अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - द्यावापृथिवी, विश्वे देवाः, मरुद्गणः, आपो देवाः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त
57
ऊर्ज॑मस्मा ऊर्जस्वती धत्तं॒ पयो॑ अस्मै पयस्वती धत्तम्। ऊर्ज॑म॒स्मै द्याव॑पृथि॒वी अ॑धातां॒ विश्वे॑ दे॒वा म॒रुत॒ ऊर्ज॒मापः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठऊर्ज॑म् । अ॒स्मै॒ । ऊ॒र्ज॒स्व॒ती॒ इति॑ । ध॒त्त॒म् । पय॑: । अ॒स्मै॒ । प॒य॒स्व॒ती॒ इति॑ । ध॒त्त॒म् । ऊर्ज॑म् । अ॒स्मै । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । अ॒धा॒ता॒म् । विश्वे॑ । दे॒वा: । म॒रुत॑: । ऊर्ज॑म् । आप॑: ॥२९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्जमस्मा ऊर्जस्वती धत्तं पयो अस्मै पयस्वती धत्तम्। ऊर्जमस्मै द्यावपृथिवी अधातां विश्वे देवा मरुत ऊर्जमापः ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्जम् । अस्मै । ऊर्जस्वती इति । धत्तम् । पय: । अस्मै । पयस्वती इति । धत्तम् । ऊर्जम् । अस्मै । द्यावापृथिवी इति । अधाताम् । विश्वे । देवा: । मरुत: । ऊर्जम् । आप: ॥२९.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य अपनी उन्नति करता रहे, इसका उपदेश।
पदार्थ
(ऊर्जस्वती=०–त्यौ) हे अन्नवाली [पिता और माता] दोनों ! (अस्मै) इस [जीव को] (ऊर्जम्) अन्न (धत्तम्) दान करो, (पयस्वती=०–त्यौ) हे दूधवाली तुम दोनों ! (अस्मै) इसको (पयः) दूध वा जल (धत्तम्) दान करो। (द्यावापृथिवी=०–व्यौ) सूर्य और पृथिवी ने (अस्मै) इस [जीव] को (ऊर्जम्) अन्न (अधाताम्) दिया है, (विश्वे) सब (देवाः) दिव्यगुणवाले (मरुतः) दोषनाशक, प्राण अपानादि वायु और (आपः) व्यापनशील जल ने (ऊर्जम्) अन्न [अधुः] [दिया है] ॥५॥
भावार्थ
माता-पिता संतानों को ऐसी शिक्षा देकर उद्यमी करें कि वे खान-पान आदि प्राप्त करके सदा सुखी रहें। सूर्य, भूमि, वायु, जलादि प्राकृतिक पदार्थ खान-पानादि देकर बड़ा उपकार कर रहे हैं। उससे सबको लाभ उठाना चाहिये ॥५॥
टिप्पणी
५–ऊर्जम्। म० ३। अन्नम्। ऊर्जस्वती। ऊर्ज बलप्राणनयोः–असुन्। ततो मतुप्। मस्य वः। तसौ मत्वर्थे। पा० १।४।४९। इति भत्वाद् रुत्वाभावः। विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। हे अन्नवत्यौ। बलवत्यौ मातापितरौ। धत्तम्। दत्तम्। पयः। अ० १।४।१। दुग्धम्। जलम्। अस्मै। जीवाय। पयस्वती। पूर्ववत् सिद्धिः। दुग्धवत्यौ। जलवत्यौ। द्यावापृथिवी। अ० २।१।४। प्रगृह्यत्वाद् अचि प्रकृतिभावः। सूर्यभूमी। अधाताम्। डुधाञ्–लुङ्। दत्तवत्यौ। विश्वे। सर्वे। देवाः। दिव्यगुणयुक्ताः। मरुतः। अ० १।२०।१। अथातो मध्यस्थाना देवगणास्तेषां मरुतः प्रथमगामिनो भवन्ति मरुतो मितराविणो वा मितरोचिनो वा महद् द्रवन्तीति वा–निरु० ११।१३। वायुः। ऋत्विजः। शूराः पुरुषाः। आपः। अ० १।४।३। जलम्। आप्ताः प्रजाः–दयानन्दभाष्ये, य० ६।२७ ॥
विषय
ऊर्जु+पयस्
पदार्थ
१. सन्तान की उत्तमता के लिए माता-पिता को पौष्टिक अन्न व दूध का ग्रहण करना चाहिए। उन्हें पौष्टिक अन्न व दूध की कमी न हो। (ऊर्जस्वती) = हे पौष्टिक अन्नवाले माता पिताओ! आप (अस्मै) = इस उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिए (ऊर्जम्) = पौष्टिक अन्न को (धत्तम्) = धारण करो। (पयस्वती) = उत्तम दूधवाले होते हुए (अस्मै) = इस सन्तान की प्राप्ति के लिए (पयः धत्तम्) = दूध का धारण करो। माता-पिता 'ऊ' व पयस्' को धारण करनेवाले हों। उत्तम ओषधियों का रस ही 'ऊ' है। गवादि पशुओं का दूध 'पयस्' है। इनका प्रयोग करनेवाले माता-पिता उत्तम सन्तान प्राप्त करते हैं। २. अब इस सन्तान के होने पर (द्यावापृथिवी) = धुलोकरूप पिता व पृथिवीलोकरूप माता (अस्मै) = इस सन्तान के लिए (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को (अधाताम्) = धारण कराते हैं, तथा (विश्वेदेवा:) = सूर्यादि सब देव अथवा माता-पिता व आचार्य आदि देव, (मरुतः) = प्राण तथा (आपः) = जल (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति देते हैं। ३. पूर्वार्ध में 'पयस्' के सान्निध्य से ऊर्जु शब्द का अर्थ पौष्टिक अन्न लिया है। माता-पिता 'ऊर्जु व पयस्' का प्रयोग करनेवाले हो, ऐसा होने पर ही सन्तानों का उत्तम होना सम्भव है। उत्तरार्ध में 'ऊर्ज' का भाव बल व प्राणशक्ति लिया गया है। सब देवों की अनुकूलता होने पर बल व प्राणशक्ति प्राप्त होती है।
भावार्थ
माता-पिता ओषधि-रसों व दुग्ध' का सेवन करनेवाले हों। सन्तान देवों की अनुकूलता में जीवन बिताए।
भाषार्थ
(ऊर्जस्वती द्यावापृथिवी) हे बलशाली और प्राणप्रद द्युलोक और पृथिवीलोक ! (अस्मै) इसके लिए (ऊर्जम्) बलकारी तथा प्राणप्रद अन्न (धत्तम्) प्रदान करो, (पयस्वती) हे जलवाली द्यौ: और पृथिवी ! (अस्मै) इसके लिये (पयः) शुद्ध जल ( धत्तम्) प्रदान करो। (द्यावापृथिवी) द्यौः और पृथिवी ने (अस्मै) इसके लिए (ऊर्जम् ) बलकारी और प्राणप्रद अन्न (अधाताम) प्रदान कर दिया है। (विश्वे देवा:) सब देवों ने, (मरुतः) मानसून वायुओं ने, (आपः) तथा अन्य जलों ने (ऊर्जम्) बलशाली और प्राणप्रद अन्न प्रदान कर दिया है।
टिप्पणी
[मरुतः = मानसून वायुएँ (अथर्व० ४।२७।४, ५), तथा समग्र सूक्त २७ । आप:= कूपजल तथा उत्सजल१ (अथर्व० ४।२७।२)। "उत्स" जल पृथिवी से चश्मे रूप में प्राप्त होता है। इन सब जलों के कारण ऊर्ज प्राप्त होता है।] [१. उत्सः = उत्+षणु (दाने), जोकि पृथिवी से ऊर्ध्वंगतिक होकर जल प्रदान करता है।]
विषय
ब्रह्मचर्य और दीर्घ जीवन की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (द्यावापृथिवी) माता और पिता ! (अस्मै) इस कुमार को आप दोनों (ऊर्जस्वती) अन्न और बल धारण करने वाले होकर (ऊर्जं) बल और अन्न का (धत्तं) दान करो और (पयस्वती) युष्टिकारक दूध अन्न रस वाले हो कर (पयः) पुष्टिकारक पदार्थ (धत्तम्) प्रदान करो। (अस्मै) इसमें द्यौ और पृथिवी (ऊर्जं) बल और अन्न रस (अधातां) धारण करावें (विश्वे देवाः) समस्त देव, विद्वान् गण और दिव्य पदार्थ ओर (मरुतः) ज्ञानी पुरुष और व्यवहारविज्ञ व्यापारीगण और (आपः) आप्तजन या समस्त प्रजाएं (ऊर्जम्) पुष्टिकारक बल अन्न प्रदान करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता वहवो देवताः। १ अनुष्टुप्। २, ३, ५-७ त्रिष्टुभः। ४ पराबृहती निचृतप्रस्तारा पंक्तिः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Life and Progress
Meaning
O powers, abundant in food and energy, bring this young man food and energy. O powers abundant in milk and water, bring him milk and water. May heaven and earth bring him food, energy and enlightenment. May all divinities of nature and humanity, the Maruts, tempestuous forces of the wind, and Apah, rolling powers of earthly and spatial oceans bring him energy and enthusiasm.
Translation
O both of you, rich in grains (food, ūrja) give him grains. O both of you, rich in milk (payasvati), give him milk (payas). May heaven and earth give him vigour (ūrja, energy) and may the vital forces (maruts) and the waters (āpah) give strength to him.
Translation
These twain, the heaven and earth endowed with vigor grant him vigor, they rich in milk and juice give him milk and juice, father and mother grant him vigor and grant him vigor all eleven physical forces, airs and waters.
Translation
O Heaven and Earth, acting as father and mother, full of food and vigor, grant this Brahmchari food and vigor Full of nourishing milk grant milk to this Brahmchari. May Heaven and Earth grant him strength and vitality. May all learned persons, merchants and saints grant him strength in finding food !
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५–ऊर्जम्। म० ३। अन्नम्। ऊर्जस्वती। ऊर्ज बलप्राणनयोः–असुन्। ततो मतुप्। मस्य वः। तसौ मत्वर्थे। पा० १।४।४९। इति भत्वाद् रुत्वाभावः। विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। हे अन्नवत्यौ। बलवत्यौ मातापितरौ। धत्तम्। दत्तम्। पयः। अ० १।४।१। दुग्धम्। जलम्। अस्मै। जीवाय। पयस्वती। पूर्ववत् सिद्धिः। दुग्धवत्यौ। जलवत्यौ। द्यावापृथिवी। अ० २।१।४। प्रगृह्यत्वाद् अचि प्रकृतिभावः। सूर्यभूमी। अधाताम्। डुधाञ्–लुङ्। दत्तवत्यौ। विश्वे। सर्वे। देवाः। दिव्यगुणयुक्ताः। मरुतः। अ० १।२०।१। अथातो मध्यस्थाना देवगणास्तेषां मरुतः प्रथमगामिनो भवन्ति मरुतो मितराविणो वा मितरोचिनो वा महद् द्रवन्तीति वा–निरु० ११।१३। वायुः। ऋत्विजः। शूराः पुरुषाः। आपः। अ० १।४।३। जलम्। आप्ताः प्रजाः–दयानन्दभाष्ये, य० ६।२७ ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(ঊর্জস্বতী দ্যাবাপৃথিবী) হে বলশালী ও প্রাণপ্রদ দ্যুলোক এবং পৃথিবীলোক! (অস্মৈ) এর[ব্রহ্মচারীর]জন্য (ঊর্জম্) বলদায়ক এবং প্রাণপ্রদ অন্ন (ঘত্তম্) প্রদান করো, (পয়স্বতী) হে জলসম্পন্ন দ্যৌঃ এবং পৃথিবী ! (অস্মৈ) এর জন্য (পয়ঃ) শুদ্ধ জল (ধত্তম্) প্রদান করো। (দ্যাবাপৃথিবী) দ্যৌঃ এবং পৃথিবী (অস্মৈ) এর জন্য (ঊর্জম্) বলদায়ী এবং প্রাণপ্রদ অন্ন (অধাতাম্) প্রদান করেছে। (বিশ্বে দেবাঃ) সকল দেবগণ, (মরুতঃ) মৌসুমী বায়ুসমূহ, (আপঃ) এবং অন্য জল-সমূহ (ঊর্জম্) বলশালী এবং প্রাণপ্রদ অন্ন প্রদান করেছে।
टिप्पणी
[মরুতঃ=মৌসুমী বায়ু (অথর্ব০ ৪।২৭।৪, ৫), এবং সমগ্র সূক্ত ২৭। আপঃ=কূপজল এবং উৎসজল১ (অথর্ব০ ৪।২৭।২)। "উৎস" জল পৃথিবী থেকে ঝর্ণা রূপে প্রাপ্ত হয়। এই সব জলের কারণে ঊর্জ প্রাপ্ত হয়।] [১. উৎসঃ=উৎ + ষণু (দানে), যা পৃথিবী থেকে ঊর্ধ্বগতি হয়ে জল প্রদান করে।]
मन्त्र विषय
মনুষ্যঃ স্বোন্নতিং কুর্যাদিত্যুপদিশ্যতে
भाषार्थ
(ঊর্জস্বতী=০–ত্যৌ) হে অন্নবান [পিতা ও মাতা] দুজন ! (অস্মৈ) এই [জীবকে] (ঊর্জম্) অন্ন (ধত্তম্) দান করো, (পয়স্বতী=০–ত্যৌ) হে দুগ্ধ-সম্পন্ন তোমরা দুজন ! (অস্মৈ) একে (পয়ঃ) দুধ বা জল (ধত্তম্) দান করো। (দ্যাবাপৃথিবী=০–ব্যৌ) সূর্য ও পৃথিবী (অস্মৈ) এই [জীবকে] (ঊর্জম্) অন্ন (অধাতাম্) প্রদান করেছে, (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) দিব্যগুণযুক্ত (মরুতঃ) দোষনাশক, প্রাণ অপানাদি বায়ু ও (আপঃ) ব্যাপনশীল জল (ঊর্জম্) অন্ন [অধুঃ] [প্রদান করেছে] ॥৫॥
भावार्थ
মাতা-পিতা সন্তানদের এমন শিক্ষা দিয়ে উদ্যমী করুক যাতে, সে ভোজন-পানীয় আদি প্রাপ্ত করে সদা সুখী থাকে। সূর্য, ভূমি, বায়ু, জলাদি প্রাকৃতিক পদার্থ ভোজন-পানীয় দ্বারা অনেক উপকার করছে। তা থেকে সকলকে লাভ প্রাপ্ত করা উচিৎ ॥৫॥
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