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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - दक्षिणदिक् सकामा अविष्यवः छन्दः - जगती सूक्तम् - दिक्षु आत्मारक्षा सूक्त
    42

    ये॒स्यां स्थ दक्षि॑णायां दि॒श्य॑वि॒ष्यवो॒ नाम॑ दे॒वास्तेषां॑ वः॒ काम॒ इष॑वः। ते नो॑ मृडत॒ ते नोऽधि॑ ब्रूत॒ तेभ्यो॑ वो॒ नम॒स्तेभ्यो॑ वः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒स्याम् । स्थ । दक्षि॑णायाम् । दि॒शि । अ॒वि॒ष्यव॑: । नाम॑ । दे॒वा: । तेषा॑म् । व॒: । काम॑: । इष॑व:। ते । न॒: । मृ॒ड॒त॒ । ते । न॒: । अधि॑ । ब्रू॒त॒ । तेभ्य॑: । व॒: । नम॑: । तेभ्य॑: । व॒: । स्वाहा॑ ॥२६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येस्यां स्थ दक्षिणायां दिश्यविष्यवो नाम देवास्तेषां वः काम इषवः। ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अस्याम् । स्थ । दक्षिणायाम् । दिशि । अविष्यव: । नाम । देवा: । तेषाम् । व: । काम: । इषव:। ते । न: । मृडत । ते । न: । अधि । ब्रूत । तेभ्य: । व: । नम: । तेभ्य: । व: । स्वाहा ॥२६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मारू गीत।

    पदार्थ

    (ये) जो तुम (अस्याम्) इस (दक्षिणायाम्) दक्षिण वा दाहिनी (दिशि) दिशा में (अविष्यवः) रक्षा की इच्छावाले (नाम) नाम (देवाः) विजय चाहनेवाले वीर (स्थ) हो, (तेषाम् नः) उन तुम्हारा (कामः) मनोरथ (इषवः) तीर हैं, (ते) वे तुम (नः) हमें.... [म० १] ॥२॥

    भावार्थ

    दक्षिण दिशा वा दाहिनी ओर वाले रक्षक विजयी वीर दृढ़ मनोरथ से शत्रुओं को जीतकर... [म० १] ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(दक्षिणायाम्) स्याडभावश्छान्दसः। दक्षिणस्याम्। दक्षिणहस्तस्थितायाम् (अविष्यवः) अर्चिशुचि.....इसिः। उ० २।१०८। इति अव रक्षणे-इसि। इति अविः, रक्षणम्। छन्दसि परेच्छायामपि। वा० पा० ३।१।८। इति क्यच्। क्याच्छन्दसि। पा० ३।२।१७०। इति उ प्रत्ययः। अवनेच्छयः। पररक्षणेच्छवः। (कामः) दृढमनोरथः। इष्टविषयोऽभिलाषः। अन्यद्गतम्-म० १ ॥

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    विषय

    दक्षिणस्यां अविष्यवो नाम देवा:

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (अस्याम्) = उस (दक्षिणायां दिशि) = दक्षिण दिशा में स्थित हो-कुशलता की दिशा में स्थित हो-कुशलता के मार्ग से चल रहे हो, वे आप (अविष्यवः नाम) = 'अविष्यु' नामवाले अपना रक्षण करनेवाले (देवा:स्थ) = देव हो, (तेषां व:) = उन आपका (कामः) = संकल्प-प्रबल इच्छा ही (इषवः) = प्रेरक है। कामना के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता, बिना कामना के कुशलता से कर्मों के करने का प्रश्न ही नहीं उठता। कामना होने पर मनुष्य एकाग्रता से कार्य करता है, अत: वह कर्म कुशलता से होता है। जैसे एक कुशल सपेरा साँप को कुशलता से पकड़ता है, साँप उसे काट नहीं पाता। इसीप्रकार इस योगी के द्वारा कार्य ऐसी कुशलता से किये जाते हैं कि ये उसे बाँध नहीं पाते। २. (ते) = वे अविष्यु नामक देवो! आप (नः) = हमें (मृडत) = सुखी करो। (ते) = वे आप (न:) = हमारे लिए (अधिबूत) = आधिक्येन उपदेश दीजिए। (तेभ्यः वः) = उन आपके लिए (नम:) = नमस्कार हो। (तेभ्यः वः) = उन आपके लिए (स्वाहा) = हम आत्मसमर्पण करते हैं। आपके प्रति अपना समर्पण करके हम भी 'अविष्यु' बनें।

    भावार्थ

    गतमन्त्र के अनुसार निरन्तर आगे बढ़नेवाले लोग जिस भी कार्य को करते हैं, उसमें कुशलता प्राप्त करते हैं। कुशलता से कार्य करते हुए ये अपना रक्षण कर पाते हैं। उन कर्मों से ये बद्ध नहीं होते। हम भी उनसे दाक्षिण्य का पाठ पढ़ें।

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    भाषार्थ

    (अस्याम् दक्षिणायाम् दिशि) [हमारे राष्ट्र की] इस दक्षिण दिशा में (ये) जो तुम (अविष्यवः) "स्वेच्छापूर्वक रक्षा करनेवाले" (नाम) अर्थात् इस नामवाले (देवाः) विजिगीषु सैनिक हो, (तेषाम् वः) उन तुम की (काम:) कामना अर्थात् इच्छा ही (इषवः) इषु हैं। (ते) वे तुम (नः मृडत) हमें सुखी करो, (ते) वे तुम (नः) हमें (अधिबूत) राष्ट्र रक्षा के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान का कथन करो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (नमः) नमस्कार हो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (स्वाहा) हमारी सम्पत्तियों की आहुति हो, प्रदान हो।

    टिप्पणी

    [काम:=राष्ट्र रक्षा के लिए स्वेच्छापूर्वक कामना। अविष्यवः=अव (रक्षणे, भ्वादिः) +असुन्+क्यच् (इच्छा) +उः। स्वेच्छापूर्वक राष्ट्र रक्षा करना, न की भृती के कारण। स्वेच्छापूर्वक राष्ट्र रक्षा की कामना राष्ट्रीय शत्रुओं के विनाश में सर्वोत्तम स्वरूप है।]

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    विषय

    प्रबल शक्तिधारी देव के छः रूप ।

    भावार्थ

    (ये देवाः) जो देव विद्वान्गण (अस्याम् दक्षिणायाम् दिशि) इस दक्षिण- बलसाध्य कार्य की दिशा में आप लोग हैं वे (अविष्यः) समस्त संसार की रक्षा करने की इच्छा वाले हैं । इसलिये आपका नाम ‘अविष्यु’ या ‘अवस्यु’ है (तेषां वः काम इषवः) उन आप लोगों का (कामः) प्रवल संकल्प ही इषु=बाण है। (ते नोः अवन्तु०) वे आप हमें सुखी करें, हमें उपदेश करें, आपको हमारा सादर नमस्कार और स्वागत है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘अवस्यवो’ इति सायणः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रः अग्न्यादयो वा बहवो देवताः। १–६ पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्म्या त्रिष्टुप। १ त्रिष्टुप्। २, ५, ६ जगती। ३, ४ भुरिग्। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Protection, and Progress

    Meaning

    O Devas who abide on the right in the southern quarter, your name in action and identity being ‘Avishyus’, eager to defend and protect, your arrows being love and desire to see us grow and advance, pray be kind and gracious to us, speak to us. Honour and salutations to you in homage in truth of thought, word and deed!

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    Translation

    O enlightened ones, willing to protēct, protectors by name, who are postēd in the southern region, desire is your arrows. As such may you grant us happiness; may you speak to us encouraging words. Our homage be to you. To you as such we hereby dedicate.

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    Translation

    Those wonderful physical forces which dwell in the southern direction who bears the name of Avisyavab, the custodian of safety whose arrows are Kama, the desire, be etc. etc.

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    Translation

    O learned persons, who dwell within this southward region, as Ye long for the safety of mankind. Ye are known as Avishyus. Iron determination constitutes your arrows. Bekind and gracious unto us. and instruct us. O you be reverence, to you be welcome!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(दक्षिणायाम्) स्याडभावश्छान्दसः। दक्षिणस्याम्। दक्षिणहस्तस्थितायाम् (अविष्यवः) अर्चिशुचि.....इसिः। उ० २।१०८। इति अव रक्षणे-इसि। इति अविः, रक्षणम्। छन्दसि परेच्छायामपि। वा० पा० ३।१।८। इति क्यच्। क्याच्छन्दसि। पा० ३।२।१७०। इति उ प्रत्ययः। अवनेच्छयः। पररक्षणेच्छवः। (कामः) दृढमनोरथः। इष्टविषयोऽभिलाषः। अन्यद्गतम्-म० १ ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    On our right hand side हमारे दक्षिण दिशा में

    Word Meaning

    दक्षिण दाहिने हाथ में स्थित कार्य कुशलता परिश्रम का संकल्प हमारे जीवन में सुरक्षा प्रदान करने का मुख्य साधन है. विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर , (कार्यकौशल-कृष्टी) तकनीकी विज्ञान का (अनुसंधान करें) और हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव श्रद्धा पूर्वक नमन कर के यज्ञाहुति अर्पित करते हैं.और जो हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं. In our right hand dwell the dexterous life support skills. The resolve to lead skilful action oriented life ensures self preservation and protection. Learned persons should research and develop science and technologies and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and make our offerings in Agnihotra dedicated to Him.

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অস্যাম্ দক্ষিণায়াম্ দিশি) [আমাদের রাষ্ট্রের] এই দক্ষিণ দিশায় (যে) যে তোমরা (অবিষ্যবঃ) "স্বেচ্ছাপূর্বক রক্ষাকারী” (নাম) অর্থাৎ এই নামের (দেবাঃ) বিজিগীষু/ বিজয়াকাঙ্ক্ষী সৈনিক হও, (তেষাম্ বঃ) সেই তোমাদের (কামঃ) কামনা অর্থাৎ ইচ্ছাই হলো (ইষবঃ) বাণ। (তে) সেই তোমরা (নঃ মৃডত) আমাদের সুখী করো, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের (অভিব্রূত) রাষ্ট্র-রক্ষা সম্বন্ধে অধিক জ্ঞানের কথন করো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) নমস্কার। (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) আমাদের সম্পত্তির আহুতি হোক, প্রদান হোক।

    टिप्पणी

    [কামঃ= রাষ্ট্র-রক্ষার জন্য জন্য স্বেচ্ছাপূর্বক কামনা। অবিষ্যবঃ=অব (রক্ষণে, ভ্বাদিঃ) + অসুন্ + ক্যচ্ (ইচ্ছা) + উঃ‌। স্বেচ্ছাপূর্বক রাষ্ট্র রক্ষা করা, ভৃতির কারণে নয়। স্বেচ্ছাপূর্বক রাষ্ট্র-রক্ষার কামনা রাষ্ট্রীয়-শত্রুদের বিনাশের ক্ষেত্রে সর্বোত্তম বাণরূপ।]

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    मन्त्र विषय

    যুদ্ধগীতিঃ

    भाषार्थ

    (যে) যে তোমরা (অস্যাম্) এই (দক্ষিণায়াম্) দক্ষিণ বা ডান (দিশি) দিশায় (অবিষ্যবঃ) রক্ষার অভিলাষী (নাম) নাম (দেবাঃ) বিজয় অভিলাষী বীর (স্থ) হও, (তেষাম্ নঃ) সেই তোমাদের (কামঃ) মনোরথ হলো (ইষবঃ) তীর, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের জন্য (অধি) অধিকারপূর্বক (ব্রূত) বলো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) সৎকার বা অন্ন হোক, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) সুন্দর বাণী [প্রশংসা] হোক ॥২॥

    भावार्थ

    দক্ষিণ দিশা বা ডানদিকের রক্ষক বিজয়ী বীর দৃঢ় মনোরথের দ্বারা শত্রুদের জয় করে নিজ রাজার জয়জয়কার ঘোষণা করুক, এবং রাজা সৎকারপূর্বক উচ্চ অধিকার প্রদান করে তাঁদের উৎসাহ বৃদ্ধি করুক ॥২॥

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