अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्निः, हिरण्यम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - हिरण्यधारण सूक्त
35
आयु॑षे त्वा॒ वर्च॑से॒ त्वौज॑से च॒ बला॑य च। यथा॑ हिरण्य॒तेज॑सा वि॒भासा॑सि॒ जनाँ॒ अनु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआयु॑षे। त्वा॒। वर्च॑सा। त्वा॒। ओज॑से। च॒। बला॑य। च॒। यथा॑। हि॒र॒ण्य॒ऽतेज॑सा। वि॒ऽभासा॑सि। जना॑न्। अनु॑ ॥२६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुषे त्वा वर्चसे त्वौजसे च बलाय च। यथा हिरण्यतेजसा विभासासि जनाँ अनु ॥
स्वर रहित पद पाठआयुषे। त्वा। वर्चसा। त्वा। ओजसे। च। बलाय। च। यथा। हिरण्यऽतेजसा। विऽभासासि। जनान्। अनु ॥२६.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (त्वा) तुझसे (आयुषे) जीवन के लिये और (वर्चसे) प्रताप के लिये (च) और (त्वा) तुझसे (बलाय) बल के लिये (च) और (ओजसे) पराक्रम के लिये [वह सोना संयोग करता है-म०२]। (यथा) जिससे कि (हिरण्यतेजसा) सुवर्ण के तेज से (जनान् अनु) मनुष्यों में (विभासासि) तू चमकता रहे ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि पुरुषार्थ से सुवर्ण आदि धन प्राप्त करके मनुष्यों में प्रतापी और यशस्वी होवें ॥३॥
टिप्पणी
३−(आयुषे) जीवनाय (त्वा) त्वाम्। तच्चन्द्रं संसृजतीत्यनुवर्तते-म०२। (वर्चसे) प्रतापाय (त्वा) (ओजसे) पराक्रमाय (बलाय) (यथा) येन प्रकारेण (हिरण्यतेजसा) सुवर्णस्य प्रतापेन (विभासासि) भस दीप्तौ-लेट् आडागमः। विशेषेण भासेथाः। दीप्यस्व (जनान्) मनुष्यान् (अनु) प्रति ॥
विषय
आयु-वर्चस्-ओजस्-बल
पदार्थ
१. गतमन्त्र में वर्णित हिरण्य [वीर्य] (त्वा) = तुझे (आयुषे) = दीर्घजीवन के लिए प्राप्त कराए (च) = और (वर्चसे) = वर्चस् के लिए प्राप्त कराए। इस वर्चस् द्वारा ही नीरोग व दीर्घजीवन प्रास होगा। यह हिरण्य (त्वा) = तुझे (ओजसे) = ओज के लिए (च) = तथा (बलाय) = बल के लिए प्राप्त कराए। ओज मन की वह शक्ति हैं जोकि अच्छाइयों का वर्धन करती है और बल बुराइयों का विनाश करनेवाली शक्ति है। २. तू (यथा हिरण्यतेजसा) = इस हिरण्य के तेज के अनुपात में-जितना जितना वीर्य का रक्षण करता है उतना-उतना, (जनान् अनु विभासासि) = जनों का लक्ष्य करके तू दीतिवाला होता है-मनुष्यों में तू चमक उठता है। सुरक्षित वीर्य सब शक्तियों को बढ़ाता है और हमारी श्री की वृद्धि का कारण बनता है।
भावार्थ
वीर्यरक्षण द्वारा हम 'आयु, वर्चस, ओज व बल' को प्राप्त करें। यह हमें समाज में दीप्त जीवनवाला बनाए।
भाषार्थ
हे सद्गृहस्थ! (आयुषे) स्वस्थ दीर्घ आयु की प्राप्ति के लिए (त्वा) तुझे, (वर्चसे) वर्चस् (च) और (ओजसे) ओजस् (च) और (बलाय) बल की प्राप्ति के लिए (त्वा) तुझे [मैं हिरण्य-तत्त्व के साथ सम्बद्ध करता हूँ], (यथा) जिससे कि तू (हिरण्यतेजसा) वीर्य-तत्त्व के तेज से संयुक्त हुआ (जनान् अनु) प्रजाजनों में (विभासासि) चमके।
टिप्पणी
[विभासासि= वि+भासृ (दीप्तौ)+आट् (लेटि)+ मध्यमपुरुष एकवचन। यह वचन पुरोहित या गुरु द्वारा कथित है। बल=शारीरिक बल। वर्चस्=विद्यासम्बन्धी मानसिक बल। ओजस्=आध्यात्मिक बल। विभासासि= अथवा विभासा असि, विभासा युक्तो भवसि भासृ दीप्तौ।]
विषय
वीर्यरक्षा और आत्मज्ञान।
भावार्थ
हे पुरुष ! (आयुषे) आयु, (वर्चसे) तेज, (ओजसे) ओज, (च) और (बलाय च) बलके लिये (त्वा २) तुझे वह परम आत्मा रूप सुवर्ण प्राप्त है (यथा) जिसके कारण तू (जनान् अनु) जनों के प्रति (हिरण्य-तेजसा) सुवर्ण के तेज से, क्षात्र तेज से या आत्मा के वास्तविक प्रकाश से (विभासासि) विशेष रूप से चमकने में समर्थ है। तू उस सुवर्ण की साधना कर और तेजस्वी बन।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अग्निर्हिरण्यं च देवते। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ अनुष्टुप्। ४ पथ्या पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Hiranyam
Meaning
I vest you with the glowing grace of gold and lustrous vitality for the sake of good health and long age, strength, lustre and the splendour of life, so that with the glow of that gold you shine among the people around.
Translation
You for a long life, for lustre, and for vigour, and for strength (with gold I adorn), so that you may shine out with the brilliance of gold among the people.
Translation
O man, let this gold bring long life to you, let it bring splendor to you and let it bring energy for you. So that you may shine in the people with the brilliancy of gold.
Translation
O man, this has been given to you for long life, for glory, for splendor and for strength and prowess, so that you may shine, with the radiance of Gold after the offspring even.
Footnote
The man, who does not waste his semen uselessly, is able to retain the glow and radiance even after giving birth to his progeny.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(आयुषे) जीवनाय (त्वा) त्वाम्। तच्चन्द्रं संसृजतीत्यनुवर्तते-म०२। (वर्चसे) प्रतापाय (त्वा) (ओजसे) पराक्रमाय (बलाय) (यथा) येन प्रकारेण (हिरण्यतेजसा) सुवर्णस्य प्रतापेन (विभासासि) भस दीप्तौ-लेट् आडागमः। विशेषेण भासेथाः। दीप्यस्व (जनान्) मनुष्यान् (अनु) प्रति ॥
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