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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 818
    ऋषिः - नहुषो मानवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    26

    अ꣣यं꣢ पू꣣षा꣢ र꣣यि꣢꣫र्भगः꣣ सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣡ अ꣢र्षति । प꣢ति꣣र्वि꣡श्व꣢स्य꣣ भू꣡म꣢नो꣣꣬ व्य꣢꣯ख्य꣣द्रो꣡द꣢सी उ꣣भे꣢ ॥८१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣य꣢म् । पू꣣षा꣢ । र꣣यिः꣢ । भ꣡गः꣢꣯ । सो꣡मः꣢꣯ । पु꣡नानः꣢ । अ꣡र्षति । प꣡तिः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । भू꣡म꣢꣯नः । वि । अ꣣ख्यत् । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । उ꣣भे꣡इति꣢ ॥८१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं पूषा रयिर्भगः सोमः पुनानो अर्षति । पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे ॥८१८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । पूषा । रयिः । भगः । सोमः । पुनानः । अर्षति । पतिः । विश्वस्य । भूमनः । वि । अख्यत् । रोदसीइति । उभेइति ॥८१८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 818
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ५४६ पर परमात्मा के पक्ष में व्याख्या की गयी थी। यहाँ आचार्य का विषय वर्णित है।

    पदार्थ

    (पूषा) शारीरिक तथा आत्मिक पुष्टि का प्रदाता, (रयिः) विद्याधन से युक्त, (भगः) भजनीय, समित्पाणि शिष्यों से सेवनीय (अयं सोमः) यह सद्विद्याओं का प्रेरक आचार्य (पुनानः) शिष्यों को पवित्र करता हुआ (अर्षति) क्रियाशील होता है। (विश्वस्य भूमनः) समस्त विस्तृत ज्ञान का (पतिः) स्वामी यह आचार्य, ज्ञान-प्रदान द्वारा शिष्यों के सम्मुख (उभे रोदसी) आकाश-भूमि दोनों को (व्यख्यत्) प्रकाशित कर देता है। कहा भी है—आचार्य विस्तृत, गम्भीर इन दोनों द्यावापृथिवी को ब्रह्मचारी के सम्मुख घड़कर प्रकट कर देता है। उन्हें वह ब्रह्मचारी तप से अपने अन्दर धारण करता है। उसमें सब देव अनुकूल मनवाले हो जाते हैं (अथ० ११।५।८) ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् आचार्य को चाहिए कि वह ब्रह्मचारियों को आकाश-भूमि दोनों के सूर्य, नक्षत्र, जल, वायु, विद्युत्, मेघ, नदी, समुद्र, ओषधि, वनस्पति, भूगर्भ आदि का ज्ञान और चारित्रिक शिक्षा देता हुआ उन्हें पवित्र करे ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ५४६)

    विशेष

    ऋषिः—नहुषो ययातिर्मानवो वा (जीवन्मुक्त या मननकुशल उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दधारा में आता हुआ परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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    पदार्थ

    ५४६ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    व्याख्या देखो अविकल सं० [ २४६ ] पृ० २७४।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५४६ क्रमाङ्के परमात्मपक्षे व्याख्याता। आत्राचार्यविषयो वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (पूषा) दैहिकात्मिकपुष्टिप्रदाता (रयिः) रयिमान् विद्यैश्वर्यवान्। [अत्र मतुपो लुक्।] (भगः) भजनीयः, समित्पाणिभिः शिष्यैः सेवनीयः (अयं सोमः) एष सद्विद्याप्रेरकः आचार्यः (पुनानः) शिष्यान् पवित्रीकुर्वन् (अर्षति) क्रियाशीलो जायते। (विश्वस्य भूमनः) सकलस्य विस्तीर्णस्य ज्ञानस्य (पतिः) अधिपतिः एष आचार्यो ज्ञानप्रदानद्वारा शिष्याणां सम्मुखम् (उभे रोदसी) द्वे अपि द्यावापृथिव्यौ (व्यख्यत्) प्रकाशयति। उक्तं च यथा—आ॒चा॒र्य स्ततक्ष॒ नभ॑सी उ॒भे इ॒मे उ॒र्वी ग॑म्भी॒रे पृ॑थि॒वीं दिवं॑ च। ते र॑क्षति॒ तप॑सा ब्रह्मचा॒री तस्मि॑न् दे॒वाः संम॑नसो भवन्ति (अथ० ११।५।८) इति ॥१॥

    भावार्थः

    विद्वानाचार्यो ब्रह्मचारिभ्य उभयोर्द्यावापृथिव्योः सूर्यनक्षत्रजलवायुविद्युन्मेघसरित्समुद्रौषधिवनस्पति-भूगर्भादीनां ज्ञानं चारित्रिकीं च शिक्षां प्रयच्छन् तान् पुनीयात् ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०१।७, साम० ५४६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This God’s supreme felicity, which comes in its pure form, is invigorating, gracious, and lovely. Being the lord of entire soul, it lends lustre to both the Earth and Heaven.

    Translator Comment

    See verse 546.

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    Meaning

    It is Pusha, life-sustaining and nourishing protector, wealth and honour of the world, power and the glory, Soma that is pure and purifying, ever going forward with the world. It is the master, sustainer and ruler of the vast expansive universe and illuminates both heaven and earth. (Rg. 9-101-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अयं सोमः) એ શાન્ત પરમાત્મા (उभे रोदसी व्यख्यत्) દ્યુલોક અને પૃથિવીલોકની ઉપર નીચેની સીમાઓને પ્રસિદ્ધ કરે છે (विश्वस्य भूमनः पतिः) તેમાં થનાર જગતનો સ્વામી છે; તથા (पूषा)  પોષક-પાલક (रयिः रयिमान्) ધનવાન-ભોગરૂપ ધનદાતા (भगः) ભજનીય-આશ્રયસ્થાન (पुनानः अर्षति) આત્માને નિર્મળ બનાવતો આવે છે. (૨)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : એ શાન્ત પરમાત્મા વિશ્વના દ્યુલોક અને પૃથિવીલોક રૂપ સીમાઓને પ્રસિદ્ધ કરે છે. તેમાં રહેનાર જગતનો સ્વામી છે; તથા સર્વનો પોષક, યથાયોગ્ય રક્ષક છે. તે મોક્ષધામનો દાતા છે, આશ્રયસ્થાન અને પવિત્રકર્તા છે. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान आचार्याने ब्रह्मचाऱ्यांना आकाश-भूमी दोन्हींचे सूर्य, नक्षत्र, जल, वायू, विद्युत् , मेघ, नदी, समुद्र, औषधी, वनस्पती, भूगर्भ इत्यादीचे ज्ञान व चारित्रिक शिक्षण देत त्यांना पवित्र करावे ॥१॥

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