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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 109 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 109/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - सूक्त-१०९
    59

    ता अ॑स्य॒ नम॑सा॒ सहः॑ सप॒र्यन्ति॒ प्रचे॑तसः। व्र॒तान्य॑स्य सश्चिरे पु॒रूणि॑ पू॒र्वचि॑त्तये॒ वस्वी॒रनु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता: । अ॒स्य॒ । नम॑सा । सह॑ । स॒प॒र्यन्ति॑ । प्रऽचे॑तस: ॥ व्र॒तानि॑ । अ॒स्य॒ । स॒श्चि॒रे॒ । पु॒रूणि॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये । वस्वी॑: । अनु॑ । स्व॒ऽराज्य॑म् ॥१०९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति प्रचेतसः। व्रतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीरनु स्वराज्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता: । अस्य । नमसा । सह । सपर्यन्ति । प्रऽचेतस: ॥ व्रतानि । अस्य । सश्चिरे । पुरूणि । पूर्वऽचित्तये । वस्वी: । अनु । स्वऽराज्यम् ॥१०९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 109; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सभापति और सभासदों के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रचेतसः) उत्तम ज्ञानवाली (ताः) वे [प्रजाएँ] (तमसा) आदर के साथ (अस्य) उस [सभापति] के (सहः) बल का (सपर्यन्ति) सेवन करती हैं। (वस्वीः) बसनेवाली [प्रजाएँ] (स्वराज्यम् अनु) स्वराज्य [अपने राज्य] के पीछे (पूर्वचित्तये) पूर्वजों का ज्ञान पाने के लिये (अस्य) इस [सभापति] के (पुरूणि) बहुत से (व्रतानि) नियमों को (सश्चिरे) प्राप्त होती हैं ॥३॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग स्वराज्य के साथ-साथ राजधर्म को मानकर प्रजा को शान्त रक्खें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ताः) प्रजाः (अस्य) सभापतेः (नमसा) सत्कारेण (सहः) बलम् (सपर्यन्ति) सेवन्ते (प्रचेतसः) प्रकृष्टज्ञानवत्यः (व्रतानि) नियमान् (अस्य) (सश्चिरे) सश्च गतौ। गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (पुरूणि) बहूनि (पूर्वचित्तये) चिती संज्ञाने-क्तिन्। पूर्वेषां ज्ञानप्राप्तये। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    नम्रतायुक्त बल

    पदार्थ

    १. (ता:) = वे इन्द्रियाँ [गौर्यः] (प्रचेतसः) = प्रकृष्ट ज्ञानवाले (अस्य) = इस इन्द्र [जीवात्मा] के (सह:) = बल को (नमसा) = नमन से-विनीतता के द्वारा (सपर्यन्ति) = पूजित करती हैं। सोम का पान करनेवाली इन्द्रियाँ इन्द्र को सबल बनाती है और इसके बल को विनीतता से युक्त करती हैं। २. ये इन्द्रियाँ (अस्य) = इस इन्द्र के (पुरूणि) = पालन व पूरणात्मक (व्रतानि) = व्रतों को (सश्चिरे) = सेवित करती हैं। सोमपान करनेवाली इन्द्रियों के द्वारा ही हमारे सब पुण्यकर्म पूर्ण हुआ करते हैं। २. ये इन्द्रियाँ (पूर्वाचितये) = सृष्टि से पूर्व वर्तमान प्रभु के ज्ञान के लिए होती हैं। इनके द्वारा सृष्टि के पदार्थों में प्रभु की महिमा का दर्शन होकर प्रभु की सत्ता में हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है। इसप्रकार प्रभुसत्ता में विश्वास कराकर (वस्वी:) = ये इन्द्रियों उत्तम निवास को करानेवाली होती हैं। यह उत्तम निवास (स्वराज्यम् अनु) = आत्मशासन के अनुपात में ही होता है।

    भावार्थ

    सोमपान करनेवाली इन्द्रियों हमें नम्रयुक्त बल प्राप्त कराती हैं। हमें व्रतमय जीवनवाला बनाकर प्रभु-दर्शन के योग्य बनाती हैं। गौरी इन्द्रियोंवाला व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ाकर उस ज्ञान को ही अपनी शरण बनाता है, अत: 'श्रुतकक्ष' कहलाता है-ज्ञान है शरण-स्थान [Hiding place] जिसका। यह उत्तम शरण स्थानवाला 'सुकक्ष' है। ये श्रुतकक्ष ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (अस्य) इस उपासक की (प्रचेतसः) ज्ञानप्रद (ताः) वे शुक्ल अर्थात् सात्त्विक चित्तवृत्तियाँ, (नमसा) परमेश्वर को नमस्कार करती हुई, (सहः) उपासक को साहस तथा शक्ति (सपर्यन्ति) प्रदान करती हैं, और (अस्य) इस उपासक के (पुरूणि व्रतानि) नानाविध व्रतों को (सश्चिरे) प्रगति देती हैं, और इसके (पूर्वचित्तये) प्रातिभ-ज्ञानों के लिए समर्थ होती हैं। (वस्वीरनु০) शेष पूर्व मन्त्र २ के अनुसार।

    टिप्पणी

    [सश्चिरे=सश्चति गतिकर्मा (निघं০ २.१४)। पूर्वचित्ति=घटनाओं का पूर्वज्ञान, जिसे कि “प्रातिभज्ञान” कहते हैं।]

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    विषय

    राजा, परमेश्वर।

    भावार्थ

    (ताः) वे प्रजाएं (प्रचेतसः) उत्कृष्ट ज्ञानवान् होकर (अस्य) इस अपने राष्ट्रपति के (सहः) शत्रु पराजयकारी बल का (नमसा) आदर से या अन्नादि पदार्थों से (सपर्यन्ति) संस्कार करती हैं और (अस्य) इसके बने (पुरुणि) बहुतसे प्रजापालन सम्बन्धी (व्रतानि) नियमों को (स्वराज्यम् अनुं वस्वीः) स्वायत्त राज्य शासन के द्वारा ऐश्वर्यवान् होकर (पूर्वचित्तये) अपने आप पूर्ण ज्ञानवान् या पूरी रीति से सचेत और उत्तरदायी होने के लिये (सश्चिरे) पालन करती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतम ऋषिः। इन्द्रो देवता। ककुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Those forces, noble and intelligent, serve and augment the courage and power of this Indra with food, energy and armaments and, as citizens of the land, as a matter of duty to the freedom and discipline of the republic, they predictably join many dedicated projects and programmes of his in anticipation of success.

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    Translation

    These people conscious of all affairs with great obeisance praise the power of this Almighty Divinity. For attaining the perfect knowledge or the knowledge of previous existence follow His many laws and having spiritual wealth become happy and delighted after acquiring blessedness or self-freedom.

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    Translation

    These people conscious of all affairs with great obeisance praise the power of this Almighty Divinity. For attaining the perfect knowledge or the knowledge of previous existence follow His many laws and having spiritual wealth become happy and delighted after acquiring blessedness or self-freedom.

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    Translation

    Our speeches may sing the praises of the Created Universe, regimes or sacrifice, for the Exhilarating Mighty God, king or soul. Let the learned persons or mechanics worship the splendorous God, king or soul.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ताः) प्रजाः (अस्य) सभापतेः (नमसा) सत्कारेण (सहः) बलम् (सपर्यन्ति) सेवन्ते (प्रचेतसः) प्रकृष्टज्ञानवत्यः (व्रतानि) नियमान् (अस्य) (सश्चिरे) सश्च गतौ। गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (पुरूणि) बहूनि (पूर्वचित्तये) चिती संज्ञाने-क्तिन्। पूर्वेषां ज्ञानप्राप्तये। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সভাপতিসভ্যজনলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (প্রচেতসঃ) উত্তম জ্ঞানসম্পন্ন (তাঃ) তাঁরা [প্রজাগণ] (তমসা) আদরপূর্বক (অস্য) সেই [সভাপতির] (সহঃ) বল (সপর্যন্তি) সেবন/উপভোগ করে। (বস্বীঃ) নিবাসকারী [প্রজাগণ] (স্বরাজ্যম্ অনু) স্বরাজ্যের [নিজ রাজ্যের] অনুলক্ষ্যে (পূর্বচিত্তয়ে) পূর্বপুরুষদের জ্ঞান লাভ করার জন্য (অস্য) এই [সভাপতির] (পুরূণি) বহু (ব্রতানি) নিয়ম (সশ্চিরে) প্রাপ্ত হয় ॥৩॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ স্বরাজ্যের পাশাপাশি রাজধর্ম পালন করে প্রজাদের শান্ত রাখুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (অস্য) এই উপাসকের (প্রচেতসঃ) জ্ঞানপ্রদ (তাঃ) সেই শুক্ল অর্থাৎ সাত্ত্বিক চিত্তবৃত্তি, (নমসা) পরমেশ্বরকে নমস্কার করে, (সহঃ) উপাসককে সাহস তথা শক্তি (সপর্যন্তি) প্রদান করে, এবং (অস্য) এই উপাসকের (পুরূণি ব্রতানি) নানাবিধ ব্রত-সমূহকে (সশ্চিরে) প্রগতি দেয়, এবং উপাসকের (পূর্বচিত্তয়ে) প্রাতিভ-জ্ঞানের জন্য সমর্থ হয়। (বস্বীরনু০) শেষ পূর্ব মন্ত্র ২ এর অনুসারে।

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