अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 9
तं त्वा॒ वाजे॑षु वा॒जिनं॑ वा॒जया॑मः शतक्रतो। धना॑नामिन्द्र सा॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । वाजे॑षु । वा॒जिन॑म् । वा॒जया॑म: । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो ॥ धना॑नाम् । इ॒न्द्र॒ । सा॒तये॑ ॥६८.९॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा वाजेषु वाजिनं वाजयामः शतक्रतो। धनानामिन्द्र सातये ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । वाजेषु । वाजिनम् । वाजयाम: । शतक्रतो इति शतऽक्रतो ॥ धनानाम् । इन्द्र । सातये ॥६८.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(शतक्रतो) हे सैकड़ों [असंख्य] वस्तुओं में बुद्धिवाले (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (वाजेषु) सङ्ग्रामों के बीच (वाजिनम्) महाबलवान् (तम्) उस (त्वा) तुझको (धनानाम्) धनों के (सातये) भोगने के लिये (वाजयामः) हम प्राप्त होते हैं ॥९॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा पालन से जितेन्द्रिय बलवान् होकर सब विघ्न हटाकर सुख भोगें ॥९॥
टिप्पणी
९−(तम्) तादृशम् (त्वा) त्वाम् (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (वाजिनम्) महाबलवन्तम् (वाजयामः) वज गतौ, चुरादिः। प्राप्नुमः (शतक्रतो) शतेष्वसंख्यातेषु वस्तुषु क्रतुः प्रज्ञा यस्य तत्सम्बुद्धौ (धनानाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सातये) सेवनाय। लाभाय ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = हे ( शतक्रतो ) = असंख्य पदार्थों में बुद्धिवाले और जगत् निर्माण आदि अनन्त कर्मों के करनेवाले ( इन्द्र ) = बड़े ऐश्वर्य के स्वामी ( वाजेषु ) = संग्रामों के बीच ( वाजिनम् ) = महाबलवान् ( तम् त्वा ) = उस आपको ( धनानाम् ) = धनों के ( सातये ) = लाभ के लिए ( वाजयाम: ) = हम प्राप्त होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = परमात्मा महाज्ञानी और महा= उद्योगी हैं। अनेक प्रकार के संग्रामों में विजयशाली हैं। ऐसे परमात्मा की भक्ति करनेवाले पुरुष को चाहिए कि बाह्याभ्यन्तर संग्राम को जीतकर अनेक प्रकार के धन को प्राप्त हो कर सुखी हो । स्मरण रहे कि प्रभु की भक्ति के बिना कोई ज्ञान व कर्म हमारा सफल नहीं हो सकता है । इसलिए उस प्रभु की शरण में आकर उद्योगी बनते हुए धन प्राप्त करें ।
विषय
प्रभु-पूजन व संग्राम-विजय
पदार्थ
१. हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञानों व शक्तियोंवाले प्रभो! (वाजेषु) = काम-क्रोध आदि के साथ होनेवाले संग्रामों में (वाजिनम्) = प्रशस्त शक्ति देनेवाले (तं त्वा) = इन आपको हम (वाजयामः) = अर्चित करते हैं। [वाजयति-अर्चति नि०]। प्रभु की उपासना से-प्रभु की शक्ति से शक्ति-सम्पन्न होकर ही हम शत्रुओं को पराभूत कर पाते हैं। २. हे (इन्द्र) = सर्वेश्वयों के स्वामिन् प्रभो! इन शत्रुओं को जीतकर ही हम (धनानां सातये) = धनों की प्राप्ति के लिए होते हैं। आपने ही शत्रुविजय द्वारा हमें 'स्वास्थ्य-नैर्मल्य-बुद्धि की तीव्रता' रूप ऐश्वर्यों को प्राप्त कराना है।
भावार्थ
प्रभु ही हमें अध्यात्म संग्रामों में विजयी बनाते हैं और धन प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(शतक्रतो) हे सैकड़ों अद्भुत कर्मोंवाले परमेश्वर! (वाजेषु) बलों में (वाजिनम्) महाबली (तम् त्वा) उस आपको, हम उपासक (वाजयामः) प्रेरित करते हैं, ताकि (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप हमें (धनानाम्) आत्मिकधन (सातये) प्रदान करें।
विषय
परमात्मा, विद्वान्, राजा।
भावार्थ
हे (शतक्रतो) सैकड़ों कर्मों, बलों से युक्त ! इन्द्र ऐश्वर्यवन् ! (धनानां सातये) ऐश्वर्यों के प्राप्त करने के लिये (तं) उस जगत्प्रसिद्ध (त्वा) तुझ (वाजिनम्) बलवान् पुरुष को (वाजयामः) प्राप्त होते हैं तुझ से निवेदन करते हैं या तुझे वीर्यवान् बलवान् और अन्नादि से पुष्ट करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Indra, lord of light and power, hero of a hundred yajnic creations, we celebrate your glory of speed and success in the battles of humanity for the achievement of the wealth of life and prosperity of the people.
Translation
O learned one, for the enjoyment of riches we come near you, the mighty one in battles.
Translation
O learned one, for the enjoyment of riches we come near you, the mighty one in battles.
Translation
O mighty king or commander, the hero of various expeditions of courage and bravery, we enhance your striking power in times of war and on the occasions of the acquisition and distribution of wealth and riches.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(तम्) तादृशम् (त्वा) त्वाम् (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (वाजिनम्) महाबलवन्तम् (वाजयामः) वज गतौ, चुरादिः। प्राप्नुमः (शतक्रतो) शतेष्वसंख्यातेषु वस्तुषु क्रतुः प्रज्ञा यस्य तत्सम्बुद्धौ (धनानाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सातये) सेवनाय। लाभाय ॥
बंगाली (3)
পদার্থ
তং ত্বা বাজেষু বাজিনং বাজয়ামঃ শতক্রতো।
ধনানামিন্দ্র সাতয়ে ।।৮২।।
(অথর্ব ২০।৬৮।৯)
পদার্থঃ হে (শতক্রতো) অনন্ত প্রজ্ঞাবান এবং শক্তিশালী, (ইন্দ্র) ঐশ্বর্যবান, (বাজেষু) কাম প্রভৃতি রিপুর সাথে সংগ্রামের সময় (বাজিনম্) বল প্রদানকারী! (তম্ ত্বা) তোমাকেই আমরা (ধনানাম্) ঐশ্বর্যরূপ আত্মিক ও ভৌতিক ধনসম্পদ (সাতয়ে) লাভের জন্য (বাজয়ামঃ) উপাসনা করি।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ পরমাত্মা মহাজ্ঞানী এবং মহা উদ্যোগী। আমাদের আত্মিক ও মানসিক তথা ভৌতিক সংগ্রামে তিনিই সহায়তা দান করেন । এমন পরমাত্মার উপাসক বাহ্যিক ও অভ্যন্তরের সংগ্রামে জিতে অনেক প্রকার আধ্যাত্মিক ও ভৌতিক ধন প্রাপ্ত হয়ে সুখী হতে চান। হে মানব! তোমরা স্মরণে রেখো যে, ঈশ্বরের উপাসনা ছাড়া আমাদের কোনো জ্ঞান বা কর্ম সফল হয় না। এজন্য ঈশ্বরের স্মরণে উদ্যোগী হওয়া উচিত।।৮২।।
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(শতক্রতো) হে শত-শত [অসংখ্য] পদার্থের জ্ঞাতা (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যশালী জগদীশ্বর] (বাজেষু) সংগ্রামের মাঝে (বাজিনম্) মহাবলবান্ (তম্) প্রসিদ্ধ (ত্বা) আপনাকে (ধনানাম্) ধন/সুখ (সাতয়ে) ভোগ করার জন্য (বাজয়ামঃ) আমরা প্রাপ্ত হই ॥৯॥
भावार्थ
মনুষ্য পরমেশ্বরের আজ্ঞা পালন করে জিতেন্দ্রিয় বলবান্ হয়ে সকল বিঘ্ন থেকে মুক্ত হয়ে সুখ ভোগ করুক ॥৯॥
भाषार्थ
(শতক্রতো) হে শত কর্মশীল পরমেশ্বর! (বাজেষু) বলের মধ্যে (বাজিনম্) মহাবলবান (তম্ ত্বা) সেই আপনার প্রতি, আমরা উপাসকরা (বাজয়ামঃ) প্রেরিত করি, যাতে (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি আমাদের (ধনানাম্) আত্মিকধন (সাতয়ে) প্রদান করেন।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal