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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - असिक्नी वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - श्वेत कुष्ठ नाशन सूक्त
    75

    कि॒लासं॑ च पलि॒तं च॒ निरि॒तो ना॑शया॒ पृष॑त्। आ त्वा॒ स्वो वि॑शतां॒ वर्णः॒ परा॑ शु॒क्लानि॑ पातय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ‍कि॒लास॑म् । च॒ । प॒लि॒तम् । च॒ । नि: । इ॒त: । ना॒श॒य॒ । पृष॑त् । आ । त्वा॒ । स्व: । वि॒श॒ता॒म् । वर्ण॑: । परा॑ । शु॒क्लानि॑ । पा॒त॒य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किलासं च पलितं च निरितो नाशया पृषत्। आ त्वा स्वो विशतां वर्णः परा शुक्लानि पातय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ‍किलासम् । च । पलितम् । च । नि: । इत: । नाशय । पृषत् । आ । त्वा । स्व: । विशताम् । वर्ण: । परा । शुक्लानि । पातय ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महारोग के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे ओषधि !] (इतः) इस पुरुष से (किलासम्) रूप बिगाड़नेवाले कुष्ठ आदि रोग को (च) और (पलितम्) शरीर के श्वेतपन (च) और (पृषत्) विकृत चिह्न को (निर्णाशय) निरन्तर नाश कर दे। (स्वः वर्णः) [रोग का] अपना रंग (त्वाम्) तुझमें [ओषधि में] (आविशताम्) प्रविष्ट हो जाय और (शुक्लानि) [उसके] श्वेत चिह्नों को (परा पातय) दूर गिरा दे ॥२॥

    भावार्थ

    सद्वैद्य की उत्तम ओषधि से रोगी के शरीर का बिगड़ा हुआ रूप फिर यथापूर्व सुन्दर रुचिर और मनोहर हो जाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−किलासम्। म० १। वर्णविकारकरं कुष्ठादिरोगम्। पलितम्। म० १। शरीरश्वेततारोगम्। निर्। निरन्तरम्। इतः। अस्मात् पुरुषात्। नाशय। णश अदर्शने−णिच्। विनष्टं कुरु, घातय। पृषत्। वर्तमाने पृषद्बृहन्महत्०। उ० २।८४। पृष सेके हिंसने च−अति। विकृतचिह्नम्। त्वा। त्वाम्। ओषधिम्। स्वः। स्वन शब्दे−ड। स्वकीयः आत्मीयः। आ+विशताम्। प्रविशतां, व्याप्नोतु। वर्णः। १।२२।१। रूपम्। शुक्लानि। ऋज्रेन्द्राग्रवज्र०। उ० २।२८। इति शुच शौचे−रन्। रस्य लः। श्वेतानि श्वेतानि सितानि चिह्नानि। परा+पातय। पत, णिच्। दूरं प्रेरय ॥

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    विषय

    किलास व पलित का नाश

    पदार्थ

    १. (किलासम्) = श्वेतकुष्ठ के धब्बों को (च) = और (पलितम्) = त्वचा की व्यापक सफेदी को (च) = तथा (पृषत्) = अन्य धब्बों को (इत:) = यहाँ से (नि: नाशय) = बाहर कर दे [णश अदर्शने]। त्वचा में इन किलास, पलित व पृषतों का दर्शन न हो। २. हे रोगाक्रान्त पुरुष! इस औषध के प्रयोग से (त्वा) = तेरी त्वचा में (स्वः वर्ण:) = अपना असली वर्ण (आविशताम्) = सर्वत्र प्राप्त हो जाए। तू (शुक्लानि) = जहाँ-तहाँ हो जानेवाले इन सफेद धब्बों को परा (पातय) = दूर भगा दे।

    भावार्थ

    औषध-प्रयोग से त्वचा को पुनः अपना असली रूप प्राप्त हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (पृषत् ) सिंचित हुए (किलासम् च) श्वेत कुष्ठ रोग को, (पलितम् च) और सुफैद केशों को, (इतः) इस रुग्ण से (निर् नाशय) निरवणेष नष्ट कर (त्वा स्वः वर्णः) हे रुग्ण ! तुझे अपना स्वाभाविक वर्ण (आ विशताम्) प्रविष्ट हो, (शुक्लानि परापातय) हे ओषधि तूं शुक्लवर्णों को पराङ्मुख करके उनका पतन कर।

    टिप्पणी

    [पृषत्१= पृषु सेचने (स्वादिः)। श्वेत कुष्ठ पककर जब उससे पीप का स्राव होता हो।] [१. पृषत्-बिन्दु या विन्दुसमूह प्रकरणानुसार श्वेतकुष्ठ के। पृषत् (उणादि २।८५; ३।१११)। पृषु सेचने (भ्वादिः), पर्षति सिंचति तत् पृषत् (२।२५, उणादिः दयानन्द)।]

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    विषय

    कुष्ठ और पलित चिकित्सा

    भावार्थ

    हे ओषधे ! ( इतः ) इस रोगयुक्त देहसे ( किलासं ) किलास नामक कुष्ठ को ओर ( पलिंत च ) पलित नामक रोग को ( निर् नाशय ) निर्मूल करके नाश करदे । और ( पृषत् ) त्वचा से जल बहाने वाले और दर्द करने वाले रोग को भी नाश कर । हे रोगी ! ( त्वा ) तेरे शरीर को ( स्वः ) अपना ( वर्ण: ) पूर्व अर्थात् निरोग दशा का रूप ( आ विशतां ) प्राप्त हो और ( शुक्लानि ) श्वेत कुष्ठ के चिन्हों और बालों को ( परा पातय ) दूर भगा दे ।

    टिप्पणी

    ( द्वि० ) नाशया पृथक्। इति सायणाभिमतः पाठः। ( तृ० )।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। श्वेतलक्ष्मविनाशनाय ओषधिस्तुतिः। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    White Leprosy

    Meaning

    The leprotic, the white, the spotted, cure all. Remove the whites so that the original skin colour is restored and the patient is cured.

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    Translation

    May you remove from this place the leprosy patch and the white ash-coloured one; make the spots disappear. May your own colour come to you and let you throw far away his white specks.

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    Translation

    These herbaceous plants remove from the patient the leprosy, spots and ashy hue and restore the previous colour and dispel away the white specks.

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    Translation

    O medicine, remove the leprosy, remove from him the whiteness of hair and skin, the festering wounds and excruciating pain. May thou regain thy healthy color. O medicine drive far away the white specks.

    Footnote

    Him, thou, thy all refer to the patient.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−किलासम्। म० १। वर्णविकारकरं कुष्ठादिरोगम्। पलितम्। म० १। शरीरश्वेततारोगम्। निर्। निरन्तरम्। इतः। अस्मात् पुरुषात्। नाशय। णश अदर्शने−णिच्। विनष्टं कुरु, घातय। पृषत्। वर्तमाने पृषद्बृहन्महत्०। उ० २।८४। पृष सेके हिंसने च−अति। विकृतचिह्नम्। त्वा। त्वाम्। ओषधिम्। स्वः। स्वन शब्दे−ड। स्वकीयः आत्मीयः। आ+विशताम्। प्रविशतां, व्याप्नोतु। वर्णः। १।२२।१। रूपम्। शुक्लानि। ऋज्रेन्द्राग्रवज्र०। उ० २।२८। इति शुच शौचे−रन्। रस्य लः। श्वेतानि श्वेतानि सितानि चिह्नानि। परा+पातय। पत, णिच्। दूरं प्रेरय ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    হে ওষধি! (ইতঃ) এই পুরুষ হইতে (কিলাসং) সৌন্দর্য নাশক কুষ্ঠাদি রোগকে (চ) এবং (পলিতং) শ্বেত রোগ (চ) এবং (পৃষৎ) বিকৃত চিহ্নকে (নির্ণাশয়) নিরন্তর নাশ কর। (স্বঃ বর্ণঃ) নিজের বর্ণ (ত্বাং) তোমার মধ্যে (আ বিশতাং) প্রবিষ্ট হউক। (শুক্লানি) শ্বেত চিহ্নকে (পরা পাতয়) দূরে নিক্ষেপ কর।।

    भावार्थ

    হে ওষধি! এই পুরুষ হইতে সৌন্দর্য নাশক কুন্ঠাদি রোগকে, শ্বেত রোগ এবং বিকৃত চিহ্নকে নিরন্তর বিনাশ কর। তাহার নিজের বর্ণ তোমার মধ্যে প্রবিষ্ট হউক। তুমি তাহার শ্বেত চিহ্নকে দূরীভূত কর।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    কিলাসং চ পলিতং চ নিরিতো নাশয়া পৃষৎ। আ ত্বা স্বো বিশতাং বর্ণঃ পরা শুক্লানি পাতয়।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। বনষ্পতয়ঃ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (মহারোগনাশোপদেশঃ) মহারোগ নাশের জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    [হে ঔষধি !] (ইতঃ) এই পুরুষ থেকে (কিলাসম্) রূপ বিনষ্টকারী কুষ্ঠ আদি রোগকে (চ) এবং (পলিতম্) শরীরের শ্বেতী (চ) এবং (পৃষৎ) বিকৃত চিহ্নকে (নির্ণাশয়) নিরন্তর নাশ করো/করে দাও। (স্বঃ বর্ণঃ) [রোগের] নিজস্ব বর্ণ (ত্বাম্) তোমার মধ্যে [ঔষধিতে] (আবিশতাম্) প্রবিষ্ট হোক এবং (শুক্লানি) [তার] শ্বেত চিহ্নসমূহকে (পরা পাতয়) দূরে নিক্ষেপ করুক ॥২॥

    भावार्थ

    সদ্বৈদ্যের উত্তম ঔষধি দ্বারা রোগীর শরীরের নষ্ট হওয়া রূপ আবার যথাপূর্ব সুন্দর রুচির এবং মনোহর হয়ে যায় ॥২॥

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    भाषार्थ

    (পৃষৎ) সিঞ্চিত (কিলাসম্ চ) শ্বেতকুষ্ঠ রোগকে, (পলিতম্ চ) এবং সাদা চুলকে, (ইতঃ) এই রুগ্ন থেকে (নির্ নাশয়) নিরবশেষ নষ্ট করো। (ত্বা স্বঃ বর্ণঃ) হে রুগ্ন ! তোমার নিজের স্বাভাবিক বর্ণ (আ বিশতাম্) প্রবিষ্ট হোক, (শুক্লানি পরাপাতয়) হে ঔষধি তুমি শুক্লবর্ণকে পরাঙ্মুখ করে তার পতন করো।

    टिप्पणी

    [পৃষৎ১= পৃষু সেচনে (ভ্বাদিঃ)। শ্বেত কুষ্ঠ পেকে যখন তা থেকে পুঁজ এর স্রাব হয়।] [১. পৃষৎ= বিন্দু বা বিন্দুসমূহ। প্রকরণানুসারে শ্বেত কুষ্ঠের। পৃষৎ (উণাদি ২।৮৫; ৩।১১১)। পশু সেচনে (ভ্বাদিঃ), পর্ষতি সিংচতি তৎ পৃষৎ (২।২৫, উণাদিঃ দয়ানন্দ)।]

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