अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 117/ मन्त्र 2
यस्ते॒ मदो॒ युज्य॒श्चारु॒रस्ति॒ येन॑ वृ॒त्राणि॑ हर्यश्व॒ हंसि॑। स त्वामि॑न्द्र प्रभूवसो ममत्तु ॥
स्वर सहित पद पाठय: । ते॒ । मद॑: । युज्य॑: । चारु॑: । अस्ति॑ । येन॑ । वृ॒त्राणि॑ । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । हंसि॑ ॥ य: । त्वाम् । इ॒न्द्र॒ । प्र॒भु॒व॒सो॒ इति॑ प्रभुऽवसो । म॒म॒त्तु॒ ॥११७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते मदो युज्यश्चारुरस्ति येन वृत्राणि हर्यश्व हंसि। स त्वामिन्द्र प्रभूवसो ममत्तु ॥
स्वर रहित पद पाठय: । ते । मद: । युज्य: । चारु: । अस्ति । येन । वृत्राणि । हरिऽअश्व । हंसि ॥ य: । त्वाम् । इन्द्र । प्रभुवसो इति प्रभुऽवसो । ममत्तु ॥११७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(हर्यश्व) हे फुरतीले घोड़ोंवाले ! (प्रभूवसो) हे समर्थ बसानेवाले [वा बहुत धनवाले] (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (यः) जो [तत्त्व रस] (ते) तेरे लिये (युज्यः) योग्य और (चारुः) सुन्दर (मदः) आनन्दकारी (अस्ति) है, और (येन) जिस [तत्त्व रस] से (वृत्राणि) शत्रुदलों को (हंसि) तू मारता है, (सः) वह [तत्त्वरस] (त्वाम्) तुझको (ममत्तु) आनन्द देवे ॥२॥
भावार्थ
राजा उचित उपायों से शत्रुओं को मारकर प्रजा का आनन्द बढ़ावे ॥२॥
टिप्पणी
२−(यः) तत्त्वरसः (ते) तुभ्यम् (मदः) हर्षकरः (युज्यः) युज-क्यप् योग्यः (चारुः) समीचीनः (अस्ति) (येन) तत्त्वरसेन (वृत्राणि) शत्रुदलानि (हर्यश्व) म० १। प्रापणशीलाश्वयुक्त (हंसि) नाशयसि (सः) तत्त्वरसः (त्वाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्रभूवसो) हे समर्थवासयितः। बहुधन (ममत्तु) मादयतु। हर्षयतु ॥
विषय
'मद-युग्य-चारु' सोम
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (प्रभूवसो) = प्रभूत ज्ञानेश्वर्य के स्वामिन् ! (स:) = वह सोम शरीर में सुरक्षित हुआ-हुआ (त्वाम्) = तुझे (ममत्तु)= आनन्दित करे। २. वह सोम तुझे आनन्दित करे (य:) = जो (ते) = तेरे लिए (मदा) = उल्लास को पैदा करनेवाला है, (युज्य:) = तुझे प्रभु से मिलानेवाला है तथा (चारु: अस्ति) = जीवन को सुन्दर-ही-सुन्दर बनानेवाला है और हे (हर्यश्व) = कमनीय इन्द्रियाश्वोंवाले जीव! वह सोम तुझे आनन्दित करे (येन) = जिसके द्वारा तू (वृत्राणि) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को (हंसि) = विनष्ट करता है।
भावार्थ
शरीर में सुरक्षित सोम उल्लास का जनक है, हमें प्रभु से मिलानेवाला है, जीवन को सुन्दर बनानेवाला है। इस सोम के द्वारा वासनाओं का विनाश होता है।
भाषार्थ
(हर्यश्व) हे प्रत्याहार-सम्पन्न इन्द्रियाश्वों के स्वामी! (यः) जो (मदः) प्रसन्न करनेवाला भक्तिरस (ते युज्यः) आपके योग्य, तथा (चारुः) आपके लिए रुचिकर (अस्ति) है, (येन) जिसके द्वारा कि आप (वृत्राणि) हमारे पापों का (हंसि) हनन करते हैं, (प्रभूवसो) हे प्रभूत सम्पत्तिशाली, (इन्द्र) परमेश्वर! (सः) वह भक्तिरस (त्वाम्) आपको (ममत्तु) प्रसन्न करे।
विषय
राजा, आत्मा।
भावार्थ
हे (हर्यश्व) वेगवान् अश्वों वाले ! (यः) जो (ते) तेरा (युज्यः) परस्पर संयोग, सत्संग से प्राप्त होने वाला (चारुः) उत्तम (मदः) हर्ष या तृप्तिकर बल (अस्ति) है और (येन) जिससे तू (वृत्राणि) विघ्नकारी शत्रुओं को (हंसि) विनाश करता है हे (प्रभूवसो) अधिक ऐश्वर्यवाले ! हे (इन्द) ऐश्वर्यवन् ! (सः) वह (त्वाम्) तुझको (ममत्तु) आनन्द प्रसन्न रखखे। अध्यात्म में—(यः ले युज्यः चारुः मदः) जो तेरा योग समाधि से उत्पन्न व्यापक आनन्द है, जिससे हे (हर्यश्व) दुःखहारी प्राणों वाले जीव ! तू (वृत्राणि हंसि) बाधक तामस कारणों को विनष्ट करता है। (प्रभूवसो) अधिक सामर्थ्यवान् शरीरवासिन् जीव ! वह तुझे सदा आनन्दित रक्खे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता विराजः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
That beauty and joy of the governance of your dominion which is agreeable, inspiring and worthy of support and participation, and by which joy, O controller of the dynamic forces of the people, you break the negative forces of darkness, sin and crime, want and ignorance like the sun breaking dark clouds for showers, may that joy, O sovereign lord of power for settlement and prosperity, give you the real pleasure of creative governance and administration.
Translation
O mighty ruler, O master of plentiful riches, let this juice suits to you which is nice and gladdening for you, and by when you kill the foes; make you cheerful.
Translation
O mighty ruler, O master of plentiful riches, let this juice suits to you which is nice and gladdening for you, and by which you kill the foes, make you cheerful.
Translation
O fortunate king, thoroughly understand this good instruction of mine (God’s) which the best priest preaches to thee in the form of a good sermon. Even in the assembly-hall faithfully follow these Vedic instructions.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यः) तत्त्वरसः (ते) तुभ्यम् (मदः) हर्षकरः (युज्यः) युज-क्यप् योग्यः (चारुः) समीचीनः (अस्ति) (येन) तत्त्वरसेन (वृत्राणि) शत्रुदलानि (हर्यश्व) म० १। प्रापणशीलाश्वयुक्त (हंसि) नाशयसि (सः) तत्त्वरसः (त्वाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्रभूवसो) हे समर्थवासयितः। बहुधन (ममत्तु) मादयतु। हर्षयतु ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(হর্যশ্ব) হে দ্রুতগামী অশ্বসম্পন্ন! (প্রভূবসো) হে সক্ষম বসতি স্থাপনকারী [বা বহু ধনবান] (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ রাজা] (যঃ) যা [তত্ত্ব রস] (তে) তোমার জন্য (যুজ্যঃ) যোগ্য এবং (চারুঃ) সুন্দর (মদঃ) আনন্দকারী (অস্তি) হয়, এবং (যেন) যা [তত্ত্ব রস] দ্বারা (বৃত্রাণি) শত্রুদের (হংসি) তুমি হত্যা করো, (সঃ) সেই [তত্ত্বরস] (ত্বাম্) তোমাকে (মমত্তু) আনন্দ দেবে ॥১১৭.২॥
भावार्थ
রাজা যথোপযুক্ত উপায়ে শত্রুদের বধ করে প্রজাদের আনন্দ/সুখ বৃদ্ধি করুক ॥২॥
भाषार्थ
(হর্যশ্ব) হে প্রত্যাহার-সম্পন্ন ইন্দ্রিয়াশ্বের স্বামী! (যঃ) যে (মদঃ) প্রসন্নকারী ভক্তিরস (তে যুজ্যঃ) আপনার যোগ্য, তথা (চারুঃ) আপনার জন্য রুচিকর (অস্তি) হয়, (যেন) যার দ্বারা আপনি (বৃত্রাণি) আমাদের পাপের (হংসি) হনন করেন, (প্রভূবসো) হে প্রভূত সম্পত্তিশালী, (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (সঃ) সেই ভক্তিরস (ত্বাম্) আপনাকে (মমত্তু) প্রসন্ন করে/করুক।
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