अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 9
इन्द्र॑ एषां ने॒ता बृह॒स्पति॒र्दक्षि॑णा य॒ज्ञः पु॒र ए॑तु॒ सोमः॑। दे॑वसे॒नाना॑मभिभञ्जती॒नां जय॑न्तीनां म॒रुतो॑ यन्तु॒ मध्ये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑। ए॒षा॒म्। ने॒ता। बृह॒स्पतिः॑। दक्षि॑णा। य॒ज्ञः। पु॒रः। ए॒तु॒। सोमः॑। दे॒व॒ऽसे॒नाना॑म्। अ॒भि॒ऽभ॒ञ्ज॒ती॒नाम्। जय॑न्तीनाम्। म॒रुतः॑। य॒न्तु॒। मध्ये॑ ॥१३.९॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र एषां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः। देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्तु मध्ये ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः। एषाम्। नेता। बृहस्पतिः। दक्षिणा। यज्ञः। पुरः। एतु। सोमः। देवऽसेनानाम्। अभिऽभञ्जतीनाम्। जयन्तीनाम्। मरुतः। यन्तु। मध्ये ॥१३.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सेनापति के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी मुख्य सेनापति] (एषाम्) इन [वीरों] का (नेता) नेता [होवे], (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े अधिकारों का स्वामी सेनानायक] (दक्षिणा) दाहिनी ओर और (यज्ञः) पूजनीय, (सोमः) सोम [प्रेरक, उत्साहक सेनाधिकारी] (पुरः) आगे (एतु) चले। (मरुतः) मरुद्गण [शूरवीर पुरुष] (अभिभञ्जतीनाम्) कुचल डालती हुई, (जयन्तीनाम्) विजयिनी (देवसेनानाम्) विजय चाहनेवालों की सेनाओं के (मध्ये) बीच में (यन्तु) चलें ॥९॥
भावार्थ
व्यूहरचना में अपनी-अपनी सेना लेकर मुख्य सेनापति की दाहिनी ओर को बृहस्पति नाम सेनाधिकारी हो, सोम नाम सेनाध्यक्ष सबसे आगे और अन्य मरुद्गण शूरवीर योद्धा बीच में रहे। इसी प्रकार चक्रव्यूह, पद्मव्यूह आदि अनेक व्यूहरचनाओं से शत्रुओं को जीतें ॥९॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१०३।८, यजु०१७।४० और साम०, उ०९।३।३॥९−(इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तो मुख्यसेनापतिः (एषाम्) वीराणाम् (नेता) नायकः (बृहस्पतिः) बृहतामधिकाराणां रक्षकः सेनानायकः (दक्षिणा) दक्षिण-आच्। दक्षिणाहस्तदिशायाम् (यज्ञः) पूजनीयः (पुरः) अग्रे (एतु) गच्छतु (सोमः) प्रेरकाः सेनाध्यक्षः (देवसेनानाम्) विजिगीषूणां सेनानाम् (अभिभञ्जतीनाम्) सर्वतो मर्दयन्तीनाम् (जयन्तीनाम्) तॄभूवहिवसि०। उ०३।१२८। जि जये-झच्, ङीष् गौरादित्वात्। विजयिनीनाम्, (मरुतः) अ०१।२०।१। मृग्रोरुतिः। उ०१।९४। मृङ्, प्राणत्यागे-उति। मारयन्ति शत्रून् ये शूरपुरुषाः (यन्तु) गच्छन्तु (मध्ये)॥
विषय
देवसेनाएँ
पदार्थ
१. (देवसेनानाम्) = दैवी सम्पत्ति में गिने जानेवाले दिव्यगुणों की सेनाओं के, (अभिभञ्जतीनाम्) = जो चारों ओर आसुरभावनाओं का भंग कर रही हैं और (जयन्तीनाम्) = आसुरवृत्तियों पर विजय पा रही हैं, उनके (मध्ये) = मध्य में (मरुतः) = प्राणों की साधना करनेवाले मनुष्य चलें। ये देवसेनाएँ सदा प्राणसाधना करनेवाले मनुष्यों के पीछे चला करती हैं। (प्राणायामैदहेद् दोषान्) = प्राणायाम से इन्द्रियों के दोष क्षीण हो ही जाते हैं। मानसमलों के नष्ट होने से आसुरप्रवृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। क्रोध का स्थान करुणा ले-लेती है, काम प्रेम में परिवर्तित हो जाता है। लोभ का स्थान सन्तोष व त्याग को मिल जाता है। यही देवसेनाओं की आसुरसेनाओं पर विजय है। २. (इन्द्रः एषां नेता) = इन दिव्यगुणों का सेनापति [नेता] इन्द्र है। यह इन्द्रियों का अधिष्ठाता, इन्द्रियों को वश में करके आसुरप्रवृत्तियों को दूर भाग देता है। सब इन्द्रियों से भोगों को भोगनेवाला दशानन तो राक्षससेनाओं का मुखिया है। ३. इन देवसेनाओं के (पुरः) = आगे ये (एतु) = चलें ३. (बृहस्पतिः) = ज्ञान का स्वामी। ज्ञानाग्नि ही तो कामादि को भस्म करती है। ४. दक्षिणा-दान की वृत्ति। यह लोभ को समाप्त करके पापों को ही नष्ट कर देती है, इसीलिए देव सदा दानशील हैं 'देवो दानात्'। ५. (यज्ञः) = यज्ञ की मौलिक भावना नि:स्वार्थ कर्म हैं, इसीलिए यज्ञ में अपवित्रता का स्थान नहीं। ६. (सोमः) = सौम्यता। यह सौम्यता-नातिमनिता-देवी सम्पत्ति का चरमोत्कर्ष है। सोम का अर्थ वीर्य भी है। दिव्यगुणों के वर्धन के लिए सोम-रक्षण आवश्यक ही है।
भावार्थ
प्राणसाधना सब दिव्यगुणों का केन्द्र है। दिव्यगणों के वर्धन के लिए इन्द्र-जितेन्द्रिय बनना आवश्यक है। इसके साथ 'ज्ञान-दान-यज्ञ-सौम्यता व सोम [वीर्य] रक्षण दिव्यगुणों के वर्धन के लिए आवश्यक हैं।
भाषार्थ
(इन्द्रः) मुखिया सेनाधीश (एषाम्) इन सैनिकों का (नेता) नायक हो, मार्गदर्शक हो। (बृहस्पतिः) और इस बृहती सेना का रक्षक अधिपति (दक्षिणा) सेनाओं के दाहिनी ओर हो। (यज्ञः) शत्रु सेना के साथ संग करनेवाला अर्थात् उनसे भिड़नेवाला, और (सोमः) अपनी सेनाओं को प्रेरणा देनेवाला अधिकारी (पुर एतु) सेनाओं के आगे-आगे चले। तथा (अभि भञ्जतीनाम्) संमुखस्थ शत्रुसेना के व्यूह को तोड़ती हुई, (जयन्तीनाम्) और उन पर विजय पाती हुई (देवसेनानाम्) दिव्य सेनाओं अर्थात् विजिगीषुओं की सेनाओं के (मध्ये) मध्यभाग में (मरुतः) वारुणास्त्रों द्वारा जलवर्षा करनेवाले सैनिक हों।
टिप्पणी
[यज्ञः= यज संगतिकरणे। सोमः= षू प्रेरणे। देव=दिव् विजिगीषा। मरुतः=मानसून वायुओं के सदृश जलवर्षा करनेवाले सैनिक (देखो—कां० १९। सू० १०। मन्त्र ९)।]
विषय
इन्द्र, राजा और सेनापति का वर्णन।
भावार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र राजा (एषां) इन वीरों का नेता हो और (बृहस्पतिः) बृहती, बड़ी भारी सेना का स्वामी सेनापति (दक्षिणा) दक्षिण हाथ में होकर चले। (यज्ञः) आज्ञा प्रदान करने वाला या समस्त सेनाओं को व्यूह में संगठित करने वाला (सोमः) सब का प्रेरक आज्ञापक पुरुष (पुरः एतु) आगे आगे चले। (अभिभञ्जतीनाम्) सब ओर शत्रुओं को कुचलने वाली (जयन्तीनाम्) विजय करती हुई (देवसेनानाम्) युद्ध विजयी लोगों की सेनाओं के (मध्ये) बीच में (मरुतः) वायुओं के समान तीव्र गतिशील अथवा मारने में चतुर वीर सुभट (यन्तु) चलें।
टिप्पणी
(प्र०) ‘इन्द्र आसा’ (च०) ‘यन्त्वग्रम्’ इति ऋ० यजुः साम०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अप्रतिरथ ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Sole Hero
Meaning
Of these armies of the Devas, divine powers of nature and humanity, men of noble intention and far sight, breaking through and conquering evil and negative elements of life, Indra of lightning force is the leader, Brhaspati, commanding knowledge, tactics and long range vision, is the guide with yajna, values of cooperation, self-sacrifice and creativity, on his right, and Soma, lover of peace and felicity, is the inspiration, while Maruts, warriors of passion and enthusiasm, are the central force, they should move all round.
Translation
Let the resplendent one, the Commander of the large army, be their leader; let the self-sacrificing squad be on their right; let the units intoxicated with herbal drinks move to the fore. Let the brave infantry march in the forefront of the conquering and overwhelming armies of godly people. (Yv. XVIL40 Variation)
Translation
Let the ruler be the leader or guide of these men of army, Let the master of, grand army be in their right, the intention of unselfishness precede them and Soma, the commanding authority walk in front of them. May the men march in fore-front of the armies of Devas, the men desiring victory, which crush and demolish the hosts of encounter.
Translation
The king be the leader of these armies. The chief commander should be on the right side and the director of the movements of the various regiments in the military formation may move in front of all. Just in the middle of these fine armies, that are crushing the enemy forces on all sides and winning victories, the fast-moving warriors, raining death on the opposing forces, should rush on.
Footnote
cf. Rig, 10.103.8.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१०३।८, यजु०१७।४० और साम०, उ०९।३।३॥९−(इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तो मुख्यसेनापतिः (एषाम्) वीराणाम् (नेता) नायकः (बृहस्पतिः) बृहतामधिकाराणां रक्षकः सेनानायकः (दक्षिणा) दक्षिण-आच्। दक्षिणाहस्तदिशायाम् (यज्ञः) पूजनीयः (पुरः) अग्रे (एतु) गच्छतु (सोमः) प्रेरकाः सेनाध्यक्षः (देवसेनानाम्) विजिगीषूणां सेनानाम् (अभिभञ्जतीनाम्) सर्वतो मर्दयन्तीनाम् (जयन्तीनाम्) तॄभूवहिवसि०। उ०३।१२८। जि जये-झच्, ङीष् गौरादित्वात्। विजयिनीनाम्, (मरुतः) अ०१।२०।१। मृग्रोरुतिः। उ०१।९४। मृङ्, प्राणत्यागे-उति। मारयन्ति शत्रून् ये शूरपुरुषाः (यन्तु) गच्छन्तु (मध्ये)॥
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