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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 122 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 122/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१२२
    60

    आ घ॒ त्वावा॒न्त्मना॒प्त स्तो॒तृभ्यो॑ धृष्णविया॒नः। ऋ॒णोरक्षं॒ न च॑क्र्यो: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । घ॒ । त्वाऽवा॑न् । त्मना॑ । आ॒प्त: । स्तो॒तृऽभ्य॑: । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । इ॒या॒न: ॥ ऋ॒णो: । अक्ष॑म् । न । च॒क्र्यो॑: ॥१२२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ घ त्वावान्त्मनाप्त स्तोतृभ्यो धृष्णवियानः। ऋणोरक्षं न चक्र्यो: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । घ । त्वाऽवान् । त्मना । आप्त: । स्तोतृऽभ्य: । धृष्णो इति । इयान: ॥ ऋणो: । अक्षम् । न । चक्र्यो: ॥१२२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 122; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सभापति के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (धृष्णो) हे निर्भय ! [सभापति] (त्मना) अपने आप (त्वावान्) अपने सदृश (आप्तः) आप्त [सच्चा उपदेशक] (इयानः) ज्ञानवान् तू (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (घ) अवश्य (आ) सब प्रकार से (ऋणोः) प्राप्त हो, (न) जैसे (चक्र्योः) दोनों पहियों में (अक्षम्) धुरा [होता है] ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे धुरा पहियों के बीच में रहकर सब बोझ उठाकर रथ को चलाता है, वैसे ही सभापति राज्य का सब भार अपने ऊपर रखकर प्रजा को उद्योगी बनावें और प्रजा भी उसकी सेवा करती रहे ॥२, ३॥

    टिप्पणी

    २−(आ) अभितः (घ) एव (त्वावान्) त्वत्सदृशः (त्मना) आत्मना (आप्तः) यथार्थज्ञाता। सत्योपदेष्टा (स्तोतृभ्यः) स्तावकेभ्यः (धृष्णो) हे निर्भय (इयानः) इङ् गतौ-कानच्। अभिज्ञाता (ऋणोः) ऋण गतौ, लोडर्थे लङ्। प्राप्नुहि (अक्षम्) धूः (न) इव (चक्र्योः) आदृगमहनजनः। पा० ३।२।१७१। करोतेः-कि प्रत्ययः। रथस्य चक्र्योः ॥

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    विषय

    त्रिविध उन्नति

    पदार्थ

    १.हे (स्तोतृभ्यः धृषणो) = स्तोताओं के लिए उनके शत्रुओं का घर्षण करनेवाले प्रभो! जो व्यक्ति (वावान्) = आप-जैसा बनने का प्रयत्न करता है और (त्मना आस:) = आत्मतत्त्व की प्राप्ति से सब-कुछ को प्राप्त मानता है। वह (इयान:) = सदा गतिशील होता हुआ (घ) = निश्चय से (चक्र्योः अक्षन) = चक्रों में अक्ष की भांति, मस्तिष्क व शरीर [धुलोक व पृथिवीलोक] के बीच में हृदय [अन्तरिक्ष] को (आ ऋणो:) = प्राप्त करता है [आ ऋणोति]। जैसे चक्र व अक्ष साथ-साथ चलते हैं उसी प्रकार यह स्तोता मस्तिष्क, शरीर व हृदय सबकी साथ-साथ उन्नति करता है। उन्नति कर वही पाता है जोकि क्रियाशील होता है [इयानः] २. यह ठीक है कि यह व्यक्ति प्रभु का स्तवन करता है और प्रभु ही इसके मार्ग में आनेवाले विघ्नभूत शत्रुओं का विनाश करते हैं। स्तोताओं के शत्रुओं का विनाश प्रभु का ही कार्य है। स्तोता वह है जोकि प्रभु-जैसा बनने का प्रयत्न करता है [त्वाबान्] तथा अपने अन्दर आत्मा से ही तुष्ट होने का प्रयत्न करता है [त्मना आप्त:-आत्मन्येवात्मना तुष्टः]।

    भावार्थ

    हम प्रभु के स्तोता बनें। प्रभु हमारे बासनारूप शत्रुओं का संहार करेंगे। तभी हम शरीर, मन व मस्तिष्क तीनों की उन्नति कर पाएंगे।

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    भाषार्थ

    (धृष्णो) हे विघ्नों का पराभव करनेवाले प्रभो! (स्तोतृभ्यः) स्तोताओं की प्रसन्नता के लिए, उनके हृदयों में (इयानः) आते हुए, प्रकट होते हुए आप, (त्मना) स्वयमेव, (आप्तः) उन्हें प्राप्त होते हैं। (त्वावान्) इस कार्य में आप अपने-सदृश ही हैं। (न) जैसे बढ़ई, (चक्र्योः) रथ के दो चक्रों में (अक्षम्) धुरी डालकर, उन्हें (आ ऋणोः) साथ-साथ गति करनेवाले बना देता है, वैसे ही आप स्तोताओं में ज्ञान की धुरी डालकर, उन्हें आप अपने-साथ गति करने योग्य कर देते हैं—(घ) यह निश्चित है।

    टिप्पणी

    [अक्षम्= An axis; knowledge (आप्टे)। ऋणोः=ऋण् गतौ। त्वावान्=“वतुप्रकरणे युष्मदस्मद्भ्यां छन्दसि सादृश्ये उपसंख्यानम्” (अ০ ५.२.३९ पर वार्तिक)—इति वतुप्।]

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    विषय

    ऐश्वर्यवान् राष्ट्र, गृहस्थ और राजा।

    भावार्थ

    हे (धृष्णो) विपक्ष के धर्षण करने हारे ! अति प्रगल्भ ! राजन् ! (चक्रयोः) रथ के चक्रों का (अक्षं न) अक्ष जिस प्रकार अरों द्वारा चक्रों को अपने में धारण करके रथ को तो सम्भालता ही है और स्वयं भी अपने को सम्भाले रहता है इसी प्रकार तू भी अपने ऊपर स्वयं और पर राष्ट्र के चक्रों को अपने नीति बल से धारण करके भी तु (त्वावान्) अपने जैसा ही अद्वितीय होकर, (त्मना आप्तः) स्वयं अपने आत्म सामर्थ्य से स्थिर होकर (स्तोतृभ्यः) स्तोता, विद्वान् पुरुषों के लिये (इयानः) प्रार्थित होकर उनको अभिमत पदार्थ (आ ऋणोः) प्राप्त कराता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Lord of inviolable might, yourself your own definition, omniscient, instantly comprehending all that moves, you manifest your presence to the vision of your celebrants just as the one axle of two chariot wheels (moving, caring yet unmoved).

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    Translation

    O fearless king, you yourself, like you wise being invited come to your admirers as the axle moves in the wheels.

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    Translation

    O fearless king, you yourself, like you wise being invited come to your admirers as the axle moves in the wheels.

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    Translation

    O Powerful Lord or king of hundreds of sacrifices or actions motivating all, like the axle of a car by propelling forces, Thou fully grantest the desired objects of the worshippers after accepting their homage.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(आ) अभितः (घ) एव (त्वावान्) त्वत्सदृशः (त्मना) आत्मना (आप्तः) यथार्थज्ञाता। सत्योपदेष्टा (स्तोतृभ्यः) स्तावकेभ्यः (धृष्णो) हे निर्भय (इयानः) इङ् गतौ-कानच्। अभिज्ञाता (ऋणोः) ऋण गतौ, लोडर्थे लङ्। प्राप्नुहि (अक्षम्) धूः (न) इव (चक्र्योः) आदृगमहनजनः। पा० ३।२।१७१। करोतेः-कि प्रत्ययः। रथस्य चक्र्योः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সভাপতিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ধৃষ্ণো) হে নির্ভীক! [সভাপতি] (ত্মনা) নিজে নিজে (ত্বাবান্) নিজের সদৃশ (আপ্তঃ) আপ্ত [সত্য উপদেশক] (ইয়ানঃ) জ্ঞানবান তুমি (স্তোতৃভ্যঃ) স্তুতিকারীদের জন্য (ঘ) অবশ্যই (আ) সর্ব প্রকারে (ঋণোঃ) প্রাপ্ত হও, (ন) যেমন (চক্র্যোঃ) উভয় চাকার মাঝে (অক্ষম্) ধুরা/অক্ষ [থাকে] ॥২॥

    भावार्थ

    ধুরা/অক্ষ যেমন চাকার মাঝখানে থেকে সমস্ত বোঝা/ভার বহন করে রথকে চালনা করে, তেমনই সভাপতি রাজ্যের সমস্ত ভার নিজের উপর রেখে প্রজাদের উদ্যোগী করুক এবং প্রজারাও তাঁর সেবা করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (ধৃষ্ণো) হে বিঘ্ন-সমূহের পরাভবকারী প্রভু! (স্তোতৃভ্যঃ) স্তোতাদের প্রসন্নতার জন্য, তাঁদের হৃদয়ে (ইয়ানঃ) প্রকট হয়ে আপনি, (ত্মনা) স্বয়মেব, (আপ্তঃ) তাঁদের প্রাপ্ত হন। (ত্বাবান্) এই কার্যে আপনি নিজের-সদৃশই। (ন) যেমন ছুতোর, (চক্র্যোঃ) রথের দুই চক্রে/চাকায় (অক্ষম্) ধুরী/অক্ষ দিয়ে, দুই চক্রকে (আ ঋণোঃ) একসাথে গতিশীল করে, তেমনই আপনি স্তোতাদের মধ্যে জ্ঞানের অক্ষ দিয়ে/প্রদান করে, তাঁদের আপনি নিজের-সাথে গতিশীল হবার যোগ্য করেন—(ঘ) ইহা নিশ্চিত।

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