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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सुतकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६०
    42

    मो षु ब्र॒ह्मेव॑ तन्द्र॒युर्भुवो॑ वाजानां पते। मत्स्वा॑ सु॒तस्य॒ गोम॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मो इति॑ । सु । ब्र॒ह्माऽइ॑व । त॒न्द्र॒यु: । भुव॑: । वा॒जा॒ना॒म् । प॒ते॒ ॥ मत्स्व॑ । सु॒तस्य॑ । गोऽम॑त: ॥६०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मो षु ब्रह्मेव तन्द्रयुर्भुवो वाजानां पते। मत्स्वा सुतस्य गोमतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मो इति । सु । ब्रह्माऽइव । तन्द्रयु: । भुव: । वाजानाम् । पते ॥ मत्स्व । सुतस्य । गोऽमत: ॥६०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 60; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (वाजानां पते) हे अन्नों के रक्षक ! (ब्रह्मा इव) ब्रह्मा [वेदज्ञाता] के समान [होकर] तू (तन्द्रयुः) आलसी (मो षु भुवः) कभी भी मत हो, (गोमतः) वेदवाणी से युक्त (सुतस्य) तत्त्व रस का (मत्स्व) आनन्द भोग ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्वानों के समान निरालसी होकर तत्त्वज्ञान के अभ्यास से सुखी होवें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(मो) नैव (सु) (ब्रह्मा) वेदज्ञाता (इव) यथा (तन्द्रयुः) तद्रि अवसादे मोहे च-घञ्, क्यच्-उ। तन्द्रम् आलस्यमिच्छन्। आलस्ययुक्तः (भुवः) भूयाः (वाजानाम्) अन्नानाम् (पते) रक्षक (मत्स्व) हर्षं प्राप्नुहि (सुतस्य) तत्त्वरसस्य (गोमतः) वेदवाणीयुक्तस्य ॥

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    विषय

    गोमतः सुतस्य मत्स्वा

    पदार्थ

    १. प्रभु जीव से कहते हैं कि हे (सुवाजानां पते) = अपनी शक्तियों का सम्यक् रक्षण करनेवाले जीव! (ब्रह्म इव) = शक्तियों का रक्षण करता हुआ तू ब्रह्म की भाँति बन। (मा उ) = मत ही (तन्द्रयु:) = आलस्य को अपने साथ जोड़नेवाला हो। आलस्यशून्य होकर अपने कर्तव्यकों को करता हुआ तू (गोमतः) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाले व प्रशस्त इन्द्रियों-इन्द्रियों की शक्ति को बढ़ानेवाले (सुतस्य) = सोम का (मत्स्व) = आनन्द ले। सोम-रक्षण द्वारा जीवन को आनन्दमय बना।

    भावार्थ

    शक्तियों का रक्षण करते हुए हम प्रभु-जैसा बनने का प्रयत्न करें। आलस्यशून्य हों। इन्द्रियों को प्रशस्त बनानेवाले सोम का रक्षण करें।

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    भाषार्थ

    परमेश्वर द्वारा दिये गये (वाजानाम्) आध्यात्मिक-अन्नों और आध्यात्मिक-बलों के (पते) हे पति! हे योगेश्वर! आप इन अन्नों और बलों के प्रदान में (तन्द्रयुः) आलसी (मा उ भुवः) कभी न हूजिए, अपितु (सु ब्रह्मा इव) चारों वेदों के जाननेवाले श्रेष्ठ-ब्रह्मा के सदृश, योगविद्या के दान देने में आप भी (भुवः) सक्रिय हूजिए। और (गोमतः) वेदवाणी के स्वामी परमेश्वर के निमित्त (सुतस्य) निष्पादित भक्तिरस के आस्वादन में (मत्स्व) मस्त रहिए। अभिप्राय यह है कि जैसे श्रेष्ठ-ब्रह्मा सदा परोपकारार्थ वेदविद्या का दान करता है, वैसे आप योगेश्वर भी योगविद्या का सदा दान करते रहिए। ब्रह्मा के सम्बन्ध में कहा है कि—“ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्याम्” (ऋ০ १०.७१.११), अर्थात् ब्रह्मा वेदविद्या का कथन करता रहता है।

    टिप्पणी

    [वाजानाम्—वाजः=अन्नम् (निघं০ २.५); बलम् (निघं০ २.९)। आध्यात्मिक विभूतियाँ उपासक के लिए आध्यात्मिक-अन्न तथा आध्यात्मिक-बल रूप होती हैं। यथा—“ते समाधावुपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः” (योगदर्शन ३.३७)। गो=वाक् (निघं০ १.११)।]

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    विषय

    ईश्वर और राजा का वर्णन

    भावार्थ

    हे राजन् ! हे प्रभो ! (ब्रह्मा इव) यज्ञ में ब्रह्मा के समान और निष्ठा में ब्रह्मज्ञानी के समान हे (वाजानां पते) ऐश्वर्यों के स्वामिन्! तू (तन्द्रयुः) आलस्य युक्त (मा उ सु भुवः) कभी मत हो। (गोमतः सुतस्य) गौ आदि पशुओं से सम्पन्न ऐश्वर्य के द्वारा स्वयं (मत्स्व) तृप्त हो। अध्यात्म में—(गोमतः सुतस्य मत्स्व) इन्द्रियों के सासामर्थ्यों सहित उनसे उत्पन्न भीतरी आनन्द और ज्ञानरस से तू तृप्त हो। परमेश्वर पक्ष में—सूर्यादि लोकों सहित उत्पन्न संसार के बीच तू (मत्स्व) स्वयं पूर्णानन्द रूप हो और औरों को भी तृप्त कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ सुतकक्षः सुकक्षो वा ऋषिः। ४-६ मधुच्छन्दा ऋषिः। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O ruler, protector and promoter of the honour and excellence of life, just as a vibrant scholar of divine knowledge never slackens into sloth from wakefulness, so you too should never be slothful and half asleep. Be ever wakeful, enjoy and guard the distilled essence of knowledge and creative achievement of wealth, honour and excellence.

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    Translation

    O King, O Lord of grain and riches, you like the chief Priest of Yajna, never be indolent (in your work) You remain satisfied of the attainments blessed with cows.

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    Translation

    O King, O Lord of grain and riches, you like the chief priest of Yajna, never be indolent (in your work) You remain satisfied of the attainments blessed with cows.

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    Translation

    O Lord of wealthy power and grains, don’t be like a slothful priest. Rejoice in the acquired fortunes, full of wealth of cattle, etc.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(मो) नैव (सु) (ब्रह्मा) वेदज्ञाता (इव) यथा (तन्द्रयुः) तद्रि अवसादे मोहे च-घञ्, क्यच्-उ। तन्द्रम् आलस्यमिच्छन्। आलस्ययुक्तः (भुवः) भूयाः (वाजानाम्) अन्नानाम् (पते) रक्षक (मत्स्व) हर्षं प्राप्नुहि (सुतस्य) तत्त्वरसस्य (गोमतः) वेदवाणीयुक्तस्य ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বাজানাং পতে) হে অন্ন-সমূহের রক্ষক ! (ব্রহ্মা ইব) ব্রহ্মার [বেদজ্ঞাতার] ন্যায় [হয়ে] তুমি (তন্দ্রয়ুঃ) অলস, অকর্মণ্য (মো ষু ভুবঃ) কখনও হয়ো না, (গোমতঃ) বেদবাণীযুক্ত (সুতস্য) তত্ত্ব রসের (মৎস্ব) আনন্দ ভোগ করো॥৩॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিদ্বানগণের ন্যায় কর্মঠ হয়ে তত্ত্বজ্ঞানের অভ্যাস দ্বারা সুখী হয়/হোক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    পরমেশ্বর দ্বারা প্রদত্ত (বাজানাম্) আধ্যাত্মিক-অন্ন এবং আধ্যাত্মিক-বলের (পতে) হে পতি! হে যোগেশ্বর! আপনি এই অন্ন এবং বল প্রদানে (তন্দ্রয়ুঃ) অলস (মা উ ভুবঃ) কখনও হবেন না, অপিতু (সু ব্রহ্মা ইব) চার বেদের জ্ঞাতা শ্রেষ্ঠ-ব্রহ্মার সদৃশ, যোগবিদ্যা দান দেওয়ার ক্ষেত্রে আপনিও (ভুবঃ) সক্রিয় হন। এবং (গোমতঃ) বেদবাণীর স্বামী পরমেশ্বরের নিমিত্ত/জন্য (সুতস্য) নিষ্পাদিত ভক্তিরসের আস্বাদনে (মৎস্ব) মত্ত থাকুন। অভিপ্রায় হল, যেমন শ্রেষ্ঠ-ব্রহ্মা সদা পরোপকারার্থে বেদবিদ্যা দান করে, তেমনই আপনি যোগেশ্বরও যোগবিদ্যার সদা দান করতে থাকুন। ব্রহ্মার বিষয়ে বলা হয়েছে—“ব্রহ্মা ত্বো বদতি জাতবিদ্যাম্” (ঋ০ ১০.৭১.১১), অর্থাৎ ব্রহ্মা বেদবিদ্যার কথন করতে থাকেন।

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