अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 46/ मन्त्र 6
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - अस्तृतमणिः
छन्दः - पञ्चपदोष्णिग्विराड्जगती
सूक्तम् - अस्तृतमणि सूक्त
41
घृ॒तादुल्लु॑प्तो॒ मधु॑मा॒न्पय॑स्वान्त्स॒हस्र॑प्राणः श॒तयो॑निर्वयो॒धाः। श॒म्भूश्च॑ मयो॒भूश्चोर्ज॑स्वांश्च॒ पय॑स्वां॒श्चास्तृ॑तस्त्वा॒भि र॑क्षतु ॥
स्वर सहित पद पाठघृ॒तात्। उत्ऽलु॑प्तः। मधु॑ऽमान्। पय॑स्वान्। स॒हस्र॑ऽप्राणः। श॒तऽयो॑निः। व॒यः॒ऽधाः। श॒म्ऽभूः। च॒। म॒यः॒ऽभूः। च॒। ऊर्ज॑स्वान्। च॒। पय॑स्वान्। च॒। अस्तृ॑तः। त्वा॒। अ॒भि। र॒क्ष॒तु॒ ॥४६.६॥
स्वर रहित मन्त्र
घृतादुल्लुप्तो मधुमान्पयस्वान्त्सहस्रप्राणः शतयोनिर्वयोधाः। शम्भूश्च मयोभूश्चोर्जस्वांश्च पयस्वांश्चास्तृतस्त्वाभि रक्षतु ॥
स्वर रहित पद पाठघृतात्। उत्ऽलुप्तः। मधुऽमान्। पयस्वान्। सहस्रऽप्राणः। शतऽयोनिः। वयःऽधाः। शम्ऽभूः। च। मयःऽभूः। च। ऊर्जस्वान्। च। पयस्वान्। च। अस्तृतः। त्वा। अभि। रक्षतु ॥४६.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विजय की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(घृतात्) प्रकाश से (उल्लुप्तः) ऊपर खींचा गया, (मधुमान्) ज्ञानवान्, (पयस्वान्) अन्नवान्, (सहस्रप्राणः) सहस्रों जीवनसामर्थ्यवाला, (शतयोनिः) सैकड़ों कारणों में व्यापक, (वयोधाः) पराक्रम देनेवाला, (शम्भूः) शान्ति करनेवाला (च) और (मयोभूः) सुख देनेवाला, (च) और (ऊर्जस्वान्) बलवाला (च च) और (पयस्वान्) दूधवाला, (अस्तृतः) अटूट [नियम] (त्वा) तेरी (अभि) सब ओर से (रक्षतु) रक्षा करे ॥६॥
भावार्थ
परमेश्वर का वेदोक्त नियम संसार में प्रकाशमान है, मनुष्य उस पर ही चलकर अपना शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक बल बढ़ाकर सुखी होवें ॥६॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का प्रथम पाद आ चुका है-अ० १९।३३।२ और मन्त्र का मिलान करो-अ० ५।२८।१४ ॥ ६−(घृतात्) प्रकाशात् (उल्लुप्तः) उद्धृतः (मधुमान्) ज्ञानवान् (पयस्वान्) अन्नवान् (सहस्रप्राणः) बहुजीवनसामर्थ्योपेतः (शतयोनिः) बहुकारणेषु विद्यमानः (वयोधाः) पराक्रमप्रदः (शम्भूः) शान्तिदाता (च) (मयोभूः) सुखस्य कर्ता (च) (ऊर्जस्वान्) बलवान् (च) (पयस्वान्) दुग्धवान् (च)। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(घृतात्) घृत से (उल्लुप्तः) लुप्त न होनेवाली अपितु चमकनेवाली अग्नि के सदृश तेजस्वी, (मधुमान्) खान-पान योग्य मधुर अन्नों वाला, (पयस्वान्) दुग्ध तथा तज्जन्य पदार्थों से सम्पन्न, (सहस्रप्राणः) हजारों प्रकार की जीवनीय सामग्रियों वाला, (शतयोनिः) सैकड़ों प्रकार के गृहों वाला, (वयोधाः) अन्नों की सम्पुष्टि से सम्पन्न, (च) और (शंभूः) प्रजाजनों के लिए शान्तिप्रद, (च) और (मयोभूः) सुखप्रद, (च) और (ऊर्जस्वान्) अन्नरसों वाला, (च) और (पयस्वान्) कृषि आदि के लिए जल से सम्पन्न (अस्तृतः) अपराजित महाशासक सम्राट् (त्वा) आपको (अभि) सब ओर से (रक्षतु) सुरक्षित करे।
टिप्पणी
[उल्लुप्तः= “लुप्तात् लोपात् लोपात् उत्क्रान्तः” (१९.३३.२)। योनिः गृहनाम (निघं० ३.४)। वयः=अन्ननाम (निघं० २.७)। मयः=सुखनाम (निघं० ३.६)। ऊर्जः=ऊर्क्=रसः=ह्यड्डश्च (आप्टे)। वयोधाः= अथवा वयोवृद्ध, अनुभवी।]
विषय
शंभू-मयोभून
पदार्थ
१. (घृतात्) = मलक्षरण व दीति के हेतु से (उल्लप्तु:) = शरीर में ऊर्ध्वगति के द्वारा [उल] (लुप्तः) = अदृष्ट किया हुआ-रुधिर में व्याप्त किया हुआ यह (अस्तृतः) = वीर्यमणि (मधुमान्) = जीवन को मधुर बनानेवाला है। (पयस्वान्) = यह शरीर की शक्तियों का आप्यायन करनेवाला है। (सहस्त्रनाण:) = अनन्त प्राणशक्तिवाला है। (शतयोनि:) = शतसंवत्सरपर्यन्त चलनेवाले जीवन का उत्पत्तिस्थान है। (वयोधा:) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करानेवाला है। २. (शम्भूः च) = सब अनिष्टों व उपद्रवों को शान्त करनेवाला है (च) = और (मयोभू:) = कल्याण का भावयिता [उत्पादक] है। यह (ऊर्जस्वान्) = बल व प्राणशक्ति को देनेवाला (च) = और (पयस्वान्) = प्रशस्त आप्यायनवाला अस्तृत [वीर्य] (त्वा अभिरक्षत) = तुझे अभिरक्षित करे।
भावार्थ
शरीर में वीर्य की ऊर्ध्वगति होने पर यह हमारे लिए 'शंभू, मयोभू, ऊर्जस्वान्, पयस्वान् व मधुमान्' होता है। यह 'सहस्रप्राण, शतयोनि व वयोधा' है।
विषय
अस्तृन नाम वीर पुरुष की नियुक्ति।
भावार्थ
(घृतात्) तेज से (उल्लुप्तः) मधु, ज्ञान, अन्न और शत्रुनाशक बल से सम्पन्न, (पयस्वान् वीर्यवान्, यशस्वी, (सहस्रप्राणः) सहस्र गुण जीवन शक्ति से युक्त, (शतयोनिः) सैकड़ों अपने आश्रय-स्थानों का स्वामी, (वयोधाः) अन्न को अपने भण्डार में सञ्चित करके रखने वाला, (शं भूः च) शान्ति और कल्याण का उत्पादक, (मयो भूः च) सुख का उत्पादक, (ऊर्जस्वान् च) परम अन्नादि से सम्पन्न या बलयुक्त, (पयस्वान् च) और वीर्यवान्, पुष्टिमान् होकर (अस्तृतः) अखण्ड वीर पुरुष ‘अस्तृत’ (वा अभि रक्षतु) तेरी रक्षा करे।
टिप्पणी
(प्र०) ‘उल्लब्धः’ इति पैप्प० सं०। ‘घृतादुर्ल्लुप्तो’, ‘घृतादुर्लुप्तः’ इति क्वचित्। ‘सहस्रं प्राणः’ इति क्वचित्। ‘संहस्रं प्राणः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्ऋषिः। अस्तृतमणिर्देवता। १ पञ्चपदा मध्येज्योतिष्मती त्रिष्टुप्। २ षट्पदा भुरिक् शक्करी। ३, ७ पञ्चपदे पथ्यापंक्ती। १। ४ चतुष्पदा। ५ पञ्चपदा च अतिजगत्यौ। ६ पञ्चपदा उष्णिग्गर्भा विराड् जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Astrta Mani
Meaning
Risen from the fiery flames of ghrta, honey sweet, abundant in food and energy, bearing pranic energies of a thousand forms, giver of peace, harbinger of good fortune and well being, commanding force and power, rich in milk and soma, harbinger of health, energy and life of a hundred orders, may Astrta protect you all round.
Translation
Besmeared with clarified butter, rich in honey and milk, possessing a thousand lives and a hundred incarnations, bestower of life-span, granter of peace and happiness, full of vigour and sap, may the unsubdued protect you all around.
Translation
O man, let this invincible stone which is endowed with radiance, sweet in result, possessed of powerful effect, having multifarious vital powers, that one which is applied on hundred places, life-giving, auspicious, causing delight, endowed with energy and full of the solar brilliance guard you.
Translation
O king, let the brave person, who knows no defeat, possessed of heat and energy, sweet-tongued, having plenty of energizing juices, possessing the strength of thousands of vital-breaths, having hundreds of places for shelter and protection, having strong vigour of life, capable of showering peace all around and making others happy and cheerful, energetic, provided with wholesome drinks, protect thee well.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का प्रथम पाद आ चुका है-अ० १९।३३।२ और मन्त्र का मिलान करो-अ० ५।२८।१४ ॥ ६−(घृतात्) प्रकाशात् (उल्लुप्तः) उद्धृतः (मधुमान्) ज्ञानवान् (पयस्वान्) अन्नवान् (सहस्रप्राणः) बहुजीवनसामर्थ्योपेतः (शतयोनिः) बहुकारणेषु विद्यमानः (वयोधाः) पराक्रमप्रदः (शम्भूः) शान्तिदाता (च) (मयोभूः) सुखस्य कर्ता (च) (ऊर्जस्वान्) बलवान् (च) (पयस्वान्) दुग्धवान् (च)। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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