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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 4
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - पिपीलिकमध्यानिचृद्गायत्री सूक्तम् - श्रेयः प्राप्ति सूक्त
    69

    सू॒रिर॑सि वर्चो॒धा अ॑सि तनू॒पानो॑ ऽसि। आ॑प्नु॒हि श्रेयां॑स॒मति॑ स॒मं क्रा॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सू॒रि: । अ॒सि॒ । व॒र्च॒:ऽधा: । अ॒सि॒ । त॒नू॒ऽपान॑: । अ॒सि॒ । आ॒प्नु॒हि । श्रेयां॑सम् । अति॑ । स॒मम् । क्रा॒म॒ ॥११.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूरिरसि वर्चोधा असि तनूपानो ऽसि। आप्नुहि श्रेयांसमति समं क्राम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूरि: । असि । वर्च:ऽधा: । असि । तनूऽपान: । असि । आप्नुहि । श्रेयांसम् । अति । समम् । क्राम ॥११.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 11; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    हे राजन् ! तू (सूरिः) विद्वान् (असि) है, (वर्चोधाः) अन्न वा तेज का धारण करनेवाला (असि) है, (तनूपानः) हमारे शरीरों का रक्षक (असि) है। (श्रेयांसम्) अधिक गुणी [परमेश्वर वा मनुष्य] को (आप्नुहि) तू प्राप्त कर, (समम्) तुल्यबलवाले [मनुष्य] से (अति=अतीत्य) बढ़कर (क्राम) पद आगे बढ़ा ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् प्रतापी राजा अन्न आदि से अपनी प्रजा की सदा रक्षा और उन्नति करे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–सूरिः। सूङः क्रिः उ० ४।६४। इति षूङ् प्राणिप्रसवे, यद्वा, षू प्रेरणे क्रि। सूते उत्पादयति, सुवति प्रेरयति वा सद्वाक्यानि। स्तोता–निघ० ३।१६। अभिज्ञः। पण्डितः। वर्चोधाः। वर्चस्+धाञ्–विच्। वर्चः–अ० १।९।४। वर्चसः, अन्नस्य तेजसो वा धाता। तनूपानः। तनू+पा रक्षणे–भावे ल्युट्। तनूनां पानं रक्षणं यस्मात् सः। शरीररक्षकः ॥

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    विषय

    ज्ञान शक्ति-शरीर-रक्षण

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार काम का विध्वंस करके तू (सूरिः असि) = ज्ञानी बना है। काम ने ही ज्ञान पर पर्दा डाला हुआ था। पर्दा हटा और तेरे ज्ञान का प्रकाश चमक उठा। २. (वर्णोधा असि) = तू अपने में वर्चस् का धारण करनेवाला बना है। कामवासना ही शक्ति को व्ययित [खर्च] करनेवाली थी, उसका विध्वंस होते ही शक्ति का सञ्चय सम्भव हो गया। ३. इसप्रकार मस्तिष्क में ज्ञान व शरीर में शक्ति स्थापित करके (तनपान: असि) = तु शरीर का ठीक रक्षण करनेवाला बना है। ४. ऐसा बनने के लिए तू (आप्नुहि श्रेयांसम्) = श्रेष्ठों को प्राप्त कर और (समम् अतिक्राम) = बराबरवालों को लौष जा।

    भावार्थ

    हम ज्ञानी बनें, वर्चस् को धारण करें और इसप्रकार शरीर का रक्षण करें।

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    भाषार्थ

    हे जीवात्मन् ! (सूरिः असि) तू अभिज्ञ है, (वर्चोधाः असि) तेजधारी है, (तनूपानः असि) शरीर का रक्षक है। (श्रेयांसम् आप्नुहि, समम् अतिक्राम) अर्थ, पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [सायण ने सूरि का अर्थ "अभिज्ञ" किया है। अभिज्ञ का अर्थ होता है ज्ञानवान्, ज्ञानी। यह अर्थ तिलकवृक्ष की मणि अर्थात् काष्ठखण्ड में उपपन्न नहीं हो सकता, जीवात्मा में ही उपपन्न हो सकता है। ज्ञानधर्म जीवात्मा का है।]

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    विषय

    राजा को उपदेश ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! (सूरिः असि) तू विद्वान् धर्मोपदेष्टा या शत्रुतापक है, अतएव (वर्चोधाः असि) तू वर्चस् अर्थात् तेज का धारण करने हारा है । तू ( तनूपानः असि ) अपने और समस्त प्रजाओं के शरीरों की भी रक्षा करने हारा है। ( श्रेयांसम् आप्नुहि ) इसलिये सबसे अधिक श्रेष्ठपद को तू ही प्राप्त कर और (समम्) अपने समान प्रतिस्पर्धी से (अति क्राम) अधिक आगे बढ़ ।

    टिप्पणी

    सूरिः, ‘स्वृ’ शब्दोपतापयोः। शब्दनमुपदेशः तत्कर्त्ता सूरिर्विद्वान् अभिज्ञ इति सायणः। अथवा उपतापकः शत्रूणां सूरिः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः । कृत्यादूषणं देवता । कृत्यापरिहरणसूक्तम् । स्त्रात्तयमणेः सर्वरूपस्तुतिः । १ चतुष्पदा विराड् गायत्री । २-५ त्रिपदाः परोष्णिहः । ४ पिपीलिकामध्या निचृत् । पञ्चर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Soul Counters Evil

    Meaning

    You are the scholar, exceptionally learned, blazing brilliant you are. You are the protector and sustainer of our existential identity. Achieve the vision of the highest. Rise far above the mundane.

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    Translation

    You are learned.You are full of lustre. You are protector of body. Attain superiority. Surpass your equals.

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    Translation

    O man; you are the man of wisdom, you are brilliant and you are defense against our bodies. etc. etc.

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    Translation

    O soul, thou art full of knowledge, thou art the giver of splendor, thou art the defender of our bodies. Attain to superiority, surpass thine equal!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–सूरिः। सूङः क्रिः उ० ४।६४। इति षूङ् प्राणिप्रसवे, यद्वा, षू प्रेरणे क्रि। सूते उत्पादयति, सुवति प्रेरयति वा सद्वाक्यानि। स्तोता–निघ० ३।१६। अभिज्ञः। पण्डितः। वर्चोधाः। वर्चस्+धाञ्–विच्। वर्चः–अ० १।९।४। वर्चसः, अन्नस्य तेजसो वा धाता। तनूपानः। तनू+पा रक्षणे–भावे ल्युट्। तनूनां पानं रक्षणं यस्मात् सः। शरीररक्षकः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    হে জীবাত্মন্ ! (সূরিঃ অসি) তুমি অভিজ্ঞ হও, (বর্চোধাঃ অসি) তেজধারী হও, (তনূপানঃ অসি) শরীরের রক্ষক হও। (শ্রেয়াংসম্ আপ্নুহি) এতদর্থ শ্রেষ্ঠ গুরুকে প্রাপ্ত হও, তাঁর সেবা করো, (সমম্ অতিক্রাম) এবং স্বসমান ব্যক্তিকে অতিক্রম করো, তাঁর থেকে এগিয়ে যাও।

    टिप्पणी

    [সায়ণ সূরি এর অর্থ "অভিজ্ঞ" করেছে। অভিজ্ঞ এর অর্থ হল জ্ঞানবান্, জ্ঞানী। এই অর্থ তিলকবৃক্ষের মণি অর্থাৎ কাষ্ঠখণ্ডে প্রতিপাদন হতে পারে না, জীবাত্মাতেই প্রতিপাদন হতে পারে। জ্ঞানধর্ম জীবাত্মার রয়েছে।]

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    मन्त्र विषय

    পুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    হে রাজন্ ! তুমি (সূরিঃ) বিদ্বান্ (অসি) হও, (বর্চোধাঃ) অন্ন বা তেজ ধারণকারী (অসি) হও, (তনূপানঃ) আমাদের শরীরের রক্ষক (অসি) হও। (শ্রেয়াংসম্) অধিক গুণী [পরমেশ্বর বা মনুষ্য] কে (আপ্নুহি) তুমি প্রাপ্ত করো, (সমম্) তুল্যবলবান [মনুষ্য] থেকে (অতি=অতীত্য) বর্ধিত হয়ে (ক্রাম) পাদবিক্ষেপ করো/অগ্রগামী হও ॥৪॥

    भावार्थ

    বিদ্বান্ প্রতাপশালী রাজা অন্ন আদি দ্বারা নিজের প্রজাদের সদা রক্ষা ও উন্নতি করুক ॥৪॥

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