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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 274
    ऋषिः - भर्गः प्रागाथः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    31

    य꣡त꣢ इन्द्र꣣ भ꣡या꣢महे꣣ त꣡तो꣢ नो꣣ अ꣡भ꣢यं कृधि । म꣡घ꣢वञ्छ꣣ग्धि꣢꣫ तव꣣ त꣡न्न꣢ ऊ꣣त꣢ये꣣ वि꣢꣫ द्विषो꣣ वि꣡ मृधो꣢꣯ जहि ॥२७४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य꣡तः꣢꣯ । इ꣣न्द्र । भ꣡या꣢꣯महे । त꣡तः꣢꣯ । नः꣣ । अ꣡भ꣢꣯यम् । अ । भ꣣यम् । कृधि । म꣡घ꣢꣯वन् । श꣣ग्धि꣢ । त꣡व꣢꣯ । तत् । नः꣣ । ऊत꣡ये꣢ । वि । द्वि꣡षः꣢꣯ । वि । मृ꣡धः꣢꣯ । ज꣣हि ॥२७४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत इन्द्र भयामहे ततो नो अभयं कृधि । मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतये वि द्विषो वि मृधो जहि ॥२७४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यतः । इन्द्र । भयामहे । ततः । नः । अभयम् । अ । भयम् । कृधि । मघवन् । शग्धि । तव । तत् । नः । ऊतये । वि । द्विषः । वि । मृधः । जहि ॥२७४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 274
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमात्मा और राजा से निर्भयता की याचना है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) शत्रुविदारक परमात्मन् अथवा राजन् ! हम लोग (यतः) जिससे (भयामहे) भय खाते हैं, (ततः) उससे (नः) हमारी (अभयम्) निर्भयता (कृधि) कर दो। हे (मघवन्) निर्भयतारूप धन के धनी ! आप (शग्धि) हमें शक्तिशाली बनाओ, (तव) आपका (तत्) वह अभय-प्रदान (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिए होवे, आप (द्विषः) द्वेष-वृत्तियों को अथवा द्वेष करनेवालों को (विजहि) विनष्ट कर दो, (मृधः) हिंसावृत्तियों को अथवा आपस के युद्धों को (विजहि) समाप्त कर दो ॥२॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। ‘भया, भयं’ में छेकानुप्रास है। तकार की आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है ॥२॥

    भावार्थ

    महाबली परमात्मा को हृदय में धारण करके और महापराक्रमी पुरुष को राजा के पद पर अभिषिक्त करके, उनसे अभय पाकर, महत्त्वाकांक्षा जगाकर, महान् कार्यों को करके संसार से द्वेषवृत्तियाँ, हिंसावृत्तियाँ और युद्ध समाप्त करने चाहिएँ और राष्ट्रों में शान्ति एवं सद्भावना स्थापित करनी चाहिए ॥२॥

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    पदार्थ

    (मघवन्-इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (यतः-भयामहे) जिससे हम भय करें (ततः-नः-अभयं कृधि) उससे हमें अभय कर (तव) हम तेरे हैं (शग्धि) तू समर्थ है (तत्) तिस कारण (नः-ऊतये) हमारी रक्षा के लिये (द्विषः-विजहि) द्वेषवृत्तियों को नष्ट कर (मृधः-वि) पाप भावनाओं को विनष्ट कर “पाप्मा वै मृधः” [श॰ ६.२.३.८]।

    भावार्थ

    हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! जिस दुर्भाव से हम डरते हैं उससे हमें अभय कर—उसे कभी न सेवन कर सकें, तू ऐसा करने में समर्थ है, अतः हम तेरी शरण में हैं तिससे तू हमारी रक्षा के लिये द्वेष भावनाओं और पाप वृत्तियों को हमसे नष्ट कर—उन्हें दूर रख॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—भर्गः (ज्ञानमय तेज वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    अभय-याचना

    पदार्थ

    इस मन्त्र का ऋषि ‘भर्गः प्रागाथः' है। पिछले मन्त्र के वर्णन के अनुसार जो व्यक्ति ‘पुरुहन्मा' के जीवन को अपनाएगा वह अवश्य तेजस्वी बनेगा और यदि प्रभु का गायन करते हुए ‘प्रागाथ' इस नाम को सार्थक करेगा तो उसकी यह तेजस्विता बनी ही रहेगी, परन्तु ज्योंहि यह प्रभु से दूर हुआ इसे भय प्राप्त हुआ, अतः यह प्रभु से प्रार्थना करता है कि (इन्द्र) = हे शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (यतः भयामहे) =  जहाँ-जहाँ से हमें भय प्राप्त हो (तत:)=वहाँ-वहाँ से (नः) = हमें (अभयं कृधि) = निर्भय कीजिए। मैं वासनाओं के साथ युद्ध तो करूँगा, परन्तु क्या अकेला मैं उन्हें जीत पाऊँगा? नहीं, कदापि नहीं । हे (मघवन्) = अनन्त ऐश्वर्यशाली प्रभो! (शग्धि) = आप शक्तिशाली हैं, इन वासनाओं से युद्ध में आप ही मुझे विजय प्राप्त कराएँगे। आप ही समर्थ हैं। इन वासनाओं पर यदि विजय होती है तो (तत्) = वह (तव)=आपकी ही है। उसमें मेरा क्या है? यह विचार ही (नः) = हमारे (ऊतये)=रक्षण के लिए होता है अन्यथा वासनाओं पर विजय का गर्व होकर फिर हम अभिमान के शिकार हो जाते हैं और इस अभिमान में पड़कर राग-3 -द्वेष के चक्र में चल पड़ते हैं, अतः प्रभो! आप कृपा करो–हमारी वृत्ति को अभिमानरहित करो और (विद्विषः) = द्वेष की भावनाओं को, (विमृधः) = हिंसा की वृत्तियों को (जहि) = हमसे दूर करो। हमारा जीवन निर्भयता के साथ माधुर्यमय हो । ('भूयासं मधु संदृश:') = मैं मधु - जैसा ही बन जाऊँ। अभिमान मुझे द्वेष और हिंसा की ओर न घसीट ले-जाए|

    भावार्थ

    मैं अनुभव करूँ कि मेरी जीवन-यात्रा को पूर्ण करनेवाले प्रभु ही हैं। 

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( इन्द्र ) = हे परमेश्वर ! ( यतः भयामहे ) = जिस से हम भय को प्राप्त हों  ( ततो नो अभयं कृधि ) = इस से हमको निर्भय कीजिये ।  ( मघवन् ) = हे ऐश्वर्ययुक्त प्रभो  ( तव ) = आपके  ( न: ) = हम लोगों की  ( ऊतये ) = रक्षा के लिए  ( तं शग्धि ) = उसे अभय करने को आप समर्थ हैं। हमारी याचना को पूर्ण कीजिए  ( मृधः ) = हिंसक  ( द्विषो वि जहि ) = शत्रुओं को नष्ट कीजिये ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे सर्वशक्तिमन् प्रभो ! जहाँ-जहाँ से हमें भय प्राप्त होने लगे, वहाँ-वहाँ से हमें निर्भय कीजिये । हमें निर्भय करने को आप महासमर्थ हैं इसलिए आपसे ही हमारी प्रार्थना है कि हमारे बाहर के शत्रु और विशेष करके हमारे भीतर के काम क्रोधादि सर्व शत्रुओं का नाश कीजिये जिस से हम निर्विघ्न होकर आपके ध्यानयोग में प्रवृत्त हुए मुक्ति को प्राप्त होवें ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे इन्द्र  !( यतः ) = जिससे हम ( भयामहे ) = भय करते है ( नः ) = हमें  ( ततः ) = उससे ( अभयं ) = भयरहित ( कृधि ) कर । हे मघवन् ! ( तव  तत् ) = तेरा वह बल है कि ( नः, ऊतये ) = हमारी रक्षा के लिये ( शाधि ) = तू समर्थ है, इस कारण ( द्विषः ) = नाना द्वेष करने हारे ( मृधः ) = नाना झगड़ने हारे, संग्रामकारी शत्रुओं को ( वि,जहि ) = विविध उपायों से नाश कर । 

    टिप्पणी

    २७४‘तवतन्न ऊतिभिः' इति ऋ. । 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - भर्गः ।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - बृहती।

    स्वरः - मध्यमः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रनाम्ना परमात्मानं राजानं च निर्भयत्वं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (इन्द्र) शत्रुविदारक निर्भय परमेश्वर राजन् वा ! वयम् (यतः) यस्मात् (भयामहे) बिभीमः। ञिभी भये जुहोत्यादिर्वेदे भ्वादिरपि प्रयुज्यते। (ततः) तस्मात्, (नः) अस्माकम् (अभयम्) निर्भयत्वं (कृधि) कुरु। डुकृञ् करणे धातोः ‘श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि, अ० ६।४।१०२’ इति हेर्धिः। हे (मघवन्) अभयरूपेणैश्वर्येण ऐश्वर्यवन् ! त्वम् (शग्धि) अस्मान् शक्तान् कुरु। (शक्लृ) शक्तौ, स्वादिः, णिजर्थगर्भः, श्नोर्लुक् छान्दसः। (तव) त्वदीयम् (तत्) अभयप्रदानम् (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षायै, भवत्विति शेषः। त्वम् (द्विषः) द्वेषवृत्तीः द्वेषकर्तॄन् वा (वि) विजहि, (मृधः) हिंसावृत्तीः पारस्परिकसंग्रामान् वा। (मृधः) इति संग्रामनाम। निघं० २।१७। (विजहि) समापय ॥२॥ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः। ‘भया, भयं’ इति छेकानुप्रासः, तकारावृत्तौ वृत्त्यनुप्रासः ॥२॥

    भावार्थः

    महाबलं परमात्मानं हृदि निधाय महापराक्रमं पुरुषं च राजपदेऽभिषिच्य तद्द्वारेणाभयं प्राप्य महत्त्वाकांक्षामुद्बोध्य महान्ति कार्याणि कृत्वा संसाराद् द्वेषवृत्तयो हिंसावृत्तयः सङ्ग्रामाश्च समाप्तव्याः, शान्तिः सद्भावना च स्थापनीया ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।६१।१३, ‘ऊतये’ इत्यत्र ‘ऊतिभिर्’ इति पाठः। अथ० १९।१५।१ ऋषिः अथर्वा, ‘तन्न ऊतये’ इत्यत्र ‘त्वं न ऊतये’ इति पाठः। साम० १३२१।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, give us security from that whereof we are afraid O Mighty Lord, Thy power is adequately For our protection, keep away from us the vices of hatred and violence.

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    Meaning

    Indra, lord indomitable, whoever, whatever and wherever we fear, make us fearless from that. O lord of might and world power, pray strengthen us with your powers and protections of the highest order. Eliminate the jealous, the malignant, the disdainers and contemnors. (Rg. 8-61-13)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मघवन् इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (यतः भयामहे) જેનાથી અમે ભય પામીએ (ततः नः अभयं कृधि) તેનાથી અમને અભય કર (तव) અમે તારા છીએ (शग्धि) તું સમર્થ છે (तत्) તેથી (नः ऊतये) અમારી રક્ષા માટે (द्विषः विजहि) દ્વેષ વૃત્તિઓને નષ્ટ કર (मृधः वि) પાપ ભાવનાઓને વિનષ્ટ કર . ( ૨ )

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! જે દુર્ભાવથી અમે ડરીએ છીએ . તેથી અમને અભય કર તેનું કદીપણ સેવન ન કરીએ , તું એમ કરવામાં સમર્થ છે , તેથી અમે તારી શરણમાં છીએ , તેથી તું અમારી રક્ષાને માટે દ્વેષ ભાવનાઓ અને પાપવૃત્તિઓનો અમારામાંથી નાશ કર તેને દૂર રાખ . ( ૨ ) 

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بیخوف ہو کر رہیں!

    Lafzi Maana

    اندر پرمیشور! (یتہ بھیا مہے تتہ ابھیم کردھی) جہاں جہاں سے ہم خوفزدہ ہوں وہاں سے ہمیں ڈر سے مبّرا کیجئے۔ مال و زر کے مالکِ کل اِیشور! (مگھوں شکدھی تت تئونہ اُوتیئے) ہمیں طاقت ور بنائیے جس سے ہم محفوظ رہیں، (دوشہ وجہی) ہمارے اندر کی بُغض و حسد وغیرہ بُرائیوں کو دُور کیجئے۔ مار دیجئے۔ (مرِدھ وِجہی) ہم پربدیوں کے حملوں کو تحس نحس کر دیجئے۔

    Tashree

    ڈر ہو جہاں اُس سے ہمیں ہے اِندر بے ڈر کیجئے، شکتی کے بھنڈار جب ہو شکتی ہم کو دیجئے۔

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    যত ইন্দ্র ভয়ামহে, ততো নো অভয়ং কৃধি ।

    মঘবঞ্ছগ্ধি তব তং ন ঊতয়ে বি দ্বিষো বি মৃধো জহি।। ২৫।।

    (সাম ২৭৪)

    পদার্থঃ (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (যত ভয়া মহে) যেসব বস্তু থেকে আমাদের ভয় প্রাপ্ত হয়, (ততো নো অভয়ং কৃধি) সেই সব বস্তু থেকে আমাদের নির্ভয় করো। (মঘবন্) হে ঐশ্বর্যযুক্ত পরমেশ্বর! (তব) তোমার (নঃ) সন্তানরূপ আমাদের (ঊতয়ে) রক্ষা করার জন্য (তং শগ্ধি) অভয় প্রদানে তুমি সমর্থ। তাই আমাদের প্রার্থনা পূর্ণ করে (মৃধঃ) হিংসক (দ্বিষো বি জহি) শত্রুদের নাশ করে আমাদের অভয় প্রদান করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সর্বশক্তিমান ঈশ্বর! যেখান থেকে আমাদের ভয় প্রাপ্ত হয়, সেখানে আমাদের নির্ভয় করো। আমাদের নির্ভয় করতে একমাত্র তুমিই সমর্থ। এজন্য তোমার কাছেই আমাদের প্রার্থনা এই যে, আমাদের বাহ্যিক শত্রু এবং বিশেষত অভ্যন্তরীণ কাম ক্রোধ সহ সকল শত্রুদের নাশ করো। যার ফলে আমরা নির্বিঘ্ন হয়ে তোমার ধ্যানযোগের মাধ্যমে মুক্তি প্রাপ্ত করতে পারি।।২৫।।

     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    महाबली परमात्म्याला हृदयात धारण करून व महापराक्रमी पुरुषाला राजाच्या पदावर अभिषिक्त करून त्याच्याकडून अभय प्राप्त करून, महत्त्वाकांक्षा जागृत करून, महान कार्य करून जगातील द्वेषवृत्ती, हिंसावृत्ती व युद्ध समाप्त केले पाहिजे व राष्ट्रात शांती व सद्भावना स्थापित केली पाहिजे ॥२॥

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    विषय

    इन्द्र नाम परमेश्वरकडे / राजाकडे अभयत्वाची याचना

    शब्दार्थ

    हे (इन्द्र) शत्रुविदारक परमेश्वर वा हे राजा, आम्ही (यतः) ज्यापासून (भयामहे) भयभीत होत असतो (ततः) त्या त्या (शत्रू, मनुष्य, प्राणी आदीपासून (नः) आम्हाला (अभयम्) निर्भय (कृधि) करा. हे (मघवन्) निर्भयत्व रूप धनाचे स्वामी, आपण आम्हाला (शग्धि) शक्तिशाली करा. (तव) तुमचे / (तत्) ते अभयदान (नः) आमच्या (ऊतये) सुरक्षेसाटी असू द्या. तुम्ही (द्विषः) आमच्या मनातील द्वेष वृत्ती वा द्वेष करणाऱ्या द्वेषकांना (विजहि) विनष्ट करा (मृधः) हिंसावृत्ती अथवा आपसातील (संघर्ष, गैरसमज, मतभेद, युद्ध) आदी (विजहि) समाप्त करा. ।। २।।

    भावार्थ

    मनुष्यांनी महाबली परमेश्वराला हृदयी धारण करून आणि महापराक्रमी पुरुषाला राजापदावर अभिषिक्त करून त्यापासून अभय वा निर्भयत्व मिळवावे, हृदयात महत्त्वाकांक्षा जागृत करून महान कार्ये पूर्ण करून दाखवावीत, तसेच द्वेष वृत्ती, हिंसा वृत्ती व युद्धादी समाप्त करून (सर्व राष्ट्रवासी लोकांनी) राष्ट्रात सद्भावना व शांती स्थापना करावी. ।। २।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे. ‘भया, भयं’ छेदानुप्रास आहे. तकाराची आवृत्ती असल्यामुळे वृत्त्यनुप्रास अलंकार आहे. ।। २।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    இந்திரனே! ஹிம்சை செய்பவர்களிடமிருந்து பயப்படும் எங்களுக்கு அபயத்தை அளிக்கவும். மகவானே உதவிசெய்யவும் உன்ரட்சையை அடைய நாங்கள் அச்சமற்றாக, வேஷிகளையும் ஹிம்சை செய்பவர்களையும் துரத்தவும். [1]கிரகபதியே ! நீ நிலையான ஆதாரஸ்தம்பமாகும்.

    FootNotes

    [1]கிரகபதியே! -குடும்பத்தலைவனே!

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