अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
ऋषिः - उषा,दुःस्वप्ननासन
देवता - आर्ची उष्णिक्
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
47
अना॑गमिष्यतो॒वरा॒नवि॑त्तेः संक॒ल्पानमु॑च्या द्रु॒हः पाशा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठअना॑गमिष्यत: । वरा॑न् । अवि॑त्ते: । स॒म्ऽक॒ल्पान् । अमु॑च्या: । द्रु॒ह: । पाशा॑न् ॥६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अनागमिष्यतोवरानवित्तेः संकल्पानमुच्या द्रुहः पाशान् ॥
स्वर रहित पद पाठअनागमिष्यत: । वरान् । अवित्ते: । सम्ऽकल्पान् । अमुच्या: । द्रुह: । पाशान् ॥६.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(अनागमिष्यतः) नआनेवाले (वरान्) वरदानों [श्रेष्ठ कर्मफलों] को, (अवित्तेः) निर्धनता के (संकल्पान्) विचारों को और (अमुच्याः) न छोड़नेवाले (द्रुहः) द्रोह [अनिष्ट, चिन्ता] के (पाशान्) फन्दों को ॥१०॥
भावार्थ
जो मनुष्य कुपथ्यसेवीहोवे, वह ईश्वरनियम के अनुसार दुष्ट कर्मों की अधिकता से श्रेष्ठ फल कभी नपावे, किन्तु दरिद्रता आदि महाक्लेशों में पड़कर घोर नरक भोगे ॥१०, ११॥
टिप्पणी
१०−(अनागमिष्यतः)अनागमनमिच्छतः (वरान्) श्रेष्ठफलान् (अवित्तेः) दरिद्रतायाः (संकल्पान्)विचारान् (अमुच्याः) मुच्लृ मोचने-क, ङीप्। अमोचनशीलायाः (द्रुहः)अनिष्टचिन्तायाः (पाशान्) बन्धान् ॥
विषय
उपासक की तीन बातें
पदार्थ
१. हे प्रभु के उपासक! तु (अनागमिष्यत:) = उन सब उत्तम पदार्थों को जो आते प्रतीत नहीं होते (अमुच्या:) = छोड़नेवाला बन। प्रयत्न में तो कमी नहीं करना, परन्तु व्यर्थ की आशाएँ नहीं लगाए रखना। 'ये तो मिल गया है, ये भी मिल जाएगा' इस प्रकार नहीं सोचते रहना। २. साथ ही (अवित्ते: संकल्पान्) = अनैश्वर्य के संकल्पों को भी तू छोड़नेवाला हो । निर्धनता के आ जाने की आकांक्षाओं से डरते न रहना। (द्रुहः पाशान्) = द्रोह की भावना के पाशों को भी तू छोड़। किसी के विषय में द्रोह की भावना को अपने हृदय में स्थान न देना।
भावार्थ
प्रभु का उपासक भविष्य की उज्ज्वल कल्पनाओं में नहीं उड़ता रहता। निर्धनता के आ जाने के भय से घबराया नहीं रहता और कभी भी द्रोह की भावना से युक्त नहीं होता।
भाषार्थ
तथा (अनागमिष्यतः) न पूर्ण होने वाली (वरान्) आकाङ्क्षाओं को (अवित्तेः) वित्तनाश के (संकल्पान्) संकल्प-विकल्पों को, तथा (अमुच्याः) न छूटने वाली (द्रुहः) द्रोह भावनाओं के (पाशान्) फंदों को ॥१०॥
टिप्पणी
[द्वेष भावना वाले और क्रोधी शाप देनेवाले की, -जागते तथा सोते,- मानसिक वृत्तियों का चित्रण, मन्त्र ७ से १० तक में किया गया है] [
विषय
अन्तिम विजय, शान्ति, शत्रुशमन।
भावार्थ
वाणी उषा और उनके पालक लोग (कुम्भीकाः) कुम्भीक, घड़े के समान पेट बढ़ा देने वाली जलोदर आदि, (दूषिकाः) शरीर में विषका दोष उत्पन्न करने वाली और (पीयकान्) प्रारण हिंसा करने वाली व्याधियों और रोगों को और (जाग्रद्-दुष्वप्न्यम्) जागते समय के दुस्वप्न होने और (स्वप्ने दुष्वप्न्यम्) सोते समय में दुस्वप्न होने, और (वरान् अनागमिष्यतः) भविष्यत् में कभी न आने वाले उत्तम एैश्वर्य, अर्थात् उत्तम एैश्वर्यों के भविष्यत् में न आने के कष्टों को (अवित्तेः संकल्पान्) द्रव्य लाभ न होने या दरिद्रता से उठे नाना संकल्प और (अमुच्याः) कभी न छूटने वाले (द्रुहः) परस्पर के कलहों के (पाशान्) पाशों को हे (अग्ने) अग्ने, शत्रुभयदायक ! राजन् ! प्रभो ! (देवाः) विद्वान् लोग (तत्) उन सब कष्टदायी बातों को (अमुष्मै) उस शत्रु के पास (परावहन्तु) पहुंचावें। (यथा) जिससे वह शत्रुजन (वध्रिः) निर्वीर्य, बधिया (विशुरः साधुः न) तकलीफ़ में पड़े भले श्रादमी के समान (असत्) हो जाय।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यम ऋषिः। दुःस्वप्ननाशन उषा च देवता, १-४ प्राजापत्यानुष्टुभः, साम्नीपंक्ति, ६ निचृद् आर्ची बृहती, ७ द्विपदा साम्नी बृहती, ८ आसुरी जगती, ९ आसुरी, १० आर्ची उष्णिक, ११ त्रिपदा यवमध्या गायत्री वार्ष्यनुष्टुप्। एकादशर्चं षष्ठं पर्याय सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
All ambitions which are not realisable, resolutions for wealth lost in poverty and fetters of hate and jealousy which are unbreakable.
Translation
blessing that will never come true, wishes that will fulfilled, and the nooses of hatred that will never released;
Translation
The dreaming of boons in future which are not to be fulfiled, thought of poverty and the snares of the hostility which are never extricable.
Translation
Wishes for boons that will not come, thoughts of indigence, the snares of malice which never releases.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(अनागमिष्यतः)अनागमनमिच्छतः (वरान्) श्रेष्ठफलान् (अवित्तेः) दरिद्रतायाः (संकल्पान्)विचारान् (अमुच्याः) मुच्लृ मोचने-क, ङीप्। अमोचनशीलायाः (द्रुहः)अनिष्टचिन्तायाः (पाशान्) बन्धान् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal