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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - चन्द्रमाः, योनिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वीरप्रसूति सूक्त
    66

    आ ते॒ योनिं॒ गर्भ॑ एतु॒ पुमा॒न्बाण॑ इवेषु॒धिम्। आ वी॒रोऽत्र॑ जायतां पु॒त्रस्ते॒ दश॑मास्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । योनि॑म् । गर्भ॑: । ए॒तु॒ । पुमा॑न् । बाण॑:ऽइव । इ॒षु॒ऽधिम् । आ । वी॒र: । अत्र॑ । जा॒य॒ता॒म् । पु॒त्र: । ते॒ । दश॑ऽमास्य: ॥२३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते योनिं गर्भ एतु पुमान्बाण इवेषुधिम्। आ वीरोऽत्र जायतां पुत्रस्ते दशमास्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ते । योनिम् । गर्भ: । एतु । पुमान् । बाण:ऽइव । इषुऽधिम् । आ । वीर: । अत्र । जायताम् । पुत्र: । ते । दशऽमास्य: ॥२३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

    पदार्थ

    [हे सुभगे] (पुमान्) रक्षा करनेवाला, पराक्रमी (गर्भः) गर्भ (ते) तेरे (योनिम्) गर्भाशय में (आ एतु) आवे, (बाणः इव) जैसे बाण (इषुधिम्) तूणीर [तीरों के थैले] में। (अत्र) इस घर में (दशमास्यः) दश महीने तक पुष्ट हुआ, (ते) तेरा (वीरः) वीर, (पुत्र) कुलशोधक बालक (आ जायताम्) अच्छे प्रकार उत्पन्न हो ॥२॥

    भावार्थ

    वधू और वर यथाविधि ब्रह्मचारी रहकर युक्त आहार विहार करके सन्तान उत्पन्न करें, जिससे गर्भ अवश्य स्थिर रहे और पूर्ण रीति से पुष्ट होकर वीर सन्तान उत्पन्न हो ॥२॥ यहाँ पर अथर्ववेद का० १ सू० ११ मन्त्र ६ का मिलान करो। ऋग्वेद में ऐसा वर्णन है−द॒श मासा॑ञ्छशया॒नः कु॑मा॒रो अधि मा॒तरि॑। नि॒रैतु॑ जी॒वो अक्ष॑तो जी॒वो जीव॑न्त्या॒ अधि॑ ॥ ऋ० ५।७८।९ ॥ (मातरि अधि) माता के गर्भ में जो (कुमारः) बालक (दश मासान्) दश महीनों तक (शशयानः) सोता रहा है, वह (जीवः) जीता हुआ (अक्षतः) घाव से रहित (जीवः) जीव (जीवन्त्याः अधि) जीवती हुई माता से (निरैतु) बाहिर आवे। श्री सायणाचार्य ने यह मन्त्र इस प्रकार श्लोक में लिखा है−दश मासानुषित्वासौ जननीजठरे सुखम्। निर्गच्छतु सुखं जीवो जननी चापि जीवतु ॥ ऋ० सा० भा० ५।७८।९। (जननीजठरे) माता के पेट में (सुखम्) सुख से (दश मासान्) दस महीनों तक (उषित्वा) सोकर (असौ जीवः) वह जीव (निर्गच्छतु) बाहिर आवे, (च) और (जननी अपि) माता भी (जीवतु) जीवित रहे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(योनिम्) अ० १।११।३। गर्भाशयम्। (गर्भः) अ० १।११।२। भ्रूणः। उदरस्थबालकः। (आ, एतु) आगच्छतु। (पुमान्) अ० १।८।१। पा रक्षणे-डुमसुन्। रक्षणसमर्थः सन्तानः। (बाणः) बण शब्दे गतौ वा-घञ्। शरः। नाराचः। (इषुधिम्) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। इति इषु+धा-कि। निषङ्गम्। (वीरः) शूरः। (अत्र) अस्मिन् कुले। (जायताम्) उत्पद्यताम्। (पुत्रः) अ० १।११।५। कुलशोधकः पुरुत्राता। पुतो नरकात् त्राता सन्तानः। यथा, तनयः, सूनुः, इति अपत्यनामसु पठितम्-निघ० २।२। (दशमास्यः) अ० १।११।६। दशमासान् भूतः ॥

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    विषय

    दशमास्यः वीरः

    पदार्थ

    १. हे नारि! (ते) = तेरै (योनिम्) = जनन-स्थान में (पुमान्) = पुंस्त्व से युक्त (गर्भः एतु) = गर्भ प्राप्त हो। इसप्रकार प्राप्त हो (इव) = जैसेकि (बाण:) = बाण (इषुधिम्) = तरकस को प्राप्त होता है। १. वह (ते) = तेरा गर्भ (पुत्र:) = पुत्ररूप में परिणत हुआ-हुआ (दशमास्यः) = दस महीने तक गर्भ में भृत हुआ-हुआ सर्वावयव सम्पूर्ण (वीर:) = बल से युक्त (अत्र) = इस प्रसूतिकाल में (आजायताम्) = अभिमुख उत्पन्न हो।

    भावार्थ

    गर्भ में दसमास तक ठीक रूप में पुष्ट हुआ-हुआ वीर पुत्र हमारे घर में जन्म ले।

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    भाषार्थ

    (ते योनिम्) तेरी योनि में (पुमान् गर्भः) पुमान् गर्भ (आ एतु) आए (इव) जैसे कि (बाणः) बाण (इषुधिम्१) इषुओं को धारण करनेवाले निषङ्ग में स्वभावतः प्राप्त हो जाता है। (अत्र) इस प्रसूतिकाल में या इस तेरे घर में (दशमास्यः) दसवें मास में पैदा होनेवाला (ते वीरः पुत्रः) तेरा वीर पुत्र (आ जायताम्) आजाए या उत्पन्न हो।

    टिप्पणी

    [१. इषुधि:= इषुओं को रखने की थैली। युद्धकाल में यह योद्धाओं की पीठ पर बांधी रहती है। इसे निषङ्ग तुणीर तथा तर्कश भी कहते हैं।]

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    विषय

    उत्तम सन्तान उत्पन्न करने की विधि।

    भावार्थ

    वन्ध्यापन के कारण को दूर कर देने पर (ते योनिं) हे स्त्रि ! तेरे बालक उत्पन्न करने के स्थान, गर्भाशय भाग में (गर्भः) रजः-कण से गर्भित हुआ (पुमान्) डिम्ब अर्थात् पुमान् वीर्य-कण (इषुधिम्) तर्कस में सुरक्षित (बाण-इव) बाण के समान (एतु) प्राप्त हो । और फिर (अन्न) इस गर्भ में (वीरः) पूर्ण वीर्यवान् (पुत्रः) पुत्र (दश-मास्यः) दश मासों तक पुष्टि को प्राप्त होकर (जायतां) उत्पन्न हो ।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘गर्भो योनिम् एतु’, ‘आवीरो जा०’ इति आ० गृ० सू० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। चन्द्रमा उत योनिर्देवता। ५ उपरिष्टाद-भुरिग्-बृहती । ६ स्कन्धोग्रीवी बृहती। १-४ अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Fertility, Prajapatyam

    Meaning

    Let the living embryo come into your womb and be like an arrow in the quiver, and let the ten month mature bonny brave baby take birth for you here in the home.

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    Translation

    May a male embryo come to your womb, just as an arrow comes to the quiver. Thereafter, may a hero be born here, your son, a ten-month babe.

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    Translation

    Let the male embryo eater into your womb like the arrow to the quiver, let ten month child be born from you.

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    Translation

    As arrow to the quiver, so let a male embryo enter thee. Then from thy side be born a babe, a ten-month child, thy heroic son.

    Footnote

    Thee, Thy refer to woman.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(योनिम्) अ० १।११।३। गर्भाशयम्। (गर्भः) अ० १।११।२। भ्रूणः। उदरस्थबालकः। (आ, एतु) आगच्छतु। (पुमान्) अ० १।८।१। पा रक्षणे-डुमसुन्। रक्षणसमर्थः सन्तानः। (बाणः) बण शब्दे गतौ वा-घञ्। शरः। नाराचः। (इषुधिम्) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। इति इषु+धा-कि। निषङ्गम्। (वीरः) शूरः। (अत्र) अस्मिन् कुले। (जायताम्) उत्पद्यताम्। (पुत्रः) अ० १।११।५। कुलशोधकः पुरुत्राता। पुतो नरकात् त्राता सन्तानः। यथा, तनयः, सूनुः, इति अपत्यनामसु पठितम्-निघ० २।२। (दशमास्यः) अ० १।११।६। दशमासान् भूतः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (তে যোনিম্) তোমার যোনিতে (পুমান্ গর্ভঃ) পুমান্ গর্ভ (আ এতু) আসুক (ইব) যেমন (বাণঃ) তীর/বাণ (ইষুধিম১) নিষঙ্গ/তূণীর স্বভাবতঃ প্রাপ্ত হয়। (অত্র) এই প্রসূতিকালে বা এই তোমার ঘরে (দশমাস্যঃ) দশম মাসে জন্মগ্রহণকারী (তে বীরঃ পুত্রঃ) তোমার বীর পুত্র (আ জয়তাম্) আসুক বা জন্ম হোক।

    टिप्पणी

    [১. ইশুধিঃ = বাণ/তীর রাখার থলে। যুদ্ধের সময়, এটি যোদ্ধাদের পিঠে বাঁধা থাকে। ইহাকে নিষঙ্গ, তূণীর এবং তর্কশও বলা হয়।]

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    मन्त्र विषय

    বীরসন্তানোৎপাদনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে সুভগে] (পুমান্) রক্ষাকারী, পরাক্রমী (গর্ভঃ) গর্ভ (তে) তোমার (যোনিম্) গর্ভাশয়ে (আ এতু) আসুক, (বাণঃ ইব) যেমন বাণ (ইষুধিম্) তূণীর [তীরের ঝাঁকা] এর মধ্যে। (অত্র) এই ঘরে (দশমাস্যঃ) দশ মাস পর্যন্ত পুষ্ট হওয়া, (তে) তোমার (বীরঃ) বীর, (পুত্র) কুলশোধক বালক (আ জায়তাম্) উত্তমরূপে উৎপন্ন/জন্ম হোক ॥২॥

    भावार्थ

    বধূ ও বর যথাবিধি ব্রহ্মচারী থেকে যুক্ত আহার বিহার করে সন্তান উৎপন্ন করুক, যাতে গর্ভ অবশ্য স্থির থাকে এবং পূর্ণ রীতিতে পুষ্ট হয়ে বীর সন্তান উৎপন্ন হয় ॥২॥ এখানে অথর্ববেদ কা০ ১ সূ০ ১১ মন্ত্র ৬ এর সাথে মেলাও। ঋগ্বেদে এরূপ বর্ণনা রয়েছে- দ॒শ মাসা॑ঞ্ছশয়া॒নঃ কু॑মা॒রো অধি মা॒তরি॑। নি॒রৈতু॑ জী॒বো অক্ষ॑তো জী॒বো জীব॑ন্ত্যা॒ অধি॑ ॥ ঋ০ ৫।৭৮।৯ ॥ (মাতরি অধি) মাতার গর্ভে যে (কুমারঃ) বালক (দশ মাসান্) দশ মাস পর্যন্ত (শশয়ানঃ) শুয়ে আছে/শায়িত, সেই (জীবঃ) জীবন্ত (অক্ষতঃ) অক্ষত (জীবঃ) জীব (জীবন্ত্যাঃ অধি) জীবিত মাতার থেকে (নিরৈতু) বাইরে আসুক। শ্রী সায়ণাচার্য এই মন্ত্র এইভাবে শ্লোকে লিখেছে- দশ মাসানুষিত্বাসৌ জননীজঠরে সুখম্। নির্গচ্ছতু সুখং জীবো জননী চাপি জীবতু ॥ ঋ০ সা০ ভা০ ৫।৭৮।৯। (জননীজঠরে) মাতার পেটে/জঠরে (সুখম্) সুখপূর্বক (দশ মাসান্) দশ মাস পর্যন্ত (উষিত্বা) শুয়ে (অসৌ জীবঃ) সেই জীব (নির্গচ্ছতু) বাইরে আসুক, (চ) এবং (জননী অপি) মাতাও (জীবতু) জীবিত থাকুক ॥২॥

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