अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - द्विपदासुरी गायत्री
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
57
अग्ने॑ वैश्वानर॒ विश्वै॑र्मा दे॒वैः पा॑हि॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । वै॒श्वा॒न॒र॒ । विश्वै॑: । मा॒ । दे॒वै: । पा॒हि॒ । स्वाहा॑ ॥१६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने वैश्वानर विश्वैर्मा देवैः पाहि स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । वैश्वानर । विश्वै: । मा । देवै: । पाहि । स्वाहा ॥१६.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मरक्षा के लिये उपदेश।
पदार्थ
(वैश्वानर) हे सबको चलानेवाले (अग्ने) अग्नि ! (विश्वैः) सब (देवैः) इन्द्रियों [वा विद्वानों] के साथ (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥४॥
भावार्थ
शरीर में अग्नि अर्थात् उष्णता का होना बल, तेज और प्रताप का लक्षण है और इन्द्रिय आदि का चलानेवाला है। सब मनुष्य अन्न की पाचनशक्ति से शरीर में अग्नि स्थिर रखकर सब इन्द्रियों को पुष्ट करें और उत्तम पुरुषों के सत्सङ्ग से स्वस्थ और सुखी रहें ॥४॥
टिप्पणी
४–अग्ने। अ० १।६।२। अग्निः कस्मादग्रणीर्भवत्यग्रं यज्ञेषु प्रणीयतेऽङ्गन्नयति सन्नममानोऽक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः–निरु० ७।१४। हे शरीरस्थतेजोविशेष ! वैश्वानर। अ० १।१०।४। वैश्वानरः कस्माद् विश्वान् नरान् नयति विश्व एनं नरा नयन्तीति वा–निरु० ७।२१। हे सर्वेषामिन्द्रियादीनां नायक ! विश्वैः। सर्वैः। देवैः। दिवु–अच्। इन्द्रियैः विद्वद्भिः ॥
विषय
सब दिव्य गुण
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = अग्रणी (वैश्वानर) = [विश्वान् नरान् नयति] सबके सञ्चालक प्रभो! (मा) = मुझे (विश्वैः देवैः) = सब दिव्य गुणों को प्राप्त कराके (पाहि) = रक्षित कीजिए। वस्तुत: प्रभु-स्मरण से सब दिव्य गुणों की प्राप्ति होती है। २. (स्वाहा) = मेरी वाणी सदा यही प्रार्थना करे। इसी जप को करता हुआ इसी बात को मैं अपने जीवन में घटानेवाला बनूं। महादेव का स्मरण करता हुआ सब देवों को प्रास करने का अधिकारी बनें।
भावार्थ
प्रभु अग्नि है, वैश्वानर हैं। वे मुझे आगे ले-चलते हुए सब दिव्य गुणों से युक्त करेंगे।
भाषार्थ
(वैश्वानर अग्ने) सब नर-नारियों के हितकारी, अग्निवत् प्रकाशमान हे परमेश्वर (विश्वै: देवै: ) सब इन्द्रिय देवों द्वारा (मा पाहि ) मेरी रक्षा कर, (स्वाहा) सु आह ।
टिप्पणी
[इन्द्रियाँ देव हैं, विषयों का द्योतन करती हैं, उन्हें प्रकाशित करती हैं। देवः द्योतनाद्वा (निरुक्त ७।४।१५)।]
विषय
रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (अग्ने) प्रकाशमान ! हे (वैश्वानर) समस्त शरीरों में व्यापक सब के नेता ईश्वर, एवं जाठररूप में या घर २ में विद्यमान वैश्वानर अग्नि ! (मा) मुझको (विश्वैः) समस्त (देवैः) विद्वानों, दिव्य पदार्थों और इन्द्रियों द्वारा (पाहि) पालन कर। (स्वाहा) यह उत्तम प्रार्थना है अर्थात् ईश्वर हमारी इन्द्रियों की रक्षा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। प्राणापानौ आयुश्च देवताः। १, ३ एकपदा आसुरी त्रिष्टुप्। एकपदा आसुरी उष्णिक्। ४, ५ द्विपदा आसुरी गायत्री। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prayer for Divine Protection
Meaning
May Agni, self-refulgent light and light giver of the universe, protect and promote me with all brilliancies of the divine world. This is the voice of conscientious will for illumination.
Translation
O fire-divine, leader of every one, may you protect me with all the bounties of Nature. Svāhā.
Translation
Let the heat resident in all animate creatures preserve me with all of its wonderful operations. What a beautiful utterance.
Translation
O God, the Leader of all, preserve me through all learned personal This is a nice prayer.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४–अग्ने। अ० १।६।२। अग्निः कस्मादग्रणीर्भवत्यग्रं यज्ञेषु प्रणीयतेऽङ्गन्नयति सन्नममानोऽक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः–निरु० ७।१४। हे शरीरस्थतेजोविशेष ! वैश्वानर। अ० १।१०।४। वैश्वानरः कस्माद् विश्वान् नरान् नयति विश्व एनं नरा नयन्तीति वा–निरु० ७।२१। हे सर्वेषामिन्द्रियादीनां नायक ! विश्वैः। सर्वैः। देवैः। दिवु–अच्। इन्द्रियैः विद्वद्भिः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(বৈশ্বানর অগ্নে) সকল নর-নারীদের হিতকারী, অগ্নিবৎ প্রকাশমান হে পরমেশ্বর! (বিশ্বৈঃ দেবৈঃ) সকল ইন্দ্রিয়-দেবতার দ্বারা (মা পাহি) আমার রক্ষা করুন, (স্বাহা) সু আহ।
टिप्पणी
[ইন্দ্রিয়সমূহ হল দেবতা, বিষয়-সমূহের দৌতন করে, সেগুলোকে প্রকাশিত করে। দেবঃ দৌতনাদ্বা (নিরুক্ত ৭/৪/১৫)]
मन्त्र विषय
আত্মরক্ষায়া উপদেশঃ
भाषार्थ
(বৈশ্বানর) হে সকলকে চালনাকারী (অগ্নে) অগ্নি ! (বিশ্বৈঃ) সকল (দেবৈঃ) ইন্দ্রিয় [বা বিদ্বানদের] সাথে (মা) আমার (পাহি) রক্ষা করো, (স্বাহা) এই সুন্দর আশীর্বাদ হোক ॥৪॥
भावार्थ
শরীরে অগ্নি অর্থাৎ উষ্ণতা হওয়া বল, তেজ ও প্রতাপের লক্ষণ এবং ইন্দ্রিয় আদির চালনাকারী। সকল মনুষ্য অন্নের পাচনশক্তি দ্বারা শরীরে অগ্নি স্থির রেখে সব ইন্দ্রিয়-সমূহকে পুষ্ট করুক এবং উত্তম পুরুষদের সৎসঙ্গ দ্বারা সুস্থ ও সুখী থাকুক ॥৪॥
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