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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सुतकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६०
    39

    ए॒वा रा॒तिस्तु॑वीमघ॒ विश्वे॑भिर्धायि धा॒तृभिः॑। अधा॑ चिदिन्द्र मे॒ सचा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । रा॒ति: । तु॒वि॒ऽम॒घ॒ । विश्वे॑भि: । धा॒यि॒ । धा॒तृऽभि॑: ॥ अध॑ । चि॒त् । इ॒न्द्र॒ । मे॒ । सचा॑ ॥६०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा रातिस्तुवीमघ विश्वेभिर्धायि धातृभिः। अधा चिदिन्द्र मे सचा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । राति: । तुविऽमघ । विश्वेभि: । धायि । धातृऽभि: ॥ अध । चित् । इन्द्र । मे । सचा ॥६०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 60; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (तुविमघ) हे बहुत धनवाले ! (रातिः) [तेरा] दान (एव) निश्चय करके (विश्वेभिः) सब (धातृभिः) कर्मधारियों करके (धायि) धारण किया गया है, (अध) सो, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (मे) मेरे लिये (चित्) भी (सचा) नित्य मेल से [रह] ॥२॥

    भावार्थ

    वीर पुरुष बहुत धन को एकत्र करके अपने कर्मकारियों को सदा प्रसन्न रक्खे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(एव) निश्चयेन (रातिः) दानम् (तुविमघ) हे बहुधनवन् (विश्वेभिः) सर्वैः (धायि) अधायि। धार्यते (धातृभिः) कर्मधारकैः (अध) अनन्तरम् (चित्) एव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (मे) मह्यम् (सचा) समवायेन वर्तस्वेति शेषः ॥

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    विषय

    धाता

    पदार्थ

    १. हे (तुवीमघ) = महान् ऐश्वर्यवाले प्रभो! (एवा) = इसप्रकार, अर्थात् आपके स्मरणपूर्वक कर्म करने के द्वारा (विश्वेभि:) = सब (धातृभिः) = धारणात्मक कर्म करनेवालों से (राति:धायि) = आपका दान धारण किया जाता है। ये धाता लोग आपसे ऐश्वर्य प्राप्त करके उस ऐश्वर्य का विनियोग धारणात्मक कर्मों में करते हैं। २. (अधा) = अब जबकि मैं ऐश्वर्य का विनियोग धारणात्मक कौ में करूँ, हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (चित्) = निश्चय से (मे सचा) = मेरे साथ होनेवाले होइए। आपको साथी के रूप में पाकर ही मैं उत्तम कार्यों को करता रह सकूँगा।

    भावार्थ

    लोकहित के कर्मों में ऐश्वर्य का विनियोग करनेवाले ही प्रभु से ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं-प्रभु इन्हीं के साथी [मित्र] होते हैं।

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    भाषार्थ

    (तुवीमघ) हे महा-ऐश्वर्यशाली महेश्वर! (विश्वेभिः) धारणा-ध्यानवाले सब योगिजन, (रातिः) आप द्वारा दी गई विभूतियों को (धायि) धारण करते हैं—(एव) यह निश्चित है। (अधा चित्) तदनन्तर ही, अर्थात् आध्यात्मिक विभूतियाँ धारण करने के पश्चात् ही, (इन्द्र) हे महेश्वर! आप (मे) मेरे (सचा) साथी अर्थात् सखा बनते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, generous lord of the wealth and glory of the world, thus by practice and meditation, is divine generosity cultivated and achieved by all those who bear and bring the offerings to you. O lord of power and immense generosity, be my friend and companion.

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    Translation

    O wealthiest king, so you have the Offerings that have been paid by the men, so, O mighty King, please dwel even with me.

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    Translation

    O wealthiest king, so you have the offerings that have been paid by the men, so, O mighty King, please dwel even with me.

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    Translation

    O Lord of vast fortunes and wealth, all the sustainer and nourishers of the world have rightly availed themselves of Thy gifts. In the same manner, Latest Thou, O Lord of fortunes, be with me, (Thy devotee),

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(एव) निश्चयेन (रातिः) दानम् (तुविमघ) हे बहुधनवन् (विश्वेभिः) सर्वैः (धायि) अधायि। धार्यते (धातृभिः) कर्मधारकैः (अध) अनन्तरम् (चित्) एव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (मे) मह्यम् (सचा) समवायेन वर्तस्वेति शेषः ॥

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