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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
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    सूर्य॒ चक्षु॑षा मा पाहि॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑ । चक्षु॑षा । मा॒ । पा॒हि॒ । स्वाहा॑ ॥१६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्य चक्षुषा मा पाहि स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य । चक्षुषा । मा । पाहि । स्वाहा ॥१६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य, तू (चक्षुषा) दृष्टि के साथ (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुवाणी हो ॥३॥

    भावार्थ

    सूर्य प्रकाश का आधार है और उसी से नेत्र में ज्योति आती है। मनुष्य को सूर्य के समान अपनी दर्शनशक्ति संसार में स्थिर रखनी चाहिये ॥३॥

    टिप्पणी

    ३–सूर्य। अ० १।३।५। हे सर्वप्रेरक ! हे आदित्य ! चक्षुषा। अ० १।३३।४। चक्षिङ् कथने दर्शने च–उसि। नेत्रेण। रूपदर्शनशक्त्या ॥

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    विषय

    दर्शनशक्ति

    पदार्थ

    १. (सूर्य) = हे सूर्य! (चक्षुषा) = दर्शनशक्ति के द्वारा (मा पाहि) = तू मेरा रक्षण कर। (सूर्यश्चक्षुर्भूत्वा अक्षिणी प्राविशत्) = सूर्य चक्षु बनकर मेरी आँखों में निवास करनेवाला हो। इस दर्शनशक्ति से प्रकृति में प्रभु-महिमा को देखता हुआ मैं आत्मज्ञान को प्राप्त करनेवाला बनूं। २. (स्वाहा) = मेरी वाणी इस बात को बारम्बार कहनेवाली हो। इसका जप करता हुआ मैं आत्मप्ररेणा प्राप्त करूँ और दर्शनशक्ति को बढ़ाकर अशुभ मार्ग से बचकर शुभ मार्ग पर चलूँ। यही रक्षा का मार्ग है।

     

    भावार्थ

    मैं सूर्य की भाँति व्यापक दृष्टिवाला बनूं।

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    भाषार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य (चक्षुषा) चक्षु द्वारा ( मा पाहि ) मेरी रक्षा कर, (स्वाहा) सु आह ।

    टिप्पणी

    [सूर्य के प्रकाश के बिना चक्षु देख नहीं सकती, अतः सूर्य चक्षुःप्रदाता है, और तद्-द्वारा रक्षा करता है।]

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    विषय

    रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (सूर्य) सब के प्रकाशक सूर्य ! एवं उसके समान सब के प्रकाशक प्रभो ! (मां) मुझको (चक्षुषां) दर्शन-इन्द्रिय के द्वारा (पाहि) पालन कर, (स्वाहा) इस प्रकार योगी अपने प्रभु को सम्बोधन करके शक्ति प्राप्त करे।

    टिप्पणी

    ‘चक्षुषी’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। प्राणापानौ आयुश्च देवताः। १, ३ एकपदा आसुरी त्रिष्टुप्। एकपदा आसुरी उष्णिक्। ४, ५ द्विपदा आसुरी गायत्री। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Divine Protection

    Meaning

    May the sun protect and advance me with the eye for vision of divinity around. This is the voice of earnest desire.

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    Translation

    O Sun, may you protect me with good vision. Svāhā.

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    Translation

    Let the Sun protect me with the power of sight. What a beautiful utterance.

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    Translation

    O Sun, guard me by granting me the power of sight! This is a nice prayer. [1]

    Footnote

    [1] The verse can also be interpreted thus. O God, guard me by granting me the light of knowledge! May a yogi acquire power by thus addressing God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–सूर्य। अ० १।३।५। हे सर्वप्रेरक ! हे आदित्य ! चक्षुषा। अ० १।३३।४। चक्षिङ् कथने दर्शने च–उसि। नेत्रेण। रूपदर्शनशक्त्या ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (সূর্য) হে সূর্য ! (চক্ষুষা) চক্ষু দ্বারা (মা পাহি) আমার রক্ষা করো, (স্বাহা) সু আহ।

    टिप्पणी

    [সূর্যের আলো ছাড়া চক্ষু দেখতে পারে না, অতঃ সূর্য চক্ষুঃপ্রদাতা, এবং তদ্-দ্বারা রক্ষা করে।]

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    मन्त्र विषय

    আত্মরক্ষায়া উপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সূর্য) হে সূর্য, তুমি (চক্ষুষা) দৃষ্টির সাথে (মা) আমার (পাহি) রক্ষা করো, (স্বাহা) এই সুবাণী হোক ॥৩॥

    भावार्थ

    সূর্য আলোর আধার এবং তার দ্বারা নেত্রে জ্যোতি আসে। মনুষ্যকে সূর্যের সমান নিজের দর্শনশক্তি সংসারে স্থির রাখা উচিৎ ॥৩॥

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