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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
    190

    तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ। आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मै॑ । अर॑म् । ग॒मा॒म॒ । व॒: । यस्य॑ । क्षया॑य । जिन्व॑थ । आप॑: । ज॒नय॑थ । च॒ । न॒: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मै । अरम् । गमाम । व: । यस्य । क्षयाय । जिन्वथ । आप: । जनयथ । च । न: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे पुरुषार्थी मनुष्यो !] (तस्मै) उस पुरुष के लिये (वः) तुम को (अरम्) शीघ्र वा पूर्ण रीति से (गमाम) हम पहुचावें, (यस्य) जिस पुरुष के (क्षयाय) ऐश्वर्य के लिये (जिन्वथ) तुम अनुग्रह करते हो। (आपः) हे जलो [जल समान उपकारी लोगो] (नः) हमको (च) अवश्य (जनयथ) तुम उत्पन्न करते हो ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे जल, अन्न आदि को उत्पन्न करके शरीर के पुष्ट करने और नौका, विमान आदि के चलाने में उपयोगी होता है, इसी प्रकार जल के समान उपकारी पुरुष सब लोगों को लाभ और कीर्त्ति के साथ पुनर्जन्म देते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३-अरम्। ऋ गतौ-अच्। शीघ्रम्। यद्वा, अल भूषणे निवारणे-अमु। लस्य रत्वम्। अलम्, पर्य्याप्तं पूर्णतया। गमाम। गम्लृ गतौ णिच्-छान्दसो लोट्। वयं गमयाम, प्रापयाम। क्षयाय। एरच्। पा० ३।३।५६। इति क्षि निवासे ऐश्वर्ये च-अच्। निवासाय। ऐश्वर्यप्राप्तये। जिन्वथ। जिवि प्रीणने लट्। यूयं तर्पयथ। वर्धयथ। अनृगृहीध्वम्। आपः। १।४।३। हे जलधाराः। जनयथ। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति जनी प्रादुर्भावे-णिच्-लट्, सांहितको दीर्घः। यूयं प्रादुर्भावयथ, उत्पादयथ, प्रजया यशसा वा वर्धयथ। च। अवधारणे, अवश्यम्। समुच्चये ॥

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    विषय

    जनन-शक्ति

    पदार्थ

    १. हे (आप:) = जलो। हम (वः) = आपके (तस्मै) = उस रस के लिए (अरम्) = पर्याप्तरूप से (गमाम) = प्राप्त हों (यस्य क्षयाय) = जिसके निवास के कारण (जिन्वथ) = आप हमें प्रीणित करते हो। जलों में एक रस है, उसके द्वारा हमारे शरीर की सब शक्तियों का वर्धन होता है। २. (च) = और हे जलो! आप (न:) = हमें (जनयथ) = जनन-शक्ति से युक्त करो। जलों के ठीक प्रयोग से बन्ध्यत्व व नपुंसकत्व का निराकरण होकर हम उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाले हों।

    भावार्थ

    जलों के रस से शरीर की शक्तियों का वर्धन होता है और जनन-शक्ति ठीक होती है।

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    भाषार्थ

    (तस्मै) उस रस के लिये [ हे आप: ] ( व: ) तुम्हें (अरम् ) पर्याप्त रूप में (गमाम) हम प्राप्त होते हैं, ( यस्य ) जिस रस की ( क्षयाय ) स्थिति के लिये (जिन्वथ) तुम जीवित हो । (आप:) हे जलो ! ( न:) हमें (जनयथ च) जननशक्ति भी प्रदान करो।

    टिप्पणी

    [जनयथ= जिवि धातु जीवनार्थक भी प्रतीत होती है। क्षयाय= क्षि निवासे (तुदादिः)।]

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    विषय

    जलों का वर्णन

    भावार्थ

    हे ( आपः ) हे जलो ! ( तस्मै ) उस उपरोक्त लाभ को प्राप्त करने के लिये ( यः ) तुम्हें हम ( अरं ) अच्छी प्रकार से प्राप्त होते हैं ( यस्य ) जिसके कि ( क्षयाय ) हममें सदा निवास कराने के लिये ( जिन्वथ ) तुम्हारी सत्ता है और तुम ( नः ) हमें और हमारे सन्तानों को ( जनयथ च ) उत्पन्न करते और बढ़ाते हो ।

    टिप्पणी

    पञ्चमं षष्ठं च सूक्तं शम्भुमयोभुसूक्तमुच्यते ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अपोनप्त्रीयम्। सिन्धुद्वीपः कृतिश्च ऋषी। ऋग्वेदे त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाऽम्बरीष ऋषिः। आगे देवताः। गायत्री छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Blessings of Water

    Meaning

    O holy waters, for that peace, pleasure and enlightenment, we come to you without delay for the promotion and stability of which you move and impel people and powers and for which you invigorate us too. Pray bless us with vigour and vitality.

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    Translation

    May we, O waters, quickly come to you for food, shelter and procreant strength which you are always pleased to bestow upon us. (also Rg.X.9.3).

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    Translation

    Let us acquire those cearials for the growth of which the waters help herbaceous plants and let them be helpful in welfare of our progeny.

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    Translation

    O Waters, we fully acquire Ye, for the sake of that food, for whose abundance Ye possess strength. Give us procreant strength.

    Footnote

    See Yajur 11-52. Rain produces food, and makes it grow abundantly. The use of food thus produced makes us strong to bear sons and grandsons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३-अरम्। ऋ गतौ-अच्। शीघ्रम्। यद्वा, अल भूषणे निवारणे-अमु। लस्य रत्वम्। अलम्, पर्य्याप्तं पूर्णतया। गमाम। गम्लृ गतौ णिच्-छान्दसो लोट्। वयं गमयाम, प्रापयाम। क्षयाय। एरच्। पा० ३।३।५६। इति क्षि निवासे ऐश्वर्ये च-अच्। निवासाय। ऐश्वर्यप्राप्तये। जिन्वथ। जिवि प्रीणने लट्। यूयं तर्पयथ। वर्धयथ। अनृगृहीध्वम्। आपः। १।४।३। हे जलधाराः। जनयथ। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति जनी प्रादुर्भावे-णिच्-लट्, सांहितको दीर्घः। यूयं प्रादुर्भावयथ, उत्पादयथ, प्रजया यशसा वा वर्धयथ। च। अवधारणे, अवश्यम्। समुच्चये ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়স্য) যাহার (ক্ষয়ায়) ঐশ্বর্যের জন্য (জিম্বথ) তোমরা অনুগ্রহ করিতেছ (তস্মৈ) তাহার জন্য (বঃ) তোমাদিগকে (অরং) শীঘ্র (গমাম) আমরা প্রাপ্তি করাইব। (আপঃ) জল (নঃ) আমাদিগকে (চ) অবশ্যই (জনয়থ) বৃদ্ধি দান করে।।
    “অরম্” মীঘ্রম্ । ঋ গতৌ অচ্। ‘ক্ষয়ায়’ ঐশ্বর্য্যায়। কি নিবাসে ঐশ্বর্য্যেচ অচ্। ‘জিন্বয়' তৰ্পয়থ, বর্ধয়থ, অনুগৃহীধ্বন্। ‘জনয়থ’ প্রাদুর্ভাবয়থ, উৎপাদয়থ, প্রজয়া যশসা বা বর্ধর্রর্থ।।

    भावार्थ

    হে পুরুষার্থী মনুষ্য! যে পুরুষের ঐশ্বর্যের জন্য তোমরা তৃপ্তি সাধন করিতেছে সেই পুরুষকে আমরা তোমাদের নিকট পৌছাইব। জল অবশ্যই আমাদিগকে সন্তানযুক্ত বা যশোমণ্ডিত করিয়া সমৃদ্ধি দান করে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    তস্মা অরং গমাম বো য়স্য ব্য়ায় জিম্বথ। অপো জনয়থা চ নঃ।

    ऋषि | देवता | छन्द

    সিন্ধুদ্বীপঃ কৃতিৰ্বা। আপঃ। গায়ত্রী

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    मन्त्र विषय

    (বলপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) বল­ প্রাপ্তির জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    [হে পুরুষার্থী মনুষ্যগণ !] (তস্মৈ) সেই পুরুষের জন্য (বঃ) তোমাদের (অরম্) শীঘ্রই বা পূর্ণ রীতিতে (গমাম) আমরা পৌঁছাবো/প্রেরণ করবো, (যস্য) যে পুরুষের (ক্ষয়ায়) ঐশ্বর্যের জন্য (জিন্বথ) তুমি অনুগ্রহ করো। (আপঃ) হে জলসমূহ! [জলের সমান উপকারী মনুষ্যগণ] (নঃ) আমাদের (চ) অবশ্যই (জনয়থ) তোমরা উৎপন্ন করো ॥৩॥

    भावार्थ

    যেভাবে জল অন্নাদি উৎপন্ন করে শরীরকে পুষ্ট করার ক্ষেত্রে এবং নৌকা, বিমান আদি চালানোর ক্ষেত্রে উপযোগী হয়, সেভাবেই জলের সমান উপকারী পুরুষ সমস্ত লোকেদের লাভ এবং কীর্ত্তির সাথে পুনর্জন্ম দেয় ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (তস্মৈ) সেই রসের জন্য [হে আপঃ] (বঃ) তোমাকে (অরম্) পর্যাপ্ত রূপে (গমাম) আমরা প্রাপ্ত হই, (যস্য) যে রসের (ক্ষয়ায়) স্থিতির জন্য (জিন্বথ) তুমি জীবিত। (আপঃ) হে জল ! (নঃ) আমাদের (জনয়থ চ) জননশক্তিও প্রদান করো।

    टिप्पणी

    [জনয়থ= জিবি ধাতু জীবনার্থকও প্রতীত হয়। ক্ষয়ায়= ক্ষি নিবাসে (তুদাদিঃ)।]

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    जल का महत्व

    Word Meaning

    हमारे पेय पदार्थो, दूध इत्यादि में वह गुण हों जो हमारी प्रजनन शक्ति को बढ़ाएं. जिस के द्वारा ही हम सब जीवित हैं |

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