अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
ऋषिः - भृगुः
देवता - वरुणः, सिन्धुः, आपः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - आपो देवता सूक्त
51
एको॑ वो दे॒वोऽप्य॑तिष्ठ॒त्स्यन्द॑माना यथाव॒शम्। उदा॑निषुर्म॒हीरिति॒ तस्मा॑दुद॒कमु॑च्यते ॥
स्वर सहित पद पाठएक॑: । व॒: । दे॒व: । अपि॑ । अ॒ति॒ष्ठ॒त् । स्यन्द॑माना: । य॒था॒ऽव॒शम् । उत् । आ॒नि॒षु॒: । म॒ही: । इति॑ । तस्मा॑त् । उ॒द॒कम्: । उ॒च्य॒ते॒ ॥१३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
एको वो देवोऽप्यतिष्ठत्स्यन्दमाना यथावशम्। उदानिषुर्महीरिति तस्मादुदकमुच्यते ॥
स्वर रहित पद पाठएक: । व: । देव: । अपि । अतिष्ठत् । स्यन्दमाना: । यथाऽवशम् । उत् । आनिषु: । मही: । इति । तस्मात् । उदकम्: । उच्यते ॥१३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
जल के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(एकः) अकेला (देवः) जयशील परमात्मा (यथावशम्) इच्छानुसार (स्यन्दमानाः) बहते हुए (वः) तुम्हारा (अपि अतिष्ठत्) अधिष्ठाता हुआ। (महीः=महत्यः) शक्तिवाले [आपः जल] ने (इति) इस प्रकार (उत्+आनिषुः) ऊपर को श्वास ली, (तस्मात्) इसलिये (उदकम्) ऊपर को श्वास लेनेवाला उदक वा जल (उच्यते) कहा जाता है ॥४॥
भावार्थ
ईश्वर की सामर्थ्य से सूर्य्य द्वारा जल आकाश में चढ़ता है, इसलिये ‘उदक’ जल का नाम है। ‘उत् आनिषुः’ और ‘उदकम्’ उत्+अन, श्वास लेना-धातु से बनते हैं ॥४॥
टिप्पणी
४−(एकः)। अद्वितीयः। (वः)। युष्मान्। (देवः)। दिवु विजिगीषायाम्-अच्। जेता। (अपि अतिष्ठत्)। अपि=अधि। अधिष्ठितवान्। शासितवान् (स्यन्दमानाः)। स्यन्दनशीलाः। (यथावशम्)। यथेच्छम्। (उत् आनिषुः)। अन प्राणने-लुङ्। उच्छ्वासितवत्यः। (महीः)। महत्यः। (इति)। एवम्। (तस्मात्)। (उदकम्)। कृदाधारार्चिकलिभ्यः कः। उ० ३।४०। इति उत्+अन प्राणने-क। नलोपः। यद्वा। उदकं च। उ० २।३९। इति उन्दी क्लेदने-क्वुन्। उदकं कस्मादुनत्तीति सतः-निरु० २।२४। उच्छ्वासकम्। उन्दनशीलम्। जलम्। (उच्यते)। कथ्यते ॥
विषय
उदानिषुः इति 'उदकम्'
पदार्थ
१. (एक:) = वह अद्वितीय (देव:) = दिव्य गुणों का पुञ्ज प्रभु (यथावशम्) = इच्छानुसार (स्यन्दमाना:) = बहते हुए (वः) = तुम्हें (अप्यतिष्ठत्) = अधिष्ठित करता है। जलों का अधिष्ठाता प्रभु ही तो है। (मही: इति) = 'हम कितने महान् हैं' कि प्रभु हमारा अधिष्ठाता है, इसप्रकार (उदानिषु:) = जलों ने उच्छास लिया, (तस्मात्) = इस कारण से (उदकम् उच्यते) = इनका नाम उदक हो गया [उत् अन्+क, नकार लोप]। प्रभु से अधिष्ठित ये महनीय जल सबको प्राणित करते हैं, अत: 'उदक' कहलाते हैं।
भावार्थ
उस अद्वितीय प्रभु से अधिष्ठित ये जल सबके लिए जीवन देनेवाले होते हैं, अत: 'उदक' शब्द वाच्य होते हैं [उत् आनयन्ति प्राणयन्ति]।
भाषार्थ
(यथावशम्) यथेच्छापूर्वक (स्पन्दमानाः) स्रवण करते हुए (व:) तुम पर [हे आपः ] हे जलो! (एकः देवः) एक देव आदित्य (अपि अतिष्ठत्) अधिष्ठित हुआ है, अतः (मही:) महती तुम (उदानिषुः इति) ऊपर आकाश की ओर उत्प्राणित हुई हो, (तस्मात्) उससे (उदकम् उच्यते) तुम्हें उदक कहा जाता है।
टिप्पणी
["उदानिषुः" द्वारा उदक का निर्वाचन अभिप्रेत है। उदानिषु:=उद्+आ+अन् (प्राणने)। लुङि रूपम्।]
विषय
जलों के नामों के निर्वाचन ।
भावार्थ
हे (आप) जलो ! (एकः देवः) एक विद्वान् पुरुष (यथावशम्) स्वच्छन्द रूप से (स्यन्दमानाः) बहते हुए (वः) तुम जलों पर भी (अपि अतिष्ठत्) वश प्राप्त करता और (महीः) पृथिवी के ऊपर (उद् आनिषुः) ऊंचे स्थानों पर भी चढ़ा देता है (तस्मात्) इस कारण से जल को (उदकम्) उदक (उच्यते) कहा जाता है । अर्थात् जलों में ऊपर उठने का भी गुण है । नल के बल से जल समुद्र-पृष्ठ पर ३३ फीट ऊपर उठ सकता है। अथवा—(एको देवः वः स्यन्दमानाः यथावशम् अपि अतिष्ठत्) एक विद्वान् तुम जलों पर भी अपनी शक्ति और कामना के अनुकल वश करता (महीः उदानिषुः) और बड़े २ पदार्थों को ऊपर उठा देता है (तस्मात् उदकमुच्यते) इस कारण जल को ‘उदक’ कहा जाता है । अर्थात् जल के ऊपर उठाने के गुण से बड़े २ पदार्थों को ऊपर उठाने का कार्य लिया जाता है। जैसे ‘व्रामा प्रेस’ में जल का यह गुण कार्य में लाया जाता है कि जितना बल एक तरफ लगाया जाय उतना ही वे दूसरी तरफ पहुंचा देते हैं । अथवा बहती हुई जलधाराओं को विद्वान् अपने वश करके जहां चाहें ऊपर से या वह ऊपर की भूमि में उठा कर ले जाता है । उनकों यन्त्र के बल से ऊपर उठा लेता है जैसे वाटर-वर्क्स से पर्वतों के शिखर पर भी जल को उठा दिया जाता है इसी से इसका नाम ‘उदक’ है । अथवा देव= सूर्य किरणों द्वारा समुद्र से जलों को मेघ रूप में आकाश के प्रति उठा लेता है । इत्यादि ।
टिप्पणी
‘एको न देवः उपातिष्ठत् स्यन्दमाना उपेत्य’ इति पैप्प० सं० । अपि शब्द अध्यर्थ इति सायणः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्ऋषिः । वरुणः सिन्धुर्वा देवता । १ निचृत् । ५ विराड् जगती । ६ निचृत् त्रिष्टुप् । २-४, ७ अनुष्टुभः । सप्तर्चं सूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Water
Meaning
O waters, rushing according to your own will downwards, only one divine power stands high over you, and that is the sun. Hence you evaporate and rise. Hence your name is ‘udaka’, that which goes upward as vapours.
Translation
Term "udaka" - The Lord alone superintend you (O udaka) who flow according to your will. Due to this, they the mighty ones, heave up having acquired greatness (They breathed upward fast). So they are called udaka (that goes upwards). —
Translation
As one wonderful effulgent power, the Sun has its control over these naturally flowing waters and make them ascend on the regions above the earth, therefore these waters are called Udakam, the water which ascends upwards.
Translation
God alone, is your Master, O waters, flowing according to your will. Mighty powers breathed upward fast; hence Water is the name they bear.
Footnote
Water from the mighty rivers goes up to the sky through the rays of the Sunउत आनिषुः and उदकम् both these words are formed from the root मन to breathe. There is a pun on Ud in उदकम् andउदानिषु: The going up of waters from the rivers and oceans in the form of vapor is a kind of their breathing, hence water is called उदकम्as it goes up.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(एकः)। अद्वितीयः। (वः)। युष्मान्। (देवः)। दिवु विजिगीषायाम्-अच्। जेता। (अपि अतिष्ठत्)। अपि=अधि। अधिष्ठितवान्। शासितवान् (स्यन्दमानाः)। स्यन्दनशीलाः। (यथावशम्)। यथेच्छम्। (उत् आनिषुः)। अन प्राणने-लुङ्। उच्छ्वासितवत्यः। (महीः)। महत्यः। (इति)। एवम्। (तस्मात्)। (उदकम्)। कृदाधारार्चिकलिभ्यः कः। उ० ३।४०। इति उत्+अन प्राणने-क। नलोपः। यद्वा। उदकं च। उ० २।३९। इति उन्दी क्लेदने-क्वुन्। उदकं कस्मादुनत्तीति सतः-निरु० २।२४। उच्छ्वासकम्। उन्दनशीलम्। जलम्। (उच्यते)। कथ्यते ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(যথাবশম্) যথেচ্ছাপূর্বক (স্যন্দমানাঃ) প্রবাহমান (বঃ) তোমাদের ওপর [হে আপঃ] হে জল-সমূহ ! (একঃ দেবঃ) এক দেবতা আদিত্য (অপি অতিষ্ঠৎ) অধিষ্ঠিত হয়েছে, অতঃ (মহীঃ) মহতী তোমরা (উদানিষুঃ ইতি) উপরে আকাশের দিকে উৎপ্রাণিত হয়েছো, (তস্মাৎ) সেই কারণে (উদকম্ উচ্যতে) তোমাদের উদক বলা হয়।
टिप्पणी
["উদানিষুঃ" দ্বারা উদকের নির্বচন অভিপ্রেত আছে। উদানিষুঃ= উদ্+আ+ অন্ (প্রাপণে)। লুঙি রূপম্]
मन्त्र विषय
অপাং গুণা উপদিশ্যন্তেঃ
भाषार्थ
(একঃ) অদ্বিতীয় (দেবঃ) জয়শীল পরমাত্মা (যথাবশম্) ইচ্ছানুসারে (স্যন্দমানাঃ) প্রবাহমান (বঃ) তোমাদের (অপি অতিষ্ঠৎ) অধিষ্ঠাতা হয়েছেন। (মহীঃ=মহত্যঃ) শক্তিশালী [আপঃ জল] (ইতি) এইভাবে (উৎ+আনিষু) উপরের দিকে শ্বাস নিয়েছে, (তস্মাৎ) এইজন্য (উদকম্) উপরের দিকে শ্বাস গ্ৰহণকারী উদক বা জল (উচ্যতে) বলা হয় ॥৪॥
भावार्थ
ঈশ্বরের সামর্থ্য দ্বারা, সূর্য দ্বারা জল আকাশে ওঠে, এইজন্য ‘উদক’ হলো জলের নাম। ‘উৎ আনিষু’ এবং ‘উদকম্’ উৎ+অন, শ্বাস নেওয়া-ধাতু থেকে নিষ্পাদিত ॥৪॥
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