अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - बलप्राप्ति सूक्त
82
वर्च॒ आ धे॑हि मे त॒न्वां सह॒ ओजो॒ वयो॒ बल॑म्। इ॑न्द्रि॒याय॑ त्वा॒ कर्म॑णे वी॒र्याय॒ प्रति॑ गृह्णामि श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठवर्चः॑। आ। धे॒हि॒। मे॒। त॒न्वा᳡म्। सहः॑। ओजः॑। वयः॑। बल॑म्। इ॒न्द्रि॒याय॑। त्वा॒। कर्म॑णे। वी॒र्या᳡य। प्रति॑। गृ॒ह्णा॒मि॒। श॒तऽशा॑रदाय ॥३७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
वर्च आ धेहि मे तन्वां सह ओजो वयो बलम्। इन्द्रियाय त्वा कर्मणे वीर्याय प्रति गृह्णामि शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठवर्चः। आ। धेहि। मे। तन्वाम्। सहः। ओजः। वयः। बलम्। इन्द्रियाय। त्वा। कर्मणे। वीर्याय। प्रति। गृह्णामि। शतऽशारदाय ॥३७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
बल की प्राप्ति का उपदेश ॥
पदार्थ
[हे परमात्मन् !] (मे) मेरे (तन्वाम्) शरीर में (वर्चः) प्रताप, (सहः) उत्साह, (ओजः) पराक्रम, (वयः) पौरुष और (बलम्) बल (आ धेहि) धारण कर दे। (इन्द्रियाय) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् पुरुष] के योग्य (कर्मणे) कर्म के लिये, (वीर्याय) वीरता के लिये और (शतशारदाय) सौ शरद् ऋतुओंवाले [जीवन] के लिये (त्वा) तुझको (प्रति गृह्णामि) मैं अङ्गीकार करता हूँ ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य विद्या की प्राप्ति से परमेश्वरीय नियमों पर चलकर अपना यश बढ़ावें ॥२॥
टिप्पणी
२−(वर्चः) प्रतापम् (आ) समन्तात् (धेहि) देहि (मे) मम (तन्वाम्) शरीरे (सहः) उत्साहम् (ओजः) पराक्रमम् (वयः) पौरुषम् (बलम्) सामर्थ्यम् (इन्द्रियाय) इन्द्रस्य परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य योग्याय (त्वा) त्वाम् (कर्मणे) (वीर्याय) वीरत्वाय (प्रतिगृह्णामि) स्वीकरोमि (शतशारदाय) शतशरदृतुयुक्ताय जीवनाय ॥
भाषार्थ
हे परमेश्वर! (मे) मेरी (तन्वाम्) तनु में (सहः) सहनशक्ति (ओजः) पराक्रम (वयः) स्वस्थ और दीर्घ आयु, और (बलम्) शारीरिक बल का (आ धेहि) आधान कीजिये। (इन्द्रियाय) आत्मिक शक्ति की प्राप्ति के लिये, (कर्मणे) त्यागभावना से कर्मों को करने के लिये, (वीर्याय) वीर्यरक्षा के लिये, (शतशारदाय) सौ वर्षों तक जीवन के लिये (त्वा) हे परमेश्वर! आप को (प्रतिगृह्णामि) मैं अङ्गीकार करता हूं, स्वीकार करता हूं।
टिप्पणी
[इन्द्रियाय= इन्द्र (=जीवात्मा)+घ]।
विषय
इन्द्रियाय, शतशारदाय
पदार्थ
१. हे परमात्मन् ! (मे तन्वाम्) = मेरे शरीर में (वर्च: आधेहि) = शत्रुओं के आवर्जक प्रताप को स्थापित कीजिए। (सहः) = शत्रुमर्षक बल को, (ओज:) = ओजस्विता को, (वय:) = नित्य यौवन व पौरुष को तथा (बलम्) = बल को धारण कीजिए। २.हे प्रभो! (त्वा) = आपको मैं (प्रतिगृहामि) = हृदयदेश में ग्रहण करने के लिए यत्नशील होता है, जिससे (इन्द्रियाय) = मेरी सब इन्द्रियाँ ठीक से कार्य करनेवाली हों। (कर्मणे) = मैं यज्ञादि कमों में प्रवृत्त रहूँ। (वीर्याय) = शक्तिशाली बना रहूँ और (शतशारदाय) = पूरे सौ वर्षों के जीवनवाला होऊँ।
भावार्थ
प्रभु मुझे शक्ति प्रास कराएँ। प्रभु-स्मरण से मेरी इन्द्रियाँ सशक्त व पवित्र बनी रहें। मैं यज्ञ आदि कर्मों को करनेवाला बनूं, वीर्यवान् होऊँ और दीर्घजीवन प्राप्त करूँ।
विषय
वीर्य, बल की प्राप्ति।
भावार्थ
हे पूर्वोक्त अग्ने ! तु (मे) मेरे (तन्वां) शरीर में (वर्चः) ब्रह्मवर्चस वीर्य, (सहः) सहनशक्ति, (ओजः) तेज, ओज, (वयः) जीवन शक्ति और (बलम्) बल, ताकत (आ धेहि) प्रदान कर। (त्वा) तुझको मैं (इन्द्रियाय) इन्द्रियों के बल के लिये (कर्मणे) कर्म या क्रिया शक्ति को प्राप्त करने और (वीर्याय) वीर्य प्राप्त करने के लिये और (शतशारदाय) सौ वर्ष के जीवन के लिये (प्रति गृह्णामि) स्वीकार करता हूं।
टिप्पणी
(प्र०) ‘तन्वं’ इति क्वचित्। दीर्घायुत्वाय शतशारदाय प्रतिगृह्णामि, इति तै० ब्रा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ त्रिष्टुप्। २ आस्तारपंक्तिः। ३ त्रिपदा महाबृहती। ४ पुरोष्णिक्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Health and Energy
Meaning
Agni, bless me with brilliance in my person, courage, power, vigour and strength. O leading light of life, I invoke and adore you for the sake of manliness, noble action, and heroic dignity with which I love to live for a full hundred years.
Translation
May you put lustre in my body and also overwhelming power, vigour, long life and strength. I adopt you for resplendent, action and valour lasting through a hundred autumns.
Translation
This splendor given by the heat comes to me as force, fame, might, strength and life. May this fire give me those powers which are thirty-three in number.
Translation
O Agni of the above-mentioned descriptions, introduce into my body glory along with splendour or energy, long life and vigour for all activities of life. I imbibe thee for empowering and activising sense-organs, for all sorts of activities, for sources of energy and vigour, and for hundred years life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(वर्चः) प्रतापम् (आ) समन्तात् (धेहि) देहि (मे) मम (तन्वाम्) शरीरे (सहः) उत्साहम् (ओजः) पराक्रमम् (वयः) पौरुषम् (बलम्) सामर्थ्यम् (इन्द्रियाय) इन्द्रस्य परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य योग्याय (त्वा) त्वाम् (कर्मणे) (वीर्याय) वीरत्वाय (प्रतिगृह्णामि) स्वीकरोमि (शतशारदाय) शतशरदृतुयुक्ताय जीवनाय ॥
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