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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 56/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - पङ्क्तिः सूक्तम् - सूक्त-५६
    38

    मदे॑मदे॒ हि नो॑ द॒दिर्यू॒था गवा॑मृजु॒क्रतुः॑। सं गृ॑भाय पु॒रु श॒तोभ॑याह॒स्त्या वसु॑ शिशी॒हि रा॒य आ भ॑र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मदे॑ऽमदे । हि । न॒: । द॒दि: । यू॒था । गवा॑म् । ऋ॒जु॒ऽक्रतु॑: ॥ सम् । गृ॒भा॒य॒ । पु॒रु । श॒ता । उ॒भ॒या॒ह॒स्त्या । वसु॑ । शि॒शी॒हि । रा॒य: । आ । भ॒र॒ ॥५६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मदेमदे हि नो ददिर्यूथा गवामृजुक्रतुः। सं गृभाय पुरु शतोभयाहस्त्या वसु शिशीहि राय आ भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मदेऽमदे । हि । न: । ददि: । यूथा । गवाम् । ऋजुऽक्रतु: ॥ सम् । गृभाय । पुरु । शता । उभयाहस्त्या । वसु । शिशीहि । राय: । आ । भर ॥५६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 56; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सभापति के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऋजुक्रतुः) सच्ची बुद्धि वा कर्मवाला तू (मदेमदे) आनन्द-आनन्द पर (हि) निश्चय करके (नः) हमको (गवाम्) गो आदि पशुओं के (यूथा) समूहों का (ददिः) देनेवाला है, (उभयाहस्त्या) दोनों हाथों से (पुरु) बहुत (शता) सैकड़ों (वसु) धनों को (सं गृभाय) संग्रह कर, (शिशीहि) तीक्ष्ण हो और (रायः) धनों को (आ) सब ओर से (भर) भर ॥४॥

    भावार्थ

    बुद्धिमान् राजा आनन्द के प्रत्येक अवसर पर योग्य पुरुषों का सत्कार करे और उचित व्यय करने के लिये सदा धन का संग्रह करता रहे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(मदेमदे) प्रत्येकहर्षावसरे (हि) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (ददिः) डुदाञ् दाने-किप्रत्ययः। दाता (यूथा) यूथानि। समूहान् (गवाम्) गवादिपशूनाम् (ऋजुक्रतुः) सरलबुद्धिः। सत्यकर्मा (संगृभाय) सम्यग् गृहाण (पुरु) बहूनि (शता) शतानि (उभयाहस्त्या) विभक्तेर्ड्याजादेशः, छान्दसो दीर्घः। उभाभ्यां हस्ताभ्याम् (वसु) वसूनि। धनानि (शिशीहि) शो तनूकरणे, विकरणस्य श्लुः, अभ्यासस्य इत्वम्। ई हल्यघोः। पा० ६।४।११३। इति धातोरीत्वम्। श्य। तीक्ष्णीभव। उद्यतो भव (रायः) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धेहि ॥

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    विषय

    उभया हस्त्या वसु आभर

    पदार्थ

    १. (ऋजुक्रतुः) = ऋजुता से सब कर्मों को करनेवाले ये प्रभु (मदे मदे) = उल्लास के जनक सोम का रक्षण होने पर (हि) = निश्चय से (न:) = हमारे लिए गर्वा यूथा इन्द्रियों के समूहों को (ददिः) = देनेवाले होते हैं। २. हे प्रभो! आप (उभया हस्त्या) = दोनों हाथों से (पुरूशता) = बहुत सैकड़ों-अनेक वसु धनों को संगभाय ग्रहण कीजिए। (शिशीहि) = हमारी बुद्धियों को तीन बनाइए और (रायः आभर) = हमारे लिए ऐश्वर्यों को प्राप्त कराइए।

    भावार्थ

    प्रभु हमें उत्तम इन्द्रियों दें। धनों को प्राप्त कराएँ। धनों का सद्विनियोग करते हुए हम तीक्ष्ण बुद्धि बनें।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (मदेमदे) जब-जब आप प्रसन्न हों तब-तब आप (नः) हम उपासकों को (गवाम्) सुखसामग्री के (यूथा) समूह (ददिः) देते रहिए। (ऋजुक्रतुः) आपके कर्म और संकल्प सत्यमय हैं, जैसे धनी (उभया हस्त्या) दोनों हाथ (संगृभाय) भरकर (पुरूवसु) प्रभूत धन देता है, वैसे ही आप भी हमें (शता वसु) सैकड़ों प्रकार के धन (शिशीहि) प्रदान कीजिए और हमें (रायः) धनों से (आ भर) भर दीजिए।

    टिप्पणी

    [गवाम्=गौः सुखम् (उणा০ को০ २.६८)। वैदिक यन्त्रालय, अजमेर। उभयाहस्त्या=उभयाहस्ति+आ।

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    विषय

    दानशील ईश्वर।

    भावार्थ

    हे इन्द्र ! तू (ऋजुक्रतुः) अति सरल, सत्य, उत्तम, अर्जन योग्य ज्ञान, बल और क्रिया से सम्पन्न होकर (नः) हमें (गवाम्) इन्द्रियों और गौ आदि पशुओं के (यूथा) समूहों को (ददिः) प्रदान करता है। तू (पुरुशता) बहुत से सैकड़ों पालक ऐश्वर्यों को (सं गृभाय) संग्रह कर। (उभया हस्त्या) दोनों हाथों से भर भर कर (वसु शिशीहि) ऐश्वर्य प्रदान कर। (रायः आ भर) हमें नाना धन सम्पदाएं प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतम ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord of wealth, power and generosity, in every joy of life, you are the giver. You are the giver of plenty of cows and abundance of light and sense. Lord of simple, natural and divine action of yajna, may he provide hundreds of kinds of wealth for us and bless us with both of his hands generously. Lord of wealth and glory, bring us the wealth of joy, dignity and glory and let us shine with honour.

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    Translation

    He, righteous-hearted gives us the herd of cow on each occasion of pleasure. You gather the treasure of hundred sorts. You gave wealth with both hands and bring us all riches.

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    Translation

    He, righteous-hearted gives us the herd of cow on each occasion of pleasure. You gather the treasure of hundred sorts. You gave wealth with both hands and bring us all riches.

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    Translation

    O mighty Lord or king, on every occasion of joy and pleasure, being equipped with highly simple and straight act of knowledge, valour or sacrifice, Thou offerest us herds of cows. Dole us out hundred sorts of riches by getting hold of them with both the hands and invest us with wealth.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(मदेमदे) प्रत्येकहर्षावसरे (हि) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (ददिः) डुदाञ् दाने-किप्रत्ययः। दाता (यूथा) यूथानि। समूहान् (गवाम्) गवादिपशूनाम् (ऋजुक्रतुः) सरलबुद्धिः। सत्यकर्मा (संगृभाय) सम्यग् गृहाण (पुरु) बहूनि (शता) शतानि (उभयाहस्त्या) विभक्तेर्ड्याजादेशः, छान्दसो दीर्घः। उभाभ्यां हस्ताभ्याम् (वसु) वसूनि। धनानि (शिशीहि) शो तनूकरणे, विकरणस्य श्लुः, अभ्यासस्य इत्वम्। ई हल्यघोः। पा० ६।४।११३। इति धातोरीत्वम्। श्य। तीक्ष्णीभव। उद्यतो भव (रायः) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धेहि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সভাপতিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ঋজুক্রতুঃ) সরলবুদ্ধি বা সত্যকর্মা তুমি (মদেমদে) প্রত্যেক আনন্দ মুহূর্তে (হি) নিশ্চিত রূপে (নঃ) আমাদের (গবাম্) গাভী আদি পশুদের (যূথা) সমূহ (দদিঃ) প্রদানকারী, (উভয়াহস্ত্যা) উভয় হস্ত দ্বারা তুমি (পুরু) বহু (শতা) শত (বসু) ধন (সং গৃভায়) সংগ্রহ করো, (শিশীহি) তীক্ষ্ণ হও এবং (রায়ঃ) ধন-সম্পদ (আ) সকল দিক থেকে (ভর) ধারণ করাও ॥৪॥

    भावार्थ

    বুদ্ধিমান্ রাজা আনন্দের প্রত্যেক অবসরে যোগ্য পুরুষের সৎকার করে/করুক এবং যথাযথ ব্যয় করার জন্য সদা ধন সংগ্রহ করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (মদেমদে) যখন-যখন আপনি প্রসন্ন হন তখন-তখন আপনি (নঃ) আমাদের [উপাসকদের] (গবাম্) সুখসামগ্রীর (যূথা) সমূহ (দদিঃ) প্রদান করুন। (ঋজুক্রতুঃ) আপনার কর্ম এবং সঙ্কল্প সত্যময়, যেমন ধনী (উভয়া হস্ত্যা) দুই হাত (সঙ্গৃভায়) পরিপূর্ণ করে (পুরূবসু) প্রভূত ধন প্রদান করে, তেমনই আপনিও আমাদের (শতা বসু) শত প্রকারের ধন (শিশীহি) প্রদান করুন এবং আমাদের (রায়ঃ) ধন দ্বারা (আ ভর) পরিপূর্ণ করুন।

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