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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - वर्धमान गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
    145

    ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम्। अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ईशा॑ना: । वार्या॑णाम् । क्षय॑न्ती: । च॒र्ष॒णी॒नाम् । अ॒प: । या॒चा॒मि॒ । भे॒ष॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईशाना वार्याणां क्षयन्तीश्चर्षणीनाम्। अपो याचामि भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईशाना: । वार्याणाम् । क्षयन्ती: । चर्षणीनाम् । अप: । याचामि । भेषजम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (वार्याणाम्) चाहने योग्य धनों की (ईशानाः) ईश्वरी और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों की (क्षयन्तीः) स्वामिनी (अपः) जलधाराओं [जल के समान उपकारी प्रजाओं] से मैं, (भेषजम्) भय जीतनेवाले ओषध को (याचामि) माँगता हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    जल से अन्न आदि औषध उत्पन्न होकर मनुष्य के धन और बल का कारण हैं। सो जल के समान गुणी महात्माओं से सहाय लेकर मनुष्यों को आनन्दित रहना चाहिये ॥४॥ यह मन्त्र ऋग्वेद १०।९।५। है ॥

    टिप्पणी

    ४−ईशानाः। ईश ऐश्वर्ये-शानच्। ईश्वरीः, नियन्त्रीः। वार्याणाम्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति वृङ् संभक्तौ-ण्यत्। अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति कर्मणि षष्ठी। वरणीयानां, धनानाम्। क्षयन्तीः। क्षि निवासे, ऐश्वर्ये च−लटः शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। ईश्वरीः, स्वामिनीः। चर्षणीनाम्। कृषेरादेश्च चः। उ० २।१०४। इति कृप कर्षणे-अनि, चादेशः। आकर्षन्ति वशीकुर्व्वन्ति−इत्यर्थः। चर्षण्यः=मनुष्याः निघं० २।३। पूर्ववत् कर्मणि षष्ठी। मनुष्याणाम्। अपः। अकथितं च। पा० १।४।१०४। इति अपादाने द्वितीया। जलधाराः। जलधारासकाशात्। जलवत् उपकारिभ्यो मनुष्येभ्यः। याचामि। याचृ याच्ञायाम्-लट्। द्विकर्मकः। अहं याचे, प्रार्थये। भेषजम्। १।४।४। रोगनिवर्तकम्, औषधम् ॥

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    विषय

    वार्यों का ईशान

    पदार्थ

    १. मैं (अप:) = जलों से (भेषजं याचामि) = औषध माँगता हूँ-इन जलों में सब औषधगुण तो हैं ही। इन जलों से मैं उस औषध को माँगता हूँ जोकि (वार्याणाम्) = सब वरणीय गुणों व तत्त्वों के (ईशाना:) = ईशान हैं। इनमें कौन-सी वरणीय वस्तु नहीं है? वस्तुत: इसी कारण से ये (चर्षणीनाम्) = मनुष्य के (क्षयन्ती:) = उत्तम निवास का कारण है [क्षि निवासे]। शरीर के लिए सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराके ये जल हमारे निवास को उत्तम बनाते हैं।

    भावार्थ

    सब वरणीय तत्त्वों के ईशानभूत ये जल हमारे लिए औषध हैं। ये हमारे सब रोगों का निवारण करके हमारे निवास को उत्तम बनाते हैं।

    विशेष

    इस सूक्त के आरम्भ में जलों को कल्याणकारक कहा है [१]। इनमें प्रभु ने अत्यन्त कल्याणकारक रस की स्थापना की है [२]। ये उस रस के द्वारा हमें जनन-शक्ति से युक्त करते हैं [३] और सब वरणीय वस्तुओं के ईशान होते हुए ये जल सब रोगों के औषध बनकर हमारे निवास को उत्तम बनाते हैं [४]। ये शान्ति देनेवाले तथा रोगों पर आक्रमण करके हमारी रक्षा करनेवाले हैं -

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    भाषार्थ

    (वार्याणाम् ) निवारणीय रोगों की (ईशानाः) अधीश्वरी, अर्थात् नियन्त्रित करनेवाली तथा (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के ( क्षयन्ती:) रोगों का क्षय करनेवाली (अपः ) जलों को ( भेषजम् ) औषधरूप में (याचामि ) मैं याचित करता हूँ चाहता हूँ [या अपों से१ भेषज की मैं याचना करता हूँ]।

    टिप्पणी

    [चर्षणयः मनुष्यनाम (निघं० २।३)।] [१. यथा गां दोग्धि पयः।]

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    विषय

    जलों का वर्णन

    भावार्थ

    ( वार्याणाम् ) निवारणीय रोगों के ( ईशानाः ) स्वामी ( चर्षणीनां ) और मनुष्यों के ( क्षयन्तीः ) रोगों के क्षय करने वाले ( अपः ) आपः = जलरूप ( भेषजम् ) औषध को ( याचामि ) मैं [ परमात्मा से ] प्रार्थना करता हूं । अचेतन पदार्थों का भी सम्बोधन की विधि से वर्णन कवि सम्प्रदाय में होता है। इसीलिये वैदिक साहित्य में परमात्मा को भी कवि कहा गया है। कौशिक सूत्र में इस सूक्त का विनियोग जलमार्जन, गौओं के रोगशमन पुष्टि, प्रजनन, जलसिञ्चन आदि कार्यों में बतलाया है ।

    टिप्पणी

    पञ्चमं षष्ठं च सूक्तं शम्भुमयोभुसूक्तमुच्यते ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अपोनप्त्रीयम्। सिन्धुद्वीपः कृतिश्च ऋषी। ऋग्वेदे त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाऽम्बरीष ऋषिः। आगे देवताः। गायत्री छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Blessings of Water

    Meaning

    Sovereign givers of the cherished gifts of health against avoidable ailments, harbingers of peace and settlement with elimination of wasting diseases, O waters of life, I pray for your gifts of sanatives, health and bliss of well being.

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    Translation

    O waters, sovereigns of precious treasures, and granters of habitations to men, I solicit of you medicine (for the cure of my infirmities).

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    Translation

    I obtain balm from the waters which are controlling powers over diseases and rehabilitating agents of mankind’s health.

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    Translation

    I pray to God, for the medicinal waters, the controllers of remediable diseases, and the healers of the ailments of men.

    Footnote

    The use of pure water removes our diseases, as it acts like an efficacious medicine.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−ईशानाः। ईश ऐश्वर्ये-शानच्। ईश्वरीः, नियन्त्रीः। वार्याणाम्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति वृङ् संभक्तौ-ण्यत्। अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति कर्मणि षष्ठी। वरणीयानां, धनानाम्। क्षयन्तीः। क्षि निवासे, ऐश्वर्ये च−लटः शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। ईश्वरीः, स्वामिनीः। चर्षणीनाम्। कृषेरादेश्च चः। उ० २।१०४। इति कृप कर्षणे-अनि, चादेशः। आकर्षन्ति वशीकुर्व्वन्ति−इत्यर्थः। चर्षण्यः=मनुष्याः निघं० २।३। पूर्ववत् कर्मणि षष्ठी। मनुष्याणाम्। अपः। अकथितं च। पा० १।४।१०४। इति अपादाने द्वितीया। जलधाराः। जलधारासकाशात्। जलवत् उपकारिभ्यो मनुष्येभ्यः। याचामि। याचृ याच्ञायाम्-लट्। द्विकर्मकः। अहं याचे, प्रार्थये। भेषजम्। १।४।४। रोगनिवर्तकम्, औषधम् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (বার্য়্যাণাং) আকাঙ্খা যোগ্য ধনের মধ্যে (ঈশানাঃ) শ্রেষ্ঠ ও (চর্য়ণীনাং) মনুষ্যগণের (ক্ষয়ন্তীঃ) স্বামিনী (অপঃ) জলধারার সদৃশ হিতকারী মনুষ্যের নিকট (ভেষজম্) রোগ নিবারক ঔষধ (য়াচামি) প্রার্থনা করি।

    भावार्थ


    আকাঙ্খা যোগ্য ধনের মধ্যে শ্রেষ্ঠ ও মনুষ্যগণের রক্ষক জলধারার ন্যায় হিতকারী মনুষ্যের নিকট রোগনাশক ঔষধ প্রার্থনা করি ।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    ঈশানা বাৰ্য্যাণাং ক্ষয়ন্তী শ্চর্ষণীনাম্। অপো য়াচামি ভেষজম্।

    ऋषि | देवता | छन्द

    সিন্ধুদ্বীপঃ কৃতিৰ্বা। আপঃ। গায়ত্রী

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    मन्त्र विषय

    (বলপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) বল­ প্রাপ্তির জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    (বার্যাণাম্) কামনাযোগ্য ধনের (ঈশানাঃ) অধীশ্বরী এবং (চর্ষণীনাম্) মনুষ্যদের (ক্ষয়ন্তীঃ) স্বামিনী (অপঃ) জলধারা [জলের সমান উপকারী প্রজাদের] থেকে আমি, (ভেষজম্) ভয়কে জয় করার ঔষধ (যাচামি) যাচনা করি/প্রার্থনা করি ॥৪॥

    भावार्थ

    জল থেকে অন্নাদি ঔষধ উৎপন্ন হয়ে মনুষ্যের ধন ও বলের/শক্তির কারণ হয়। সুতরাং জলের সমান গুণী মহাত্মাদের থেকে সহায়তা নিয়ে/গ্রহণ করে মনুষ্যদের আনন্দিত থাকা উচিত ॥৪॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদ ১০।৯।৫। তে রয়েছে ॥

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    भाषार्थ

    (বার্যাণাম্) নিবারণীয় রোগ-সমূহের (ঈশানাঃ) অধীশ্বরী, অর্থাৎ নিয়ন্ত্রনকারী এবং (চর্ষণীনাম্) মনুষ্যদের (ক্ষয়ন্তীঃ) রোগের ক্ষয়কারী (অপঃ) জলকে (ভেষজম্) ঔষধরূপে (যাচামি) আমি যাচিত করি/কামনা করছি [বা জল থেকে১ ভেষজের আমি যাচনা করি]।

    टिप्पणी

    [চর্ষণয়ঃ মনুষ্যনাম (নিঘং০ ২।৩)।] [১. যথা গাং দোগ্ধি পয়ঃ।]

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    जल का महत्व

    Word Meaning

    (ईशाना) प्रशासन का यह दायित्व है कि सब निवारणीय रोगों को दूर करने की सामर्थ रखने वाले जल सब प्रजा को उपलब्ध हों | भावार्थ : समस्त जल स्वच्छ और प्रदूषन से मुक्त हों |

     

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