अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्निः, हिरण्यम्
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - हिरण्यधारण सूक्त
41
यद्वेद॒ राजा॒ वरु॑णो॒ वेद॑ दे॒वो बृह॒स्पतिः॑। इन्द्रो॒ यद्वृ॑त्र॒हा वेद॒ तत्त॑ आयु॒ष्यं॑ भुव॒त्तत्ते॑ वर्च॒स्यं॑ भुवत् ॥
स्वर सहित पद पाठयत्। वेद॑। राजा॑। वरु॑णः। वेद॑। दे॒वः। बृह॒स्पतिः॑। इन्द्रः॑। यत्। वृ॒त्र॒ऽहा। वेद॑। तत्। ते॒। आ॒युष्य᳡म्। भु॒व॒त्। तत्। ते॒। व॒र्च॒स्य᳡म्। भु॒व॒त् ॥२६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वेद राजा वरुणो वेद देवो बृहस्पतिः। इन्द्रो यद्वृत्रहा वेद तत्त आयुष्यं भुवत्तत्ते वर्चस्यं भुवत् ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। वेद। राजा। वरुणः। वेद। देवः। बृहस्पतिः। इन्द्रः। यत्। वृत्रऽहा। वेद। तत्। ते। आयुष्यम्। भुवत्। तत्। ते। वर्चस्यम्। भुवत् ॥२६.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जिस [सुवर्ण] को (राजा) ऐश्वर्यवान् (वरुणः) श्रेष्ठ पुरुष (वेद) जानता है, और [जिसको] (देवः) विद्वान् (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ज्ञानों का रक्षक पुरुष] (वेद) जानता है। (यत्) जिसको (वृत्रहा) शत्रुनाशक (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] (वेद) जानता है, (तत्) वह (ते) तेरे लिये (आयुष्यम्) आयु बढ़ानेवाला (भुवत्) होवे, (तत्) वह (ते) तेरे लिये (वर्चस्यम्) तेज बढ़ानेवाला (भुवत्) होवे ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वान् पराक्रमियों के समान सुवर्ण के प्रभाव को जानकर उसे यथावत् प्राप्त करे और धर्म के साथ उसका प्रयोग करके यशस्वी और तेजस्वी होवे ॥४॥
टिप्पणी
४−(यत्) हिरण्यम् (वेद) जानाति (राजा) ऐश्वर्यवान् (वरुणः) श्रेष्ठपुरुषः (वेद) (देवः) विद्वान् (बृहस्पतिः) बृहतां ज्ञानानां रक्षकः (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः (यत्) (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (वेद) (तत्) हिरण्यम् (ते) तुभ्यम् (आयुष्यम्) आयुषे चिरकालजीवनाय हितम्। आयुष्कारि (भुवत्) लेटि रूपम्। भवेत् (तत्) (ते) (वर्चस्यम्) वर्चसे हितम्। तेजस्कारि (भुवत्) ॥
विषय
आयुष्य-वर्चस्यम्
पदार्थ
१. (यत्) = जिस हिरण्य को-वीर्य को (राजा) = व्यवस्थित [regulated] जीवनवाला (वरुण:) = द्वेष का निवारण करनेवाला श्रेष्ठ पुरुष (वेद) = जानता है, जिस हिरण्य को (देव:) = दिव्यगुणसम्पन्न (बृहस्पतिः) = ज्ञानी पुरुष (वेद) = जानता है। २. (यत्) = जिस हिरण्य को (वृनहा) = वासना को विनष्ट करनेवाला (इन्द्र:) = जितेन्द्रिय पुरुष (वेद) = जानता है (तत्) = वह हिरण्य (ते) = तेरे लिए (आयुष्यम्) = प्रशस्त आयु को देनेवाला (भुवत्) = हो । (तत्) = वह हिरण्य (ते) = तेरे लिए (वर्चस्य भुवत्) = उत्तम वर्चस् को रोगनिवारकशक्ति को देनेवाला (भुवत्) = हो।
भावार्थ
हम 'निर्दृष, ज्ञानी व जितेन्द्रिय' बनकर वीर्य का रक्षण करें। यह सुरक्षित वीर्य हमारे लिए 'आयुष्य व वर्चस्य' हो हमें दीर्घजीवन व रोगप्रतिबन्धकशक्ति प्राप्त कराए। वीर्य का रक्षण करता हुआ यह अपने को ज्ञानाग्नि में परिपक्व भृगु' [भ्रस्ज् पाके] बनाता है और शरीर में रस-[लोच-लचक]-वाला 'अंगिरा:' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि -
भाषार्थ
(वरुणः राजा) प्रादेशिक राजा (यद्) जिस हिरण्य अर्थात् वीर्य-तत्त्व के गुणों को (वेद) जानता है, (देवः) विजिगीषु (बृहस्पतिः) बृहती सेना का पति जिस वीर्य-तत्त्व के गुणों को (वेद) जानता है, (वृत्रहा) पापों का हनन करनेवाला (इन्द्रः) सम्राट् (यद्) जिस वीर्य-तत्त्व के गुणों को (वेद) जानता है, (तत्) वह वीर्य-तत्त्व हे सद्गृहस्थ! (ते) तेरे लिए (आयुष्यम्) आयुवर्धक (भुवत्) हो। (तत्) वह (ते) तेरे लिए (वर्चस्यम्) तेजवर्धक (भुवत्) हो।
टिप्पणी
[इन्द्र वरुण राजा—“इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा” (यजुः० ८.३७)। देवः=दिवु विजिगीषा। बृहस्पतिः, देखो (अथर्व० १९.१३.९)। अभिप्राय यह है कि राज्याधिकारी यदि ब्रह्मचर्य की महिमा को जानने वाले हों, तो प्रजा पर भी उनका प्रभाव पड़ता है। वृत्रहा= वृञ् अर्थात् तमस् और तामसिक पाप (उणा० २.१३)+हा (हन् हिंसायाम्)।]
विषय
वीर्यरक्षा और आत्मज्ञान।
भावार्थ
(यत्) जिसको (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ (राजा) राजा (वेद) स्वयं साक्षात् करता या लाभ करता है। और जिसको (बृहस्पतिः) बड़े बड़े लोकों का पालक (देवः) विद्वान्, देदीप्यमान पुरुष (वेद) प्राप्त करता है और (यत्) जिसको (वृत्रहा) वृत्र, मेघ का नाशक (इन्द्र) तेजस्वी सूर्य और उसी प्रकार नगररोधी शत्रुका नाशक ऐश्वर्यवान् राजा (वेद) प्राप्त करता है (तत्) वह आत्मरूप सुवर्ण (ते) तेरे लिये (आयुष्यम्) दीर्घ आयुप्रद (भुवत्) हो और (तत्) वही (ते वर्चस्यं भुवत्) तुझे तेजस्वी बनाने वाला (भुवत्) हो। हिरण्यम्—प्रजापतेः एतस्यां रम्यायां तन्वां देवाः अरमन्त। तस्माद् हिरम्यं। हिरम्यं ह वै तत् हिरण्यमित्याचक्षते। श० ७। ४। १। १६॥ अग्निर्ह वा आपोऽभिदध्यौ मिथुनी आभिः स्याम्। इति ताः सम्बभूव। तासुरेतः प्रासिञ्चत्। तत् हिरण्यमभवत्। श० २। १। १। ५। अग्निर्वा एतद् रेतो यत् हिरण्यं नाष्ट्राणां रक्षसामपहत्यै। श० १४। १। ३। २९॥ क्षत्रस्यैतद् रूपं यत् हिरण्यम्। श० १३। २। २। १७॥ आयुर्हिरण्यम्॥ श० ४। ३। ४। २४॥ अमृतं हिरण्यम्॥ श० ९। ४। ४। ५॥ प्राणो वै हिरण्यम्। श० ७। २। २। ८॥ शुक्रं हिरण्यम्। ऐ० ७। १२॥ यशो हिरण्यम्। ऐ० ७। १८॥ सत्यं हिरण्यम्। गो० उ० ३। १७॥ अर्थात्—शरीर में जिस बल पर समस्त इन्द्रिय गण और ब्रह्माण्ड में जिस बल पर समस्त पञ्चभूत और १२ मास, ऋतु आदि उत्तम रीति से विहार करते हैं वह हिरण्य है। अग्नि-नेता पुरुष का दुष्टों का नाशक बल, तेज ‘हिरण्य’ है। क्षात्रबल, आयु, अमृत = मोक्ष, वीर्य, यशः, और सत्य ये सब पदार्थ (वेद में) ‘हिरण्य’ शब्द से कहे गये हैं। उनकी योजना भी प्रकरण वश कर लेनी चाहिये।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अग्निर्हिरण्यं च देवते। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ अनुष्टुप्। ४ पथ्या पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Hiranyam
Meaning
That gracious gold and golden glow of health which the refulgent Varuna, man of judgement and right choice, knows and possesses, which the divine Brhaspati, sage of unbounded wisdom, knows and possesses, which Indra, potent destroyer of the clouds of darkness, knows and possesses, that very gold and lustrous glow, I wish and pray, may be the vigorous health and longevity for you, that may be the life’s glory for you.
Translation
What the venerable Lord, the sovereign knows, what the divine Lord supreme knows, what the resplendent Lord, the destroyer of nescience knows, may all that be bestower of long life and bestower of lustre to you.
Translation
Let that gold which is known by the brilliant man of excellent power, which is known by shining Brihaspati, the man endowed with great genius and which is known by the king who is killer of wicked, be for your long life and be for your vigour.
Translation
Whatever knowledge about this vitalizing thing (semen) the bright king has, whatever the noble Vedic scholar know about it and whatever the enemy-destroyer commander knows about it, may that all be life-prolonging to you. May it add to your splendor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(यत्) हिरण्यम् (वेद) जानाति (राजा) ऐश्वर्यवान् (वरुणः) श्रेष्ठपुरुषः (वेद) (देवः) विद्वान् (बृहस्पतिः) बृहतां ज्ञानानां रक्षकः (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः (यत्) (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (वेद) (तत्) हिरण्यम् (ते) तुभ्यम् (आयुष्यम्) आयुषे चिरकालजीवनाय हितम्। आयुष्कारि (भुवत्) लेटि रूपम्। भवेत् (तत्) (ते) (वर्चस्यम्) वर्चसे हितम्। तेजस्कारि (भुवत्) ॥
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