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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शापमोचन सूक्त
    65

    यश्च॑ साप॒त्नः श॒पथो॑ जा॒म्याः श॒पथ॑श्च॒ यः। ब्र॒ह्मा यन्म॑न्यु॒तः शपा॒त्सर्वं॒ तन्नो॑ अधस्प॒दम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । च॒ । सा॒प॒त्न: । श॒पथ॑: । जा॒म्या: । श॒पथ॑: । च॒ । य: । ब्र॒ह्मा । यत् । म॒न्यु॒त: । शपा॑त् । सर्व॑म् । तत् । न॒:। अ॒ध॒:ऽप॒दम् ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्च सापत्नः शपथो जाम्याः शपथश्च यः। ब्रह्मा यन्मन्युतः शपात्सर्वं तन्नो अधस्पदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । च । सापत्न: । शपथ: । जाम्या: । शपथ: । च । य: । ब्रह्मा । यत् । मन्युत: । शपात् । सर्वम् । तत् । न:। अध:ऽपदम् ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) और (यः) जो (सापत्नः) वैरियों का किया हुआ (शपथः) शाप [क्रोधवचन] (च) और (यः) जो (जाम्याः) कुलस्त्री का (शपथः) शाप है और (ब्रह्मा) वेदवेत्ता ब्राह्मण (मन्युतः) क्रोध से (यत्) जो कुछ (शापात्) शाप दे [क्रोधवचन कहे], (तत्) वह (सर्वम्) सब (नः) हमारे (अधस्पदम्) उद्योग के नीचे रहे ॥२॥

    भावार्थ

    यदि हमसे कोई वेदविरुद्ध खोटा कर्म हो जावे, जिससे हमारे शत्रु, हमारी स्त्रियाँ, हमारे ब्राह्मणादि विद्वान् लोग क्रुद्ध हों, तब हम पूरा-पूरा प्रयत्न करें कि हमारे शिष्टाचार और वैदिक कर्म से शापमोचन हो जावे, अर्थात् वे सब हमसे पूर्ववत् फिर प्रीति करने लगें ॥२॥

    टिप्पणी

    २–सापत्नः। धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। इति सह+पत गतौ, ऐश्ये च–न प्रत्ययः, सहस्य सः। ततः सम्बन्धे–अण्। सपत्नसम्बन्धी। शात्रवः। शपथः। म० १। आक्रोशः। क्रोधवचनम्। जाम्याः। नियो मिः। उ० ४।४३। इति या गतौ–मि प्रत्ययः, यकास्य जकारः। याति कार्याणि सा जामिः स्वसा कुलस्त्री वा। अथवा। वसिवपियजि०। उ० ४।१२५। इति जम भक्षणे गतौ च–इञ्, अथवा। जन–इञ्। जामिरन्येऽस्यां जनयन्ति जामपत्यं जमतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–नि० ३।६। जाम्यतिरेकनाम बालिशस्य वासमानजातीयस्य वोपजनः–निरु० ४।२०। बालिशस्य मूर्खस्य, अथवा असमानजातीयस्य असपिण्डस्य। ब्रह्मा। अ० २।६।२। वेदवेत्ता। ब्राह्मणः। मन्युतः। पञ्चम्यास्तसिल्। पा० ५।३।७। इति तसिल्। क्रोधात्। नः। अस्माकम्। अधस्पदम्। अधःशिरसी पदे। पा० ८।३।४७। इति विसर्गस्य सत्वम्। नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः। पा० ३।१।१३४। इति पद स्थैर्ये, गत्यां च–अच्। पदम्=व्यवसायः, पादः, चिह्नम्–इति शब्दकल्पद्रुमे। पदस्य व्यवसायस्य उद्योगस्य अधस्ताद् अधोभागे, असमर्थं भवतु ॥

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    विषय

    तीन शाप

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार मैं तो शपथ आदि की भाषा का प्रयोग करूँ ही नहीं (च) = और (यः सापत्न: शपथ:) = जो शत्रुओं से दिया गया शाप है (यः च) = और जो (जाम्या:) = किसी भी कुलीन स्त्री व बहिन आदि से दिया गया (शपथ:) = शाप है या कभी (यत्) = जो (ब्रह्मा) = कोई ज्ञानी पुरुष (मन्युतः) = हमारी गलती पर क्षणिक क्रोधावेश से (शपात्) = शाप देता है, (तत् सर्वम्) = वह सब (नः अधस्पदम्) = हमारे पौवों के तले हो, वह हमारे पाँव से कुचला जाए। इसका हमपर कोई प्रभाव न हो। हम इसके कारण उत्तेजित न हो उठे। २.शत्रुओं को दिये गये शाप को हम स्वाभाविक ही समझें। जब वह हमारा शत्रु है, तो अशुभ कहेगा ही। स्त्री किसी कारण से कुद्ध हो कुछ कह बैठती है तो वह भी सहना ही चाहिए। ब्रह्मा ने जो कुछ कठोर कह दिया तो आत्मनिरीक्षण २ में 'पसलियों को भी तोड़ दें'। इन शब्दों का प्रयोग विचित्र-सा लगता है, 'परन्तु शान्ति का भाव निर्बलता नहीं है। इसके स्पष्टीकरण के लिए यह आवश्यक ही है। विवशता में बल प्रयोग आवश्यक हो जाता है, कटु शब्दों का प्रयोग आवश्यक नहीं है। मधुरता और निर्बलता पर्यायवाची नहीं है।

     

    भावार्थ

    हम क्रोध में अपशब्दों का उत्तर अपशब्दों में न दें। हम दुद् िपुरुष का पराभव करनेवाले हों।

    विशेष

    इस सूक्त में हदय को उत्तम बनाकर गाली का उत्तर गाली में न देने का विधान है। शान्त रहने का प्रयत्न ही ठीक है। शान्ति में ही वास्तविक शक्ति है। अब यह 'अथर्वा' अपना ठीक से परिपाक करता हुआ भृगु बनता है [भ्रस्ज पाके]।अपना ठीक परिपाक करता हुआ आङ्गिरस' होता है। इसका एक-एक अंग रसमय होता है। यह शरीर को एकदम नीरोग बनाने में समर्थ होता है। इसकी आराधना निम्न प्रकार से है|

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    भाषार्थ

    (यः च) और जो (सापत्न:) शत्रु द्वारा हमारे प्रति किया गया (शपथः) शपथ है, (यः शपथः च) और जो (जाम्या:) गृहोत्पन्न किसी स्त्री द्वारा हमारे प्रति किया गया शपथ है, (ब्रह्मा यत् मन्युतः शपात्) वेदविद् ने कुपित होकर जो शाप दिया है, (तत् सर्वम् ) वह सब (नः) हमारे ( अधः पदम) पैरों के नीचे हो, पैरों तले कुचल दिया जाय ।

    टिप्पणी

    [शपथ और शाप में भेद है (निरुवत, शपथाभिशापौ, ७।१।३)। शपथ स्वयम् ली जाती है और शाप दूसरे को दिया जाता है। सूक्त में शपथ और शाप दोनों का कथन हुआ है। ब्रह्मा द्वारा शाप का कथन हुआ है, और सपत्नों द्वारा शपथों का।]

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    विषय

    सहनशीलता का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो (च) भी (सापत्नः) द्वेष करने हारे पुरुषों का हमारे प्रति (शपथः) निन्दाजनक वचन हैं और (जाम्याः) स्त्रियों, भगिनियों और समाजबन्धुओं के (यः च) भी जो (शपथः) निन्दावचन गाली आदि हों, (मन्युतः) क्रोध के कारण (ब्रह्मा) वेद का जानने हारा विद्वान् भी ( यत् ) जो कुछ हमें (शपात्) बुरा भला कहता है (तत्) वह (सर्व) सब कुछ (नः) हमारे (अधः पदम्) चरण के नीचे कुचलसा जाय, हम पर इसका प्रभाव न रहे, हम उसकी उपेक्षा करें, उसको सहन करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । वनस्पतिर्देवता, दूर्वास्तुतिः । १ भुरिक् । २, ३,५ अनुष्टुभौ । ४ विराडुपरिष्टाद् बृहती। पञ्चर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil

    Meaning

    Whatever the words and vibrations of hate and anger, curse of execrations directed to us by rivals, enemies or our friends and relatives, usual or exceptional, or whatever the adjurations even from knowledgeable persons out of anger or frustration, let all that be under our feet, let us be above all that.

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    Translation

    The cursed disease, that has come from the evil company of my rivals, and the cursed disease that has come from women, and the cursed disease that might have come from a wrathful physician, may all that be overcome by us.

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    Translation

    Let us tread down all sorts of angers which are caused by enemies, caused by women, caused by learned man due to anger.

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    Translation

    The rebuke of a rival, each rebuke of a female relative, rebuke uttered by an angry knower of the Vedas, all these we tread beneath our feet. [1]

    Footnote

    [1] Tread beneath feet: Remain indifferent to, or unmindful of. Neglect them; and don’t allow them touch us. We never deserve them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २–सापत्नः। धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। इति सह+पत गतौ, ऐश्ये च–न प्रत्ययः, सहस्य सः। ततः सम्बन्धे–अण्। सपत्नसम्बन्धी। शात्रवः। शपथः। म० १। आक्रोशः। क्रोधवचनम्। जाम्याः। नियो मिः। उ० ४।४३। इति या गतौ–मि प्रत्ययः, यकास्य जकारः। याति कार्याणि सा जामिः स्वसा कुलस्त्री वा। अथवा। वसिवपियजि०। उ० ४।१२५। इति जम भक्षणे गतौ च–इञ्, अथवा। जन–इञ्। जामिरन्येऽस्यां जनयन्ति जामपत्यं जमतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः–नि० ३।६। जाम्यतिरेकनाम बालिशस्य वासमानजातीयस्य वोपजनः–निरु० ४।२०। बालिशस्य मूर्खस्य, अथवा असमानजातीयस्य असपिण्डस्य। ब्रह्मा। अ० २।६।२। वेदवेत्ता। ब्राह्मणः। मन्युतः। पञ्चम्यास्तसिल्। पा० ५।३।७। इति तसिल्। क्रोधात्। नः। अस्माकम्। अधस्पदम्। अधःशिरसी पदे। पा० ८।३।४७। इति विसर्गस्य सत्वम्। नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः। पा० ३।१।१३४। इति पद स्थैर्ये, गत्यां च–अच्। पदम्=व्यवसायः, पादः, चिह्नम्–इति शब्दकल्पद्रुमे। पदस्य व्यवसायस्य उद्योगस्य अधस्ताद् अधोभागे, असमर्थं भवतु ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (চ) এবং (য়ঃ) যাহা (সাপত্রঃ) শত্রু দ্বারা কৃত (শপথঃ) পাপ অর্থাৎ ক্রোধ বচন (চ) এবং (য়ঃ) যাহা (জাভ্যাঃ) কুলস্ত্রীর (শপথঃ) শাপ ও (ব্রহ্মা) বেদবেত্তা ব্রাহ্মণ (মন্যুতঃ) ক্রোধ হইতে (য়ৎ) যাহা কিছু (শপাৎ) শাপ দেয় (তৎ) সে (সর্বং) সব (নঃ) আমাদের (অধস্পদম্) উদ্যোগের নীচে থাকুক।।

    भावार्थ

    শত্রুদের ক্রোধ বচন, কুলস্ত্রীদের ক্রোধ বচন এবং বেদজ্ঞ ব্রাহ্মণদের ক্রোধ বচন সকলই আমাদের উদ্যোগের নিকট পরাভূত থাকুক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়মচ সাপত্রঃ শপথো জাম্যাঃ শপথশ্চ য়ঃ। ব্রহ্মা য়ন্মন্যুতঃ শপাৎসবং তন্নো অধষ্পদম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। বনষ্পতি (দূর্বা)। অনুষ্টুপ্

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    भाषार्थ

    (যঃ চ) এবং যে (সাপত্নঃ) শত্রু দ্বারা আমাদের প্রতি কৃত (শপথঃ) শপথ আছে, (যঃ শপথঃ চ) এবং যে (জাম্যাঃ) গৃহোৎপন্ন কোনো স্ত্রী দ্বারা আমাদের প্রতি কৃত শপথ রয়েছে, (ব্রহ্মা যৎ মন্যুতঃ শপাৎ) বেদবিদ্ কুপিত হয়ে যে অভিশাপ দিয়েছে, (তৎ সর্বম্) সেই সব (নঃ) আমাদের (অধঃ পদম) পায়ের নীচে হোক, পদদলিত হোক।

    टिप्पणी

    [শপথ এবং অভিশাপের মধ্যে পার্থক্য রয়েছে (নিরুক্ত, শপথাভিশাপৌ, ৭।১।৩)। শপথ স্বয়ং নেওয়া হয় এবং অভিশাপ অপরকে দেওয়া হয়। সূক্তে শপথ এবং অভিশাপ দুটোরই কথন হয়েছে। ব্রহ্মা দ্বারা অভিশাপের বিবৃতি হয়েছে, এবং সপত্নদের দ্বারা শপথের।]

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    मन्त्र विषय

    রাজধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (চ) এবং (যঃ) যে (সাপত্নঃ) শত্রুদের দ্বারা কৃত (শপথঃ) অভিশাপ [ক্রোধবচন] (চ)(যঃ) যে (জাম্যাঃ) কুলস্ত্রীর (শপথঃ) অভিশাপ আছে এবং (ব্রহ্মা) বেদবেত্তা ব্রাহ্মণ (মন্যুতঃ) ক্রোধ দ্বারা (যৎ) যা কিছু (শাপাৎ) অভিশাপ দেয়/দেবে [ক্রোধবচন বলে/বলবে], (তৎ) তা (সর্বম্) সব (নঃ) আমাদের (অধস্পদম্) উদ্যোগের নীচে থাকে/থাকুক ॥২॥

    भावार्थ

    যদি আমাদের দ্বারা কোনো বেদবিরুদ্ধ নিকৃষ্ট কর্ম হয়ে যায়, যার দ্বারা আমাদের শত্রু, আমাদের স্ত্রী, আমাদের ব্রাহ্মণাদি বিদ্বানগণ ক্রুদ্ধ হয়, তবে আমরা যেন পূর্ণভাবে চেষ্টা করি, যাতে আমাদের শিষ্টাচার ও বৈদিক কর্ম দ্বারা শাপমোচন হয়ে যায়, অর্থাৎ তাঁরা সবাই আমাদের প্রতি পূর্ববৎ আবার প্রীতি করে ॥২॥

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