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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - कामः छन्दः - चतुष्पदोष्णिक् सूक्तम् - काम सूक्त
    56

    दू॒राच्च॑कमा॒नाय॑ प्रतिपा॒णायाक्ष॑ये। आस्मा॑ अशृण्व॒न्नाशाः॒ कामे॑नाजनय॒न्त्स्वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दू॒रात्। च॒क॒मा॒नाय॑। प्र॒ति॒ऽपा॒नाय॑। अक्ष॑ये। आ। अ॒स्मै॒। अ॒शृ॒ण्व॒न्। आशाः॑।कामे॑न। अ॒ज॒न॒य॒न्। स्वः᳡ ॥५२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दूराच्चकमानाय प्रतिपाणायाक्षये। आस्मा अशृण्वन्नाशाः कामेनाजनयन्त्स्वः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दूरात्। चकमानाय। प्रतिऽपानाय। अक्षये। आ। अस्मै। अशृण्वन्। आशाः।कामेन। अजनयन्। स्वः ॥५२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 52; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    काम की प्रशंसा का उपदेश।

    पदार्थ

    (अक्षये) निर्हानि [पूर्णता] के बीच (प्रतिपानाय) सब प्रकार रक्षा के लिये (दूरात्) दूर से [जन्म से पूर्व कर्म के संस्कार के कारण से] (चकमानाय) कामना कर चुकनेवाले (अस्मै) इस [पुरुष] को (आशाः) दिशाओं ने (कामेन) काम [आशा] के साथ (स्वः) सुख को (आ अशृण्वन्) अङ्गीकार किया है और (अजनयन्) उत्पन्न किया है ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण जन्म से ही अक्षय सुख के लिये दृढ़ आशा और प्रयत्न करता हुआ प्रत्येक स्थान में आनन्द पाता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(दूरात्) पूर्वजन्मफलसंस्कारात् (चकमानाय) कमतेर्लिटः कानच्। कामनां कृतवते पुरुषाय (प्रतिपानाय) सर्वतोरक्षणाय (अक्षये) क्षयराहित्ये। अहानौ। सम्पूर्णत्वे (आ अशृण्वन्) अङ्गीकृतवत्यः (अस्मै) पुरुषाय (आशाः) प्राच्यादयो दिशाः (कामेन) इच्छया (अजनयन्) उदपादयन् (स्वः) सुखम् ॥

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    भाषार्थ

    (अक्षये) अमृतत्व के निमित्त (दूरात्) चिरकाल से (चकमानाय) कामना करनेवाले, (प्रतिपाणाय) तथा तन्निमित्त व्रतों-नियमों का प्रतिपालन करनेवाले (अस्मै) इस पुरुष के लिए (आशाः) इसकी आशाओं ने (आ अशृण्वन्) इसकी कामना को पूर्णतया सुन लिया है, और (कामेन) इसकी कामना के द्वारा (स्वः) अमृतत्व का सुख (अजनयन्) प्रकट कर दिया है।

    टिप्पणी

    [काम है= सात्विक इच्छा, और सात्विक कामना। और आशा है फलप्राप्ति की सम्भावना= उम्मेद, या फलाकांक्षा। आशा के बिना काम में प्रवृत्ति नहीं होती। दृढ़ सात्विक कामना द्वारा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यत्न करने से आशाएँ सफल हो जाती हैं, फल-प्राप्ति कराती हैं। दूरात्=कालिक दूरता, अर्थात् चिरकाल से। दूरात्= From a remote period (आप्टे)।]

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    विषय

    'स्वः' जय

    पदार्थ

    १. (दूरात् चकमानाय) = दूरविषयक-अत्यन्त दुर्लभ फल को चाहनेवाले (अस्मै) = इस मेरे लिए (प्रतिपाणाय) = सर्वत: रक्षण के लिए और (अक्षये)= क्षयराहित्य के निमित्त (आशा:) = सब दिशाओं में (आशृण्वन्) = फल देने के लिए स्वीकार किया है। केवल स्वीकार ही नहीं किया अपितु (कामेन) = अभिमत फल-विषयक कामना के द्वारा (स्वः अजनयन्) = सुख को उत्पन्न किया है।

    भावार्थ

    प्रबल संकल्प होने पर दुर्लभ वस्तुएँ भी सुलभ हो जाती हैं और सुख की प्राप्ति होती है।

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    विषय

    ‘काग’ परमेश्वर।

    भावार्थ

    (दूरात्) दूर दूर तक (चक्रमानाय) प्रबल कामना या संकल्प करते हुए (प्रतिपाणाय [परिपाणाय ]) प्रत्येक पदार्थ पर अपना व्यापार करने में समर्थ (अक्षये) व्यापक, सर्वाधिष्ठातृरूप, या सर्वद्रष्टारूप, (अस्मै) इस महान् परमेश्वर की आज्ञाओं को (कामेन) उस महान् का मनोमय संकल्प के बल से (आशाः) समस्त आशा अर्थात् दिशाएं (आ अशृण्वन्) सर्वत्र श्रवण करती हैं, उसकी आज्ञा को मानती हैं। और उसी (कामेन) कमनीय, कान्तिमय प्रभु के सामर्थ्य से वे (स्वः) सर्वत्र सुखमय लोकको (अजनयन्) बनाती हैं या (कामेन) उसके महान् संकल्प से (स्वः) दूरस्थ तेजोमय लोकों को वे दिशाएं अपने भीतर (अजनयन्) रचना करती हैं।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘प्रविपाणायः’ ‘प्रतिपाणाय०’ इति पाठौ क्वचित्। ‘प्रविपाणाय’ इति ह्विटनिः। ‘प्रतिपाणाक्षे’, (तृ०) आस्मा ‘शृण्वन्’ (च०) ‘जनयत् सह’ इति पैप्प० सं०। सद्यश्चकमानाय प्रवेपनाय मृत्यवे प्रास्मा आशा अशृण्वन् कामेनाजनयत् पुनः। इति तै० आ०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्माऋषिः। मन्त्रोक्तः कामो देवता। कामसूक्तन्। १, २, ४ त्रिष्टुभः। चतुष्पदा उष्णिक्। ५ उपरिष्टाद् बृहती। पञ्चर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama

    Meaning

    For man, inspired with desire since farthest time, i.e., eternity, in the imperishable world of Infinity, for his fulfilment in response to his desire, hope and effort, the quarters of space listen and, by the universal desire of Divinity co-existent with the human in the universal mind, they create the joy and bliss of life for him.

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    Translation

    To him, who from a long distance longed for an inexhaustible response, all the quarters listened, and with desire they produced bliss.

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    Translation

    In the entirely of the time for the protection of this man who longs for a long period all the regions cause praise of and produce light and happiness.

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    Translation

    All the quarters (i.e., the people thereof) Him, the Desire-Incarnate, the Protector, the Indestructible even from afar. It is with His help and grace that they produce happiness and well-being.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(दूरात्) पूर्वजन्मफलसंस्कारात् (चकमानाय) कमतेर्लिटः कानच्। कामनां कृतवते पुरुषाय (प्रतिपानाय) सर्वतोरक्षणाय (अक्षये) क्षयराहित्ये। अहानौ। सम्पूर्णत्वे (आ अशृण्वन्) अङ्गीकृतवत्यः (अस्मै) पुरुषाय (आशाः) प्राच्यादयो दिशाः (कामेन) इच्छया (अजनयन्) उदपादयन् (स्वः) सुखम् ॥

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