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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः, हिरण्यम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - हिरण्यधारण सूक्त
    44

    यद्धिर॑ण्यं॒ सूर्ये॑ण सु॒वर्णं॑ प्र॒जाव॑न्तो॒ मन॑वः॒ पूर्व॑ ईषि॒रे। तत्त्वा॑ च॒न्द्रं वर्च॑सा॒ सं सृ॑ज॒त्यायु॑ष्मान्भवति॒ यो बि॒भर्ति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। हिर॑ण्यम्। सूर्ये॑ण। सु॒ऽवर्ण॑म्। प्र॒जाऽव॑न्तः। मन॑वः। पूर्वे॑। ई॒षि॒रे। तत् । त्वा॒। च॒न्द्रम्। वर्च॑सा। सम्। सृ॒ज॒ति॒। आयु॑ष्मान्। भ॒व॒ति॒। यः। बि॒भर्ति॑ ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्धिरण्यं सूर्येण सुवर्णं प्रजावन्तो मनवः पूर्व ईषिरे। तत्त्वा चन्द्रं वर्चसा सं सृजत्यायुष्मान्भवति यो बिभर्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। हिरण्यम्। सूर्येण। सुऽवर्णम्। प्रजाऽवन्तः। मनवः। पूर्वे। ईषिरे। तत् । त्वा। चन्द्रम्। वर्चसा। सम्। सृजति। आयुष्मान्। भवति। यः। बिभर्ति ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्येण) सूर्य द्वारा (सुवर्णम्) सुन्दर रूपवाले (यत्) जिस (हिरण्यम्) कामनायोग्य सोने को (प्रजावन्तः) श्रेष्ठ प्रजाओंवाले (पूर्वे) पहिले (मनवः) (विचारशील) मनुष्यों ने (ईषिरे) पाया था। (तत्) वह (चन्द्रम्) आनन्ददायक सोना (वर्चसा) तेज के साथ (त्वा) तुझसे (संसृजति) संयोग करता है, वह (आयुष्मान्) उत्तम जीवनवाला (भवति) होता है, (यः) जो पुरुष [सोना] (बिभर्ति) रखता है ॥२॥

    भावार्थ

    यह जो सोना सूर्य की किरणों द्वारा पृथिवी में उत्पन्न होता है, उसको विद्वानों ने अपने श्रेष्ठ पुत्रादि प्रजाओं के साथ प्रयत्न करके पाया है, वैसे ही सब मनुष्य पुरुषार्थ करके सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति से सुखी होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यत्) (हिरण्यम्) म०१। कमनीयं सुवर्णम् (सूर्येण) सूर्यकिरणद्वारा (सुवर्णम्) शोभनरूपम् (प्रजावन्तः) श्रेष्ठपुत्रादिप्रजायुक्ताः (मनवः) मननशीला मनुष्याः (पूर्वे) पूर्वजाः (ईषिरे) ईष गतौ-लिट्। प्राप्तवन्तः। (तत्) (त्वा) त्वाम् (चन्द्रम्) आह्लादकं सुवर्णम् (वर्चसा) तेजसा (सं सृजति) संयोजयति (आयुष्मान्) प्रशस्तजीवनयुक्तः (भवति) (यः) पुरुषः (बिभर्त्ति) धारयति हिरण्यम् ॥

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    विषय

    प्रजावन्त: मनवः पूर्वे

    पदार्थ

    १. (यत्) = जो (हिरण्यम्) = हित-रमणीय वीर्य है, वह (सूर्येण सुवर्णम्) = सूर्य से उत्तम वर्णवाला है। शरीर में सूर्य की भाँति चमकता है। अथवा सूर्य के सम्पर्क में जीवन बिताने से उत्तम वर्णवाला होता है। जो भी इस हिरण्य को (ईविरे) = प्राप्त होते हैं [ईष गतौ] वे (प्रजावन्त:) = उत्तम सन्तानोंवाले, (मनव:) = विचारशील-ज्ञानी व (पूर्वे) = अपना पालन व पूरण करनेवाले होते हैं। २. हे हिरण्य ! (तत् चन्द्रम्) = उस आह्लाद के कारणभूत (त्वा) = तुझको (यः बिभर्ति) = जो धारण करता है, वह (वर्चसा संसृजति) = वर्चस् [Vitality] के साथ अपना संसर्ग करता है और (आयुष्मान् भवति) = प्रशस्त दीर्घ जीवनवाला होता है।

    भावार्थ

    वीर्य-रक्षण द्वारा हम उत्तम सन्तानवाले-विचारशील व अपना पालन व पूरण करनेवाले बनते हैं। यह सुरक्षित वीर्य हमें प्राणशक्ति-सम्पन्न व प्रशस्त दीर्घ जीवनवाला बनाता है।

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    भाषार्थ

    (सूर्येण) सूर्यसदृश तेजस्वी आदित्य ब्रह्मचारी द्वारा किये गये (सुवर्णम्) उत्तम रूपवाले (यत्) जिस (हिरण्यम्) वीर्य-तत्त्व को (पूर्वे) अनादिकाल के (प्रजावन्तः) श्रेष्ठ सन्तानें चाहनेवाले (मनवः) मनस्वी सद्गृहस्थी (ईषिरे) ब्रह्मचर्यपूर्वक प्राप्त करते रहते हैं, (तत्) वह (चन्द्रम्) आह्लादकारी और दीप्तिप्रद वीर्य-तत्त्व (त्वा) तुझे (वर्चसा) तेज और दीप्ति के साथ (सं सृजति) सम्बद्ध करता है। (यः) जो कोई (बिभर्ति) वीर्य-तत्त्व का भरण-पोषण करता है, वह (आयुष्मान्) स्वस्थ और दीर्घ आयु वाला (भवति) होता है।

    टिप्पणी

    [चन्द्रम्= चदि आह्लादे। ईषिरे=ईष् गतौ। गतेः त्रयोऽर्थाः—ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च।]

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    विषय

    वीर्यरक्षा और आत्मज्ञान।

    भावार्थ

    हे आत्मन् ! (यत्) जो या जिस प्रकार के (हिरण्यम्) सब प्रकार से रमणीय, मनोहर, हितकारी और सुन्दर दुःखनाशक बल (सूर्येण) सूर्य के समान (सुवर्णम्) उत्तम वर्ण और कान्ति को धारण करने वाले, उत्तम रीति से वरण करने योग्य, बल या आत्मा की ज्योति को (पूर्व) पूर्व के, उत्तम श्रेणी के (प्रजावन्तः) प्रजाओं वाले (मनवः) मनुष्य प्रजाओं के स्वामी राजा लोग (ईषिरे) चाहते हैं (तत्) उसी प्रकार के (चन्द्रम्) आह्लादजनक, सुवर्ण के समान मनोहर (त्वा) तुझ आत्मा को (यः बिभर्त्ति) जो धारण करता है वह (वर्चसा) तेज से (संसृजाति) युक्त हो जाता है और (आयुष्मान् भवति) दीर्घायु हो जाता है। सुवर्ण के पक्ष में स्पष्ट है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अग्निर्हिरण्यं च देवते। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ अनुष्टुप्। ४ पथ्या पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Hiranyam

    Meaning

    That glowing gold which ancient men blest with children received by the sun, that vests you with the lustrous glow of health and grace, and whoever bears that glow is blest with good health and long age.

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    Translation

    The gold, which has beauteous colour like that of the sun, and which was sought by the men of old with numerous children, that pleasing one shall endow you with lustre. Whoso wears it, has a long, long life.

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    Translation

    O man, that gold shining and pleasing which through the light of sun look full of splendor and which is longed by the men of accomplishment with their children and men, make you enriched with splendor and vigor. He who takes it into use lives long.

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    Translation

    O soul, the semen produces the radiance and splendor, (due to well protected semen) having the beauty and glow like the Sun, which the men, who have gone before you, were able to attain. That very semen will produce in you the pleasant glory. He who bears it, attains to long life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यत्) (हिरण्यम्) म०१। कमनीयं सुवर्णम् (सूर्येण) सूर्यकिरणद्वारा (सुवर्णम्) शोभनरूपम् (प्रजावन्तः) श्रेष्ठपुत्रादिप्रजायुक्ताः (मनवः) मननशीला मनुष्याः (पूर्वे) पूर्वजाः (ईषिरे) ईष गतौ-लिट्। प्राप्तवन्तः। (तत्) (त्वा) त्वाम् (चन्द्रम्) आह्लादकं सुवर्णम् (वर्चसा) तेजसा (सं सृजति) संयोजयति (आयुष्मान्) प्रशस्तजीवनयुक्तः (भवति) (यः) पुरुषः (बिभर्त्ति) धारयति हिरण्यम् ॥

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