवित्र कर्मोंवाली है। इसमें सज्जन व्यक्ति यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहते हैं।

    ५. यह उषा (अश्विनो:) = प्राणापान की (सखा अभूत्) = मित्र होती है, अर्थात् योगी लोग इसमें ही मुख्यरूप से प्राणापान की साधना करते हैं । ६. इस प्रकार यह उषा (अरुषी) = तेजस्वी है। इससे प्रेरणा प्राप्त करनेवाले मनुष्य को यह तेजस्वी बनाती है ।

    ३. इस प्रकार पुरुमीढ और (अजमीढ) = पालक व वासनाओं के नाशक युद्धोंवाले लोग इस उषा में १. क्रियाशील बनते हैं - आलस्य को त्यागते हैं, २. स्वाध्याय द्वारा ज्ञान की वृद्धि करते हैं, कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को परिष्कृत करते हैं, ४. यज्ञादि कर्मों को विस्तृत करते हैं, ५. प्राणापान की साधना करते हैं और ६. अपने को तेजस्वी बनाते हैं । 

    भावार्थ

    उषा मेरे जीवन को तेजस्वी बनाये ।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (उषा) अज्ञानाङ्कुरों का दहन करने हारी उषा साधक की विशोका प्रज्ञा (अश्वा) व्यापनशील विद्युत् के समान (चित्रा) विचित्र संज्ञानवती, (अरुषी) सब प्रकार से कान्तिमती तेजस्विनी, (गवां) इन्द्रियरूप गोओं की (माता) उत्पादन करने वाली (ऋतावरी) सत्य ज्ञान को वरण करने हारी या प्राप्त करने हारी ऋतम्भरा स्वरूप (अश्विना) शरीर भर में व्यापक प्राण और अपान इन दोनों की (सखा) साथ रहने वाली, उनके साथ ही वर्णन की जाने योग्य, अथवा समान रूप से इन्द्रिय देशों में व्याप्त (अभूत्) है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१ विरूप आंङ्गिरसः। २, १८ अवत्सारः। ३ विश्वामित्रः। ४ देवातिथिः काण्वः। ५, ८, ९, १६ गोतमो राहूगणः। ६ वामदेवः। ७ प्रस्कण्वः काण्वः। १० वसुश्रुत आत्रेयः। ११ सत्यश्रवा आत्रेयः। १२ अवस्युरात्रेयः। १३ बुधगविष्ठिरावात्रेयौ। १४ कुत्स आङ्गिरसः। १५ अत्रिः। १७ दीर्घतमा औचथ्पः। देवता—१, १०, १३ अग्निः। २, १८ पवमानः सोमः। ३-५ इन्द्रः। ६, ८, ११, १४, १६ उषाः। ७, ९, १२, १५, १७ अश्विनौ॥ छन्दः—१, २, ६, ७, १८ गायत्री। ३, ५ बृहती। ४ प्रागाथम्। ८,९ उष्णिक्। १०-१२ पङ्क्तिः। १३-१५ त्रिष्टुप्। १६, १७ जगती॥ स्वरः—१, २, ७, १८ षड्जः। ३, ४, ५ मध्यमः। ८,९ ऋषभः। १०-१२ पञ्चमः। १३-१५ धैवतः। १६, १७ निषादः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    प्रथमः—प्राकृतिक्या उषसः पक्षे। पश्यत, (अश्वा इव) अतरिक्षव्यापिनी विद्युदिव (चित्रा) चित्रवर्णा, (अरुषी) आरोचमाना। [अरुषीः आरोचनात्। निरु० १२।७।] (गवाम् माता) रश्मीनां जननी, (ऋतावरी) सत्यनियमवती। [अत्र छन्दसीवनिपौ वा०, अ० ५।२।१०९ इति वनिप्। ‘वनो र च’ अ० ४।१।७ इति स्त्रियां ङीष् नकारस्य रेफश्च। ‘अन्येषामपि दृश्यते।’ अ० ६।३।१३७ इति ऋतस्य दीर्घान्तादेशः।] (उषाः) प्रभातकान्तिः (अश्विनोः) द्यावापृथिव्योः (सखा) सखी, सहचारिणी (अभूत्) अजायत। [सखिशब्दस्य स्त्रियां सखी इति प्राप्ते, छन्दसि स्त्रियामपि ‘अनङ् सौ’ अ० ७।१।९३ इत्यनङि सखा इति रूपं भवति] ॥ द्वितीयः—दिव्याया उषसः पक्षे। (अश्वा इव) व्यापिनी विद्युदिव (चित्रा) अद्भुता, (अरुषी) अहिंसिका। [रोषति हिनस्तीति रुषी, न रुषी अरुषी। रुष हिंसार्थः, भ्वादिः।] (गवाम् माता) अध्यात्मकिरणानां जननी, (ऋतावरी) ऋतमयी (उषाः) ऋतम्भरा प्रज्ञा (अश्विनोः) आत्ममनसोः (सखा) सहचारिणी (अभूत्) अजायत ॥२॥२ अत्र श्लेष उपमा चालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    यथा सत्यनियमेन प्रत्यहमुदीयमाना दीप्तिमती प्राकृतिक्युषा द्यावापृथिव्यौ व्याप्नोति तथैव योगमार्गे सत्यमयी ऋतम्भरा प्रज्ञा योगसाधकस्यात्ममनसी व्याप्नोति ॥२॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    The Dawn is brilliant like the lightning, red in colour, the mother of rays, the well-wisher of all, and the companion of the Prana and Apana.

    Translator Comment

    Mother of rays: Rays of the Sun follow the Dawn. She is therefore spoken of as their mother. Companion of; Ashwins are the Prana and Apana, whose friend is the Dawn, as early in the morning the control of the Prana and Apana is exercised through Yoga.

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    Meaning

    Like a graceful mare, crimson red, wondrous bright, mother pioneer of sunrays, shower of natures light and bliss, the dawn is a friend of the Ashvins, the sun and moon. (Rg. 4-52-2)

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    Translation

    The Usha (Divine Dawn of Illumination) is like resplendent and wonderful lightning, holy, the mother of the rays of light endowed with truth and is the companion of the teacher and the preacher or the prāna and apāna.

    Comments

    (अश्वेव) -विद्युद्वत् अग्निर्वाश्वः श्वेतः (शत० ३ । ६। २ । ५) अग्निरेष यदश्वः (शत० ३। ३। ३२) (गवाम्) - ज्ञानरश्मीनाम गावइति रश्मिनाम (निघ० १। ५) अश्विनौ-अध्यापकोपदेशकौ अश्विनावध्वर्यू (शत० १। १८ शत० १। २। १७) - अध्यापकोपदेशकाविति महर्षि दयानन्दः ऋ० ५ । ७८ भाष्येऽन्यत्र च । अथवा प्राणापानौ अश्विनाविति पदेन ग्रहीतु शवयेते यथा महर्षि दयानन्देन यजु० २१ २६ मन्त्रभाष्ये अन्यत्र च व्याख्यातम् ।

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    Translation

    The dawn, in colour like a beautiful mare, the radiant mother of the rays of light, the subject of worship, is the friend of the twin-divines — the Sun and moon.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

     

    પદાર્થ : (उषाः) દીપ્તિ અથવા પરમજ્યોતિ (अश्वा इव) વ્યાપનશીલ (चित्रा) ચાયનીયા દર્શનીયા (अरुषी) અરોચમાન ઉદયમાન (गवां माता) સ્તોતાઓનું માન કરનારી (ऋतावरी) અમૃતવાળી (अश्विनोः सखाः अभूत्) શ્રોતો-કાનોની મિત્ર-સમાન નામ ધર્મવાળી છે. કાન સાંભળે છે, તે પણ ઉપાસકની સ્તુતિ સાંભળે છે. (૨)

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी अटळ नियमाप्रमाणे प्रत्येक दिवशी उदयास येणारी प्रकाशयुक्त प्राकृतिक उषा आकाश व भूमीला व्यापते तसेच योगमार्गात सत्यमयी ऋतंभरा प्रज्ञा योग साधकाचा आत्मा व मन व्यापते. ॥२॥

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