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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - प्राजापत्या बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    49

    स्व॒यमे॑नमभ्यु॒देत्य॑ ब्रूया॒द्व्रात्याति॑ सृज हो॒ष्यामीति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒यम् । ए॒न॒म् । अ॒भि॒ऽउ॒देत्य॑ । ब्रू॒या॒त् । व्रात्य॑ । अति॑ । सृ॒ज॒ । हो॒ष्यामि॑ । इति॑ ॥१२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वयमेनमभ्युदेत्य ब्रूयाद्व्रात्याति सृज होष्यामीति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वयम् । एनम् । अभिऽउदेत्य । ब्रूयात् । व्रात्य । अति । सृज । होष्यामि । इति ॥१२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    विषय

    यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [मनुष्य] (स्वयम्)आप ही (अभ्युदेत्य) सामने से उठकर (एनम्) इस [अतिथि] से (ब्रूयात्)कहे−(व्रात्य) हे व्रात्य ! [सत्यव्रतधारी] (अति सृज) आज्ञा दे, (होष्यामि इति)मैं हवन करूँगा ॥२॥

    भावार्थ

    यदि यज्ञसामग्रीउपस्थित और यज्ञ आरम्भ होने पर विद्वान् ब्रह्मवादी अतिथि आजावे, गृहस्थ आदरपूर्वक उस महामान्य की सम्मति लेकर यज्ञ करे ॥१, २॥

    टिप्पणी

    २−(स्वयम्) आत्मना (एनम्)अतिथिम् (अभ्युदेत्य) अभिमुखमुत्थाय (ब्रूयात्) कथयेत् (व्रात्य) (अति सृज)आज्ञापय (होष्यामि) होमं यज्ञं करिष्यामि (इति) ॥

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    विषय

    देवयज्ञ, अतिथियज्ञ

    पदार्थ

    १. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहान्) = जिसके घर पर (एवं विद्वान् वात्यः) = [इण् गतौ] सर्वत्र गतिवाले प्रभु को जाननेवाला व्रती (उद्धृतेषु अग्निषु) = अग्नियों के गाई पत्य से उठाकर आहवनी में आधान किये जाने पर (अग्निहोत्रे अधिश्रिते) = अग्निहोत्र के प्रारम्भ होने की तैयारी हो जाने पर (अतिथिः आगच्छेत्) = अतिथि के रूप में प्राप्त हो तो (स्वयम्) = अपने-आप (एनं अभि उदेत्य) = इसके प्रति प्राप्त होकर कहे कि हे (व्रात्य) = वतिन्। (अतिसृज) = आप मुझे अनुज्ञा दीजिए जिससे (होष्यामि इति) = मैं यज्ञ करूँ। २. इसप्रकार अनुज्ञा मांगने पर (सः च अतिसृजेत्) = यदि वह अनुज्ञया दे दे तो (जुहुयात्) = अग्निहोत्र करे, परन्तु यदि न (च अतिसृजेत) = यदि वह अनुज्ञा न दे तो न (जुहुयात्) = अग्निहोत्र न करे।

    भावार्थ

    अग्निहोत्र प्रारम्भ होने के अवसर पर अकस्मात् अतिथि आ जाए तो गृहस्थ वात्य का आदरपूर्वक स्वागत करे। उससे अनुज्ञया लेकर ही अग्निहोत्र करे। जबतक अतिथि अनुजया न दे तब अग्निहोत्र स्थगित रक्खे।

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    भाषार्थ

    (स्वयम्) अपने-आप गृहस्थी (एनम्, अभि) इस अतिथि की ओर (उदेत्य) उठ आकर (इति) यह (ब्रूयात्) कहे कि (व्रात्य) हे व्रतनिष्ठ ! (अति सृज) आज्ञा दीजिये (होष्यामि) मैं हवन करूंगा।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    The house holder should himself arise, greet the guest a: P say : Please forgive me and permit me, let me perform the yajna.

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    Translation

    he himself should get up to greet him and say : O Vratya, grant me your permission. I shall perform sacrifice."

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    Translation

    Should stand up spontaneously and approaching him say ‘Vratya give me permission, I will perform yajna’.

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    Translation

    Should of his own accord rise to meet him and say, Acharya, give me permission, I will perform sacrifice (Homa).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(स्वयम्) आत्मना (एनम्)अतिथिम् (अभ्युदेत्य) अभिमुखमुत्थाय (ब्रूयात्) कथयेत् (व्रात्य) (अति सृज)आज्ञापय (होष्यामि) होमं यज्ञं करिष्यामि (इति) ॥

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