अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 117/ मन्त्र 3
बोधा॒ सु मे॑ मघव॒न्वाच॒मेमां याँ ते॒ वसि॑ष्ठो॒ अर्च॑ति॒ प्रश॑स्तिम्। इ॒मा ब्रह्म॑ सध॒मादे॑ जुषस्व ॥
स्वर सहित पद पाठबोध॑ ।सु । मे॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । वाच॑म् । आ । इ॒माम् । याम् । ते॒ । वसि॑ष्ठ: । अर्च॑ति । प्रऽश॑स्तिम् ॥ इ॒मा । ब्रह्म॑ । स॒ध॒मादे॑ । जु॒ष॒स्व॒ ॥११७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
बोधा सु मे मघवन्वाचमेमां याँ ते वसिष्ठो अर्चति प्रशस्तिम्। इमा ब्रह्म सधमादे जुषस्व ॥
स्वर रहित पद पाठबोध ।सु । मे । मघऽवन् । वाचम् । आ । इमाम् । याम् । ते । वसिष्ठ: । अर्चति । प्रऽशस्तिम् ॥ इमा । ब्रह्म । सधमादे । जुषस्व ॥११७.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(मघवन्) हे महाधनी राजन् ! (याम्) जिस (प्रशस्तिम्) उत्तम [वाणी] को (ते) तुझे (वसिष्ठः) वसिष्ठ [अति श्रेष्ठ विद्वान्] (अर्चति) समर्पण करता है, (मे) मेरी (इमाम्) इस (वाचम्) वाणी को, (सु) भले प्रकार (आ) सामने से (बोध) तू समझ, और (इमा) इन (ब्रह्म) वेदवचनों का (सधमादे) मिलकर हर्ष मनाने के स्थान उत्सव में (जुषस्व) सेवन कर ॥३॥
भावार्थ
राजा को योग्य है कि बड़े-बड़े विद्वानों की श्रेष्ठ वाणी और वेदवचनों को यथावत् मानकर उन्नति करे ॥३॥
टिप्पणी
३−(बोध) बुध्यस्व। जानीहि (सु) सुष्ठु (मे) मम (मघवन्) हे धनवन् (वाचम्) वाणीम् (आ) आभिमुख्येन (इमाम्) (याम्) (ते) तुभ्यम् (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुः श्रेष्ठो विद्वान् (अर्चति) समर्पयति (प्रशस्तिम्) उत्तमाम् (इमा) इमानि (ब्रह्म) ब्रह्माणि वेदज्ञानानि (सधमादे) सहहर्षस्थाने (जुषस्व) सेवस्व ॥
विषय
वसिष्ठ का प्रभु-अर्चन
पदार्थ
१. हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो। (मे) = मेरी (इमां वाचम्) = इस स्तुतिवाणी को (सु) = अच्छी प्रकार (आ) = सर्वथा (बोध) = जानिए (य:) = जिस (ते) = आपकी (प्रशस्तिम्) = स्तुतिरूप वाणी को (वसिष्ठः) = वशियों में श्रेष्ठ अथवा उत्तम निवासवाला यह उपासक (अर्चति) = पूजित करता है, अर्थात् मुझे आप इसप्रकार ज्ञान दीजिए कि मैं वसिष्ठ बनकर आपका स्तवन करता हुआ आपका पूजन करूँ। २. हे प्रभो! (इमा ब्रह्म) = इन ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुतिवाणियों को (सधमादे) = मिलकर आनन्दित होने के इस हृदयरूप स्थान में (जुषस्व) = प्रीतिपूर्वक सेवन कीजिए। हम हृदय में आपका ध्यान करते हुए इन ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुति-वाणियों में आनन्द का अनुभव करें।
भावार्थ
हम वसिष्ठ बनकर ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुति-वाणियों द्वारा हृदय में प्रभु का ध्यान करें। ये स्तुतिवाणियाँ हमें प्रभु का प्रिय बनाएँ। यह स्तोता सोम-रक्षण द्वारा 'भर्ग:' बनता है तथा निरन्तर प्रभु की ओर चलता हुआ 'मेध्यातिथि' होता है। अगले सूक्त में १-२ का ऋषि 'भर्गः' है। ३-४ का मेध्यातिथि:' -
भाषार्थ
(मघवन्) हे सम्पत्ति-शाली परमेश्वर! (मे) मेरी (इमाम्) इस (वाचम्) स्तुति-वाणी को (सु बोध) ठीक प्रकार जानिए, (याम्) जिस (प्रशस्तिम्) प्रशस्तवाणी को कि (वसिष्ठः) सर्वश्रेष्ठ उपासक (ते) आपके लिए (अर्चति) अर्चना में भेंट कर रहा है। (सधमादे) उपासक और आपकी पारस्परिक प्रसन्नता में (इमा ब्रह्म) इन ब्रह्मस्तावक स्तुति वाणियों का (जुषस्व) आप प्रीतिपूर्वक सेवन कीजिए।
टिप्पणी
[वसिष्ठः=‘यद्वै नु श्रेष्ठः तेन वसिष्ठः’ (शत০ ब्रा০ ८.१.१.६)।]
विषय
राजा, आत्मा।
भावार्थ
हे (मघवन्) ऐश्वर्यवान् ! (यां) जिस (प्रशस्तिम्) उत्तम शासन सम्बन्धी वाणी या शिक्षा को (वसिष्ठः) सबसे श्रेष्ठ पुरोहित विद्वान् (अर्चति) तेरे लिये उपदेश करता है उसका और (इमा) इस (मे) मेरी (वाचम्) उत्तम वाणी को भी (सुबोध) उत्तम रीति से जान और (सधमादे) एकत्र सुख अर्थात् हर्ष अनुभव करने के स्थान सभा भवन में भी (इमा ब्रह्म) इन ब्रह्म-वेदवचनों को (जुषस्व) प्रेम से सेवन कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता विराजः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
O lord of honour, power and magnificence, pray know well this voice of mine which the sage well settled at peace offers you in adoration of your glory. And accept, honour and apply these holy words of vision and wisdom in practice in the assembly house of the wise for governance and administration.
Translation
O wealthy one you, in my front know that my praise through which the man of self-control and austerity praises you. You accept these praises in the place where we get together.
Translation
O wealthy one you, in my front know that my praise through which the man of self-control and austerity praises you. You accept these praises in the place where we get together.
Translation
O Brave, Mighty Lord of Protection and Destruction, Master of All Power and Energy, invest us with all means of peaceful existence through all Thy means of protection and safety. We certainly follow Thee, the Glorious One, capable of giving wealth and riches, like a distributor of fortunes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(बोध) बुध्यस्व। जानीहि (सु) सुष्ठु (मे) मम (मघवन्) हे धनवन् (वाचम्) वाणीम् (आ) आभिमुख्येन (इमाम्) (याम्) (ते) तुभ्यम् (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुः श्रेष्ठो विद्वान् (अर्चति) समर्पयति (प्रशस्तिम्) उत्तमाम् (इमा) इमानि (ब्रह्म) ब्रह्माणि वेदज्ञानानि (सधमादे) सहहर्षस्थाने (जुषस्व) सेवस्व ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবন্) হে মহাধনী রাজন্! (যাম্) যে (প্রশস্তিম্) উত্তম [বাণী] (তে) তোমাকে (বসিষ্ঠঃ) বসিষ্ঠ [অতি শ্রেষ্ঠ বিদ্বান্] (অর্চতি) সমর্পণ করে, (মে) আমার (ইমাম্) এই (বাচম্) বাণীকে, (সু) সুষ্ঠুভাবে (আ) সামনে থেকে (বোধ) তুমি জ্ঞাত হও, এবং (ইমা) এই (ব্রহ্ম) বেদবাণী (সধমাদে) একত্রে হর্ষ উৎপাদন স্থানে [উৎসবে/আনন্দে] (জুষস্ব) সেবন করো॥৩॥
भावार्थ
রাজার উচিৎ, বড়-বড় বিদ্বানদের শ্রেষ্ঠ বাণী এবং বেদবাণীকে যথাবৎ মান্য করে উন্নতি সাধন করা॥৩॥
भाषार्थ
(মঘবন্) হে সম্পত্তি-শালী পরমেশ্বর! (মে) আমার (ইমাম্) এই (বাচম্) স্তুতি-বাণী (সু বোধ) সঠিকভাবে জ্ঞাত হন, (যাম্) যে (প্রশস্তিম্) প্রশস্তবাণী (বসিষ্ঠঃ) সর্বশ্রেষ্ঠ উপাসক (তে) আপনার জন্য (অর্চতি) অর্চনায় অর্পণ করছে। (সধমাদে) উপাসক এবং আপনার পারস্পরিক প্রসন্নতায় (ইমা ব্রহ্ম) এই ব্রহ্মস্তাবক স্তুতি বাণীসমূহের (জুষস্ব) আপনি প্রীতিপূর্বক সেবন করুন।
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