अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 56/ मन्त्र 2
असि॒ हि वी॑र॒ सेन्यो॑ऽसि॒ भूरि॑ पराद॒दिः। असि॑ द॒भ्रस्य॑ चिद्वृ॒धो य॑जमानाय शिक्षसि सुन्व॒ते भूरि॑ ते॒ वसु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअसि॑ । हि । वी॒र॒: । सेन्य॑: । असि॑ । भूरि॑ । प॒रा॒ऽद॒दि: ॥ असि॑ । द॒भ्रस्य॑ । चि॒त् । वृ॒ध: । यज॑मानाय । शि॒क्ष॒सि॒ । सुन्व॒ते । भूरि॑ । ते॒ । वसु॑ ॥५६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
असि हि वीर सेन्योऽसि भूरि पराददिः। असि दभ्रस्य चिद्वृधो यजमानाय शिक्षसि सुन्वते भूरि ते वसु ॥
स्वर रहित पद पाठअसि । हि । वीर: । सेन्य: । असि । भूरि । पराऽददि: ॥ असि । दभ्रस्य । चित् । वृध: । यजमानाय । शिक्षसि । सुन्वते । भूरि । ते । वसु ॥५६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सभापति के लक्षण का उपदेश।
पदार्थ
(वीर) हे वीर तू (हि) ही (सेन्यः) सेनाओं का हितकारी (असि) है, (भूरि) बहुत प्रकार से (पराददिः) शत्रुओं का पकड़नेवाला (असि) है। तू (दभ्रस्य) छोटे पुरुष का (चित्) अवश्य (वृधः) बढ़ानेवाला (असि) है, तू (सुन्वते) तत्त्व निचोड़नेवाले (यजमानाय) यजमान को (ते) अपना (भूरि) बहुत (वसु) धन (शिक्षसि) देता है ॥२॥
भावार्थ
वीर सेना हितकारी योग्य छोटे अधिकारियों को बढ़ाकर श्रेष्ठों का मान करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(असि) (हि) (वीर) (सेन्यः) सेनाभ्यो हितः (असि) (भूरि) बहु (पराददिः) पर+आङ्+डु दाञ् दाने-किप्रत्ययः। पराञ्च्छत्रूनादाता ग्रहीता (असि) (दभ्रस्य) अल्पस्य पुरुषस्य (चित्) एव (वृधः) वृधेरन्तर्गतण्यन्तात् कप्रत्ययः। वर्धयिता (यजमानाय) श्रेष्ठकर्मकारकाय (शिक्षसि) ददासि-निघ० ३।२०। (सुन्वते) तत्त्वं संस्कुर्वते (भूरि) बहु (ते) त्वदीयम्। स्वकीयम् (वसु) धनम् ॥
विषय
'सेन्य-पराददि-वृध' प्रभु
पदार्थ
१. हे (वीर) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाले प्रभो! आप हि-निश्चय से सेन्यः असि-हमारी सेनाओं के उत्तम संचालक हैं और इसप्रकार (भूरिपराददिः असि) = शत्रुओं को खूब ही परादान पराजित करके दूर भगा देनेवाले हैं। २. दभ्रस्य-अल्प के चित्-भी-कम सेनावाले उपासक के भी वधः असि-बढ़ानेवाले हैं। कम सेनावाला भी उपासक अधिक सेनावाले अनुपासक को जीत लेता है। २. यजमानाय-यज्ञशील पुरुष के लिए शिक्षसि-आप सदा देते हैं। सुन्वते शरीर में सोम का सम्पादन करनेवाले के लिए भूरि-खूब ही ते वसु-आपका धन होता है। इस सुन्वन् को आप पालक व पोषक धन प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ
प्रभु हमारी सेनाओं के उत्तम संचालक-शत्रुओं का परादान करनेवाले व हमारा वर्धन करनेवाले हैं। हम यज्ञशील व सोम का सम्पादन करनेवाले बनें। प्रभु हमारा रक्षण करेंगे।
भाषार्थ
(वीर) हे प्रेरणाओं के देनेवाले परमेश्वर! आप (हि) ही (सेन्यः) सद्गुणों की सेना के नायक (असि) हैं। आप ही (भूरि) बहुमात्रा में (पराददिः) आसुरी-भावनाओं को परास्त कर दैवी-भावनाओं के दाता हैं। (दभ्रस्य) छोटे या अभिनव उपासक को (चित्) भी (वृधः असि) आप बढ़ाते हैं। (यजमानाय) उपासना-यज्ञ के रचयिता, तथा (सुन्वते) भक्तिरसवाले उपासक को आप (शिक्षसि) शिक्षा देते हैं, और सम्पत्तियाँ देते हैं। (ते) आपकी (वसु) सम्पत्तियाँ (भूरि) प्रभूत हैं, अक्षय्य हैं।
विषय
दानशील ईश्वर।
भावार्थ
हे (वीर) वीर ! वीर्यवन् ! तू (सेन्यः असि) सेना, स्वामी सहित वीरगणों का हितकारी है। तू (भूरि पराददिः) बहुत बार शत्रुओं को पराजय देने वाला है। तू (दभ्रस्य) अति स्वल्प को (चित्) भी (वृधः असि) बढ़ाने हारा है। तू (सुन्वते यजमानाय) सवन, ब्रह्मोपासना करने वाले आत्मसमर्पक यजमान को (ते) तू अपना (भूरि वसु) बहुतसा धन (शिक्षसि) प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतम ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, you are the valiant hero. You are the warrior taking on many enemies and oppositions at a time. Even the small, you raise to greatness. You lead the creative and generous yajamana to knowledge and power. Hero of the battles of existence, may your wealth, power and honour grow higher and higher.
Translation
O mighty ruler, you are bold and well-wisher of hosts. You vanquish the enemies many times. You strengthen even the feeble and give abundant riches of yours to Yajmana who performs Yajnas.
Translation
O mighty ruler, you are bold and well-wisher of hosts. You vanquish the enemies many times. You strengthen even the feeble and give abundant riches of yours to Yajmana who performs Yajnas.
Translation
O brave king or commander, thou art a worthy warrior and has vanquished thy foes many a time. Thou art an uplifter of the lowly even. Thou givest thy great wealth to the sacrificing worshipper.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(असि) (हि) (वीर) (सेन्यः) सेनाभ्यो हितः (असि) (भूरि) बहु (पराददिः) पर+आङ्+डु दाञ् दाने-किप्रत्ययः। पराञ्च्छत्रूनादाता ग्रहीता (असि) (दभ्रस्य) अल्पस्य पुरुषस्य (चित्) एव (वृधः) वृधेरन्तर्गतण्यन्तात् कप्रत्ययः। वर्धयिता (यजमानाय) श्रेष्ठकर्मकारकाय (शिक्षसि) ददासि-निघ० ३।२०। (सुन्वते) तत्त्वं संस्कुर्वते (भूरि) बहु (ते) त्वदीयम्। स्वकीयम् (वसु) धनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
সভাপতিলক্ষণোপদেশঃ
भाषार्थ
(বীর) হে বীর তুমি (হি) ই (সেন্যঃ) সেনাদের হিতকারী (অসি) হও, (ভূরি) বহুপ্রকারে (পরাদদিঃ) শত্রুদের বন্ধনকারী (অসি) হও। তুমি (দভ্রস্য) ক্ষুদ্র পুরুষদের (চিৎ) অবশ্যই (বৃধঃ) বৃদ্ধিকারী (অসি) হও, তুমি (সুন্বতে) তত্ত্ব নিষ্পাদনকারী (যজমানায়) যজমানগণকে (তে) নিজের (ভূরি) বহু (বসু) ধন (শিক্ষসি) প্রদান করো ॥২॥
भावार्थ
বীর সেনা হিতকারী যোগ্য ক্ষুদ্র অধিকারীদের বর্ধিত করে শ্রেষ্ঠত্বের মান মর্যাদা প্রদান করেন॥২॥
भाषार्थ
(বীর) হে প্রেরণা প্রদানকারী পরমেশ্বর! আপনি (হি) ই (সেন্যঃ) সদ্গুণের সেনানায়ক (অসি) হন। আপনিই (ভূরি) বহুমাত্রায় (পরাদদিঃ) আসুরিক-ভাবনা-সমূহ পরাস্ত করে দৈবী-ভাবনার দাতা। (দভ্রস্য) ছোটো বা অভিনব উপাসককে (চিৎ) ও (বৃধঃ অসি) আপনি বর্ধিত করেন। (যজমানায়) উপাসনা-যজ্ঞের রচয়িতা, তথা (সুন্বতে) ভক্তিরসযুক্ত উপাসককে আপনি (শিক্ষসি) শিক্ষা প্রদান করেন, এবং সম্পত্তি প্রদান করেন। (তে) আপনার (বসু) সম্পত্তি (ভূরি) প্রভূত, অক্ষয়।
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