Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 44 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 44/ मन्त्र 1
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४४
    47

    प्र स॒म्राजं॑ चर्षणी॒नामिन्द्रं॑ स्तोता॒ नव्यं॑ गीर्भिः। नरं॑ नृ॒षाहं॒ मंहि॑ष्ठम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । स॒म्ऽराज॑म् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । इन्द्र॑म् । स्तो॒त॒ । नव्य॑म् । गी॒ऽभि: ॥ नर॑म् । नऽसह॑म् । मंहि॑ष्ठम् ॥४४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सम्राजं चर्षणीनामिन्द्रं स्तोता नव्यं गीर्भिः। नरं नृषाहं मंहिष्ठम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सम्ऽराजम् । चर्षणीनाम् । इन्द्रम् । स्तोत । नव्यम् । गीऽभि: ॥ नरम् । नऽसहम् । मंहिष्ठम् ॥४४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 44; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (सम्राजम्) सम्राट् [राजाधिराज], (नव्यम्) स्तुतियोग्य, (नरम्) नेता, (नृषाहम्) नेताओं को वश में रखनेवाले, (मंहिष्ठम्) अत्यन्त दानी (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को (गीर्भिः) वाणियों से (प्र) अच्छे प्रकार (स्तोत) सराहो ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् प्रजागण अभिनन्दन आदि से उदारचित्त राजा के बड़े-बड़े उपकारी कामों की प्रशंसा करके सत्कार करें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१-३। मन्त्र १ सामवेद-पू० २।।१० ॥ १−(प्र) प्रकर्षेण (सम्राजम्) राजराजेश्वरम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (स्तोत) स्तुत (नव्यम्) स्तुत्यम् (गीर्भिः) वाणीभिः (नरम्) नेतारम् (नृषाहम्) नेतॄणामभिभवितारं वशयितारम् (मंहिष्ठम्) अ० २०।१।१। उदारतमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    With songs of celebration glorify Indra, refulgent ruler of humanity, worthy of adoration, leader, destroyer of evil people, the greatest and most munificent.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O men, you with praise songs adore the adorable Almighty God who is the Supreme Ruler of all mankind, leader of all controller of all men and exacted one.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१-३। मन्त्र १ सामवेद-पू० २।।१० ॥ १−(प्र) प्रकर्षेण (सम्राजम्) राजराजेश्वरम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (स्तोत) स्तुत (नव्यम्) स्तुत्यम् (गीर्भिः) वाणीभिः (नरम्) नेतारम् (नृषाहम्) नेतॄणामभिभवितारं वशयितारम् (मंहिष्ठम्) अ० २०।१।१। उदारतमम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top