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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 40/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४०
    37

    अ॑नव॒द्यैर॒भिद्यु॑भिर्म॒खः सह॑स्वदर्चति। ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒ काम्यैः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न॒व॒द्यै: । अ॒भिद्यु॑ऽभि: । म॒ख: । सह॑स्वत् । अ॒र्च॒ति॒ ॥ ग॒णै: । इन्द्र॑स्य । काम्यै॑: ॥४०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति। गणैरिन्द्रस्य काम्यैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनवद्यै: । अभिद्युऽभि: । मख: । सहस्वत् । अर्चति ॥ गणै: । इन्द्रस्य । काम्यै: ॥४०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 40; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनवद्यैः) निर्दोष, (अभिद्युभिः) सब ओर से प्रकाशमान और (काम्यैः) प्रीति के योग्य (गणैः) गणों [प्रजागणों] के साथ (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] का (मखः) यज्ञ [राज्य व्यवहार] (सहस्वत्) अतिदृढ़ता से (अर्चति) सत्कार पाता है ॥२॥

    भावार्थ

    सब राज-काज उत्तम विद्वान् लोगों के मेल से अच्छे प्रकार सिद्ध होते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अनवद्यैः) निर्दोषैः (अभिद्युभिः) अभितः प्रकाशमानैः (मखः) मख गतौ-घप्रत्ययः। यज्ञः-निघ०३।१७। राज्यव्यवहारः (सहस्वत्) यथा स्यात्तथा। बलवत्त्वेन। अतिदृढत्वेन (अर्चति) अर्च्यते। सत्क्रियते (गणैः) प्रजाजनैः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (काम्यैः) कमेर्णिङ्। पा०३।१।३०। कमु कान्तौ-णिङ्। अचो यत्। पा०३।१।९७। कामि-यत्। कामयितव्यैः। प्रीतियोग्यैः ॥

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    विषय

    'प्रशस्त, ज्योर्तिमय, सबल' जीवन

    पदार्थ

    १. (मख:) = एक यज्ञशील पुरुष प्राणसाधना करता हुआ प्राणों के साथ (सहस्वत) = [बलोपेतं यथा स्यात्तथा सबलम् अर्चति] प्रभु का अर्चन करता है। अर्चना उपासक को सबल बनाती है। २. यह उपासक जिन प्राणों की साधना करता हुआ उपासना करता है वे प्राण (अनवद्यैः) = प्रशस्त हैं-हमें पापों से बचाते हैं, प्राणसाधक से कभी कोई निन्दनीय कर्म नहीं होता। (अभिद्यभि:) = ये ज्ञान-ज्योति की ओर ले जाते हैं। प्राणसाधना से ज्ञान दीप्त हो जाता है। ये प्राण (गणैः) = गणनीय व प्रशंसनीय है, (इन्द्रस्य काम्यै:) = जितेन्द्रिय पुरुष को सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हम प्राणसाधना के साथ यज्ञशील बनते हुए प्रभु का अर्चन करें। यह अर्चना हमें प्रशस्त ज्योतिर्मय व सबल जीवनवाला बनाएगी।

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    भाषार्थ

    (अनवद्यैः) पापरहित अर्थात् पवित्र, (अभिद्युभिः) द्युतियों से सम्पन्न, तथा (इन्द्रस्य काम्यैः) परमेश्वर को प्रिय लगनेवाले (गणैः) उपासक गणों द्वारा सम्पन्न (मखः) उपासना-यज्ञ, (सहस्वत्) बल प्राप्त करता हुआ, (अर्चति) परमेश्वर की अर्चना करता है।

    टिप्पणी

    [अर्थात् पवित्रात्मा, परमेश्वर के प्रिय हो जाते हैं, और उनके उपासनायज्ञ शीघ्र फलदायक हो जाते हैं।]

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    विषय

    आत्मा और राजा।

    भावार्थ

    ऐश्वर्यमय राष्ट्र रूप, (सहस्वत्) अति बलशाली (मखः) यज्ञ (इन्द्रस्य काम्यैः) इन्द्र को अति प्रिय लगने वाले (अनवद्यैः) दोष रहित, अनिन्द्य, (अभिद्युभिः) तेजस्वी (गणैः) गणों सहित विराजमान (इन्द्रस्य) इन्द्र की (अर्चति) स्तुति करता है। अथवा यज्ञ इन्द्र को प्रिय लगने वाले (गणैः) ऋचा समूहों से उसकी स्तुति करता है। एष वै मखो य एष तपति। श० १४। १। ३ । ५ ॥ (सहस्वत् मखः) शत्रु को पराजय करने वाले बल से युक्त सूर्य के समान तापकारी सेनापति (अनवद्यैः अभिद्युभिः काम्यैः गणैः सह) निर्दोष, तेजस्वी, कान्तिमान् भटगणों के साथ (इन्द्रस्य अर्चति) इन्द्र का ही आदर सत्कार करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। मरुतो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    The yajnic dynamics of nature’s currents of energy, Maruts, so potent and effective, illuminates the world and does homage to the Lord of creation with the immaculate blazing radiations of glorious sun light.

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    Translation

    The Mighty Sun (Makha) with unfallible brillian pleasant rays group or celestial bodies extol the glory of Almighty God.

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    Translation

    The mighty Sun (Makha) with infallible brilliant pleasant rays groups or celestial bodies extol the glory of Almighty God.

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    Translation

    The very sacrificial act of subduing the enemy by the faultless, splendorous units of the army, so beloved of the king or army-chief, enhances the glory of him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अनवद्यैः) निर्दोषैः (अभिद्युभिः) अभितः प्रकाशमानैः (मखः) मख गतौ-घप्रत्ययः। यज्ञः-निघ०३।१७। राज्यव्यवहारः (सहस्वत्) यथा स्यात्तथा। बलवत्त्वेन। अतिदृढत्वेन (अर्चति) अर्च्यते। सत्क्रियते (गणैः) प्रजाजनैः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (काम्यैः) कमेर्णिङ्। पा०३।१।३०। कमु कान्तौ-णिङ्। अचो यत्। पा०३।१।९७। कामि-यत्। कामयितव्यैः। प्रीतियोग्यैः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অনবদ্যৈঃ) নির্দোষ, (অভিদ্যুভিঃ) সকল দিকে প্রকাশমান এবং (কাম্যৈঃ) প্রীতিযোগ্য (গণৈঃ) গণ [প্রজাগণের] সাথে (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান রাজার] (মখঃ) যজ্ঞ [রাজ্য ব্যবহার] (সহস্বৎ) অতি দৃঢ়তার সাথে (অর্চতি) সৎকার পায়॥২॥

    भावार्थ

    সকল রাজকার্য উত্তম বিদ্বান লোকেদের মাধ্যমে ভালোভাবে সিদ্ধ হয় ॥২॥

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    भाषार्थ

    (অনবদ্যৈঃ) পাপরহিত অর্থাৎ পবিত্র, (অভিদ্যুভিঃ) দ্যুতিসম্পন্ন, তথা (ইন্দ্রস্য কাম্যৈঃ) পরমেশ্বরের প্রিয় (গণৈঃ) উপাসকগণ দ্বারা সম্পন্ন (মখঃ) উপাসনা-যজ্ঞ, (সহস্বৎ) বল প্রাপ্ত করে, (অর্চতি) পরমেশ্বরের অর্চনা করে।

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