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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सौषधिका निलिम्पाः छन्दः - जगती सूक्तम् - दिक्षु आत्मारक्षा सूक्त
    45

    ये॒स्यां स्थ ध्रु॒वायां॑ दि॒शि नि॑लि॒म्पा नाम॑ दे॒वास्तेषां॑ व॒ ओष॑धी॒रिष॑वः। ते नो॑ मृडत॒ ते नोऽधि॑ ब्रूत॒ तेभ्यो॑ वो॒ नम॒स्तेभ्यो॑ वः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒स्याम् । स्थ । ध्रु॒वाया॑म् । दि॒शि । नि॒ऽलि॒म्पा: । नाम॑ । दे॒वा: । तेषा॑म् । व॒: । ओष॑धी: । इष॑व: । ते । न॒: । मृ॒ड॒त॒ । ते । न॒: । अधि॑ । ब्रू॒त॒ । तेभ्य॑: । व॒: । नम॑: । तेभ्य॑: । व॒: । स्वाहा॑ ॥२६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येस्यां स्थ ध्रुवायां दिशि निलिम्पा नाम देवास्तेषां व ओषधीरिषवः। ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अस्याम् । स्थ । ध्रुवायाम् । दिशि । निऽलिम्पा: । नाम । देवा: । तेषाम् । व: । ओषधी: । इषव: । ते । न: । मृडत । ते । न: । अधि । ब्रूत । तेभ्य: । व: । नम: । तेभ्य: । व: । स्वाहा ॥२६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मारू गीत।

    पदार्थ

    (ये) जो तुम (अस्याम्) इस (ध्रुवायाम्) स्थिर वा निश्चित (दिशि) दिशा में (निलिम्पाः) लेप करनेवाले वैद्य (नाम) नाम (देवाः) विजय चाहनेवाले वीर (स्थ) हों, (तेषाम् वः) उन तुम्हारी (ओषधीः) अन्न, सोमलतादि ओषधियाँ (इषवः) तीर है, (ते) वे तुम (नः) हमें... [म० १] ॥५॥

    भावार्थ

    लेप पट्टी आदि करनेवाले सद्वैद्य दृढ़ निश्चित स्थान में औषधालय बनाकर सैनिकों को स्वस्थ रखकर शत्रुओं को जीतकर... [म० १] ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(ध्रुवायाम्) अ० २।२६।४। स्थिरायाम्। निश्चितायाम् (निलिम्पाः) नौ लिम्पेरिति। वा० पा० ३।१।१३८। इति नि+लिप लेपे मुचादिः-श प्रत्ययः। नितरां लेपनकर्तारः सद्वैद्याः (ओषधीः) अ० १।३०।३। ओषधयः। व्रीहियवसोमलताद्याः। अन्यद् गतम् म० १ ॥

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    विषय

    धुवायां दिशि निलिम्पा नाम देवा

    पदार्थ

    १. उन्नति के लिए नींव की दृढ़ता व स्थिरता आवश्यक है, अत: ध्रुवा दिशा आती है। यह स्थिरता का पाठ पढ़ाती है। (ये) = जो (अस्याम्) = इस (धुवायां दिशि) = धूवा दिक् में (निलिम्पा: नाम) = उस उन्नति के कार्य में नितरां लिप्त हो जानेवाले-उन्नति में ही लिस व आश्रित [लगे हुए] निलिम्प नामक (देवाः स्थ) = देव हैं। ये शत्रुओं को विद्ध करके ब्रह्मरूप लक्ष्य के वेधन का प्रयत्न करते हैं-(प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेदव्यं शरबत्तन्मयो भवेत्॥ तेषां वः) = उन आपकी (ओषधी: इषवः) = व्रीहि यवादि ओषधियाँ प्रेरक है। इन सब ओषधियों की जड़ें भूमि में जितनी दृढ़ हो जाती हैं, उतनी ही ये फूलती-फलती हैं। इसप्रकार हम जितना आधार को दृढ़ बनाएँगे उतना ही उन्नत हो पाएँगे। २. (ते) = वे निलिम्प नामक देवो! (नः मृडत) = हमपर अनुग्रह करो। (ते) = वे (आपन:) = हमारे लिए (अधिबूत) = आधिक्येन उपदेश दो। (तेभ्यः वः) = उन आपके लिए (नम:) = नमस्कार हो। (तेभ्यः वः) = उन आपके लिए (स्वाहा) = हमारा समर्पण हो।

    भावार्थ

    निलिम्प नामक देववृत्ति के पुरुषों के सम्पर्क में हम भी निलिम्प बनें, उन्नति के कार्यों में स्थिरता से लगे रहें।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अस्याम् ध्रुवायां दिशि) इस स्थिर भूमिरूपा दिशा में (निलिम्पा:) नितरां लिप्त, (नाम) अर्थात् इस नामवाले (देवाः) मोदप्रमोद में रत रहते (स्थ) हो (तेषाम् वः) उन तुम्हारे (इषवः) इषु हैं (औषधि:) औषधियां। (ते) वे तुम (नः मृडत) हमें सुखी करो, (ते) वे तुम (नः) हमें (अधिबूत) राष्ट्र रक्षा के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान का कथन करो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (नमः) नमस्कार हो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (स्वाहा) हमारी सम्पत्तियों की आहुति हो, प्रदान हो।

    टिप्पणी

    [ध्रुवा दिशा है पृथिवी, अतः पार्थिव जीवनों में लिप्त मनुष्य। दिवु=मोद-प्रमोदरूप जीवनोंवाले (दिवादिः)। ये औषधियां उत्पन्न कर राष्ट्र की सेवा करते हैं। अन्नरूपी ओषधियों का वर्णन मन्त्र ३ में हुआ है। अत: औषधि: पद रोगनिवारक औषधियों के लिए है, युद्ध में आहत सैनिकों के लिए तथा सब प्रजा के लिए रोगोपचार में औषधियां चाहिएँ। स्वाहा=प्रशंसावचन हो उनके लिए।]

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    विषय

    प्रबल शक्तिधारी देव के छः रूप ।

    भावार्थ

    और (ये देवाः) जो देव गण (अस्यां ध्रुवायां दिशि) इस ध्रुवा, अविचल पृथिवी की ओर या नीचे की तरफ (देवाः) देव गण हैं (ते निलिम्पा नाम) वे निलिम्प = चिपटने हारे हैं । वे अपने मूल छोड़ कर पृथिवी के साथ चिपट जाते हैं, (तेषां वः ओषधीः इषवंः) उन आप लोगों के (ओषधिगण) ही इषु हैं, आप उनसे रोगादि दूर करके हमें सुखी करें, हमें उपदेश करें और आप को हम नमस्कार करते और स्वागत करते हैं ।

    टिप्पणी

    ‘निलिम्पा’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रः अग्न्यादयो वा बहवो देवताः। १–६ पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्म्या त्रिष्टुप। १ त्रिष्टुप्। २, ५, ६ जगती। ३, ४ भुरिग्। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Protection, and Progress

    Meaning

    O Devas who abide below in the nether quarter, your name, action and identity in the essence being ‘Nilimpas’, stationed and fixed, your equipment being ‘oshadhayah’, herbs, sanatives and food, pray be kind and gracious to us, keep on speaking to us, never fail to communicate. Honour and salutations to you in homage in truth of thought, word and deed!

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    Translation

    O enlightened ones, deeply attached (Nilimpā) by name, posted in the region, under-neath, plants are your arrows. As such may you grant us happiness; may you speak to us encouraging words. Our homage be to you. To you as such we hereby dedicate.

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    Translation

    Those wonderful physical forces which dwell in the direction below who bear the name of Nilimpah, sticking and adhasive, whose arrows are Aushadbah, the herbaceous plants, be etc. etc.

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    Translation

    Ye heroes anxious for victory, who dwell in this firm-set region, you are known as Physicians. Medicinal plants are your arrows. Be kind and gracious unto us, and instruct us. To you be reverence, to you be welcome!

    Footnote

    Dwellers in the lower region (Nadir) are known as physicians who cure the wounded soldiers.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(ध्रुवायाम्) अ० २।२६।४। स्थिरायाम्। निश्चितायाम् (निलिम्पाः) नौ लिम्पेरिति। वा० पा० ३।१।१३८। इति नि+लिप लेपे मुचादिः-श प्रत्ययः। नितरां लेपनकर्तारः सद्वैद्याः (ओषधीः) अ० १।३०।३। ओषधयः। व्रीहियवसोमलताद्याः। अन्यद् गतम् म० १ ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Above us ध्रुवा ऊपर की दिशा में

    Word Meaning

    वे जन जो भूमि पर आमोद प्रमोद के जीवन में स्थिर रहते हैं. उन्हें स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए शिक्षा और ओषधियों की आवश्यकता पड़ती है. वे ओषधियां हमारे सुख का साधन है जिन के लिए हम आभारी हैं, उन के बारे में विद्वत्जन हमें उपदेश करें और हम अग्निहोत्र के द्वारा उन की उपलब्धि से लाभान्वित हों . Those persons who stick to worldly routines and make merry are in need of directions by being spoken to for use of proper health care medicines. We are grateful for these remedies and perform Agnihotras dedicatedly.

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (যে) যে (অস্যাম্ ধ্রুবায়াং দিশি) এই স্থির ভূমিরূপা দিশায় (নিলিম্পাঃ) নিরন্তর লিপ্ত, (নামঃ) অর্থাৎ এই নামের (দেবাঃ) আমোদ-প্রমোদে যদি রত (স্থ) হও (তেষাম্ বঃ) সেই তোমাদের (ইষবঃ) তীর হলো (ওষধীঃ) ঔষধি। (তে) সেই তোমরা (নঃ মৃডত) আমাদের সুখী করো, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের (অভিব্রূত) রাষ্ট্র-রক্ষা সম্বন্ধে অধিক জ্ঞানের কথন করো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) নমস্কার। (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) আমাদের সম্পত্তির আহুতি হোক, প্রদান হোক।

    टिप्पणी

    [ধ্রুবা দিশা হলো পৃথিবী, অতঃ পার্থিব জীবনে লিপ্ত মনুষ্য। দিবু= মোদ-প্রমোদরূপী জীবনাধিকারী (দিবাদিঃ)। তাঁরা ঔষধি উৎপন্ন করে রাষ্ট্রের সেবা করে। অন্নরুপী ঔষধির বর্ণনা মন্ত্র ৩ এ হয়েছে। অতঃ, ওষধিঃ পদ রোগনিবারক ঔষধির জন্য, যুদ্ধে আহত সৈন্যদের জন্য এবং সমস্ত প্রজার রোগ নিরাময়ের জন্য ঔষধির প্রয়োজন। স্বাহা= প্রশংসা বচন হোক, তাঁর/তাঁদের জন্য।]

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    मन्त्र विषय

    যুদ্ধগীতিঃ

    भाषार्थ

    (যে) যে তোমরা (অস্যাম্) এই (ধ্রুবায়াম্) স্থির বা নিশ্চিত (দিশি) দিশায় (নিলিম্পাঃ) লেপনকারী বৈদ্য (নাম) নাম (দেবাঃ) বিজয় অভিলাষী বীর (স্থ) হও, (তেষাম্ বঃ) সেই তোমাদের (ওষধীঃ) অন্ন, সোমলতাদি ঔষধি হলো (ইষবঃ) তীর, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের জন্য (অধি) অধিকারপূর্বক (ব্রূত) বলো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) সৎকার বা অন্ন হোক, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) সুন্দর বাণী [প্রশংসা] হোক॥৫॥

    भावार्थ

    প্রলেপ, পট্টী আদির কর্মকর্তা সদ্বৈদ্য দৃঢ় নিশ্চিত স্থানে ঔষধালয় নির্মাণ করে সৈনিককে সুস্থ রেখে শত্রুদের জয় করে নিজের রাজার জয়জয়কার ঘোষণা করুক, এবং রাজা সৎকারপূর্বক উচ্চ অধিকার প্রদান করে তাঁদের উৎসাহ বৃদ্ধি করুক ॥৫॥

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