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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 122 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 122/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्र छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१२२
    59

    रे॒वती॑र्नः सध॒माद॒ इन्द्रे॑ सन्तु तु॒विवा॑जाः। क्षु॒मन्तो॒ याभि॒र्मदे॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रे॒वती॑: । न॒: । स॒ध॒ऽमादे॑ । इन्द्रे॑ । स॒न्तु॒ । तु॒विऽवा॑जा: ॥ क्षु॒ऽमन्त॑: । याभि॑: । मदे॑म ॥१२२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रेवतीर्नः सधमाद इन्द्रे सन्तु तुविवाजाः। क्षुमन्तो याभिर्मदेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रेवती: । न: । सधऽमादे । इन्द्रे । सन्तु । तुविऽवाजा: ॥ क्षुऽमन्त: । याभि: । मदेम ॥१२२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 122; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    सभापति के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रे) इन्द्रे [बड़े ऐश्वर्यवाले सभापति] में (नः) हमारे (सधमादे) हर्षयुक्त उत्सव के बीच (रेवतीः) बहुत धनवाली और (तुविवाजाः) बहुत बलवाली [प्रजाएँ] (सन्तु) होवें। (याभिः) जिन [प्रजाओं] के साथ (क्षुमन्तः) बहुत अन्नवाले होकर (मदेम) हम आनन्द पावें ॥१॥

    भावार्थ

    सभापति प्रयत्न करे कि सब प्रजागण उद्योगी, धनी होकर सुखी होवें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।१३-१; सामवेद उ० ४।१। तृच १४; म० १ सा० पू० २।६।८ ॥ १−(रेवतीः) धनवत्यः प्रजाः (नः) अस्माकम् (सधमादे) आनन्देन सह वर्तमाने महोत्सवे (इन्द्रे) परमैश्वर्यवति सभाध्यक्षे (सन्तु) (तुविवाजाः) बहुबलयुक्ताः (क्षुमन्तः) बहुविधान्नयुक्ताः (याभिः) प्रजाभिः (मदेम) हृष्येम ॥

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    इंग्लिश (2)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    May our people, wives and children be rich in wealth, knowledge and grace of culture, so that we, abundant and prosperous, may rejoice with them and live with them in happy homes in a state of honour and glory.

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    Translation

    Let there, in the administration of the king and in the place of our gathering be wealth and great Strength the subjects with whom we enjoy happiness.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।१३-१; सामवेद उ० ४।१। तृच १४; म० १ सा० पू० २।६।८ ॥ १−(रेवतीः) धनवत्यः प्रजाः (नः) अस्माकम् (सधमादे) आनन्देन सह वर्तमाने महोत्सवे (इन्द्रे) परमैश्वर्यवति सभाध्यक्षे (सन्तु) (तुविवाजाः) बहुबलयुक्ताः (क्षुमन्तः) बहुविधान्नयुक्ताः (याभिः) प्रजाभिः (मदेम) हृष्येम ॥

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