Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    ऋषिः - उषा,दुःस्वप्ननासन देवता - आर्ची उष्णिक् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    45

    अना॑गमिष्यतो॒वरा॒नवि॑त्तेः संक॒ल्पानमु॑च्या द्रु॒हः पाशा॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अना॑गमिष्यत: । वरा॑न् । अवि॑त्ते: । स॒म्ऽक॒ल्पान् । अमु॑च्या: । द्रु॒ह: । पाशा॑न् ॥६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनागमिष्यतोवरानवित्तेः संकल्पानमुच्या द्रुहः पाशान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनागमिष्यत: । वरान् । अवित्ते: । सम्ऽकल्पान् । अमुच्या: । द्रुह: । पाशान् ॥६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोगनाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनागमिष्यतः) नआनेवाले (वरान्) वरदानों [श्रेष्ठ कर्मफलों] को, (अवित्तेः) निर्धनता के (संकल्पान्) विचारों को और (अमुच्याः) न छोड़नेवाले (द्रुहः) द्रोह [अनिष्ट, चिन्ता] के (पाशान्) फन्दों को ॥१०॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य कुपथ्यसेवीहोवे, वह ईश्वरनियम के अनुसार दुष्ट कर्मों की अधिकता से श्रेष्ठ फल कभी नपावे, किन्तु दरिद्रता आदि महाक्लेशों में पड़कर घोर नरक भोगे ॥१०, ११॥

    टिप्पणी

    १०−(अनागमिष्यतः)अनागमनमिच्छतः (वरान्) श्रेष्ठफलान् (अवित्तेः) दरिद्रतायाः (संकल्पान्)विचारान् (अमुच्याः) मुच्लृ मोचने-क, ङीप्। अमोचनशीलायाः (द्रुहः)अनिष्टचिन्तायाः (पाशान्) बन्धान् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उपासक की तीन बातें

    पदार्थ

    १. हे प्रभु के उपासक! तु (अनागमिष्यत:) = उन सब उत्तम पदार्थों को जो आते प्रतीत नहीं होते (अमुच्या:) = छोड़नेवाला बन। प्रयत्न में तो कमी नहीं करना, परन्तु व्यर्थ की आशाएँ नहीं लगाए रखना। 'ये तो मिल गया है, ये भी मिल जाएगा' इस प्रकार नहीं सोचते रहना। २. साथ ही (अवित्ते: संकल्पान्) = अनैश्वर्य के संकल्पों को भी तू छोड़नेवाला हो । निर्धनता के आ जाने की आकांक्षाओं से डरते न रहना। (द्रुहः पाशान्) = द्रोह की भावना के पाशों को भी तू छोड़। किसी के विषय में द्रोह की भावना को अपने हृदय में स्थान न देना।

    भावार्थ

    प्रभु का उपासक भविष्य की उज्ज्वल कल्पनाओं में नहीं उड़ता रहता। निर्धनता के आ जाने के भय से घबराया नहीं रहता और कभी भी द्रोह की भावना से युक्त नहीं होता।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    तथा (अनागमिष्यतः) न पूर्ण होने वाली (वरान्) आकाङ्क्षाओं को (अवित्तेः) वित्तनाश के (संकल्पान्) संकल्प-विकल्पों को, तथा (अमुच्याः) न छूटने वाली (द्रुहः) द्रोह भावनाओं के (पाशान्) फंदों को ॥१०॥

    टिप्पणी

    [द्वेष भावना वाले और क्रोधी शाप देनेवाले की, -जागते तथा सोते,- मानसिक वृत्तियों का चित्रण, मन्त्र ७ से १० तक में किया गया है] [

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    All ambitions which are not realisable, resolutions for wealth lost in poverty and fetters of hate and jealousy which are unbreakable.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    blessing that will never come true, wishes that will fulfilled, and the nooses of hatred that will never released;

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The dreaming of boons in future which are not to be fulfiled, thought of poverty and the snares of the hostility which are never extricable.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Wishes for boons that will not come, thoughts of indigence, the snares of malice which never releases.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(अनागमिष्यतः)अनागमनमिच्छतः (वरान्) श्रेष्ठफलान् (अवित्तेः) दरिद्रतायाः (संकल्पान्)विचारान् (अमुच्याः) मुच्लृ मोचने-क, ङीप्। अमोचनशीलायाः (द्रुहः)अनिष्टचिन्तायाः (पाशान्) बन्धान् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top