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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 87/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८७
    67

    तवे॒दं विश्व॑म॒भितः॑ पश॒व्यं यत्पश्य॑सि॒ चक्ष॑सा॒ सूर्य॑स्य। गवा॑मसि॒ गोप॑ति॒रेक॑ इन्द्र भक्षी॒महि॑ ते॒ प्रय॑तस्य॒ वस्वः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । अ॒भित॑ । प॒श॒व्य॑म् । यत् । पश्य॑सि । चक्ष॑सा । सूर्य॑स्य ॥ गवा॑म् । अ॒सि॒ । गोऽप॑ति: । एक॑: । इ॒न्द्र॒ । भ॒क्षी॒महि॑ । ते॒ । प्रऽय॑तस्य । वस्व॑: ॥८७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तवेदं विश्वमभितः पशव्यं यत्पश्यसि चक्षसा सूर्यस्य। गवामसि गोपतिरेक इन्द्र भक्षीमहि ते प्रयतस्य वस्वः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव । इदम् । विश्वम् । अभित । पशव्यम् । यत् । पश्यसि । चक्षसा । सूर्यस्य ॥ गवाम् । असि । गोऽपति: । एक: । इन्द्र । भक्षीमहि । ते । प्रऽयतस्य । वस्व: ॥८७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 87; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पुरुषार्थी के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी मनुष्य] (इदम्) यह (विश्वम्) सब (पशव्यम्) पशुओं [दोपाये और चौपाये जीवों] के लिये हितकर्म (तव) तेरा है, (यत्) जिसको (सूर्यस्य) सूर्य की (चक्षसा) दृष्टि से (अभितः) सब ओर को (पश्यसि) तू देखता है। (एकः) अकेला तू (गवाम्) विद्वानों की (गोपतिः) विद्याओं का रक्षक (असि) है, (ते) तेरे (प्रयतस्य) उत्तम नियमवाले (वस्वः) धन का (भक्षीमहि) हम सेवन करें ॥६॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सूर्य के समान सब ओर को दूरदर्शी होकर सर्वहितकारी होता है, वही विद्या के प्रचार से विद्वानों को सुख देता है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(तव) (इदम्) दृश्यमानम् (विश्वम्) सर्वम् (अभितः) सर्वतः (पशव्यम्) पशुभ्यो द्विपच्चतुष्पद्भ्यो जीवेभ्यो हितं कर्म (यत्) (पश्यसि) निरीक्षसे (चक्षसा) दृष्ट्या (सूर्यस्य) प्रेरकस्यादित्यस्य (गवाम्) गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। विदुषाम् (असि) (गोपतिः) गवां विद्यानां रक्षकः (एकः) अद्वितीयः (इन्द्र) महाप्रतापिन् मनुष्य (भक्षीमहि) अ० १९।८।। भजेमहि, सेविषीमहि (ते) तव (प्रयतस्य) यम-क्त। प्रकृष्टनियमयुक्तस्य (वस्वः) वसुनः। धनस्य ॥

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    विषय

    पशव्यं विश्वम्

    पदार्थ

    १. (इदम्) = यह (अमित:) = चारों ओर फैला हुआ (पशव्यम्) = सब (द्विपात्) = चतुष्पात् प्राणियों के लिए हितकर (विश्वम्) = जगत् (तव) = आपका ही है। (यत्) = जिस जगत् को आप (सूर्यस्य चक्षसा) = सूर्य के प्रकाश से (पश्यसि) = प्रकाशित करते हैं। २. हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो। आप (कः इत्) = अकेले ही (गवां गोपतिः असि) = सब गौओं के स्वामी हैं। 'गो' शब्द ऐश्वर्य का प्रतीक है-सब ऐश्वयों के स्वामी आप ही हैं। हे प्रभो! ते आपके द्वारा (प्रयतस्य) = [प्रदत्तस्य] दिये हुए (वस्व:) = धन का (भक्षीमहि) = हम उपभोग करें।

    भावार्थ

    प्रभु का यह संसार सबका हितकर है। प्रभु इसे सूर्यकिरणों द्वारा प्रकाशित करते हैं। सब ऐश्वर्यों के स्वामी हैं। प्रभु-प्रदत्त धन का हम उपभोग करें।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (अभितः) सब ओर, (इदं विश्वम्) यह सब, जो (पशव्यम्) द्रष्टव्य जगत् है, वह (तव) आप का है, (यत्) जिस का कि आप ही (पश्यसि) निरीक्षण कर रहे हैं, और जिसे हम उपासक भी, आप की दी हुई (सूर्यस्य चक्षसा) सूर्यरूपी आँख द्वारा देखते हैं। (इन्द्र) हे परमेश्वर (एकः) आप अकेले ही (गवाम्) समग्र भुवनों के (गोपतिः) भुवनपति (असि) हैं। हे परमेश्वर! (प्रयतस्य) आप द्वारा दी गई पवित्र (वस्वः) सम्पत् का (भक्षीमहि) हम भोग कर रहे हैं।

    टिप्पणी

    [प्रयत= Holy, pious, purified (आप्टे)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Indra, yours is all this living wealth around which you see under the light of sun. You are the sole master, possessor, ruler, protector and promoter of lands and cows and the lights of knowledge and culture of this earth. We ask of you and solicit wealths of the world for ourselves, because you are the giver.

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    Translation

    O mighty ruler, this this world of flocks herds which you behold around through the eye of sun. You are the only Lord of cattle and may we enjoy the wealth which you give.

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    Translation

    O mighty ruler, this is this world of flocks herds which you behold around through the eye of sun. You are the only Lord of cattle and may we enjoy the wealth which you give.

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    Translation

    O Mighty Lord or king, all this animate creation all around is Thine, the one that Thou sees or revealest by the light of the Sun. Thou art the Sole master or Protector of all cattle or lands. We enjoy the riches and wealth of Thee, the Noblest Controller.

    Footnote

    See Ath. 20.17.12.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(तव) (इदम्) दृश्यमानम् (विश्वम्) सर्वम् (अभितः) सर्वतः (पशव्यम्) पशुभ्यो द्विपच्चतुष्पद्भ्यो जीवेभ्यो हितं कर्म (यत्) (पश्यसि) निरीक्षसे (चक्षसा) दृष्ट्या (सूर्यस्य) प्रेरकस्यादित्यस्य (गवाम्) गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। विदुषाम् (असि) (गोपतिः) गवां विद्यानां रक्षकः (एकः) अद्वितीयः (इन्द्र) महाप्रतापिन् मनुष्य (भक्षीमहि) अ० १९।८।। भजेमहि, सेविषीमहि (ते) तव (प्रयतस्य) यम-क्त। प्रकृष्टनियमयुक्तस्य (वस्वः) वसुनः। धनस्य ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পুরুষার্থিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহাপ্রতাপী মনুষ্য] (ইদম্) এই (বিশ্বম্) বিশ্বের সকল (পশব্যম্) পশুর [দ্বিপদী ও চতুষ্পদী জীবের] জন্য হিতকর্ম (তব) তোমার, (যৎ) যা (সূর্যস্য) সূর্যের সমান (চক্ষসা) দৃষ্টি দ্বারা (অভিতঃ) সব দিক দিয়ে (পশ্যসি) তুমি দেখো/নিরীক্ষণ করো। (একঃ) একা তুমি (গবাম্) বিদ্বানদের (গোপতিঃ) বিদ্যার রক্ষক (অসি) হও, (তে) তোমার (প্রয়তস্য) উত্তম নিয়মযুক্ত (বস্বঃ) ধনের (ভক্ষীমহি) আমরা সেবন করি ॥৬॥

    भावार्थ

    যে মনুষ্য সূর্যের সমান সর্বত্র দূরদর্শী হয়ে সর্বহিতকারী হয়, সে বিদ্যার প্রচার দ্বারা বিদ্বানদের সুখ প্রদান করেন ॥৬॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (অভিতঃ) সবদিকে, (ইদং বিশ্বম্) এই সব, যে (পশব্যম্) দ্রষ্টব্য জগৎ আছে, তা (তব) আপনার, (যৎ) যা আপনিই (পশ্যসি) নিরীক্ষণ করছেন, এবং যা আমরা উপাসকও, আপনার প্রদত্ত (সূর্যস্য চক্ষসা) সূর্যরূপী চক্ষু দ্বারা দেখি। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর (একঃ) আপনি একাই (গবাম্) সমগ্র ভূবনের (গোপতিঃ) ভুবনপতি (অসি) হন। হে পরমেশ্বর! (প্রয়তস্য) আপনার দ্বারা প্রদত্ত পবিত্র (বস্বঃ) সম্পদের (ভক্ষীমহি) আমরা ভোগ করছি।

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