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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1841
    ऋषिः - उलो वातायनः देवता - वायुः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    23

    उ꣣त꣡ वा꣢त पि꣣ता꣡सि꣢ न उ꣣त꣢꣫ भ्रातो꣣त꣢ नः꣣ स꣡खा꣢ । स꣡ नो꣢ जी꣣वा꣡त꣢वे कृधि ॥१८४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ꣣त꣢ । वा꣢त । पिता꣢ । अ꣣सि । नः । उत꣢ । भ्रा꣡ता꣢꣯ । उ꣣त꣢ । नः꣣ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ । सः꣢ । नः꣣ । जीवा꣡त꣢वे । कृ꣣धि ॥१८४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा । स नो जीवातवे कृधि ॥१८४१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत । वात । पिता । असि । नः । उत । भ्राता । उत । नः । सखा । स । खा । सः । नः । जीवातवे । कृधि ॥१८४१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1841
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में प्राण के महत्त्व का वर्णन करते हुए उससे प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    (उत) और, हे (वात) जीवात्मा-सहित प्राण ! तू (नः) हमारा (पिता) पिता के समान पालनकर्ता (असि) है, (उत) और (नः) हमारा (भ्राता) भाई के समान भरणपोषणकर्ता, (उत) तथा (सखा) सखा के समान सहायक है। (सः) वह तू (नः) हमें (जीवातवे) स्वस्थ जीवन के लिए (कृधि) समर्थ कर ॥२॥ यहाँ वात में पितृत्व, भ्रातृत्व और सखित्व के आरोप होने से रूपक अलङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    जीवात्मा-सहित प्राण के द्वारा ही प्राणियों के जन्म, वृद्धि, क्षतिपूर्ति, आरोग्य और दीर्घायुष्य आदि होते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (वात) हे विभुगतिमन् परमात्मन्! तू (नः) हमारा (पिता-असि) पिता है (उत) अपि (भ्राता) भ्राता है (उत) और (नः) हमारा (सखा) समानख्यान मित्र है (सः) वह तू (नः) हमें (जीवातवे कृधि) जीवन के लिये योग्य कर—बना॥२॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु प्रेरणा ही पिता, भ्राता व सखा है

    पदार्थ

    (उत) = और (वात) = हे प्रभु-प्रेरणे! तू ही (न:) = हमारी (पिता असि) = रक्षक है, पालन करनेवाली है। संशय से आन्दोलित मन में प्रेरणा ही प्रकाश प्राप्त कराती है और हमें विनाश से बचाती है । (उत) = और यह प्रेरणा ही (नः) = हमारी (भ्राता) = धारण व पोषण करनेवाली है। इसके अभाव में हमें चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार दिखता है और हम संशय-समुद्र में ही डूबकर समाप्त हो जाते हैं । (उत) = और यह प्रेरणा ही (नः) = हमारी (सखा) = मित्र है – पाप से बचानेवाली है । इसके अभाव में हम न जाने किन-किन पापों में फँस जाते हैं ।

    इस प्रकार हे प्रेरणे! (सः) = वह तू (नः) = हमारे (जीवातवे) = जीवन के लिए (कृधि) = सब आवश्यक उपायों को कर । हमपर वासनाओं का आक्रमण होता है और हम उनके शिकार बन जाते यदि इस प्रेरणा ने ‘पिता’ की भाँति हमारी रक्षा न की होती । इस संसार- समुद्र में कितने ही चमकते विषयरत्नों ने हमें अत्यधिक बोझल कर डुबो दिया होता, यदि यह प्रेरणा हमें पार लगानेवाले ‘भ्राता' का काम न करती [भृ=to bear across]। इस संसार की अश्मन्वती नदी को हम न लाँघ पाते यदि इस प्रेरणा ने सखा बनकर हमारा हाथ न पकड़ा होता । एवं, यह प्रेरणा पिता है, भ्राता है और हमारा सखा है। यह हमें मृत्यु से बचाकर अमृत प्राप्त कराती है।

    भावार्थ

    प्रभु-प्रेरणा को ही हम अपना जीवन जानें ।

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    पदार्थ

     शब्दार्थ = ( उत वात नः पिता ) = और हे महाशक्तिवाले वायो! आप हमारे पालक  ( उत भ्राता ) = और सहायक  ( उत नः सखा ) = और हमारे मित्र  ( असि ) = हैं  ( स: ) = वह आप  ( नः जीवातवे कृधि ) = हमको जीवन के लिए समर्थ करो । 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! आप महासमर्थ और हमारे पिता,भ्राता, सखा आदि रूप हैं । हम पर कृपा करो कि हम ब्रह्मचर्यादि साधन सम्पन्न  होकर, पवित्र और बहुत काल तक जीवनवाले बनें, जिससे हम अपना कल्याण कर सकें। आप महापवित्र और पतित पावन हैं, हमारी इस प्रार्थना को स्वीकार कर, हमें पवित्र, दीर्घजीवी बनावें, जिससे आपकी भक्ति और पर उपकार आदि उत्तम काम करते हुए हम अपने मनुष्य जन्म को सफल कर सकें।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे वात ! सर्वव्यापक परमात्मन् ! आप (नः) हमारे (पिता असि) प्राणवायु के समान समान साक्षात् पालक हैं, (उत भ्राता) और प्राण वायु के भरण पोषण करने वाले और (नः सखा) हमारे आत्मा के समान हमारे प्रेमी मित्र हैं। (सः) वह आप (नः) हमें (जीवातवे) जीवनमय यज्ञ के लिये सदा समर्थ (कृधि) करो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ अग्निः पावकः। २ सोभरिः काण्वः। ५, ६ अवत्सारः काश्यपः अन्ये च ऋषयो दृष्टलिङ्गाः*। ८ वत्सप्रीः। ९ गोषूक्तयश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १० त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिंधुद्वीपो वाम्बरीषः। ११ उलो वातायनः। १३ वेनः। ३, ४, ७, १२ इति साम ॥ देवता—१, २, ८ अग्निः। ५, ६ विश्वे देवाः। ९ इन्द्रः। १० अग्निः । ११ वायुः । १३ वेनः। ३, ४, ७, १२ इतिसाम॥ छन्दः—१ विष्टारपङ्क्ति, प्रथमस्य, सतोबृहती उत्तरेषां त्रयाणां, उपरिष्टाज्ज्योतिः अत उत्तरस्य, त्रिष्टुप् चरमस्य। २ प्रागाथम् काकुभम्। ५, ६, १३ त्रिष्टुङ। ८-११ गायत्री। ३, ४, ७, १२ इतिसाम॥ स्वरः—१ पञ्चमः प्रथमस्य, मध्यमः उत्तरेषां त्रयाणा, धैवतः चरमस्य। २ मध्यमः। ५, ६, १३ धैवतः। ८-११ षड्जः। ३, ४, ७, १२ इति साम॥ *केषां चिन्मतेनात्र विंशाध्यायस्य, पञ्चमखण्डस्य च विरामः। *दृष्टिलिंगा दया० भाष्ये पाठः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्राणस्य महत्त्वं वर्णयन् तं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    (उत) अपि च, हे (वात) जीवात्मसहचरित प्राण ! त्वम् (नः) अस्माकम् (पिता) पितृवत् पालकः (असि) विद्यसे, (उत) अपि च (नः) अस्माकम् (भ्राता) भ्रातृवद् भर्ता, (उत) अपि च (नः) अस्माकम् (सखा) मित्रवत् सहायकः वर्तसे। (सः) असौ त्वम् (नः) अस्मान् (जीवातवे) स्वस्थजीवनाय (कृधि) समर्थान् कुरु ॥२॥ अत्र वाते पितृभ्रातृसखित्वारोपाद् रूपकालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    जीवात्मसहचरितेन प्राणेनैव प्राणिनां जन्म वृद्धिः क्षतिपूर्तिरारोग्यं दीर्घायुष्यादिकं च जायते ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Thou art our Father O God. Yea, Thou art our Brother and our Friend. So give us strength that we may live !

    Translator Comment

    Vata may mean air as well. Air protects us like a father, nourishes us like a brother, helps us like a friend, and makes us enjoy a long life.

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    Meaning

    O wind of life energy, you are our fatherly protector and promoter, our brother, our friend. Pray strengthen and inspire us to live a full life. (Rg. 10-186-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वात) હે વિભુ ગતિમાન પરમાત્મન્ ! તું (नः) અમારો (पिता असि) પિતા છે. (उत) અને (भ्राता) ભાઈ-બંધુ છે. (उत) અને (नः) અમારો (सखा) સમાન નામ મિત્ર છે. (सः) તે તું (नः) અમને (जीवातवे कृधि) જીવનને માટે યોગ્ય કર-બનાવ. (૨)
     

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    উত বাত পিতাসি ন উত ভ্রাতোত নঃ সখা।

    স নো জীবাতবে কৃধি।।৭৩।।

    (সাম ১৮৪১)

    পদার্থঃ (উত বাত নঃ পিতা) এবং হে মহাশক্তিশালী! তুমি আমাদের পালক (উত ভ্রাতা) এবং সহায়ক (উত নঃ সখা) এবং তুমি আমাদের মিত্র (অসি) হও। (সঃ) সেই তুমিই (নঃ জীবাতবে কৃধি) আমাদের জীবনের জন্য সামর্থ্য প্রদান করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সর্বশক্তিমান পরমাত্মা! তুমি মহা সামর্থ্যবান এবং তুমিই আমাদের পিতা, ভ্রাতা, সখা রূপ। আমাদের কৃপা করো যাতে আমরা ব্রহ্মচর্যাদি সাধন সম্পন্ন হয়ে পবিত্র ও দীর্ঘায়ু হই। তুমি মহান পবিত্র ও পতিত পাবন। আমাদের এই প্রার্থনা স্বীকার করে আমাদের দীর্ঘজীবী করো, যার দ্বারা আমরা পরোপকার এবং অন্যান্য উত্তম কর্ম করে মনুষ্য জন্ম সফল করতে পারি।।৭৩।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवात्मासहित प्राणाद्वारेच प्राण्यांचे जन्म, वृद्धी, क्षतिपूर्ती, आरोग्य व दीर्घायुष्य इत्यादी होतात. ॥२॥

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