अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
इ॒मं स्तोम॒मर्ह॑ते जा॒तवे॑दसे॒ रथ॑मिव॒ सं म॑हेमा मनी॒षया॑। भ॒द्रा हि नः॒ प्रम॑तिरस्य सं॒सद्यग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । स्तोम॑म् । अर्ह॑ते । जा॒तऽवे॑दसे । रथ॑म्ऽइव । सम् । म॒हे॒म॒ । म॒नी॒षया॑ ॥ भ॒द्रा । हि । न॒: । प्रऽम॑ति: । अ॒स्य॒ । स॒म्ऽसदि॑ । अग्ने॑ । स॒ख्ये । मा । रि॒षा॒म॒ । व॒यम् । तव॑ ॥१३.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया। भद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । स्तोमम् । अर्हते । जातऽवेदसे । रथम्ऽइव । सम् । महेम । मनीषया ॥ भद्रा । हि । न: । प्रऽमति: । अस्य । सम्ऽसदि । अग्ने । सख्ये । मा । रिषाम । वयम् । तव ॥१३.२३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा और विद्वानों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(अर्हते) योग्य, (जातवेदसे) उत्पन्न पदार्थों के जाननेहारे [पुरुष] के लिये (इमम्) इस (स्तोमम्) गुणकीर्तन को (रथम् इव) रथ के समान (मनीषया) बुद्धि से (सम्) यथावत् (महेम) हम बढ़ावें। (हि) क्योंकि (अस्य) इस [विद्वान्] की (प्रमतिः) उत्तम समझ (संसदि) सभा के बीच (नः) हमारे लिये (भद्रा) कल्याण करनेवाली है। (अग्ने) हे अग्नि ! [तेजस्वी विद्वान्] (ते) तेरी (सख्ये) मित्रता में (वयम्) हम (मा रिषाम) न दुखी होवें ॥३॥
भावार्थ
जैसे उत्तम बने हुए यान विमान आदि की चाल और योग्यता से उपकार लेकर मनुष्य गुण गाते हैं, वैसे ही लोग विज्ञान के आविष्कार करनेवाले विद्वान् के गुणों से उपकार लेकर सुख प्राप्त करें ॥३॥
टिप्पणी
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।९४।१ और सामवेद पू० १।७।४ तथा उ० ४।१।७ ॥ ३−(इमम्) प्रत्यक्षम् (स्तोमम्) गुणकीर्तनम् (अर्हते) योग्याय (जातवेदसे) जातानामुत्पन्नानां वेदित्रे (रथम्) रमणसाधनं विमानादियानम् (इव) यथा (सम्) सम्यक् (महेम) पूजेयम। सत्कुर्याम (मनीषया) प्रज्ञया (भद्रा) कल्याणकारिणी (हि) यतः (नः) अस्मभ्यम् (प्रमतिः) प्रकृष्टा बुद्धिः (अस्य) विदुषः पुरुषस्य (संसदि) परिषदि। सभायाम् (अग्ने) हे तेजस्विन् विद्वन् (सख्ये) मित्रभावे (मा रिषाम) हिंसिता मा भूम (वयम्) (तव) ॥
विषय
कुत्स
पदार्थ
१. (अर्हते) = पूज्य (जातवेदसे) = सर्वज्ञ उस प्रभु के लिए (इमं स्तोमम्) = इस स्तोत्र को (मनीषया) = बुद्धि से-समझदारी से-विचारपूर्वक (संमहेम) = सम्यक् पूजित-निष्पादित करें। हम ज्ञानपूर्वक प्रभु का स्तवन करें। यह स्तोम (रथम् इव) = जीवन-यात्रा की पूर्ति के लिए रथ के समान है। यह जीवन-यात्रा की पूर्ति का साधन बनता है। इससे हमारे सामने लक्ष्यदृष्टि उत्पन्न होती है। २. (अस्य) = इस पूजनीय प्रभु की (संसदि) = उपासना में-समीप स्थिति में (नः) = हमारी (प्रमति:) = प्रकृष्ट बुद्धि (भद्रा) = कल्याणी होती है। हे (अग्ने) = परमात्मन्! (वयम्) = हम (तव सख्ये) = आपकी मित्रता में (मा रिषाम) = मत हिंसित होवें।
भावार्थ
हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु-स्तवन जीवन-यात्रा में रथ के समान होता है। प्रभु की उपासना से कल्याणी मति प्राप्त होती है। यह उपासना हमें विनष्ट नहीं होने देती।
भाषार्थ
(अर्हते) मान योग्य (जातवेदसे) तथा विज्ञ प्रधानमन्त्री के उपस्थित होने पर, इसके मान में हम (मनीषया) बुद्धिपूर्वक सोचकर, (इमम्) इस (स्तोमम्) प्रशस्तिपत्र को (सं महेम) तैयार करते हैं, इस प्रशस्तिपत्र को महिमायुक्त करते हैं। (इव) जैसे कि बुद्धिपूर्वक (रथम्) रथ का निर्माण करके उसे महिमायुक्त किया जाता है। (अस्य) इस प्रधानमन्त्री की (संसदि) संसद् में उपस्थिति होने पर (नः) हम प्रजाजनों के (प्रमतिः) विचार (भद्रा) सुखदायी और कल्याणकारी हो जाते हैं। (अग्ने) हे राष्ट्र हे अग्रणी! (तव) आपके साथ (सख्ये) हम प्रजाजनों का सखिभाव अर्थात् मैत्री हो जाने पर (वयम्) हम प्रजाजन (मा रिषाम) आभ्यन्तर और बाहर आक्रमणों द्वारा विनष्ट और दुःखी नहीं होने पाते।
टिप्पणी
[जातवेदाः=जातविद्यः जातप्रज्ञानः (निरु০ ७.५.१९)। संसद्=An assembly; A court of justice (आप्टे)। अग्ने=अग्निः अग्रणीर्भवति (निरु০ ७.४.१४)। अभिप्राय यह है कि प्रधानमन्त्री आदि के उपस्थित होने पर उन्हें मानपत्र देने चाहिएँ। और प्रजाजन को राष्ट्र के अधिकारियों के साथ सखिभाव से रहना चाहिए।]
विषय
राजा के राज्य की व्यवस्था।
भावार्थ
(अर्हते) पूजनीय (जातवेदसे) परमैश्वर्यवान्, वेदों के आदि उत्पति स्थान परमेश्वर और विद्वान् पुरुष के लिये (रथम् इव) जिस प्रकार रथ को सजाया जाता है उसी प्रकार हम लोग (मनीषया) बुद्धि पूर्वक (इमम् स्तोमम्) इस स्तुति समूह को भी (सं महेम) भक्ति आदर पूर्वक सुसज्जित करें। (अस्य संसदि) इस विद्वान् और अग्रणी पुरुष की संसत्-राजसभा या सत्संग में (नः) हमारी (भद्रा) कल्याणमयी (प्रमतिः) उत्तम मति, मनन शक्ति हो। और हे (अग्ने) अग्ने ! ज्ञानवन् अग्रणी ! पुरुष या परमेश्वर ! या राजन् ! (तव सख्ये) तेरे मिन्नभाव में रहते हुए (वयम्) हम लोग (मा रिषाम) कभी पीड़ित न हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
क्रमशः वामदेवगोतमकुत्सविश्वामित्रा ऋषयः। इन्द्राबृहस्पती, मरुतः अग्निश्च देवताः। १, ३ जगत्यः। ४ त्रिष्टुप। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
This song of celebration and worship in honour of venerable Jataveda, Agni, omnipresent in the created world and lord omniscient, we sing in praise of his glory with our mind and soul in sincerity and offer it to him as a joyous holiday chariot fit for his majesty. Blessed is our mind in his company, while we sit in the assembly of devotees. Agni, lord of light and knowledge, we pray, may we never come to suffering while we enjoy your company and friendship.
Translation
We adorn this set of praises with intellect like a chariot for the praiseworthy Jatveda, the man of inteligence. Let our — auspicious counsel prevail in his assembly. O man of enlightment may we not be troubled in your friendship.
Translation
We adorn this set of praises with intellect like a chariot for the praiseworthy Jatveda, the man of intelligence. Let our auspicious counsel prevail in his assembly. O man of enlightenment may we not be troubled in your friendship.
Translation
We eulogise this praise-song for the Praiseworthy Lord of the Vedas or the Vedic scholar, with our well-disciplined intellect, just as a chariot or car or vehicle or plane is well-equipped before the ride. In the assembly or the company of this king or the scholar, let our power of thinking be gracious. O King, commander, or;the learned person, let us not feel troubled in your company.
Footnote
Cf. Rig, 1.94.1.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।९४।१ और सामवेद पू० १।७।४ तथा उ० ४।१।७ ॥ ३−(इमम्) प्रत्यक्षम् (स्तोमम्) गुणकीर्तनम् (अर्हते) योग्याय (जातवेदसे) जातानामुत्पन्नानां वेदित्रे (रथम्) रमणसाधनं विमानादियानम् (इव) यथा (सम्) सम्यक् (महेम) पूजेयम। सत्कुर्याम (मनीषया) प्रज्ञया (भद्रा) कल्याणकारिणी (हि) यतः (नः) अस्मभ्यम् (प्रमतिः) प्रकृष्टा बुद्धिः (अस्य) विदुषः पुरुषस्य (संसदि) परिषदि। सभायाम् (अग्ने) हे तेजस्विन् विद्वन् (सख्ये) मित्रभावे (मा रिषाम) हिंसिता मा भूम (वयम्) (तव) ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজবিদ্বদ্গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(অর্হতে) যোগ্য, (জাতবেদসে) উৎপন্ন পদার্থের জ্ঞাতা [পুরুষের] জন্য (ইমম্) এই (স্তোমম্) গুণকীর্তন (রথম্ ইব) রথের ন্যায় (মনীষয়া) বুদ্ধি দ্বারা (সম্) যথাবৎ (মহেম) আমরা বৃদ্ধি করি। (হি) কারন (অস্য) এই [বিদ্বানের] (প্রমতিঃ) উত্তম বুদ্ধি/মতি (সংসদি) সভা মধ্যে (নঃ) আমাদের জন্য (ভদ্রা) কল্যানকারী। (অগ্নে) হে অগ্নি ! [তেজস্বী বিদ্বান] (তে) তোমার (সখ্যে) মিত্রতায় (বয়ম্) আমরা যেন (মা রিষাম) নি দুঃখী হই ॥৩॥
भावार्थ
যেভাবে উত্তমরূপে প্রস্তুত যান, বিমান আদির চালনা ও যোগ্যতার মাধ্যমে উপকার গ্রহণ করে মনুষ্য গুণগান করে, তেমনই মনুষ্য বিজ্ঞানী বিদ্বানদের গুণ দ্বারা উপকার গ্রহণ করে সুখ প্রাপ্ত করে/করুক॥৩॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে ১।৯৪।১ এবং সামবেদ পূ০ ১।৭।৪ তথা উ০ ৪।১।৭।
भाषार्थ
(অর্হতে) সম্মান যোগ্য (জাতবেদসে) তথা বিজ্ঞ প্রধানমন্ত্রী উপস্থিত হলে, তাঁর সম্মানে আমরা (মনীষয়া) বুদ্ধিপূর্বক বিচার করে, (ইমম্) এই (স্তোমম্) প্রশস্তিপত্র (সং মহেম) প্রস্তত করি, এই প্রশস্তিপত্রকে মহিমাযুক্ত করি। (ইব) যেমন বুদ্ধিপূর্বক (রথম্) রথ নির্মাণ করে উহাকে মহিমাযুক্ত করা হয়। (অস্য) এই প্রধানমন্ত্রী (সংসদি) সংসদে উপস্থিত হলে (নঃ) আমাদের প্রজাদের (প্রমতিঃ) বিচার (ভদ্রা) সুখদায়ী এবং কল্যাণকারী হয়ে যায়। (অগ্নে) হে রাষ্ট্র হে অগ্রণী! (তব) আপনার সাথে (সখ্যে) আমাদের প্রজাদের মিত্রতাভাব অর্থাৎ মৈত্রী হলে (বয়ম্) আমরা প্রজারা (মা রিষাম) অভ্যন্তরীণ এবং বাহ্যিক আক্রমণ দ্বারা বিনষ্ট এবং দুঃখী হই না।
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