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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सविता देवता - पशुसमूहः छन्दः - उपरिष्टाद्विराड्बृहती सूक्तम् - पशुसंवर्धन सूक्त
    49

    सं सं स्र॑वन्तु प॒शवः॒ समश्वाः॒ समु॒ पूरु॑षाः। सं धा॒न्य॑स्य॒ या स्फा॒तिः सं॑स्रा॒व्ये॑ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । सम् । स्र॒व॒न्तु॒ । प॒शव॑: । सम् । अश्वा॑: । सम् । ऊं॒ इति॑ । पुरु॑षा: । सम् । धा॒न्य᳡स्य । या । स्‍फा॒ति: । स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण । ह॒विषा॑ । जु॒हो॒मि॒ ॥२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं सं स्रवन्तु पशवः समश्वाः समु पूरुषाः। सं धान्यस्य या स्फातिः संस्राव्येण हविषा जुहोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । सम् । स्रवन्तु । पशव: । सम् । अश्वा: । सम् । ऊं इति । पुरुषा: । सम् । धान्यस्य । या । स्‍फाति: । सम्ऽस्राव्येण । हविषा । जुहोमि ॥२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मेल करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (पशवः) गौ आदि (सम्) मिलकर, (अश्वाः) घोड़े (सम्) मिलकर, (उ) और (पूरुषाः) सब पुरुष (सम् सम्) मिल-मिलकर (स्रवन्तु) चलें। और (या) जो (धान्यस्य) धान्य [अन्न] की (स्फातिः) बढ़ती है, [वह भी] (सम्=सम् स्रवतु) मिलकर चले। (संस्राव्येण) कोमलता से युक्त (हविषा) भक्ति वा अन्न के साथ [उन सबको] (जुहोमि) मैं ग्रहण करूँ ॥३॥

    भावार्थ

    सब उपकारी गौ, अश्व आदि पशु और मनुष्य नियम के साथ मिलकर रहें और प्रयत्नपूर्वक पुष्कल जीविका प्राप्त करें और प्रधान पुरुष उनके शिक्षादान और भरण-पोषण की यथोचित सुधि रक्खे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३–सम्। सम्यक्। यथाविधि। समेत्य। स्रवन्तु। गच्छन्तु पशवः। गवादयः। अश्वाः। अ० १।१६।४। घोटाः। पूरुषाः। अ० १।१६।४। मनुष्याः। धान्यस्य। दधातेर्यन्नुट् च। उ० ५।४८। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः–यत् नुट् च। अन्नस्य। स्फातिः। अ० २।२५।३। समृद्धिः। संस्राव्येण हविषा जुहोमि। अ० १।१५।१। आर्द्रीभावयुक्तेन भक्त्या अन्नेन वा स्वीकरोमि ॥

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    विषय

    संस्त्राव्य हवि की आहुति

    पदार्थ

    १. (पशवः) = गौ आदि पशु (सं सं स्त्रवन्तु) = मिलकर सम्यक् गतिवाले हों। चारागाहों में एकत्र होने पर परस्पर लड़ न पड़ें। (अश्वा:) = घोड़े (सं) = [स्त्रवन्तु] मिलकर गतिवाले हों। इन पशुओं के (पूरुषा:) = रक्षक पुरुष (उ) = भी (सम्) = मिलकर गतिवाले हों। गोपों में परस्पर लड़ाई न हो जाए। इनकी लड़ाई में पशुओं की दुर्गति भी सम्भावित है ही। २. (धान्यस्य या स्फाति:) = धान्य की जो वृद्धि है, वह सं[स्त्रवन्तु] हमारे घरों में सम्यक् प्रवाहित हो। मैं (संस्त्राव्येण हविषा) = इन सबके संस्तव के लिए हितकर हवि के द्वारा (जुहोमि) = आहुति देता हूँ। राष्ट्र के सब घरों में अग्निहोत्र की ठीक व्यवस्था होने पर जहाँ शरीर व मानस नीरोगता प्राप्त होती है वहाँ गौओं, घोड़ों व धान्यों की कमी नहीं रहती।

    भावार्थ

    घरों में अग्निहोत्र होने पर गौओं, घोड़ों, व धान्यों का प्रवाह ठीक रहता है।

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    भाषार्थ

    (पशवः) गौएँ (सं सं स्रवन्तु) परस्पर मिलकर प्रवाहित होती आएँ, (अश्वः) अश्व (सम्) मिलकर आएँ, (पुरुषाः) पुरुष (सम् उ) परस्पर मिल कर आएँ। (धान्यस्य) धान्य की (या स्फातिः) जो समृद्धि है वह ( सम् ) मिलकर आए, (सं स्राव्येण हविषा) परस्पर मिली हुई हवि द्वारा (जुहोमि) मैं आहुतियाँ देता हूँ।

    टिप्पणी

    [सामूहिक यज्ञ का वर्णन है, जिसमें दूध के लिये गौएँ आवें, अश्वारोही सैनिक आवें, सर्वसाधारण पुरुष तथा स्त्रियां आवें। प्रभूत धान्यादि अन्न आवे, मैं परस्पर के सहयोग से प्राप्त हवि द्वारा आहुतियां देता हूँ।]

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    विषय

    इन्द्रियों का दमन और पशुओं का पालन ।

    भावार्थ

    (पशवः) पशु (सं सं स्रवन्तु) हमारे पास आवें। (अश्वाः सम्) और अश्व भी हमारे पास आवें । (पूरुषाः सम्) पुरुष भी हमारे पास आवें। (या धान्यस्य स्फातिः) जो धान्य की वृद्धि, सम्पत्ति है वह भी (सं) प्राप्त हो। मैं (संस्राव्येण) उत्तम रीति से इन सब पदार्थों के प्राप्त कराने हारे (हविषा) उपाय से (जुहोमि) इन सबको प्राप्त करने का यत्न करता हूं। अध्यात्म पक्ष में—पशवः=ज्ञानेन्द्रियगण, अश्वाः=कर्मेन्द्रिय पुरुषा:- अन्तःकरण या जीव, धान्यं=विषय ज्ञान, संस्राव्यं हविः=इनकी प्रेरणा और वशीकरण का उपाय, योगाभ्यास।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘समु पौरुषाः’ ‘धान्यस्यस्फातिभिः’ इति पैप्प० सं०। १. प्रसमुपोदः पादपूरणे इति सम् अत्र पादपूरणः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सविता ऋषिः। पशवो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ उपरिष्टाद् विराड् बृहती। ४ भुरिगनुष्टुप्। ५ अनुष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Animal Life

    Meaning

    Let the animals be and move together, together with horses, and let the men too who manage be together. Let the harvest of grain and grass be profusely rich. I do the development yajna with highly promotive materials.

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    Translation

    May the horses stream together, together the cattle and together the men also to this place. May the abundance of the grain stream to this place.I hereby offer the oblation that brings all together.

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    Translation

    Flock-together the animals and flock together horses, let the exorbitant growth of crop visit us and may we offer oblations in the Yajna mixed with ghee.

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    Translation

    Together stream the cattle, stream together horses and the men! Let all growth of grain be simultaneous with tender devotion: I accept the responsibility of looking after them. [1]

    Footnote

    [1] Stream means to together. I refers to a big leader.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–सम्। सम्यक्। यथाविधि। समेत्य। स्रवन्तु। गच्छन्तु पशवः। गवादयः। अश्वाः। अ० १।१६।४। घोटाः। पूरुषाः। अ० १।१६।४। मनुष्याः। धान्यस्य। दधातेर्यन्नुट् च। उ० ५।४८। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः–यत् नुट् च। अन्नस्य। स्फातिः। अ० २।२५।३। समृद्धिः। संस्राव्येण हविषा जुहोमि। अ० १।१५।१। आर्द्रीभावयुक्तेन भक्त्या अन्नेन वा स्वीकरोमि ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (পশবঃ) গাভীরা (সং সং স্রবন্তু) পরস্পর মিলে প্রবাহিত হয়ে আসুক, (অশ্বাঃ) অশ্ব (সম্) মিলিতভাবে/একসাথে আসুক, (পুরুষঃ) পুরুষ (সম, উ) পরস্পর মিলিতভাবে/একসাথে আসুক। (ধান্যস্য) ধান্যের (যা স্ফাতিঃ) যে সমৃদ্ধি রয়েছে তা (সম্) মিলিতভাবে/একসাথে আসুক, (সং স্রাব্যেণ হবিষা) পরস্পর মিলিত হবি দ্বারা (জুহোমি) আমি আহুতি প্রদান করি।

    टिप्पणी

    [সামূহিক যজ্ঞের বর্ণনা রয়েছে, যেখানে দুগ্ধের জন্য গাভী আসবে, অশ্বারোহী সৈনিক আসবে, সর্বসাধারণ পুরুষ এবং স্ত্রী আসবে। প্রভূত ধান্যাদি অন্ন আসবে, আমি পরস্পরের সহযোগিতায় প্রাপ্ত হবি দ্বারা আহুতি প্রদান করি।]

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    मन्त्र विषय

    সঙ্গতিকরণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (পশবঃ) গাভী আদি (সম্) একসাথে, (অশ্বাঃ) ঘোড়া (সম্) একসাথে, (উ) এবং (পূরুষাঃ) সব পুরুষ (সম্ সম্) একসাথে (স্রবন্তু) চলুক/গমন করুক। এবং (যা) যে (ধান্যস্য) ধান্য [অন্নের] (স্ফাতিঃ) স্ফীতি/বৃদ্ধি আছে, [তাও] (সম্=সম্ স্রবতু) একসাথে চলুক। (সংস্রাব্যেণ) কোমলতা যুক্ত (হবিষা) ভক্তি বা অন্নের সাথে [সেই সকলকে] (জুহোমি) আমি গ্রহণ করি ॥৩॥

    भावार्थ

    সকল উপকারী গাভী, অশ্ব আদি পশু এবং মনুষ্য নিয়মপূর্বক একসাথে থাকুক এবং প্রয়ত্নপূর্বক শ্রেষ্ঠ জীবিকা প্রাপ্ত করুক এবং প্রধান পুরুষ তাদের শিক্ষাদান ও ভরণ-পোষণের যথোচিত স্মরণ রাখুক ॥৩॥

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