अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मरुद्गणः
छन्दः - विराड्गर्भा भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त
93
यू॒यमु॒ग्रा म॑रुत ई॒दृशे॑ स्था॒भि प्रेत॑ मृ॒णत॒ सह॑ध्वम्। अमी॑मृण॒न्वस॑वो नाथि॒ता इ॒मे अ॒ग्निर्ह्ये॑षां दू॒तः प्र॒त्येतु॑ वि॒द्वान् ॥
स्वर सहित पद पाठयू॒यम् । उ॒ग्रा: । म॒रु॒त॒: । ई॒दृशे॑ । स्थ॒ । अ॒भि । प्र । इ॒त॒ । मृ॒णत॑ । सह॑ध्वम् । अमी॑मृणन् । वस॑व: । ना॒थि॒ता: । इ॒मे । अ॒ग्नि: । हि । ए॒षा॒म् । दू॒त: । प्र॒ति॒ऽएतु॑ । वि॒द्वान् ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यूयमुग्रा मरुत ईदृशे स्थाभि प्रेत मृणत सहध्वम्। अमीमृणन्वसवो नाथिता इमे अग्निर्ह्येषां दूतः प्रत्येतु विद्वान् ॥
स्वर रहित पद पाठयूयम् । उग्रा: । मरुत: । ईदृशे । स्थ । अभि । प्र । इत । मृणत । सहध्वम् । अमीमृणन् । वसव: । नाथिता: । इमे । अग्नि: । हि । एषाम् । दूत: । प्रतिऽएतु । विद्वान् ॥१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
युद्ध विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(मरुतः) हे शत्रुघातक शूरों ! (यूयम्) तुम (ईदृशे) ऐसे [कर्म, संग्राम] में (उग्राः) तीव्रस्वभाव (स्थ) हो। (अभि, प्र, इत) आगे बढ़ो, (मृणत) मारो और (सहध्वम्) जीत लो। (इमे) इन (नाथिताः) प्रार्थना किये हुए (वसवः) श्रेष्ठ पुरुषों [मरुत् गणों] ने [दुष्टों को] (अमीमृणन्) मरवा डाला है। (एषाम्) इन शत्रुओं का (दूतः) दाहकारी (अग्निः) अग्नि [समान] (विद्वान्) विद्वान् राजा (हि) अवश्य करके (प्रत्येतु) चढ़ाई करे ॥२॥
भावार्थ
जो शूरवीर संग्रामविजयी हों, जो बैरियों के नाश करने में सहायक रहे हों, उन वीरों को अग्रगामी करें और उनका उत्साह बढ़ाते रहें और राजा विजयी सेनापतियों की पुष्टि करता हुआ शत्रुओं पर चढ़ाई करे ॥२॥
टिप्पणी
टिप्पणी−ʻमरुतःʼ देवताओं के लिये अ० १।२०।१ देखिये ॥ २−(उग्राः)। उत्कठाः। (मरुतः) अ० १।२०।१। मारयन्ति शत्रून् दोषान् वा। शत्रुनाशकाः शूराः। (ईदृशे)। इदम्+दृशिर् प्रेक्षे-कञ्। एतत्सदृशे कर्मणि संग्राम-लक्षणे। (स्थ)। भवथ। (अभि)। आभिमुख्येन। (प्रेत)। इण्गतौ। प्रकर्षेण गच्छत। (मृणत)। मृण हिंसायाम्। मारयत। (सहध्वम्)। अभिभवत। (अमीमृणत्)। मृणतेर्ण्यन्ताच्छान्दसे लुङि चङि। उर्ऋत्। नित्यं छन्दसि। पा० ७।४।७, ८। इति ऋदादेशः। नाशितवन्तः। (वसवः)। अ० १।९।१। प्रशस्ता देवाः। (नाथिताः)। नाथ याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु-क्त। प्रार्थिताः सन्तः। (इमे)। प्रशंसिताः (अग्निः)। ज्ञानवान् तेजस्वी वा राजा (हि)। अवश्यम्। (एषाम्)। उपस्थितानां शत्रूणाम्। (दूतः)। अ० १।७।६। टुदु उपतापे-क्त, दीर्घश्छ। दुनोत्युपतापयतीति। संतापकः। (प्रत्येतु)। प्रतिगच्छतु। (विद्वान्)। नीतिकुशलः ॥
विषय
वीर-प्रेरणा
पदार्थ
१. राजा सैनिकों से कहता है कि हे (मरुत:) = [नियन्ते न निवर्तन्ते] युद्ध में पीठ न दिखानेवाले वीरो! (ईदृशे) = ऐसी अव्यवस्था में जबकि शत्रु का भयंकर संकट उपस्थित है (यूयम) = तुम सब (उना:) = तेजस्वी (स्थ) = बनो। (अभिप्रेत) = शत्रु की ओर प्रकर्षण बढ़ो, (मृणत) = शत्रु सैन्य को मसल डालो, (सहध्वम्) = उसे पराजित करनेवाले होओ। २. (नाथिता:) = राजा से इसप्रकार कहे हुए [नाथ-to beg, to ask for] (इमे) = ये (वसव:) = प्रजाओं के निवास को उत्तम बनानेवाले वीर (अमीमृणन्) = सब ओर शत्रुओं को मसल डालते हैं। शत्रुओं को विनष्ट करके ही तो ये प्रजाओं के जीवन को सुखी बना पाएंगे। (एषाम्) = इन सैनिकों का (अग्निः) = नेतृत्व करनेवाला राजा (हि) = निश्चय से (विद्वान्) = शत्रुओं की गतिविधियों से पूर्ण परिचित होता हुआ (दूतः) = शत्रुओं को सन्तप्त करनेवाला होकर (प्रति एतु) = शत्रु-सैन्य की ओर जानेवाला हो।
भावार्थ
राजा सैनिकों को उत्साहित करे। वीर-प्ररेणा को प्राप्त सैनिक शत्रुओं को पराजित करनेवाले हों, राजा स्वयं सेनाओं का नेतृत्व करे और प्रबल आक्रमण द्वारा शत्रुओं को समास कर दे।
भाषार्थ
(उग्राः) हे उग्र तथा (मरुतः) मारने में कुशल संनिको ! (यूयम) तुम (ईदृश) इस प्रकार के युद्ध कर्म में (स्थित) स्थित होओ, (अभिप्रेत) शत्रुओं अभिमुख प्रयाण करो, (मृणत) उन्हें मारो, (सहध्वम्) उनका पराभव करो। (नाथिताः) अपने-अपने स्वामियों सहित (इमे) इन (वसवः) वसुओं [रुद्र और आदित्यों] ने (अमीमृणन्) शत्रुओं को मार दिया है। (एषाम्) इन शत्रुओं का (विद्वान्) दूतकर्म जाननेवाला (अग्नि:) अग्रणी अर्थात् मुखिया (दूतः) दूत (प्रत्येतु) हमारे प्रति आए।
टिप्पणी
[मरुतः = शत्रुओं को मारने में कुशल (यजु० १७।४०) सैनिक। राष्ट्र पर शत्रुसेना ने यदि आक्रमण किया है तो राष्ट्र के वसु आदि कोटि के विद्वान् भी, निज-निज अध्यक्षों सहित, युद्ध करते हैं। परिणाम यह होता है कि शत्रुपक्ष का दूत, समझौते के लिये, विजयी राष्ट्राधिपति की सेवा में उपस्थित होता है। अग्निः अग्रणीर्भवति (निरुक्त ७।४।१४) अग्निः= सेनाग्निरत्र विवक्षितः (सायण)।]
विषय
शत्रु सेनाओं के प्रति सेनापति के कर्तव्य ।
भावार्थ
सेनापति का सेनाभटों के प्रति उपदेश । हे ( मरुतः ) वायु के समान तीव्र गति से जाने और बल पराक्रम का कार्य करने हारे वीरो ! ( यूयम् ) तुम लोग सदा ( उग्राः ) अपने हथियारों को उठाये रहो और सदा बल बनाये रहो । ( ईदृशे स्थ ) अब युद्ध के अवसर में हो कि तुम शत्रु के प्रति ( अभि प्रेत ) चढ़ाई करो, ( मृणत ) उनको मारो और ( सहध्वं ) शत्रु के प्रहारों को सहन करो और शत्रु का बलपूर्वक विजय करो। (इमे) ये ( नाथिताः ) शत्रु को उपताप पैदा करने हारे ( वसवः ) राष्ट्र में बसने हारे प्रजागण ही हैं जो ( अमीमृणन् ) अपने शत्रुओं का नाश करते हैं। ( एषां ) इनमें से ( दूतः ) मुख्य प्रतिनिधि, सबसे अधिक शत्रु सेना का संतापक (अग्निः) अग्नि स्वरूप सेनापति है जो ( विद्वान् ) सब कार्यों को जानने हारा होकर (प्रति एतु) शत्रु के प्रति गमन किया करे ।
टिप्पणी
अमीमृडन् वसवो नाथितेभ्यो अग्निह्यषां विद्वान् प्रत्येतु शत्रून। इति पैप्प० सं०। ( तु० ) ‘नाथितानिमे’ इति लडविग् कामितः पाठः । (द्वि०) ‘मृडयत सहध्वम् । अमीमृडन वसवो नाथितासो अग्निर्हि शत्रून् प्रत्येति विध्यन्’ इति ‘ओफ्रेश्’ कामितो मन्त्रपाठः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः । अग्निमरुदिन्द्रादयो वहवो देवताः । सेनामोहनम् । १ त्रिष्टुप् । २ विराड् गर्भा भुरिक् । ३, ६ अनुष्टुभौ । विराड् पुरोष्णिक् । षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Storm the Enemy
Meaning
O Maruts, stormy troops of commandos in thunderous array, keep steadfast thus in top form. Advance, strike and overthrow. Indefatigable warriors, victorious, they are bright and blazing, and Agni is their leader and commander, ever vigilant about the latest that happens and ever ready to march upon the assailant.
Subject
Marut
Translation
O fierce storm-troopers (The Maruts), stand by us in such a terrible battle. Move forward, attack and over-whelm (the enemy). These Vasus (home guards) have attacked. Now the enemies are suppliant (and imploring for mercy). May the Army Chief, knowing each and every thing go forward to meet them as an envoy.( Maruts = Storm-troopers, rainbringing clouds; man)
Translation
O’ Ye mighty army men; you on the time of such battles attack the foemen, over-come them and kill them. Let these Vasus, the expert armed men being requested butcher these enemies. The learned men amongst them who is conversant with all strategies, as messenger assail them.
Translation
Ye valiant soldiers, on the battlefield, keep your arms up, go forward,kill your foes, win and victory. These terrible, foe-tormenting citizens alonedestroy their enemies. Let the wise commander, their chief, assail the foes!
Footnote
This hymn is addressed by the general to the brave soldiers, who are Maruts i.e., ever ready to die.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
टिप्पणी−ʻमरुतःʼ देवताओं के लिये अ० १।२०।१ देखिये ॥ २−(उग्राः)। उत्कठाः। (मरुतः) अ० १।२०।१। मारयन्ति शत्रून् दोषान् वा। शत्रुनाशकाः शूराः। (ईदृशे)। इदम्+दृशिर् प्रेक्षे-कञ्। एतत्सदृशे कर्मणि संग्राम-लक्षणे। (स्थ)। भवथ। (अभि)। आभिमुख्येन। (प्रेत)। इण्गतौ। प्रकर्षेण गच्छत। (मृणत)। मृण हिंसायाम्। मारयत। (सहध्वम्)। अभिभवत। (अमीमृणत्)। मृणतेर्ण्यन्ताच्छान्दसे लुङि चङि। उर्ऋत्। नित्यं छन्दसि। पा० ७।४।७, ८। इति ऋदादेशः। नाशितवन्तः। (वसवः)। अ० १।९।१। प्रशस्ता देवाः। (नाथिताः)। नाथ याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु-क्त। प्रार्थिताः सन्तः। (इमे)। प्रशंसिताः (अग्निः)। ज्ञानवान् तेजस्वी वा राजा (हि)। अवश्यम्। (एषाम्)। उपस्थितानां शत्रूणाम्। (दूतः)। अ० १।७।६। टुदु उपतापे-क्त, दीर्घश्छ। दुनोत्युपतापयतीति। संतापकः। (प्रत्येतु)। प्रतिगच्छतु। (विद्वान्)। नीतिकुशलः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(উগ্রাঃ) হে উগ্র এবং (মরুতঃ) মারার ক্ষেত্রে কুশল সৈনিকগণ ! (যূয়ম্) তোমরা (ঈদৃশে) এরূপ যুদ্ধ কর্মে (স্থ) স্থিত হও, (অভিপ্রেত) শত্রুদের অভিমুখ প্রয়াণ/গমন করো, (মৃণত) তাঁদের মারো/বিনাশ করো, (সহধ্বম্) তাঁদের পরাজিত করো। (নাথিতাঃ) নিজ-নিজ স্বামীদের সহিত (ইমে) এই (বসবঃ) বসুগণ [রুদ্র ও আদিত্যগণ] (অমীমৃণন্) শত্রুদের মেরে দিয়েছে/বিনাশ করেছে। (এষাম্) এই শত্রুদের (বিদ্বান্) দূতকর্ম সম্পর্কে জ্ঞাত (অগ্নিঃ) অগ্রণী অর্থাৎ মুখ্য (দূতঃ) দূত (প্রত্যেতু) আমাদের প্রতি আসুক/আগমন করুক।
टिप्पणी
[মরুতঃ= শত্রুদের হননে কুশল (যজু০ ১৭।৪০) সৈনিক। রাষ্ট্রে যদি শত্রুসেনা আক্রমণ করে তাহলে রাষ্ট্রের বসু আদি বিদ্বানগণও, নিজ-নিজ অধ্যক্ষ সহিত, যুদ্ধ করে। পরিণাম এটাই হয় যে, শত্রুপক্ষের দূত, সন্ধি করার জন্য, বিজয়ী রাষ্ট্রাধিপতির সেবায় উপস্থিত হয়। অগ্নিঃ অগ্রণীর্ভবতি] (নিরুক্ত ৭।৪।১৪)। অগ্নিঃ= সেনাগ্নিরত্র বিবক্ষিতঃ (সায়ণ)]
मन्त्र विषय
যুদ্ধবিদ্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(মরুতঃ) হে শত্রুঘাতক বীর/যোদ্ধাগণ ! (যূয়ম্) তোমরা (ঈদৃশে) এমন [কর্ম, সংগ্রাম] এ (উগ্রাঃ) তীব্রস্বভাব/উগ্র (স্থ) হও। (অভি, প্র, ইত) অগ্রগামী হও, (মৃণত) মারো/হত্যা করো এবং (সহধ্বম্) জয়ী হও। (ইমে) এই (নাথিতাঃ) প্রার্থিত (বসবঃ) শ্রেষ্ঠ পুরুষগণ [মরুৎগণ দুষ্টদের] (অমীমৃণন্) মেরে দিয়েছে/নাশ করেছে। (এষাম্) এই শত্রুদের (দূতঃ) দাহকারী (অগ্নিঃ) অগ্নি [সমান] (বিদ্বান্) বিদ্বান্ রাজা (হি) অবশ্যই (প্রত্যেতু) আক্রমণ করুক ॥২॥
भावार्थ
যারা বীর সংগ্রামবিজয়ী, যারা শত্রুদের বিনাশের ক্ষেত্রে সহায়ক, সেই বীরদের অগ্রগামী করো এবং তাঁদের উৎসাহ বৃদ্ধি করো এবং রাজা বিজয়ী সেনাপতিদের সহায়তা করে শত্রুদের ওপর আক্রমণ করুক ॥২॥ "মরুতঃ" দেবতাদের জন্য দেখো অ০ ১/২০/১।
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