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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 895
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
23
आ꣡ प꣢वस्व म꣣ही꣢꣫मिषं꣣ गो꣡म꣢दिन्दो꣣ हि꣡र꣢ण्यवत् । अ꣡श्व꣢वत्सोम वी꣣र꣡व꣢त् ॥८९५॥
स्वर सहित पद पाठआ । प꣣वस्व । मही꣢म् । इ꣡ष꣢꣯म् । गो꣡म꣢꣯त् । इ꣣न्दो । हि꣡र꣢꣯ण्यवत् । अ꣡श्व꣢꣯वत् । सो꣣म । वीरव꣡त्꣢ ॥८९५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवस्व महीमिषं गोमदिन्दो हिरण्यवत् । अश्ववत्सोम वीरवत् ॥८९५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । पवस्व । महीम् । इषम् । गोमत् । इन्दो । हिरण्यवत् । अश्ववत् । सोम । वीरवत् ॥८९५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 895
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
अगले मन्त्र में पुनः उन्हीं का विषय वर्णित है।
पदार्थ
हे (इन्दो) दीप्तिमान्, ज्ञानरस से भिगोनेवाले (सोम) प्रेरक परमात्मन् वा आचार्य ! आप हमारे लिए (गोमत्) श्रेष्ठ गाय से युक्त वा श्रेष्ठ वाणी से युक्त, (हिरण्यवत्) सुर्वण से युक्त, ज्योति से युक्त वा यश से युक्त, (अश्ववत्) घोड़ों से युक्त वा प्राणों से युक्त, (वीरवत्) वीर पुत्रों से युक्त वा वीरभावों से युक्त, (महीम्) बड़ी (इषम्) इच्छासिद्धि को (आ पवस्व) प्राप्त कराइये ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा और आचार्य की कृपा से विद्यावान् होकर हम सब प्रकार की लौकिक और आध्यात्मिक सम्पत्ति प्राप्त करके सुखी होवें ॥४॥
पदार्थ
(इन्दो सोम) हे आनन्दरसपूर्ण शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (महीम्-इषम्) मेरी महती एषणा—इच्छा को*25 जो न पुत्रैषणा न लोकैषणा न वित्तैषणा किन्तु तेरी स्वरूपप्राप्ति की एषणा है उसको (आपवस्व) समन्तरूप से पूरा कर—भली भाँति पूरा कर (गोमत्) यही गौओं वाली (अश्ववत्) घोड़ों वाली (वीरवत्) पुत्रों वाली (हिरण्यवत्) स्वर्ण सम्पत्ति वाली एषणा—इच्छा है इसके पूरे होने से सभी लौकिक एषणायें पूरी हुई होती हैं उपासक की दृष्टि में*26॥४॥
टिप्पणी
[*25. “इषु इच्छायाम्” [तुदादि॰] क्विपि।] [*26. यस्यां प्राप्तौ सर्वा प्राप्तिः सा गरीयसी। “यस्मिन् विज्ञाते सर्वं विज्ञातं भवति” [मुण्ड॰ १.३] तद्वत्।]
विशेष
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विषय
गो, हिरण्य, अश्व, वीरवती प्रेरणा
पदार्थ
हे (इन्दो) = सर्वशक्तिमन् प्रभो! आप (महीम्) = महनीय – अत्यन्त महत्त्वपूर्ण (इषम्) = प्रेरणा को (आपवस्व) = सर्वथा प्राप्त कराइए, जो १. (गोमत्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियोंवाली है, तथा २. (हिरण्यवत्) = [हिरण्यं वै ज्योतिः] उत्कृष्ट ज्योतिर्मय है। आपकी प्रेरणा से हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ उत्तम हों और हम उत्कृष्ट ज्योति को प्राप्त करनेवाले हों ।
हे (सोम) = [षू प्रेरणे] सदा उत्तम प्रेरणा देनेवाले प्रभो! आप हमें वह प्रेरणा दीजिए जो ३. (अश्ववत्) = उत्तम कर्मेन्द्रियोंवाली हो तथा ४. (वीरवत्) = हमें प्रशस्त वीर बनानेवाली हो । हम कर्मेन्द्रियों से कर्मों में लगे रहेंगे तभी तो शक्ति प्राप्त करके वीर बन पाएँगे। ज्ञानेन्द्रियाँ प्रशस्त होंगी तो हम ज्योति प्राप्त करेंगे और कर्मेन्द्रियाँ प्रशस्त होंगी तो शक्ति को प्राप्त होंगे। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ब्रह्म का तथा कर्मेन्द्रियों द्वारा क्षत्र का विकास होगा।
भावार्थ
गत मन्त्र में प्रभु के शब्द का उल्लेख था । हमें प्रभु के महनीय शब्द सुनाई पड़ें । हम उत्तम ज्ञानेन्द्रियों व ज्ञान को तथा कर्मेन्द्रियों व शक्ति को प्राप्त करें ।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( इन्दो ) = करुणामृत सागर ( सोम ) = परमात्मा! आप अपनी कृपा से ( गोमत् ) = गौओं से युक्त ( अश्वतत् ) = घोड़ों से युक्त ( हिरण्यवत् ) = सुवर्णादि धन से युक्त ( वीरवत् ) = पुत्र आदि सन्तान सहित ( महीम् इषम् ) = बहुत अन्न को ( आपवस्व ) प्राप्त कराइये ।
भावार्थ
भावार्थ = हे कृपासिन्धो भगवन् ! आप अपनी अपार कृपा से गौ, घोड़े, सुवर्ण, रजत आदि धन और पुत्र, पौत्र आदि से युक्त अनेक प्रकार का बहुत अन्न हमें प्राप्त करावें। हमारे गृहों में गौ, घोड़े, बकरी आदि उपकारक पशु हों तथा अन्न, वस्त्र आदि उपयोग में आनेवाले अनेक पदार्थ हों, सुवर्ण, चाँदी, हीरे, मोती आदि धन बहुत हों, उस धन को हम सदा धार्मिक कामों में खर्च करते हुए लोक-परलोक में कल्याण के भागी बनें ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (सोम !) परमात्मन् ! (इन्द्रो) ऐश्रर्य के स्वामिन्! आप हमें (गोमत्) गौओं, वाणियों और इन्द्रियों से सम्पन्न (अश्ववत्) घोड़ों और प्राणों और वेगवान् साधनों से युक्त (वीरवत्) पुत्रादि वीर पुरुषों से युक्त, (इषं) अन्न, प्रबल इच्छा शक्ति और शासन आदि ऐश्वर्य को और (महीम्) बड़ी प्रसिद्धि को (आ पवस्व) प्राप्त कराओ।
टिप्पणी
‘मनामहे’ ‘दुराव्यं’ ‘साह्वांसो’ ‘अश्ववद् वाजवत्सुतः’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१ आकृष्टामाषाः। २ अमहीयुः। ३ मेध्यातिथिः। ४, १२ बृहन्मतिः। ५ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निः। ६ सुतंभर आत्रेयः। ७ गृत्समदः। ८, २१ गोतमो राहूगणः। ९, १३ वसिष्ठः। १० दृढच्युत आगस्त्यः। ११ सप्तर्षयः। १४ रेभः काश्यपः। १५ पुरुहन्मा। १६ असितः काश्यपो देवलो वा। १७ शक्तिरुरुश्च क्रमेण। १८ अग्निः। १९ प्रतर्दनो दैवोदासिः। २० प्रयोगो भार्गव अग्निर्वा पावको बार्हस्पत्यः, अथर्वाग्नी गृहपतियविष्ठौ सहसः स्तौ तयोर्वान्यतरः। देवता—१—५, १०–१२, १६-१९ पवमानः सोमः। ६, २० अग्निः। ७ मित्रावरुणो। ८, १३-१५, २१ इन्द्रः। ९ इन्द्राग्नी ॥ छन्द:—१,६, जगती। २–५, ७–१०, १२, १६, २० गायत्री। ११ बृहती सतोबृहती च क्रमेण। १३ विराट्। १४ अतिजगती। १५ प्रागाधं। १७ ककुप् च सतोबृहती च क्रमेण। १८ उष्णिक्। १९ त्रिष्टुप्। २१ अनुष्टुप्। स्वरः—१,६, १४ निषादः। २—५, ७—१०, १२, १६, २० षड्जः। ११, १३, १५, १७ मध्यमः। १८ ऋषभः। १९ धैवतः। २१ गान्धारः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनस्तयोरेव विषयं प्राह।
पदार्थः
हे (इन्दो) दीप्तिमन् ज्ञानरसेन क्लेदक (सोम) प्रेरक परमात्मन् आचार्य वा ! त्वम् अस्मभ्यम् (गोमत्) प्रशस्तधेनुयुक्तां यशोयुक्तां वा, (हिरण्यवत्) सुवर्णयुक्तां, ज्योतिर्युक्तां, यशोयुक्तां वा (अश्ववत्) तुरगयुक्तां प्राणयुक्तां वा, (वीरवत्) वीरपुत्रैर्युक्तां वीरभावैर्युक्तां वा (महीम्) महतीम् (इषम्) इच्छासिद्धिम् (आ पवस्व) आ प्रापय ॥४॥
भावार्थः
परमात्मन आचार्यस्य च कृपया विद्यावन्तो भूत्वा वयं सर्वविधां लौकिकीमाध्यात्मिकीं च सम्पदं प्राप्य सुखिनो भवेम ॥४॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।४१।४, ‘अश्वा॑व॒द् वाज॑वत् सुतः’ इति तृतीयः पादः।
इंग्लिश (2)
Meaning
O Glorious God, grant us abundant food, with store of cattle and of gold, with steeds and heroic sons !
Meaning
O Soma, divine presence of might, majesty and bliss concentrated in the mind and soul, let showers of great energy and pure prosperity flow, abounding in lands and cows, knowledge and culture, golden beauties of riches, horses, speed and progress of achievement, and then attainment of the ultimate victory of the brave. (Rg. 9-41-4)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्दो सोम) હે આનંદપૂર્ણ શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (महीम् इषम्) મારી મહાન એષણાઇચ્છાને જે પુત્રેષણા નહિ, લોકેષણા નહિ અને વિત્તેષણા પણ નહિ, પરંતુ તારા સ્વરૂપ પ્રાપ્તિની ઇચ્છા છે; તેને (आपवस्व) સમગ્રરૂપથી પૂરી કર-સારી રીતે પૂરી કર. (गोमत्) એ જ-પૂરી થતાં ઉપાસકની દ્રષ્ટિમાં ગાયોવાળી, (अश्ववत्) ઘોડાઓ વાળી (वीरवत्) પુત્રોવાળી (हिरण्यवत्) સુવર્ણ-સંપત્તિવાળી જે સાંસારિક સમસ્ત એષણાઓ છે તે પૂરી થઈ જાય છે. (૪)
बंगाली (1)
পদার্থ
আ পবস্ব মহীমিষং গোমদিন্দো হিরণ্যবৎ।
অশ্ববৎ সোম বীরবৎ।।৯০।।
(সাম ৮৯৫)
পদার্থঃ হে (ইন্দো) করুণামৃত সাগর (সোম) পরমাত্মা! তুমি তোমার কৃপা দ্বারা (গোমৎ) গাভীযুক্ত বা জ্যোতির সঙ্গে যুক্ত বা যশের সাথে যুক্ত, (অশ্ববৎ) ঘোড়া প্রাপ্ত বা প্রাণের সাথে যুক্ত, (হিরণ্যবৎ) সুবর্ণাদি ধনযুক্ত, (বীরবৎ) সন্তান সহিত, (মহীম্ ইষম্) অনেক অন্নকে আমাদের (আ পবস্ব) প্রাপ্ত করাও।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে ঈশ্বর! তুমি নিজের কৃপায়, গাভী, ঘোড়া, স্বর্ণ, রৌপ্য ইত্যাদি পার্থিব সম্পদ এবং প্রাণবল, পরম জ্যোতি আদি আধ্যাত্মিক ধন দ্বারা সন্তানাদি যুক্ত অনেক প্রকারের অন্ন আমাদের প্রাপ্ত করাও। আমাদের গৃহে গাভী, ঘোড়া ও অন্যান্য উপকারী পশু থাকুক এবং অন্ন, বস্ত্র ইত্যাদি উপযোগী পদার্থ হোক, ধন সম্পদ হোক, সেই ধন সম্পদকে আমরা সদা ধার্মিক কাজে লাগিয়ে যেন কল্যাণের ভাগীদার হই।।৯০।।
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा व आचार्याच्या कृपेने विद्यायुक्त बनून आम्ही सर्व प्रकारची लौकिक व आध्यात्मिक संपत्ती प्राप्त करून सुखी व्हावे. ॥४॥
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