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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - त्रिपदा महाबृहती सूक्तम् - बलप्राप्ति सूक्त
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    ऊ॒र्जे त्वा॒ बला॑य॒ त्वौज॑से॒ सह॑से त्वा। अ॑भि॒भूया॑य त्वा राष्ट्र॒भृत्या॑य॒ पर्यू॑हामि श॒तशा॑रदाय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्जे। त्वा॒। बला॑य। त्वा॒। ओज॑से। सह॑से। त्वा॒। अ॒भि॒ऽभूया॑य। त्वा॒। रा॒ष्ट्रऽभृ॑त्याय। परि॑। ऊ॒हा॒मि॒। श॒तऽशा॑रदाय ॥३७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्जे त्वा बलाय त्वौजसे सहसे त्वा। अभिभूयाय त्वा राष्ट्रभृत्याय पर्यूहामि शतशारदाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्जे। त्वा। बलाय। त्वा। ओजसे। सहसे। त्वा। अभिऽभूयाय। त्वा। राष्ट्रऽभृत्याय। परि। ऊहामि। शतऽशारदाय ॥३७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 37; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बल की प्राप्ति का उपदेश –॥

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (त्वा) तुझे (ऊर्जे) अन्न के लिये, (बलाय) बल के लिये, (त्वा) तुझे (ओजसे) पराक्रम के लिये, (त्वा) तुझे (सहसे) उत्साह के लिये, (त्वा) तुझे (अभिभूयाय) विजय के लिये, और (राष्ट्रभृत्याय) राज्य के पोषण के लिये और (शतशारदाय) सौ वर्षवाले [जीवन] के लिये (परि) अच्छे प्रकार [ऊहामि] तर्क से निश्चय करता हूँ ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमात्मा में श्रद्धा करते हैं, वे सब प्रकार का बल प्राप्त करके आनन्द भोगते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ऊर्जे) अन्नलाभाय (त्वा) त्वाम् (बलाय) सामर्थ्याय (त्वा) (ओजसे) पराक्रमाय (सहसे) उत्साहाय (त्वा) (अभिभूयाय) अभि+भू सत्तायां प्राप्तौ च-क्यप्। अभिभवनाय विजयाय (त्वा) (राष्ट्रभृत्याय) डुभृञ् धारणपोषणयोः-क्यप्, तुक्। राज्यपोषणाय (परि) सर्वतः (ऊहामि) तर्केण निश्चिनोमि (शतशारदाय) शतवर्षयुक्ताय जीवनाय ॥

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    भाषार्थ

    हे अग्निनामक परमेश्वर (शतशारदाय) सौ वर्षों की आयु के लिये (त्वा) आप को, (ऊर्जे) प्राणशक्ति प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (बलाय) शारीरिक बल प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (ओजसे) पराक्रम के लिये (सहसे) तथा सहन शक्ति प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (अभिभूयाय) शत्रुओं के पराभव के लिये, (राष्ट्रभृत्याय) राष्ट्रसेवा तथा राष्ट्र के भरण-पोषण के लिये (पर्यूहामि) मैं आपको निज जीवन में सदा वहन करता रहूं।

    टिप्पणी

    [पर्यूहामि=परि+वह। छान्दस प्रयोग। यथा—“पर्यूढा” (अथर्व० ११.३.१५; तथा १२.५.३)। अभिप्राय यह है कि प्रार्थी परमेश्वर के प्रति कहता है कि ऊर्ज् आदि की प्राप्ति के लिये, मैं अपनी सौ वर्षों की आयु पर्यन्त सदा अपने जीवन में आप को धारण करता हुआ विचरूंगा, ताकि मैं ऊर्ज् आदि की प्राप्ति के लिये कुपथगामी न हो जाऊं। ऊर्ज्= ऊर्ज बलप्राणनयोः।]

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    विषय

    अभिभूयाय-राष्ट्रभृत्याय

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! मैं (त्वा) = आपको (ऊर्जे) = बल व प्राणशक्ति के लिए (पर्यूहामि) = [परिवहामि] ग्रहण करता हूँ। (बलाय) = बल के लिए (त्वा) = आपको ग्रहण करता हूँ, (ओजसे) = ओजस्विता के लिए तथा (सहसे) = शत्रुमर्षण सामर्थ्य के लिए (त्वा) = आपका ग्रहण करता हूँ। २. (अभिभूयाय) = शत्रुओं का अभिभव करने के लिए (त्वा) = आपका ग्रहण करता है, तथा (राष्ट्रभृत्याय) = अपने राष्ट्र के भरण के लिए और (शतशारदाय) = सौ वर्ष के दीर्घजीवन के लिए आपका धारण करता हूँ।

    भावार्थ

    प्रभु-स्मरण से 'ऊर्ज, बल, ओज, सहस्' प्रास होता है। हम शत्रुओं का अभिभव करते हुए और राष्ट्र का धारण करते हुए सौ वर्ष का दीर्घजीवन प्राप्त करते हैं।

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    विषय

    वीर्य, बल की प्राप्ति।

    भावार्थ

    हे अग्ने ! (त्वा) तुझको (ऊर्जे) अन्न से पुष्टि प्राप्त करने के लिये, (बलाय) बल की वृद्धि करने के लिये, (ओजसे) ओज, पराक्रम के लिये, (सहसे) शत्रुघर्षण के लिये, (अभिभूयाय) शत्रुओं का पराजय करने के लिये और (राष्ट्रभृत्याय) राष्ट्र के भरण पोषण के लिये और (शतशारदाय) प्रजाओं के सौ सौ वर्षों तक के (पर्यूहामि) स्वीकार करता हूं। यहां अग्नि शब्द से दीर्घ जीवन के लिये राजा का ग्रहण है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ त्रिष्टुप्। २ आस्तारपंक्तिः। ३ त्रिपदा महाबृहती। ४ पुरोष्णिक्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Energy

    Meaning

    I invoke, adore and meditate on you, O leading light of life, for the sake of energy, strength, brilliance, victorious patience and courage, overpowering victory and moral supremacy and dignity and glory of the social order to live honourably for a full hundred years as a noble citizen.

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    Translation

    You for vigour, you for strength, you for might and overwhelming power, you for conquest and sustenance of kingdom for a hundred autumns, do I adopt.

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    Translation

    Let this fire give in my body power, force, splendor, vitality and vigor. I receive and accept this fire for the action concerned with organs and mighty strength lasting a hundred autumns.

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    Translation

    I accept thee for food, for vigour, for energy and for courage for dominance, for service, of the nation and for long life of hundred years.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ऊर्जे) अन्नलाभाय (त्वा) त्वाम् (बलाय) सामर्थ्याय (त्वा) (ओजसे) पराक्रमाय (सहसे) उत्साहाय (त्वा) (अभिभूयाय) अभि+भू सत्तायां प्राप्तौ च-क्यप्। अभिभवनाय विजयाय (त्वा) (राष्ट्रभृत्याय) डुभृञ् धारणपोषणयोः-क्यप्, तुक्। राज्यपोषणाय (परि) सर्वतः (ऊहामि) तर्केण निश्चिनोमि (शतशारदाय) शतवर्षयुक्ताय जीवनाय ॥

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