अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विजय प्रार्थना सूक्त
78
येनेन्द्रा॑य स॒मभ॑रः॒ पयां॑स्युत्त॒मेन॒ ब्रह्म॑णा जातवेदः। तेन॒ त्वम॑ग्न इ॒ह व॑र्धये॒मं स॑जा॒तानां॒ श्रैष्ठ्य॒ आ धे॑ह्येनम् ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । इन्द्रा॑य । स॒म्ऽअभ॑र: । पयां॑सि । उ॒त्त॒मेन॑ । ब्रह्म॑णा । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । तेन॑ । त्वम् । अ॒ग्ने॒ । इ॒ह । व॒र्ध॒य॒ । इ॒मम् । स॒ऽजा॒ताना॑म् । श्रैष्ठ्ये॑ । आ । धे॒हि॒ । ए॒न॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
येनेन्द्राय समभरः पयांस्युत्तमेन ब्रह्मणा जातवेदः। तेन त्वमग्न इह वर्धयेमं सजातानां श्रैष्ठ्य आ धेह्येनम् ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । इन्द्राय । सम्ऽअभर: । पयांसि । उत्तमेन । ब्रह्मणा । जातऽवेद: । तेन । त्वम् । अग्ने । इह । वर्धय । इमम् । सऽजातानाम् । श्रैष्ठ्ये । आ । धेहि । एनम् ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब सम्पत्तियों के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(जातवेदः) हे विज्ञानयुक्त, परमेश्वर ! तूने (येन उत्तमेन ब्रह्मणा) जिस उत्तम वेदविज्ञान से (इन्द्राय) पुरुषार्थी जीव के लिये (पयांसि) दुग्धादि रसों को (समभरः) भर रक्खा है। (तेन) उसी से (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (त्वम्) तू (इह) यहाँ पर (इमम्) इसे (मुझे) (वर्धय) वृद्धियुक्त कर, (सजातानाम्) तुल्य जन्मवाले पुरुषों में (श्रैष्ठ्ये) श्रेष्ठ पद पर (एनम्) इसको [मुझको] (आ) यथाविधि (धेहि) स्थापित कर ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर पुरुषार्थियों को सदा पुष्ट और आनन्दित करता है। मनुष्य को प्रयत्न करके अपनी श्रेष्ठता और प्रतिष्ठा बढ़ानी चाहिये ॥३॥ (अग्नि) शब्द ईश्वरवाची है। इस में यह प्रमाण है−मनु १२।१२३। एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम्। इन्द्रमेकेऽपरे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम् ॥१॥ इसको कोई अग्नि, दूसरे मनु और प्रजापति, कोई इन्द्र, दूसरे प्राण और नित्य ब्रह्म कहते हैं ॥
टिप्पणी
३−येन। ब्रह्मणा। इन्द्राय। १।२।३। जीवाय, पुरुषार्थिने जीवाय। सम्-अभरः। डुभृञ् भरणे, पोषणे−लङि सिप्। सम्यग् भृतवानसि पोषितवानसि। पयांसि। १।४।१। दुग्धानि, दुग्धधृतादिपदार्थान्। उत्-तमेन। म० २। अतिश्रेष्ठेन। ब्रह्मणा। १।८।४। वेदज्ञानेन। जात-वेदः। १।७।२। हे जातप्रज्ञान, परमेश्वर। तेन। ब्रह्मणा। अग्ने। हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! इह। अत्र, अस्मिन् जन्मनि। वर्धय। वृधु-णिच्। समर्धय। इमम्। उपासकं, माम्। स-जातानाम्। समान+जनी प्रादुर्भावे-क्त। जनसनखनां सञ्झलोः। पा० ६।४।४२। इति आत्त्वम्। समानस्य छन्दस्यमूर्ध०। पा० ६।३।८४। इति समासे समानस्य सभावः। समानजन्मनां स्वकुटुम्बिनां मध्ये। श्रैष्ठ्ये। गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। पा० ५।१।१२४। इति श्रेष्ठ-ष्यञ्। श्रेष्ठत्वे, प्रधानत्वे। आ। समन्तात्−यथाविधि। धेहि। डुधाञ् धारणपोषणयोः-लोट्। धारय, स्थापय। एनम्। उपासकम् ॥
विषय
श्रेष्ठ पद-प्राप्ति
पदार्थ
१. हे (जातवेदः) = सर्वज्ञ प्रभो! (येन) = जिस (उत्तमेन) = सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मणा-ज्ञान से (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (पयांसि) = आप्यायनों को-शक्तियों के वर्धन को (समभर:) = आप भरते हो-जिस ज्ञान के द्वारा आप अन्नमयकोश में तेज को, प्राणमयकोश में वीर्य को, मनोमयकोश में ओज व बल को, विज्ञानमयकोश में मन्यु को तथा आनन्दमयकोश में सहस् को भरते हैं, (तेन) = उसी ज्ञान से हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो! (त्वम्) = आप (इह) = यहाँ-समाज में (इमम्) = इस वसु व उत्कृष्ट ज्योति को धारण करनेवाले पुरुष को (वर्धय) = बढ़ाइए-सब प्रकार से उन्नत कीजिए। २. इसप्रकार ज्ञान से उन्नत करके आप (एनम्) = इसे (सजातानाम्) = सजात पुरुषों में-समवयस्क पुरुषों में (श्रेष्ठवे) = श्रेष्ठ स्थान में (आधेहि) = स्थापित कीजिए। यह ज्ञान के द्वारा औरों से आगे बढ़ जाए। हे अने! आपका अग्नित्व इसे आगे बढ़ाने में ही तो प्रमाणित हो सकता है। ज्ञान के द्वारा यह सब प्रकार का वर्धन करके श्रेष्ठ बने और औरों का कल्याण करनेवाला हो।
भावार्थ
ज्ञान से ही सारा आप्यायन होता है, उसे प्राप्त करके हम समवयस्कों में आगे
बढ़नेवाले हों।
भाषार्थ
(जातवेदः) उत्पन्न पदार्थों के जाननेवाले हे परमेश्वर ! (येन उत्तमेन ब्रह्मणा) जिस उत्तम वेद द्वारा (इन्द्राय) सम्राट् के लिये ( पयांसि) विविध ज्ञानदुग्ध (समभर:=सम् अहरः) तूने सम्यक्तया प्राप्त कराए हैं, [उसे प्रदत्त किये हैं] (तेन) उस उत्तम वेद द्वारा (अग्ने) ज्ञानाग्निसम्पन्न हे परमेश्वर ! (त्वम्) तू, (इह) इस लोक में (इमम्) इस सम्राट् को (वर्धय) बढ़ा, (एनम्) और इस सम्राट् को (सजातानाम्) समान जातिवाले [राजाओं] में (श्रेष्ठ्ये) सर्वश्रेष्ठ रूप में (आ धेहि) स्थापित कर।
टिप्पणी
[इन्द्र=इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा (यजु० ८।३७)। वरुण१ हैं प्रत्येक राष्ट्र के राजा और सम्राट है इन संयुक्त राजाओं द्वारा निर्वाचित श्रेष्ठ राजा। पयांसि द्वारा परमेश्वर का मातृरूप सूचित किया है जोकि इन्द्र को ज्ञानदुग्ध पिलाता है, वेदरूपी स्तनों द्वारा। सजातानाम् = यथा "सजातानां मध्यमेष्ठा एधि राज्ञाम्" (अथर्व० २।६।४)।] [१. प्रत्येक राष्ट्र के राजा को वरुण इसलिये कहा है कि यह भी प्रजा द्वारा निर्वाचित होता है। "ब्रियते वाऽसौ वरुणः" (उणा० ३।५३ दयानन्द)।]
विषय
ब्रह्मतेज और आयु की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे ( जातवेदः ) समस्त संसार के उत्पन्न पदार्थों के जानने हारे परमात्मन् ! ( येन ) जिस ( उत्तमेन ) उत्कृष्ट ( ब्रह्मणा ) ब्रह्मतेज से ( इन्द्राय ) इन्द्ररूप आचार्य से लिये (पयांसि) नाना प्रकार के ज्ञानों को ( सम् अभरः ) धारण करते हो ( तेन ) उस ही ब्रह्मतेज से हे अग्ने ! विद्वान् ! ( त्वं ) तू ( इमम् ) इसको (वर्धय ) बढ़ा, उन्नत कर और ( सजातानां ) समान रूप से उत्पन्न अन्य मनुष्यवर्ग में से ( एनम् ) इसको ( श्रैष्ठ्ये ) श्रेष्ठ पद में ( आधेहि ) स्थापन कर । ३ राजा के पक्षमें—( येन उत्तमेन ब्रह्मणा इन्द्राय पयांसि सम् अभरः ) जिस उत्तम ब्रह्म अर्थात् वेद व्यवस्था या ऐश्वर्य से इन्द्र अर्थात् महाराज के लिए राष्ट्रपोषक पदार्थों को उपस्थित किया जाता है, हे (अग्ने) विद्वन् ! ( तेन त्वं वर्धय ) उससे तू इस शूर पुरुष को बढ़ा और ( सजातानां श्रेष्ठ्ये आधेहि ) समान पद के राजाओं में उन्नत पद पर इसको बिठला ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १,२ वस्वादयो मन्त्रोक्ता देवताः। ३, ४ अग्निर्देवता । त्रिष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Power and Lustre
Meaning
O Jataveda, lord omniscient over all wealth, power and excellence of existence, by the universal light and knowledge with which you bear and bring all the power and nourishments of body, mind and soul for Indra, spirit of humanity, by the same light and knowledge, O Agni, lord self-refulgent, exalt this man, this aspirant, this ruler, and instal him at the highest merit and virtue among his fellow beings.
Translation
O knower of each and every one, with the same sublime knowledge, with which you had been providing the resplendent Lord with draughts of nourishing drink, O adorable Lord, may you exalt this man. May you place him at the highest among his kinsfolk.
Translation
O, omniscient self-effulgent God! Exalt this king through that excellent knowledge and power wherewith you grant all knowledge and prosperities to Indra, the master of the limbs, the soul. O Lord, please give him exalted rank among his kinsmen and contemporaries
Translation
O God, through that mighty knowledge of the Veda, Thou hast provided an energetic soul with different sorts of knowledge. Even therewith God, exalt this Brahmchari, and grant him highest rank among his kinsmen.
Footnote
The verse is applicable to a king as well.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−येन। ब्रह्मणा। इन्द्राय। १।२।३। जीवाय, पुरुषार्थिने जीवाय। सम्-अभरः। डुभृञ् भरणे, पोषणे−लङि सिप्। सम्यग् भृतवानसि पोषितवानसि। पयांसि। १।४।१। दुग्धानि, दुग्धधृतादिपदार्थान्। उत्-तमेन। म० २। अतिश्रेष्ठेन। ब्रह्मणा। १।८।४। वेदज्ञानेन। जात-वेदः। १।७।२। हे जातप्रज्ञान, परमेश्वर। तेन। ब्रह्मणा। अग्ने। हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! इह। अत्र, अस्मिन् जन्मनि। वर्धय। वृधु-णिच्। समर्धय। इमम्। उपासकं, माम्। स-जातानाम्। समान+जनी प्रादुर्भावे-क्त। जनसनखनां सञ्झलोः। पा० ६।४।४२। इति आत्त्वम्। समानस्य छन्दस्यमूर्ध०। पा० ६।३।८४। इति समासे समानस्य सभावः। समानजन्मनां स्वकुटुम्बिनां मध्ये। श्रैष्ठ्ये। गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। पा० ५।१।१२४। इति श्रेष्ठ-ष्यञ्। श्रेष्ठत्वे, प्रधानत्वे। आ। समन्तात्−यथाविधि। धेहि। डुधाञ् धारणपोषणयोः-लोट्। धारय, स्थापय। एनम्। उपासकम् ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(জাতবেদঃ) হে বিজ্ঞানময় পরমেশ্বর! (য়েন) যে (উত্তায়ন) উত্তম (ব্রহ্মণা) বেদ বিজ্ঞান দ্বারা (ইন্দ্রায়) পুরুষার্থী জীবের জন্য (পয়াংসি) দুগ্ধাদি রস (সমভরঃ) ভরিয়াছ। (তেন) তাহা দ্বারা (অগ্নে) হে জ্ঞান স্বরূপ পরমেশ্বর! (ত্বং) তুমি (ইহ) এখানে (ইমং) ইহাকে (বর্ধয়) বৃদ্ধি যুক্ত কর। (সজাতানাং) তুল্য জন্মযুক্ত ব্যক্তিদের মধ্যে (শ্রৈষ্ঠ) শ্রেষ্ঠ পদে (এনম্) ইহাকে (আ) যথাবিধি (ধেহি) স্থাপন কর।।
भावार्थ
হে বিজ্ঞানময় পরমাত্মন! যে মনোহর বেদ বিজ্ঞান দ্বারা পুরুষার্থী জীবের জন্য দুগ্ধাদি অমৃত রস ভরিয়া রাখিয়াছ, তাহা দ্বারা হে জ্ঞান স্বরূপ পরমেশ্বর! তুমি এখানে উপাসককে উন্নতি দান কর। আমার সম জন্মযুক্ত ব্যক্তিদের মধ্যে ইহাকে যথাবিধি শ্রেষ্ঠ পদে স্থাপন কর।।
मन्त्र (बांग्ला)
য়েনেন্দ্রায় সমভরঃ পয়াংস্যুত্তমেন ব্রহ্মণা জাতবেদঃ ৷ তেন ত্বমগ্ন ইহ বর্ধয়েমং সজাতানাং শৈষ্ঠ্য আ ধেহ্যেতম্।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। অগ্নিঃ। ত্রিষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(সর্বসম্পত্তিপ্রয়ত্নোপদেশঃ) সমস্ত সম্পত্তির জন্য চেষ্টার উপদেশ
भाषार्थ
(জাতবেদঃ) হে বিজ্ঞানযুক্ত, পরমেশ্বর ! তুমি (যেন উত্তমেন ব্রহ্মণা) যে উত্তম বেদবিজ্ঞান দ্বারা (ইন্দ্রায়) পুরুষার্থী জীবের জন্য (পয়াংসি) দুগ্ধাদি রসক (সমভরঃ) ভরে/পূর্ণ রেখেছ। (তেন) তা দ্বারা (অগ্নে) হে জ্ঞানস্বরূপ পরমেশ্বর ! (ত্বম্) তুমি (ইহ) এখানে (ইমম্) একে [আমাকে] (বর্ধয়) বৃদ্ধিযুক্ত করো, (সজাতানাম্) তুল্য জন্মধারণকারী পুরুষদের মধ্যে (শ্রৈষ্ঠ্যে) শ্রেষ্ঠ পদে (এনম্) একে [আমাকে] (আ) যথাবিধি (ধেহি) স্থাপিত করো ॥৩॥
भावार्थ
পরমেশ্বর পুরুষার্থকারীদের সদা পুষ্ট ও আনন্দিত করেন। মনুষ্যদের প্ৰচেষ্টাপূর্বক নিজের শ্রেষ্ঠতা ও প্রতিষ্ঠা বৃদ্ধি করা উচিত ॥৩॥ (অগ্নি) শব্দ ঈশ্বরবাচী। এতে এই প্রমাণ রয়েছে−মনু ১২।১২৩। এতমেকে বদন্ত্যগ্নিং মনুমন্যে প্রজাপতিম্। ইন্দ্রমেকেঽপরে প্রাণমপরে ব্রহ্ম শাশ্বতম্ ॥১॥ একে কেউ অগ্নি, কেউ মনু এবং প্রজাপতি, কেউ ইন্দ্র, কেউ প্রাণ ও নিত্য ব্রহ্ম বলে ॥
भाषार्थ
(জাতবেদঃ) উৎপন্ন পদার্থ-সমূহের জ্ঞাতা হে পরমেশ্বর ! (যেন উত্তমেন ব্রহ্মণা) যে উত্তম বেদ দ্বারা (ইন্দ্রায়) সম্রাটের জন্য (পয়াংসি) বিবিধ জ্ঞানদুগ্ধ (সমভরঃ=সম্ অহরঃ) তুমি সম্যক প্রাপ্ত করিয়েছো, [তা প্রদত্ত করেছ] (তেন) সেই উত্তম বেদ দ্বারা (অগ্নে) জ্ঞানাগ্নিসম্পন্ন হে পরমেশ্বর ! (ত্বম্) তুমি, (ইহ) এই লোকে (ইমম্) এই সম্রাটকে (বর্ধয়) বর্ধিত করো, (এনম্) এবং এই সম্রাটকে (সজাতানাম্) সমান জাতি-বিশিষ্ট [রাজাদের] মধ্যে (শ্রেষ্ঠ্যে) সর্বশ্রেষ্ঠ রূপে (আ ধেহি) স্থাপিত করো।
टिप्पणी
[ইন্দ্র=ইন্দ্রশ্চ সম্রাট্ বরুণশ্চ রাজা (যজু০ ৮।৩৭)। বরুণ১ হল প্রত্যেক রাষ্ট্রের রাজা ও সম্রাট হল এই সংযুক্ত রাজাদের দ্বারা নির্বাচিত শ্রেষ্ঠ রাজা। পয়াংসি দ্বারা পরমেশ্বরের মাতৃরূপ সূচিত করা হয়েছে যিনি ইন্দ্রকে জ্ঞানদুগ্ধ পান করান, বেদরূপী স্তন দ্বারা। সজাতানাম্ = যথা "সজাতানাং মধ্যমেষ্ঠা এধি রাজ্ঞাম্" (অথর্ব০ ২।৬।৪)।] [১. প্রত্যেক রাষ্ট্রের রাজাকে বরুণ এইজন্য বলা হয়েছে যে, সে প্রজা দ্বারা নির্বাচিত হয়। "ব্রিয়তে বাঽসৌ বরুণঃ" (উণা০ ৩।৫৩ দয়ানন্দ)।]
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