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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 52/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त
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    यत्का॑म का॒मय॑माना इ॒दं कृ॒ण्मसि॑ ते ह॒विः। तन्नः॒ सर्वं॒ समृ॑ध्यता॒मथै॒तस्य॑ ह॒विषो॑ वीहि॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। का॒म॒। का॒मय॑मानाः। इ॒दम्। कृ॒ण्मसि॑। ते॒। ह॒विः। तत्। नः॒। सर्व॑म्। सम्। ऋ॒ध्य॒ता॒म्। अथ॑। ए॒तस्य॑। ह॒विषः॑। वी॒हि॒। स्वाहा॑ ॥५२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्काम कामयमाना इदं कृण्मसि ते हविः। तन्नः सर्वं समृध्यतामथैतस्य हविषो वीहि स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। काम। कामयमानाः। इदम्। कृण्मसि। ते। हविः। तत्। नः। सर्वम्। सम्। ऋध्यताम्। अथ। एतस्य। हविषः। वीहि। स्वाहा ॥५२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 52; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    काम की प्रशंसा का उपदेश।

    पदार्थ

    (काम) हे काम ! [आशा] (यत्) जिस [फल] को (कामयमानाः) चाहते हुए हम (ते) तेरी (इदम्) यह (हविः) भक्ति (कृण्मसि) करते हैं। (तत्) वह (सर्वम्) सब (नः) हमारे लिये (सम्) सर्वथा (ऋध्यताम्) सिद्ध होवे, (अथ) इसलिये (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ [वर्तमान] (एतस्य) इस (हविषः) भक्ति की (वीहि) प्राप्ति कर ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को दृढ़ भक्ति के साथ शुभ कामनाओं की सिद्धि के लिये पूरा प्रयत्न करना चाहिये ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(यत्) कर्मफलम् (काम) हे अभिलाष (कामयमानाः) इच्छन्तः (इदम्) क्रियमाणम् (कृण्मसि) कुर्मः (ते) तव (हविः) आत्मदानम्। भक्तिम् (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (सर्वम्) (सम्) सम्यक् (ऋध्यताम्) सिध्यतु (अथ) तस्मात् (एतस्य) (हविषः) आत्मदानस्य (वीहि) प्राप्तिं कुरु (स्वाहा) सुवाण्या ॥

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    भाषार्थ

    (काम) हे सात्त्विक काम! [कामना वा इच्छा] (यत्) जिस फल की (कामयमानाः) कामना करते हुए हम (ते) तेरे प्रति (इदम्) यह (हविः) हवि (कृण्मसि) समर्पित करते हैं, (तत् सर्वम्) वह हविः समग्ररूप में (नः) हमारे लिए (समृध्यताम्) समृद्धि प्राप्त कराए। (अथ) इसलिए (एतस्य) इस (हविषः) हवि को (वीहि) हे काम! तू प्राप्त कर, स्वीकार कर। (स्वाहा) हमारी यह हवि तेरे प्रति आहुत हो।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में “हविः” द्वारा उन साधनों का कथन किया है, जिनकी सहायता द्वारा उद्देश्य की प्राप्ति होती है। उद्देश्य है—“अमृतत्त्व की प्राप्ति”। समग्र सूक्त में ‘काम’ द्वारा सात्त्विक काम का वर्णन हुआ है, जो कि “बृहता कामेन सयोनिः” (मन्त्र १) है। स्वाहा= इस शब्द द्वारा यह दर्शाया है कि जैसे उद्देश्य और इच्छा सात्त्विक होने चाहिएँ, वैसे साधन भी सात्त्विक आहुतिरूप होने चाहिएँ।]

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    विषय

    यज्ञ-इष्टकामधुक

    पदार्थ

    १. हे काम 'काम' [आशे] (यत्) = जिस फल को (कामयमाना:) = चाहते हुए हम (ते) = तेरे (इदं हविः कृण्मसि) = इस हवि को करते हैं, अर्थात् जिस फल की कामना से हम यज्ञ करते हैं हमारी (तत् सर्वम्) = वह सब इच्छा (समृध्यताम्) = समृद्ध हो-फूले-फले। २. (अथ) = अब हे काम! (एतस्य) = इस दी हुई (हविष:) = हवि का तू (वीहि) = भक्षण कर। यह (हवि स्वाहा) = तेरे लिए सुहुत हो। हम जब किसी कामना से यज्ञ करें तब उसे सम्यक करनेवाले बनें।

    भावार्थ

    मन से प्रेरित होकर ही मनुष्य यज्ञादि उत्तम कर्मों को किया करता है। सदा किया जाता हुआ हमारा यह यज्ञ फल से समृद्ध हो। [काम्यो हि वेदाधिगमः कर्मयोगश्च वैदिक:] अगले तीन सूक्तों में 'भृगु ऋषि हैं-ये ज्ञानाग्नि में आपने को परिपक्व करके प्रभु को 'काल' नाम से स्मरण करते हैं -

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    विषय

    ‘काग’ परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे (काम) कामनानय प्रभो ! हम (यत्) जिस पदार्थ की कामना करते हुए (तं) तेरी (इदं हविः) यह स्तुति (कृणमसि) करते हैं। (नः) हमारा (तत्सर्वम्) वह सब (समृध्यताम्) खूब सफल हो। (अथ) और (एतस्य) इस (हविषः) स्तुति को तू (वीहि) स्वीकार कर (स्वाहा) यह हमारी प्रार्थना स्वीकृत हो।

    टिप्पणी

    ‘यत्। कामः।’ इति पदपाठः प्रायः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्माऋषिः। मन्त्रोक्तः कामो देवता। कामसूक्तन्। १, २, ४ त्रिष्टुभः। चतुष्पदा उष्णिक्। ५ उपरिष्टाद् बृहती। पञ्चर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama

    Meaning

    O Kama, Spirit of love and desire, whatever our hope and ambition for which we offer this homage of effort and havi, may all that hope and ambition be fulfilled. And we pray you accept this homage and be pleased to bless. This in heart-felt truth of word and deed!

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    Translation

    O desire, desiring whatsoever we make the offering to you may all that be accomplished for us. Now may vou enjoy this offering. Svaha.

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    Translation

    O Kama (God who is the initiator of first desire) whatever desiring we, the devotees do your adoration and supplication may for us be fulfilled. You accept this prayer of ours. I hail your actions.

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    Translation

    O Desirable One, whatever desiring, we make this offering to Thee, let all that grow in plenty for us. Let thee accept this offering. Let our desire be granted.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यत्) कर्मफलम् (काम) हे अभिलाष (कामयमानाः) इच्छन्तः (इदम्) क्रियमाणम् (कृण्मसि) कुर्मः (ते) तव (हविः) आत्मदानम्। भक्तिम् (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (सर्वम्) (सम्) सम्यक् (ऋध्यताम्) सिध्यतु (अथ) तस्मात् (एतस्य) (हविषः) आत्मदानस्य (वीहि) प्राप्तिं कुरु (स्वाहा) सुवाण्या ॥

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