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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
    59

    ये ते॑ रात्रि नृ॒चक्ष॑सो द्र॒ष्टारो॑ नव॒तिर्नव॑। अ॑शी॒तिः सन्त्य॒ष्टा उ॒तो ते॑ स॒प्त स॑प्त॒तिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। ते॒। रा॒त्रि॒। नृ॒ऽचक्ष॑सः। द्र॒ष्टारः॑। न॒व॒तिः। नव॑। अ॒शी॒तिः। सन्ति॑। अ॒ष्टौ। उ॒तो इति॑। ते॒। स॒प्त। स॒प्त॒तिः ॥४७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते रात्रि नृचक्षसो द्रष्टारो नवतिर्नव। अशीतिः सन्त्यष्टा उतो ते सप्त सप्ततिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। ते। रात्रि। नृऽचक्षसः। द्रष्टारः। नवतिः। नव। अशीतिः। सन्ति। अष्टौ। उतो इति। ते। सप्त। सप्ततिः ॥४७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रात्रि) हे रात्रि ! (ये) जो (ते) तेरे (नृचक्षसः) मनुष्यों पर दृष्टि रखनेवाले (द्रष्टारः) दर्शक लोग (नवतिः नव) नब्वे और नौ [निन्नानवे], (अशीतिः अष्टौ) अस्सी और आठ [अठासी] (उतो) और (ते) तेरे (सप्ततिः सप्त) सत्तर और सात [सतहत्तर] (सन्ति) हैं ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र ३-५ में ९९ में से ११, ११ घटते-घटते ११ तक रहे हैं और [नीचे] शब्द से शेष संख्या एक तक मानी है। भाव यह है कि मनुष्य अपनी योग्यता के अनुसार बहुत वा थोड़े रक्षकों द्वारा रात्रि में रक्षा करते रहें •॥३-५॥

    टिप्पणी

    ३−(ये) (ते) तव (रात्रि) हे रात्रि (नृचक्षसः) मनुष्येषु दृष्टियुक्ताः (द्रष्टारः) दर्शकाः। रक्षकाः (नवतिर्नव) नवोत्तरनवतिसंख्याकाः (अशीतिः अष्टौ) अष्टोत्तराशीतिसंख्याकाः (सन्ति) भवन्ति (उतो) अधि च (सप्ततिः सप्त) सप्तोत्तरसप्ततिसंख्याकाः ॥

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    भाषार्थ

    (रात्रि) हे रात्रि! (नृचक्षसः) मनुष्यों पर दृष्टि रखनेवाले (ये) जो (ते) तेरे (नवतिः नव) ९९ (द्रष्टारः) द्रष्टा हैं, (अशीतिः अष्टौ) ८८ (सन्ति) द्रष्टा हैं, (उत उ) और (ते) तेरे (सप्त सप्ततिः) ७७ द्रष्टा हैं॥

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    विषय

    निन्यानवे, अट्ठासी सतत्तर

    पदार्थ

    १. हे (रात्रि) = रात्रिदेवि! (ये) = जो (ते) = तेरे (नृचक्षस:) = मनुष्यों को देखनेवाले, अर्थात् मनुष्यों का ध्यान करनेवाले (नवतिः नव) = नव्वे और नौ, अर्थात् निन्यानवे (द्रष्टारः) = ट्रष्टा-रक्षक हैं अथवा (अष्टा अशीतिः) = अट्ठासी रक्षक हैं (उतो) = अथवा (ते) = तेरे जो (सप्त सप्ततिः) = सतत्तर रक्षक हैं। [तेभिः पायुभिः तु अद्य नः पाहि-] उन रक्षकों के द्वारा तू हमारा रक्षण कर। २. राजा राष्ट्र में रात्रि के समय राष्ट्र के विस्तार के अनुसार, निन्यानवे, अट्ठासी व सतत्तर रक्षकों को नियुक्त करता है। इनसे रक्षित प्रजा सुख की नींद सो पाती है [सुम्नायि] उनका धन सुरक्षित रहता है[रेवति] उनके अन्नों को नष्ट होने का किसी प्रकार का खतरा नहीं होता [वाजिनि]।

    भावार्थ

    राजा रात्रि के समय राष्ट्र के विस्तार के अनुसार निन्यानवे, अट्ठासी व सतत्तर रक्षकों की नियुक्ति करे।

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    विषय

    रात्रिरूप ब्रह्मशक्ति और राष्ट्रशक्ति।

    भावार्थ

    हे (रात्रि) समस्त प्रजा को रमण कराने एवं सुख प्रदान करने वाली राजशक्ते ! (ते ये) तेरे जो (नृचक्षसः) मनुष्यों को देखने वाले और (द्रष्टारः) राज्यव्यवहारों को देखने वाले (नवतिः नव) ९९ (निन्यानवे) या (अष्टा अशीतिः) अठासी [८८] (उतो) या (ते) तेरे कार्यद्रष्टा (सप्त सप्ततिः) सतहत्तर [ ७७] (सन्ति) हैं।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘सन्त्वष्टा’ इति ऋ० १०। १२७। खिले २॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपथ ऋषिः। मन्त्रोक्ता रात्रिर्देवता। १ पथ्याबृहती। २ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा परातिजगती। ६ पुरस्ताद् बृहती। ७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। शेषा अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    All these watchful stars of yours who also watch and bless humanity, ninety-nine, eighty-eight, or seventy-seven, all yours...

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    Translation

    O night, what your observers watching over men are there ninety-nine, or eighty-eight or seventy-seven.

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    Translation

    Those who are the watchers and the examiners of the men in the night, arc ninety nine, eighty eight and seventy seven in number.

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    Translation

    O night, whatever the number of watchers of humanity, looking after them during thy interval, whether it be ninety-nine or eighty-eight or seventyseven.

    Footnote

    (3-5) The number of watchers of humanity at night has been variously interpreted by different scholars. Griffith sees no sense in- the numbers. Pt. Khem Karan Das Trivedi assigns the number of watchmen to be kept as guards at night, according to the convenience of the locality. Pt. Jaidev Vidyalankar takes it to/be the number of the assemblies of the king to advise him, taking Ratri as the Parliament, (i) But to me, it appears that the numbers are very significant. There are 11 marutas in the atmosphere, surrounding the earth, which is one of the planets, moving round the Sun, which is the cause of day and night. There are nine such Planets, that are supposed to have the same number of marutas surrounding them. So the number is ninety-nine, when all of them are in motion, separately in the sky, When the axis of any two of them, chance to be collinear, the number becomes-eighty-eight, and so on, till all of them are co-eval, the number, of course, Is eleven only, (ii) Else, it may refer to various justa-positions of constellations during the course of the earth’s movement round the Sun. Thus the numbers are meaningless due to our ignorance of Astronomical facts and laws, (ill) In addition to it, they teach arithmetical tables to man.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ये) (ते) तव (रात्रि) हे रात्रि (नृचक्षसः) मनुष्येषु दृष्टियुक्ताः (द्रष्टारः) दर्शकाः। रक्षकाः (नवतिर्नव) नवोत्तरनवतिसंख्याकाः (अशीतिः अष्टौ) अष्टोत्तराशीतिसंख्याकाः (सन्ति) भवन्ति (उतो) अधि च (सप्ततिः सप्त) सप्तोत्तरसप्ततिसंख्याकाः ॥

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