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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२८
    69

    उद्गा आ॑ज॒दङ्गि॑रोभ्य आ॒विष्कृण्वन्गुहा॑ स॒तीः। अ॒र्वाञ्चं॑ नुनुदे व॒लम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । गा: । आ॒ज॒त् । अङ्गि॑र:ऽभ्य: । आ॒वि: । कृ॒ण्वन् । गुहा॑ । स॒ती: ॥ अ॒र्वाञ्च॑म् । नु॒नु॒दे॒ । व॒लम् ॥२८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्गा आजदङ्गिरोभ्य आविष्कृण्वन्गुहा सतीः। अर्वाञ्चं नुनुदे वलम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । गा: । आजत् । अङ्गिर:ऽभ्य: । आवि: । कृण्वन् । गुहा । सती: ॥ अर्वाञ्चम् । नुनुदे । वलम् ॥२८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (गुहा) गुहा [गुप्त अवस्था] में (सतीः) वर्तमान (गाः) वाणियों को (आविः कृण्वन्) प्रकट करते हुए उस [परमेश्वर] ने (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानी पुरुषों के लिये (उत् आजत्) ऊँचा पहुँचाया और (वलम्) हिंसक [विघ्न] को (अर्वाञ्चम्) नीचे (नुनुदे) हटाया है ॥२॥

    भावार्थ

    प्रलय के पीछे परमात्मा ने वेदों का उपदेश करके हमारे सब विघ्न मिटाये हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(उत्) ऊर्ध्वम् (गाः) वाणीः। विद्याः (आजत्) अज गतिक्षेपणयोः-लङ्। अगमयत् (अङ्गिरोभ्यः) अ० २।१२।४। विज्ञानिभ्यः (आविष्कृण्वन्) प्रकटयन् (गुहा) गुहायाम्। गुप्तावस्थायाम् (सतीः) विद्यमानाः (अर्वाञ्चम्) अधोगतम् (नुनुदे) प्रेरितवान् (वलम्) हिंसकं विघ्नम् ॥

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    विषय

    उद्गा: आजत् अङ्गिरोभ्यः

    पदार्थ

    १. प्रभु (अङ्गिरोभ्यः) = इन गतिशील-कर्त्तव्य-कर्मों के करने में लगे हुए उपासकों के लिए (गुहा सती:) = अविद्यापर्वत की गुहा में वर्तमान (गा:) = इन्द्रियरूप गौओं को (आविष्कृण्वन्) = प्रकाशयुक्त करता हुआ (उद् आजत) = उत्कृष्ट गतिवाला करता है। २. इसी उद्देश्य से प्रभु (वलम्) = इस आवरणभूत वासना को (अर्वाञ्चं नुनुदे) = अधोमुख विनष्ट कर देते हैं। वासनाओं को विनष्ट करके ही तो वे इन्द्रियों को प्रकाशमय करते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु वासना को विनष्ट करके, गतिमय कर्तव्यपरायण पुरुषों की इन्द्रियों को प्रकाशमय करते हैं।

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    भाषार्थ

    (अङ्गिरोभ्यः) प्राणायाम् के अभ्यासियों के लिए परमेश्वर ने (गाः) ज्ञान की किरणों को (उद्आजत्) उद्बुद्ध कर दिया है। अर्थात् (गुहाः सतीः) हृदय की गुफा में छिपी हुई ज्ञान की किरणों को (आविष्कृण्वन्) परमेश्वर ने आविष्कृत कर दिया है, प्रकट कर दिया है। और ज्ञान-किरणों पर पड़े (वलम्) आवरण को, रजस् और तमस्रूपी आवरण को परमेश्वर ने मानो (अर्वाञ्चं नुनुदे) नीचे पटक दिया है।

    टिप्पणी

    [अङ्गिरसः=प्राणवि-विद्याविदः (महर्षि दयानन्द, ऋ০ १.६२.३)। वलम्=आवृत्य स्थितम् (सायण)। प्राणायाम के परिपक्क हो जाने पर चित्त पर पड़ा आवरण क्षीण हो जाता है। यथा—“ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्” (योग০ २.५२)।]

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    विषय

    राजा का कर्त्तव्य

    भावार्थ

    राजा इन्द्र (वलम्) राष्ट्र के घेरने वाले को (अर्वाञ्चं नुनुदे) नीचे गिरा देता है। (गुहाः सतीः) गुप्त स्थान में छुपी हुई (गाः आविः कृण्वन्) गौ और भूमियों को प्रकट करता हुआ (अंगिरोभ्यः) विद्वान्, तेजस्वी पुरुषों को (उत् आजत्) प्रदान करता है। परमेश्वर (वलम्) अन्तःकरण के आवरक तमस् को दूर करके (गुहा) हृदय गुहा में छुपी (गाः) ज्ञानरश्मियों या वेदवाणियों को (अंगिरोभ्यः) ज्ञानी पुरुषों के (लिये (आविः कृण्वन्) प्रकट करता हुआ उनको प्रदान करता है। वायु मेघ को दूर करता है आकाश में फैली रश्मियों को प्रकट करके मनुष्यों के लिये प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोसूक्त्यश्वसूक्तिना वृषी। १, २ गायत्र्यौ। ३, ४ त्रिष्टुभौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    When the lord shakes up our psychic energies to the depths and throws out our darkness and negativities, then he sharpens our senses along with pranic energies and opens out our spiritual potential hidden in the cave of the heart.

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    Translation

    This air making visible the rays of sun hidden in the cave of cloud carrise them to Angirases, the beats of atmosphere and casts down the cloud.

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    Translation

    This air making visible the rays of sun hidden in the cave of cloud carrise them to Angirases, the beats of atmosphere and casts down the cloud.

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    Translation

    Felling down the cloud of darkness of ignorance, He reveals the hidden Vedic Richas and offers them to the radiant sages (i.e., Agni, Vayu, Aditya and Angira) for the benefit of humanity.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(उत्) ऊर्ध्वम् (गाः) वाणीः। विद्याः (आजत्) अज गतिक्षेपणयोः-लङ्। अगमयत् (अङ्गिरोभ्यः) अ० २।१२।४। विज्ञानिभ्यः (आविष्कृण्वन्) प्रकटयन् (गुहा) गुहायाम्। गुप्तावस्थायाम् (सतीः) विद्यमानाः (अर्वाञ्चम्) अधोगतम् (नुनुदे) प्रेरितवान् (वलम्) हिंसकं विघ्नम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গুহা) গুহা [গুপ্ত অবস্থায়] (সতীঃ) বর্তমান (গাঃ) বাণীসমূহ (আবিঃ কৃণ্বন্) প্রকট করে তিনি [পরমেশ্বর] (অঙ্গিরোভ্যঃ) বিজ্ঞানী পুরুষদের জন্য (উৎ আজৎ) উর্ধ্বে প্রেরণ করেছেন এবং (বলম্) হিংসকদের [বিঘ্ন-সমূহকে] (অর্বাঞ্চম্) নীচে (নুনুদে) প্রেরিত করেছেন ॥২॥

    भावार्थ

    প্রলয়ের পর পরমাত্মা বেদের উপদেশ দ্বারা আমাদের সকল বিঘ্ন দূর করেছেন॥২॥

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    भाषार्थ

    (অঙ্গিরোভ্যঃ) প্রাণায়াম অভ্যাসীদের জন্য পরমেশ্বর (গাঃ) জ্ঞানের কিরণ-সমূহকে (উদ্আজৎ) উদ্বুদ্ধ করেছেন। অর্থাৎ (গুহাঃ সতীঃ) হৃদয় গুহায় নিহিত জ্ঞানের কিরণ-সমূহকে (আবিষ্কৃণ্বন্) পরমেশ্বর আবিষ্কৃত/উন্মুক্ত করেছেন, প্রকট করেছেন। এবং জ্ঞান-কিরণের ওপর থাকা (বলম্) আবরণ, রজস্ এবং তমস্রূপী আবরণ পরমেশ্বর মানো (অর্বাঞ্চং নুনুদে) নীচে পতিত করেছেন।

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