Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 16 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदा बृहतीगर्भातिशक्वरी सूक्तम् - अभय सूक्त
    66

    दि॒वो मा॑दि॒त्या र॑क्षन्तु॒ भूम्या॑ रक्षन्त्व॒ग्नयः॑। इ॑न्द्रा॒ग्नी र॑क्षतां मा पु॒रस्ता॑द॒श्विना॑व॒भितः॒ शर्म॑ यच्छताम्। ति॑र॒श्चीन॒घ्न्या र॑क्षतु जा॒तवे॑दा भूत॒कृतो॑ मे स॒र्वतः॑ सन्तु॒ वर्म॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः। मा॒। आ॒दि॒त्याः। र॒क्ष॒न्तु॒। भूम्याः॑। र॒क्ष॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। र॒क्ष॒ता॒म्। मा॒। पुरस्ता॑त्। अ॒श्विनौ॑। अ॒भितः॑। शर्म॑। य॒च्छ॒ता॒म्। ति॒र॒श्चीन्। अ॒घ्न्या। र॒क्ष॒तु॒। जा॒तऽवे॑दाः। भू॒त॒ऽकृतः॑। मे॒। स॒र्वतः॑। स॒न्तु॒। वर्म॑ ॥१६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवो मादित्या रक्षन्तु भूम्या रक्षन्त्वग्नयः। इन्द्राग्नी रक्षतां मा पुरस्तादश्विनावभितः शर्म यच्छताम्। तिरश्चीनघ्न्या रक्षतु जातवेदा भूतकृतो मे सर्वतः सन्तु वर्म ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः। मा। आदित्याः। रक्षन्तु। भूम्याः। रक्षन्तु। अग्नयः। इन्द्राग्नी इति। रक्षताम्। मा। पुरस्तात्। अश्विनौ। अभितः। शर्म। यच्छताम्। तिरश्चीन्। अघ्न्या। रक्षतु। जातऽवेदाः। भूतऽकृतः। मे। सर्वतः। सन्तु। वर्म ॥१६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अभय और रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (आदित्याः) अखण्डव्रती शूर (मा) मुझे (दिवः) आकाश से (रक्षन्तु) बचावें, (अग्नयः) ज्ञानी पुरुष (भूम्याः) भूमि से (रक्षन्तु) बचावें। (इन्द्राग्नी) बिजुली और अग्नि [के समान तेजस्वी और व्यापक राजा और मन्त्री दोनों] (मा) मुझे (पुरस्तात्) सामने से (रक्षताम्) बचावें, (अश्विनौ) सूर्य और चन्द्रमा [के समान ठीक मार्ग चलनेवाले वे दोनों] (अभितः) सब ओर से (शर्म) सुख (यच्छताम्) देवें। (जातवेदाः) बहुत धनवाली (अघ्न्या) अटूट [राजनीति] (तिरश्चीन्=तिरश्चिभ्यः) आड़े चलनेवाले [वैरियों] से [मुझे] (रक्षतु) बचावे, (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले पुरुष (मे) मेरे लिये (सर्वतः) सब ओर से (वर्म) कवच (सन्तु) होवें ॥२॥

    भावार्थ

    जो राजा और राजपुरुष आकाश में वायुयान द्वारा चलनेवाले वीरों से और पृथिवी पर अश्ववार आदि से अस्त्र-शस्त्र द्वारा शत्रुओं का नाश करते हैं, वही प्रजा की रक्षा कर सकते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(दिवः) आकाशात् (मा) माम् (आदित्याः) अखण्डब्रह्मचारिणः शूराः (रक्षन्तु) पान्तु (भूम्याः) (रक्षन्तु) (अग्नयः) ज्ञानिनः पुरुषाः (इन्द्राग्नी) विद्युदग्निवत्तेजस्विव्यापकौ राजमन्त्रिणौ (रक्षताम्) (मा) माम् (पुरस्तात्) पुरोभागे (अश्विनौ) सूर्याचन्द्रमसाविव सन्मार्गगन्तारौ (अभितः) सर्वतः (यच्छताम्) दत्ताम् (तिरश्चीन्) वातेर्डिच्च। उ०४।१३४४। तिरस्+चर गतौ-इण्, डित्। सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा०७।१।३९। पञ्चम्याः शस्। तिरश्चिम्यः। तिर्यग्गतिभ्यः शत्रुभ्यः (अघ्न्या) अहन्तव्या राजनीतिः (रक्षतु) (जातवेदाः) गतिकारकोपपदयोः पूर्वपदप्रकृतिस्वरत्वञ्च। उ०४।२२७। जात+विद्लृ लाभे-असि। वेदो धननाम-निघ०२।१०। जातं प्रसिद्धं वेदो धनं यस्याः सा (भूतकृतः) भूतस्योचितस्य कर्तारः (मे) मम (सर्वतः) (सन्तु) (वर्म) कवचम् रक्षासाधनम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्वाध्याय द्वारा सरल जीवन

    पदार्थ

    १. (दिव:) = इस घुलोक के (आदित्या:) = रश्मिभेद से उदय होने से बारह नामोंवाले ये आदित्य (मा रक्षन्तु) = मुझे रक्षित करे तथा (भूम्या:) = इस पृथिवी की (अग्नयः) = 'गार्हपत्य, दक्षिनाग्नि, आहवनीय' आदि अग्नियाँ (रक्षन्तु) = रक्षित करें। २. (इन्द्राग्नी) = शक्ति व प्रकाश के देव (मा) = मुझे (पुरस्तात्) = आगे से (रक्षताम्) = रक्षित करें। (अश्विनौ) = प्राणापान (अभितः) = दोनों ओर से-शरीर व मन दोनों के दृष्टिकोण से (शर्म) = कल्याण (यच्छताम्) = दें। शरीर को ये नौरोग बनाएँ और मन को पवित्र । ३. (जातवेदा:) = जिससे ज्ञान की उत्पत्ति होती है वह (अघ्न्या) = अहन्तव्य-सदा स्वाध्याय के योग्य वेदवाणी (तिरश्चीन् रक्षतु) = [तिरः अञ्च] टेढ़ी चालों को हमसे दूर रक्खे। हम स्वाध्याय के द्वारा कुटिलता से दूर होकर आर्जव के मार्ग को अपनाएँ। (भूतकृतः) = यथार्थ कर्मों के करनेवाले माता पिता, आचार्य (सर्वत:) = सब ओर से (मे) = मेरे (वर्म सन्तु) = कवच हों। इनकी शरण में सुरक्षित हुआ हुआ मैं बाल्य, यौवन में अपना ठीक परिपाक कर पाऊँ।

    भावार्थ

    धुलोक के आदित्य व पृथिवी की अग्नियों मेरा रक्षण करें । बल व प्रकाश हमारे रक्षक हों। प्राणसाधना हमें स्वस्थ शरीर व निर्मल मनवाला बनाए । स्वाध्याय हमें सरलवृत्ति प्राप्त कराए तथा उत्तम माता-पिता व आचार्य कवच के समान हमारे रक्षक हों।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे जगदीश्वर! आप की कृपा से (आदित्याः) नानाविध सूर्य (दिवः) द्युलोक से (मा) मेरी (रक्षन्तु) रक्षा करें। (अग्नयः) गार्हपत्य आहवनीय दक्षिणाग्नि, या सामान्य अग्नियाँ (भूम्याः) भूमि से मेरी (रक्षन्तु) रक्षा करें। (इन्द्राग्नी) विद्युत् तथा विद्युत्पातजन्य अग्नि (पुरस्तात्) पूर्व से (मा) मुझ प्रत्येक प्रजाजन की (रक्षताम्) रक्षा करें। (अश्विनौ) दिन-रात (अभितः) सब ओर से (शर्म) सुख या आश्रय (यच्छताम्) प्रदान करें। (तिरश्चीन्) प्राप्त शुभकर्मों का चयन अर्थात् अधिकाधिक संचय करनेवालों की (रक्षतु) रक्षा करे। (अघ्न्या) नित्या वेदवाणी। और (जातवेदाः) प्रज्ञावान् तथा स्थिति उत्पत्ति और प्रलय द्वारा और न्याय द्वारा उत्पन्न सचराचर समग्र जगत् को आच्छादित कर इसमें विद्यमान परमेश्वर (तिरश्चीन्) प्राप्त शुभकर्मों का अधिकाधिक संचय करनेवालों की (रक्षतु) रक्षा करे। तथा (भूतकृतः) सत्यकर्मों का अनुष्ठान करनेवाले ऋषि (सर्वतः) सब ओर से (मे) मुझ प्रत्येक प्रजाजन के लिए (वर्म) कवच अर्थात् रक्षक (सन्तु) हों।

    टिप्पणी

    [आदित्याः= द्युलोक में नाना सूर्य हैं। कतिपय ग्रह आदि को छोड़ कर शेष दीखनेवाले तारागण सभी सूर्य हैं। हमारे सौरमण्डल का सूर्य इन में विष्णुरूप है, यह किरणों द्वारा व्याप्तरूपवाला दीखता है, क्योंकि यह हमारे अधिक समीप है (विष्णु= विष्लृ व्याप्तौ)। यथा—“आदित्यानामहं विष्णुः” (गीता० १०।२१)। पुरस्तात्= वर्षर्तु में पूर्व से आई मानसून में इन्द्र अर्थात् विद्युत् अधिक होती है, और विद्युत्पातजन्य अग्नियाँ भी प्रकट होती हैं। अश्विनौ= “अहोरात्रावित्येके” (निरु० १२।१।१)। (तिरश्चीन्)=तिरःप्राप्तान् (चिन्वन्ति) ते तिरश्चयः, तान् तिरश्चीन्। तिरः= प्राप्तस्य नाम (निरु० ३।४।२०)+ चिञ् चयने। अघ्न्या=अघ्न्यः प्रजापतिः (उणा० ४।११३)। अतः सम्भवतः अघ्न्या=अघ्न्य की वेदवाणी। यथा—“वेदेन रूपे व्यपिबत् सुतासुतौ प्रजापतिः” (यजुः० १९।७८), वेद= वेदवाणी। जातवेदाः=जातप्रज्ञानः (निरु० ७।५।१९)। तथा जातवेदाः=“जातवेदस इति जातमिदं सर्वं सचराचरं स्थित्युत्पत्तिप्रलयन्यायेनाच्छाय (आच्छाद्य?) विद्यते” (निरु० १३।३।३४)। भूतकृतः=भूत अर्थात् सत्य= यथार्थ कर्मों के करनेवाले। यथा—“यामृषयो भूतकृतो मेधां मेधाविनो विदुः” (अथर्व० ६।१०८।४)। भूत=True, right, proper (आप्टे)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अभय और रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (दिवः) द्यौलौक, आकाश से (आदित्यः) आदित्य, १२ मास (मा रक्षन्तु) मेरी रक्षा करें। (भूम्याः) भूमि से (अग्नयः) अग्नि, अग्रणी नेता लोग (रक्षन्तु) रक्षा करें। (पुरस्तात्) आगे से (मा) मुझको (इन्द्राग्नी रक्षताम्) इन्द्र और अग्नि, वायु और आग, एवं राजा और सेनापति रक्षा करें। (अश्विनौ) दिन और रात दोनों, या सूर्य चन्द्र, या अश्व, अश्वारोही जन, (अभितः) इधर उधर से (शर्मयच्छताम्) सुख प्रदान करें। (जातवेदाः) प्रज्ञावान् पुरुष (अघ्न्या) न मारने योग्य (तिरश्चीन्=तिरश्चीः) तिर्यग् योनि के जन्तुओं की (रक्षतु) रक्षा करें। (भूतकृतः) प्राणियों के हितकारी जन अथवा भूत पन्चभूतों के नाना प्रकार के विकारों और विज्ञानों के आविष्कर्ता लोग (मे) मेरे (सर्वतः) सब ओर से (वर्म सन्तु) रक्षाकारी कवच के समान हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ अनुष्टुप्, २ त्र्यवसाना सप्तपदा बृहतीगर्भा अतिशक्वरी द्वयृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Fear

    Meaning

    Let the Adityas, sun in zodiacs, protect me from the regions of light, let the earthly fires and yajnic flames protect me from earthly dangers, let Indra-and-Agni, electric and heat energy, protect me from the front, let Ashvins, complementarities of nature, protect me all round, let the man of the knowledge of life forms protect cows and other animals as well as reptiles. Let nature’s divine powers that evolve forms of existence be my protective shield all round.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the suns (of the twelve months) protect me from the sky; may the fires protect (me) from earth. May Lord resplendent and adorable protect me in front and the asvins (twins divine) grant me protection on all sides. May the Lord cognizant of all protect our cows crosswise. May the creators of all beings be my armour on all sides.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May Adityas, the 12 months of one year protect me from heaven, may the fires protect us from the earth, may electricity and fire keep me safe from the front, may the sun and moon give us pleasure from all sides. May the man of knowledge protect the creatures of animal kingdom which are not killable and may the powers creating the organic and i inorganic creation be my armor from all sides.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May, the twelve months of the year or the rays of the Sun, or cosmic rays protect me from heavens. May the leaders guard me from the earth. May air and fire protect me from the front. Let day and night, or the Sun and the moon, the army and the commander grant me shelter on both sides. May the learned person, who knows full well all the created things, protect the cattle, unworthy of destruction. May the invitors of various things provide armour for me, on all sides.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(दिवः) आकाशात् (मा) माम् (आदित्याः) अखण्डब्रह्मचारिणः शूराः (रक्षन्तु) पान्तु (भूम्याः) (रक्षन्तु) (अग्नयः) ज्ञानिनः पुरुषाः (इन्द्राग्नी) विद्युदग्निवत्तेजस्विव्यापकौ राजमन्त्रिणौ (रक्षताम्) (मा) माम् (पुरस्तात्) पुरोभागे (अश्विनौ) सूर्याचन्द्रमसाविव सन्मार्गगन्तारौ (अभितः) सर्वतः (यच्छताम्) दत्ताम् (तिरश्चीन्) वातेर्डिच्च। उ०४।१३४४। तिरस्+चर गतौ-इण्, डित्। सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा०७।१।३९। पञ्चम्याः शस्। तिरश्चिम्यः। तिर्यग्गतिभ्यः शत्रुभ्यः (अघ्न्या) अहन्तव्या राजनीतिः (रक्षतु) (जातवेदाः) गतिकारकोपपदयोः पूर्वपदप्रकृतिस्वरत्वञ्च। उ०४।२२७। जात+विद्लृ लाभे-असि। वेदो धननाम-निघ०२।१०। जातं प्रसिद्धं वेदो धनं यस्याः सा (भूतकृतः) भूतस्योचितस्य कर्तारः (मे) मम (सर्वतः) (सन्तु) (वर्म) कवचम् रक्षासाधनम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top